water-resources-kya-hai-prakar-aur-upyogita

जल संसाधन क्या है जल संसाधन की आवश्यकता

इस पोस्ट में हम जल संसाधन क्या है, जल संसाधन की उपयोगिता एवं संरक्षण,भारत में जल संसाधन के मुख्य स्रोतों का वर्णन,सिंचाई की आवश्यकता व महत्व का वर्णन,भारत में जल संसाधन के प्रकार,भारत में सिंचाई की आवश्यकता एवं महत्व,भारत में सिंचाई के लाभ आदि विषयों पर चर्चा करेगें और आपको समझाने का प्रयास करेंगे।

जल संसाधन क्या है

देश के आर्थिक-सामाजिक विकास के सन्दर्भ में जल संसाधनों का बहुत महत्व है। पीने के लिए जल की आवश्यकता के अतिरिक्त कृषि, उद्योग परिवहन के क्षेत्र में भी जल संसाधन अत्यन्त महत्वपूर्ण है। भारत में आज भी कृषि के लिए जल प्राप्ति का एक प्रमुख स्रोत वर्षा है, किन्तु मानसून द्वारा जल वर्षा के बारे में अनिश्चितता होती है। इसके अतिरिक्त सारे देश में वर्षा एक जैसी नहीं होती है। इससे बाढ़ आने या सूखा पड़ने की सम्भावना सदैव बनी रहती है। जल का एक महत्वपूर्ण उपयोग ‘शक्ति’ (Power) का उत्पादन भी है। जल शक्ति उत्पादन अन्य शक्ति उत्पादन स्रोतों की तुलना में सस्ता होता है।

भारत में जलं संसाधन के प्रकार

भारत में जलं संसाधनों को मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा जा सकता है –

1. भू-स्तरीय जल (Surface Water) –

इस जल के तीन स्रोत हैं – वर्षा, बर्फ, जो कि पिघल-पिघलकर नदी-नालों में आती है और ओस। भू-स्तरीय जल के कुछ ऐसे भी स्रोत हैं जिन्हें सम्भावित कहा जा सकता है, यथा – समुद्र का खारा पानी जिसे साफ करके उपयोग में लाया जा सकता है अथवा हिमालय की बर्फ, जो कि स्थायी रूप से जमी रहती है। एक अनुमान के अनुसार भारत में भू-स्तरीय जल संसाधनों की कुल मात्रा लगभग 37,000 बिलियन क्यूबिक मीटर है, जिसमें से 33 प्रतिशत जल भाप बनकर उड़ जाता है, लगभग 21.6 प्रतिशत जल भूमि में रिस जाता है और 43.3 प्रतिशत जल नदियों के रास्ते बहता है, जो कि सिंचाई के लिए उपलब्ध है।

भूमि की बनावट, जलवायु, मिट्टी की बनावट और जल के बहाव के कारण नदी  क्षेत्र से प्राप्त जल का मात्र 33 प्रतिशत जल ही सिंचाई के लिए प्रयोग किया जा सकता है। वर्ष 1951 में उपभोग्य क्षमता का मात्र 17 प्रतिशत भाग ही सिंचाई के काम में आता था, जो अब बढ़कर लगभग 50 प्रतिशत हो गया है। स्पष्ट है कि अभी जल संसाधनों का बहुत बड़ा भाग उपयोग किया जा सकता है।

2. भू-गर्भ जल (Underground Water)-

यह जल भूमि के नीचे दो स्रोतों से प्राप्त होता है – 1. वर्षा का जल, जिसका की अवक्षेपण होता है और 2. नदी नालों का वह जो कि भूमि के अन्दर रिसकर चला जाता है। इस प्रकार के भगर्भ जल को गहरी खुदाई करके प्राप्त किया जाता है। जिन स्थानों में वर्षा या नदी का जल नहीं पहुँच पाता, वहाँ इस जल का काफी महत्व होता है। एक अनुमान के अनुसार भारत में लगभग 790 विलियन क्यूबिल मीटर जल रिसकर भूमि के नीचे चला जाता है। इसमें से 430 क्यूबिक विलियन मीटर जल भूमि की ऊपरी सतह पर ही रह जाता है। इसी जल से फसल उपजाने में सहायता मिलती है। शेष 360 बिलियन क्यूबिक मीटर जल भूमि की निचली सतह से रिस जाता है जो भू-गर्भ जल की मात्रा में वृद्धि करता है। ऐसा अनुमान है कि भूगर्भ जल की मात्रा वार्षिक अतिरिक्त उपलब्ध जल से कहीं अधिक है। वर्तमान समय में भू-गर्भ जल में होने वाली वार्षिक वृद्धि का केवल 20 प्रतिशत ही उपभोग में लाया जा रहा है। अतः भूगर्भ जल संसाधनों के उपयोग की भी बहुत सम्भावनायें हैं।

See also  स्पेंसर के सामाजिक उद्विकास का सिद्धांत | Spencer theory of Social Evolution in hindi

देश में इतने जल संसाधनों के बाद भी हम इनका पूर्ण उपयोग करने में असमर्थ रहे हैं। भारत एक कृषि प्रधान देश है, अतः यहाँ सिचाई के लिए जल की बहुत आवश्यकता है। किन्तु कुल कृषिगत क्षेत्र के लिए फिलहाल केवल 30 प्रतिशत भाग में ही सिंचाई की सुविधाएं उपलब्धहैं। इतना ही नहीं हम जल से  जल शक्ति का उत्पादन भी बहुत कम कर पा रहे हैं। स्पष्ट है कि भारत में जल संसाधनों के दोहन और कुशलतम उपयोग की आवश्यकता है।

भारत में सिंचाई की आवश्यकता एवं महत्व

भारत में सिंचाई के लिए आवश्यक जल, नदियों, नहरों, तालाबों, झीलों, कुओं, नलकूपों तथा वर्षा से प्राप्त होता है। भारतीय कृषि आज भी मानसून की कृपा पर आश्रित है। कृषि प्रधान देश में सिंचाई की आवश्यकता स्वाभाविक है। बढती हुई जनसंख्या को खाद्यान्न तथा उद्योगों को कृषिगत कच्चा माल उपलब्ध कराने के लिए सिंचाई का महत्व निरन्तर बढ़ता जा रहा है। भारत में सिंचाई की आवश्यकता एवं महत्व को निम्नलिखित तथ्यों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है –

1. वर्षा की अनियमितता एवं अनिश्चितता –

भारत में वर्षा मानसूनी हवाओं से होती है, जो अनियमित होने के साथ ही अनिश्चित भी है। किसी वर्ष मानसून समय से पहले ही आ जाता है, तो किसी वर्ष देर से। किसी वर्ष शीघ्र समाप्त हो जाता है तो किसी वर्ष देर से। किसी वर्ष वर्षा जल्दी आरम्भ हो जाती है, किन्तु बीच में लम्बा अन्तराल आ जाता है। अनिश्चितता इस रूप में है कि किसी वर्ष वर्षा पर्याप्त होती है तो कभी सूखा पड़ जाता है। एक ही समय में देश के एक भाग में सूखे की स्थिति होती है तो दूसरे भाग में बाद की। अतः यहाँ कृषि के लिए वर्षा पर पूर्णतः निर्भर नहीं रहा जा सकता है। विकल्प के रूप में सिंचाई सुविधाओं की आवश्यकता होती है। किन्तु देश में मात्र 30 प्रतिशत क्षेत्र में सिंचाई की सुविधायें उपलब्ध हैं। भारतीय कृषि मानसून का जुआ है। वर्षा समय पर पर्याप्त हुई तो कृषि उत्पादन बढ़ जाता है, अन्यथा खाद्यान्न समस्या पैदा हो जाती है।

2. वर्षा की मौसमी प्रकृति –

भारत में सामान्यतः वर्षा वर्ष में केवल चार महीने (जून से सितम्बर तक) होती है। यह वर्षा खरीफ की फसल की जल आपूर्ति कर सकती है, किन्तु रबी की फसल के लिए सिंचाई के साधनों की आवश्यकता होती है।

3. वर्षा का असमान वितरण –

भारत के असम, बंगाल, पश्चिमी तटीय प्रदेश में  जहाँ 200 सेमी० से अधिक वर्षा होती है, वहीं हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश राजस्थान, उत्तरी गुजरात आदि प्रदेशों में 75 सेमी0 से भी कम वर्षा होती है। कम वर्षा वाले इन क्षेत्रों में फसल उगाने के लिए सिंचाई के साधनों की आवश्यकता होती है।

4. फसल के विभिन्न प्रकार –

भारत में विभिन्न प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं। जूट, गन्ना, धान आदि फसलें ऐसी होती हैं जिनमें पानी की बहुत आवश्यकता होती है। अतः इन फसलों के लिए भी सिंचाई के साधनों की आवश्यकता होती है।

5. बहु-फसली प्रणाली –

अधिक खाद्यान्न उत्पादन की प्राप्ति हेतु आवश्यक है कि भूमि पर वर्ष में दो अथवा तीन फसलों को उगाया जाए। यह कार्य तभी सम्भव हो सकता है, जब सिंचाई के साधन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हों।

6. अधिक उपज देने वाले बीजों एवं उर्वरकों का प्रयोग –

हरितक्रान्ति कार्यक्रम के अन्तर्गत गेहें, चावल, बाजरा आदि फसलों में अधिक उपज/पैदावार देने वाले बीजों का प्रयोग होने लगा है। इसके साथ-साथ रासायनिक उर्वरका का भी प्रयोग किया जाने लगा है। यह तभी सम्भव है जबकि सिंचाई के साधन पयाप्त मात्रा में सुलभ हो, अन्यथा फसल की वृद्धि ठीक से नहीं होगी और जल के अभाव में पौधे जल/सूख जायेंगे।

See also  पीयरे बाॅर्डियू का सांस्कृतिक संघर्ष सिद्धांत | Pierre Bourdieu in Hindi

7. परती भूमि का उपयोग –

देश के कुछ राज्यों में भूमि का ऐसा बड़ा भाग है जो कि पानी की कमी के कारण कृषि के योग्य नहीं है। इन क्षेत्रों में यदि सिंचाई के साधनों का विकास कर दिया जाए तो परती पड़ी भूमि पर कृषि कार्य सम्भव हो जाएगा। राजस्थान में ‘इन्दिरा नहर‘ के निर्माण से लाखों एकड़ भूमि पर कृषि कार्य किया जा रहा है।

8. सिंचाई सुविधाओं से खाद्यान्न उत्पादन बढ़ता है। उत्पादन कम होने से बढती हुई जनसंख्या के लिये खाद्यान्नं का आयात करना पड़ता है। अतः खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की दृष्टि से सिंचाई की आवश्यकता है।

9. सिंचाई का महत्व सघन कृषि की दृष्टि से भी है। भारतीय खेत छोटे-छोटे और  बिखरे हुये हैं। सघन कृषि तभी संभव है, जब सिंचाई की विशेष सुविधा उपलब्ध हो।

10. नदियों के जल बहाव में अन्तर होने के कारण देश की अधिकांश नदियाँ ग्रीष्ण ऋतु में सूख जाती हैं और कुछ में जल की कमी होने से इनका बहाव कम हो जाता है। अतः इससे बचने के लिये सिंचाई के वैकल्पिक साधन आवश्यक हो जाते हैं। ।

11. देश में रबी की फसलें अधिकांशतः शीत ऋतु में होती हैं, जब बहुत कम वर्षा होती है। यदि सिंचाई सुविधायें अनुपलब्ध हों, तो फसलें सूख जायेंगी और उत्पादन गिर जायेगा।

12. देश में जीविकोपार्जन का प्रमुख साधन कृषि ही है। सिंचाई की पर्याप्त सुविधा न होने से अधिकांश लोगों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस दृष्टि से भी सिंचाई का महत्व है।

सिंचाई के लाभ

सिचाई के निम्नलिखित लाभ होते है-

1. भूमि की उत्पादक शक्ति में वृद्धि होती है।

2. एक से अधिक फसलें उगाई जा सकती हैं।

3. शुष्क एवं अल्प-वृष्टि वाले स्थानों में खेती से पर्याप्त उपज प्राप्त होती है।

4. अतिरिक्त (परती) भूमि को खेती योग्य बनाया जा सकता है।

5. सिंचाई प्रणाली के अन्तर्गत बड़ी नहरों का निर्माण हो सकता है।

6. सरकार के राजस्व में समुचित वृद्धि होती है।

7. नदी घाटी परियोजनाओं से सिंचाई के अतिरिक्त विद्युत उत्पादन किया जाता है।

8. देश की बढ़ती हुई जनसंख्या की खाद्यान्न समस्या का समाधान किया जा सकता है, आदि।

अकाल से सुरक्षा/बचाव/उत्पादन में वृद्धि, चरागाहों का विकास, बाढ़ पर नियन्त्रण,कृषक आय में वृद्धि, ग्रामीण रोजगार में वृद्धि, कृषि पदार्थों की कीमतों के उच्चावचन पर  रोक , आदि की दृष्टि से भी सिंचाई की आवश्यकता होती है।

FAQ-

प्रश्न 1. जल के कितने स्त्रोत है?

उत्तर- जल के तीन स्रोत हैं – वर्षा, बर्फ और ओस।

प्रश्न 2. भारत में जल संसाधन के कितने प्रकार है?

उत्तर- भारत में जल संसाधन के दो प्रकार है- 1. भू-स्तरीय जल (Surface Water)  2. भू-गर्भ जल (Underground Water)

प्रश्न 3. जल को किस मात्रा में मापा जाता है?

उत्तर- जल को क्यूबिक मीटर में मापा जाता है।

प्रश्न 4. भारत में सिंचाई के लिए आवश्यक जल कहाँ से प्राप्त से होता है?

उत्तर- भारत में सिंचाई के लिए आवश्यक जल, नदियों, नहरों, तालाबों, झीलों, कुओं, नलकूपों तथा वर्षा से प्राप्त होता है।

इन्हे भी पढ़ें-

Disclaimer -- Hindiguider.com does not own this book, PDF Materials, Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet or created by HindiGuider.com. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: [email protected]

Leave a Reply