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सामुदायिक विकास कार्यक्रम की असफलता का कारण

सामुदायिक विकास कार्यक्रम की असफलता का कारण

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सामुदायिक विकास कार्यक्रम

सामुदायिक विकास योजना के अन्तर्गत देश के ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त समस्याओं को स्थानीय साधनों से हल करने पर बल दिया गया है। इसमें सरकारी दायित्व केवल आर्थिक सहायता और मार्गदर्शन करना है। भारत में सामुदायिक विकास योजना 1952 ई0 में अखिल भारतीय स्तर पर लागू की गयी थी।

भारतवर्ष में सामुदायिक विकास कार्यक्रम की सफलताओं-असफलताओं तथा उपलब्धियों और अनुपब्धियों को लेकर स्पष्ट रूप से दो विरोधी वर्ग उत्पन्न हैं। एक वर्ग के विचारानुसार यह सम्पूर्ण कार्यक्रम सर्वथा व्यर्थ और निष्फल है, जबकि दूसरे वर्ग का दृढ़ मत है कि सामुदायिक विकास कार्यक्रम सर्वथा महत्वपूर्ण और प्रशंसनीय है।

सर्वप्रथम इस कार्यक्रम की प्रशंसा करने वालों के कथन निम्नवत् प्रस्तुत हैं –

एन्यूरिन बेवन के अनुसार, “सामुदायिक परियोजनायें नये भारत के सर्वाधिक उत्तेजित करने वाले लक्षण हैं। देश का भावी विकास एवं लोकतांत्रिक स्थिरता, इनके द्वारा प्राप्त सफलता की मात्रा पर निर्भर होगा। वे दो वास्तविकताओं की एक मान्यता के साथ प्रारम्भ होती है, जो कि भारतीय जीवन में केन्द्रित है। यदि यह उत्साह सम्पूर्ण शासन में लाया जाये, तो यह हो सकता है कि एक समय ऐसा भी आये, जबकि ताजमहल और मिट्टी के झोपड़ियों का जिन्होंने इसे बनाया, एक दूसरे को आपसी तिरस्कार मे घूमना जारी न रहे।”

एटलांटिक रिपोर्ट के अनुसार- “भारतवर्ष की ग्रामीण सामुदायिक योजना, नेहरू के प्रथम पंचवर्षीय योजना की पूर्णता हेत आवश्यक भाग अपने ढंग का अब तक विश्व के किसी भी भाग में हाथ के लिये गये कार्यक्रमों में सबसे बड़ा है।”

 किंग्सले मार्टिन के शब्दों में- समुदायिक परियोजनायें नये भारत की सर्वाधिक प्रभावी प्रतीक है। सम्भवतः कतिपय पुर्रचनात्मक कार्यों की तुलनाकृत, अधिक बड़ी मनोवैज्ञानिक कीमत रखती है, जो कि अंकीय दटि से अत्यधिक प्रभावोत्पादक है।

सामुदायिक विकास कार्यक्रम की आलोचना करने वालों की संख्या भी कुछ कम नहीं है।

डॉ० ए० आर० देसाई के अनुसार, ‘इस तथ्य के होते हुए भी विचार योग्य वास्तविक सामग्री का संग्रह किया जा चुका है, जो कि कृषक समाज के वर्गगत ढाँचे को प्रदर्शित करती है तथा जो यह भी बताती है कि किस प्रकार से कृषक सर्वहारा वर्ग अनार्थिक नतेदारों की एक बड़ी संख्या तक कुचले हुए कारीगरों का एक विपुल दल  ग्रामीण समुदाय बनाते हैं, इस मूल्यांकनकर्ताओं में से किसी एक ने भी इस प्रश्न का सामना नहीं किया है कि कैसे एक योजना, जो कि अत्यावश्यक रूप से ग्रामीण जनता के उच्च स्तर का समर्थन करती है तथा जो कि मूल रूप से उसको शक्तिशाली बनाने में इस अल्पसंख्या को लाभान्वित करती है, सामुदायिक विकास योजना कही जा सकती है। वास्तविक नाम कम से कम कहने को धोखेबाज नाम है।

इसमें किंचित मात्र भी सन्देह नहीं है कि यह एक अति महत्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्यक्रम है तथा इसमें विभिन्न कमियाँ और दोष भी हो सकते हैं, तथापि यह कथन भी उचित नहीं प्रतीत होता कि इससे सम्बन्धित दृष्टिकोण ही गलत है अथवा इसके सभी अधिकारी और कर्मचारीगण सर्वथा भ्रष्ट, घूसखोर तथा बेईमान हैं। डॉ० श्यामा चरण दुबे ने इस विकास कार्यक्रम का वैज्ञानिक मूल्यांकन प्रस्तुत किया है। आपने आवश्यकतानुसार सामुदायिक विकास कार्यक्रमों की प्रशंसा भी की है और इसके दोषों की कड़ी आलोचना भी की है। उनके शब्दानुसार, भारतीय सामुदायिक विकास योजना एक प्रभावशाली एवं अग्रगामी जोखिम है, इसके फल केवल मात्र एशिया महाद्वीप में ही नहीं, अपितु एशिया के अन्यान्य हिस्सों में भी राजनैतिक तथा सामाजिक विकास के मार्ग पर मार्मिक प्रभाव डाल सकती तथा दूरगामी प्रभाव विश्व स्थिति पर भी डाल सकती है।

डॉ0 दुबे का मत है कि कार्यारम्भ हो चुका है, किन्तु अभी तक इसने भारतीय मानस की कठिन समस्याओं की ऊपरी सतह को छूने के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं किया है। इस महान कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए हमको और अधिक विशेष प्रयार करने चाहिये तथा अधिकाधिक अर्थों में जनसहभागिता भी उत्पन्न करनी चाहिये। इस कार्यक्रम का सर्वप्रमुख दोष यह है कि कृषि उत्पादन पर विशेष बल देने के प्रयास में केवलमात्र कृषि का ही कार्यक्रम बन चुका है। डॉ0 दुवे ने इस कार्यक्रम की बहुमुखी सफलता हेतु रचनात्मकता पर विशेष जोर दिया है तथा लिखा भी है कि, अन्त में, सामुदायिक विकास के ध्येय को प्राप्त करने हेतु अधिक संतुलित योजनायें सम्पूर्ण समाज समुदाय को आच्छादित करते हुये जीवन के अनेक विभिन्न स्वरूपों में विकसित हो जायेंगी। सतर्कता, दूर तक कृषि प्रसार तथा अत्यधिक प्रदर्शनीय परियोजनाओं पर केन्द्रित की जा चुकी हैं, तीव्रता बड़े रूप में द्रष्टव्य सिद्धि पर आसीन है। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवायें एवं शिक्षा को केवल मात्र दाह्य रूप से स्पर्श किया गया है।” अब तक अनभत आवश्यताओं के अनुसार योजना  के प्रतिरोध पर बहुत से भाषण हो चुके हैं, तथापि अधिकतर परियोजनायें आदर्श योजना का कुछ स्थिर कार्य कर रही हैं।

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सामुदायिक विकास कार्यक्रम की असफलता के कारण

1. इस महान कार्यक्रम की विफलता का प्रथम कारण सामुदायिक विकास कार्यक्रम की तीव्र गति थी। इस कार्यक्रम की सफलता हेतु जनसहयोग, जन-सहभागिता को एकत्रित । किये बगैर ही सन 1952 ई0 में अत्यधिक अल्पावधि में इसको प्रारम्भ कर दिया गया। इसके फलस्वरूप सर्वथा कर्मठ, सुशिक्षित, प्रशिक्षित तथा निष्ठावान कर्मचारियों का उपयुक्त चयन भी नहीं हो पाया और जल्दबाजी में सम्पूर्ण कार्यक्रम ही असफल रह गया।

2. सामुदायिक विकास कार्यक्रम की असफलता का द्वितीय कारण-कार्यक्रम का निरंकुश और भ्रष्ट नौकरशाही द्वारा शिकार हो जाना भी है। इससे सम्बन्धित विभिन्न सरकारी उच्चाधिकारियों और कर्मचारियों ने अपनी नौकरशाही प्रवृत्ति के चुंगल में से कार्यक्रम को फंसाकर उसको पतन के गर्त में ढकेल दिया। जिन सरकारी अधिकारियों ने ग्रामों को देखा तक नहीं था, उन्हें ही सरकार ने इसका कर्ता-धर्ता बन दिया, इससे कार्यक्रम की आत्मा ही मर गई।

3. इसकी विफलता के लिये उत्तरदायी तृतीय कारण यह है कि इसको जनता पर बलात् लादा गया था। बाह्य रूप में यह कार्यक्रम कहने को तो ‘जनता का कार्यक्रम ही था, तथापि इससे सम्बन्धित सम्पूर्ण रूपरेखा और योजनायें- राजधानियों में उच्चाधिकारियों की मनमर्जी से निर्मित होती थीं। इसके परिणामस्वरूप यह योजना कागजी शेर साबित हुई।

4. सामुदायिक विकास कार्यक्रम की असफलता का चतुर्थ प्रमुख कारण यह था। कि यह कार्यक्रम मन्त्रियों और अधिकारियों की सनक का शिकार बन गया था। सामुदायिक विकास कार्यक्रम एक प्रदर्शन और तमाशे के रूप में मनाया जाता था. एक कार्यक्रम प्रारम्भ होता था जो दुसरा उसका स्थान ग्रहण कर लेता था। इसके अन्तिम परिणामस्वरूप इससे सम्बन्धित कार्यकर्ता भी परेशान हो गये और उनकी निष्ठा भी समाप्त हो गई। इससे स्पष्ट है कि लालफीताशाही ने भी इसको विफल बनाया है।

5. प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं का अभाव भी सामुदायिक विकास कार्यक्रम की असफलता का एक प्रमुख कारण माना जाता है। प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की अनुपस्थिति में कार्यक्रम वास्तविक रूप से क्रियान्वित ही नहीं हो पाया।

6. इस कार्यक्रम में सुपरिभाषित प्राथमिकताओं का भी अभाव था। वस्तुतः सम्पूर्ण कार्यक्रम इतन अधिक विस्तत और व्यापक बनाया गया था कि सभी कार्य एक साथ प्रस्तुत किय गय थे और इस प्रकार सपरिभाषित प्राथमिकताओं को विरगत किया गया था। इसका परिणाम यह हुआ कि योजनाओं से सम्बन्धित कोई भी सुव्यवस्थित ढंग से नहीं किया जा सका।

7. इनकी विफलता का सातवा कारण यह था कि ग्रामीण क्षेत्रों में नेतृत्व का सही विकास नहीं किया गया था। इसके फलस्वरूप सम्पन्न लोग नेता बन बैठे और कार्यक्रम को विफल कर दिया गया।

8. सामुदायिक विकास कार्यक्रम की विफलता का एक कारण यह भी था कि इस कार्यक्रम में जनसहभागिता प्राप्त करने का विशेष प्रयास भी नहीं किया गया था। इसके परिणाम कार्यक्रम आगे बढ़ता गया और ग्रामीण जनता निरन्तर पीछे हटती गई।

9. इस कार्यक्रम में मानवीय कारकों को महत्व नहीं प्रदान किया गया। ग्रामीण समुदाय में व्याप्त ऊँच-नीच और छुआ-छूत के कारण सभी लोग एक साथ किसी कार्यक्रम में सम्मिलित नहीं हो पाते हैं तथा वे बाहर से आये अजनबी लोगों से भी सशंकित रहते हैं। ग्रामीणों का सरकारी अधिकरियों और कर्मचारियों पर भी विश्वास नहीं है, क्योंकि भूतकाल में यही वर्ग उनका शोषण करता रहा है। इसके फलस्वरूप भी कार्यक्रम को विफल होना पड़ा।

10. सामुदायिक विकास कार्यक्रम की असफलता का एक अन्य कारण यह भी था कि ग्रामीण जनमानस में कार्यक्रम के प्रति उत्साह जाग्रत करने का भी विशेष प्रयास नहीं किया गया, इससे ग्रामवासी सर्वथा विमुख ही बने रहे।

11. यह कार्यक्रम इसलिये भी विफल हुआ कि विकास खण्डों का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत था, जिससे गहन रूप से कार्य नहीं सम्भव हआ। ग्राम सेवकों को भी एक बडे क्षेत्र में नियुक्त किया गया, जिससे वे पारस्परिक सम्पर्क भी स्थापित नहीं कर सके।

12. इस कार्यक्रम में सांस्कृतिक कारणों पर भी पर्याप्त बल नहीं प्रदान किया गया । प्रत्येक कार्यक्रम की सफलता हेतु यह अत्यन्त आवश्यक होता है। सांस्कृतिक कारकों के अन्तर्गत आदतें और रुचियाँ प्रथा-परम्परायें, रीति-रिवाज, धार्मिक विश्वास, सामाजिक मूल्य और आदर्श आदि को इन कार्यक्रमों में कोई भी स्थान प्राप्त नहीं था, जिससे इसको असफलता प्राप्त हुई।

13. सामुदायिक विकास कार्यक्रम की असफलता का एक अन्य कारण यह भी था कि इसमें समाज शिक्षा पर कम ध्यान दिया गया। समाज शिक्षा को केवलमात्र प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम तक ही सीमित रखा गया। सन् 1960 के पश्चात् तो कार्यक्रम से समाज शिक्षा का समाप्त ही कर दिया गया। इसके परिणामस्वरूप सम्पूण कार्यक्रम ही ध्वस्त हो गया।

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14. कार्यक्रम की विफलता का एक अन्य प्रमुख कारण यह भी था कि इस कार्यक्रम में श्रमदान को एक बेगार के रूप में प्रयुक्त किया गया था। इससे ग्रामीणों को यह अनभव हुआ कि सरकार उनसे अपने ही लाभ हेतु कार्य करवा रही है।

15. इस कार्यक्रम में महिलाओं का योगदान भी कम रहा है। कार्यक्रम में ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं ने इसमें विशेष योगदान नहीं किया, जिससे ग्राम सेविकाओं तथा महिला  विकास अधिकारियों की कमी रही। ग्रामीण स्त्रियों में व्याप्त रुढ़िवादिता, अन्धविश्वास तथा अशिक्षा आदि ने भी कार्यक्रम के विफल बनाया है।

16. सामुदायिक विकास कार्यक्रम की विफलता का एक अन्य कारण सरकारी का दुरुपयोग भी है। सकार द्वारा प्रदत्त साधनों तथा सुविधाओं का कर्मचारियों ने किया और इनसे सम्बन्धित साधनों का शोषण किया। प्रायः अधिकारीगण सरकारी हाल पर घूम-फिरकर अपन-अपना भत्ता ही बनात रहे है। इसके अन्तिम परिणामस्वरूप भी कार्यक्रम अपेक्षित सफलता नहीं प्राप्त कर सका है।

17. इस कार्यक्रम में सही पूर्वानुमान का अभाव भी इसकी असफलता हेतु उत्तरदायी सिद्ध हुआ। इस कार्यक्रम में वास्तविक आवश्यकतायें कुछ और होती थीं, जबकि क्रियान्वयन कुछ और होता था।

18. सामुदायिक विकास संगठनों तथा सरकारी विभागों में नीति सम्बन्धी पारस्परिक समन्वय की कमी ने भी कार्यक्रम को असफल बनाया है।

19. कार्यक्रम में सरकारी सहायता पर अत्यधिक निर्भरता ने भी इसकी विफलता के मार्ग प्रशस्त किये गये हैं।

20. कार्यक्रम से उपलब्ध लाभों के असमान वितरण के परिणामस्वरूप भी यह कार्यक्रम ध्वस्त हआ। इस कार्यक्रम के यह बड़ी कमी रही है कि इससे उत्पन्न सभी उपलब्धियाँ और सुविधायें केवल बड़े और सम्पन्न लोगों को ही प्राप्त हुई तथा निर्धन, पिछडे और पददलित वर्ग के समुदाय इससे वंचित रह गये, जबकि कार्यक्रम इन्हीं के लिये संचालित किया गया था।

सामुदायिक विकास कार्यक्रम की सफलता हेतु सुझाव

1. कार्यक्रम को सरकारी लालफीताशाही तथा नौकरशाही के शिकंजे से विमुक्त कराया जाये।

2. विकास खण्डों का क्षेत्र अधिक विस्तत न रखकर सीमित बनाया जाये।

3. कार्यक्रम का विकास शनैः-शनैः सुव्यवस्थित और मन्द गति से सम्पन्न होना चाहिये।

4.. कार्यक्रम को ग्रामीण जनमानस पर बलात न लादा जाये, अपितु जनता को इसमें सहर्ष और स्वेच्छा से ही सम्मिलित करना अधिक श्रेयस्कर और उचित होगा।

5. कार्यक्रम में जनसहभागिता को अधिकाधिक बढ़ाया जाये।

6. सम्पूर्ण कार्यक्रम में स्थायित्व भी लाया जाये तथा कि कार्यक्रम को खूब सोच-विचार कर ही प्रारम्भ किया जाये तथा एक बार प्रारम्भ किया गया कार्यक्रम सम्पूर्ण विधि से सफल बनाने का प्रयास भी किया जाये।

7. विकास कार्यक्रम में सर्वथा सुपरिभाषित प्राथमिकतायें ही निश्चित की जानी चाहिए।

8. ग्रामीण जनमानस में सामुदायिक विकास कार्यक्रमों के महत्व का प्रचार-प्रसार भी किया  जाये तथा उनमें कार्यक्रम के प्रति निष्ठा और उत्साह भावना भी जाग्रत की जानी चाहिए।

9. सम्पूर्ण कार्यक्रम में सर्वथा सुशिक्षित, प्रशिक्षित, कर्मठ, उत्साही तथा निष्ठावान कर्मचारियों  की ही नियुक्ति की जाये।

10. कार्यक्रम के मानवीय तथा सांस्कृतिक कारणों को भी महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया जाये।

11. समाज शिक्षा कार्यक्रम पर और भी अधिक ध्यान दिय जाना चाहिए तथा इसके क्षेत्र को और अधिक विस्तृत किया जाये।

12. सरकरी सेवा समितियों का तीव्रतापूर्वक विकास भी होना चाहिये, जिससे संयुक्त क्रय-विक्रय की विभिन्न सुविधायें उपलब्ध हो सकें।

13. भूमि संरक्षण पर और अधिक ध्यान प्रदान किया जाना उचित होगा।

14. ग्राम विकास से सम्बन्धित समस्त संस्थाओं में पूर्ण समन्वय स्थापित किया जाना चाहिए।

15. कार्यक्रम के अन्तर्गत अकुशल श्रमिकों के उपयोग की व्यवस्था भी की जानी चाहिए।

16. सम्पूर्ण कार्यक्रम में निर्धन, दरिद्र और पिछड़े वर्ग के लोगों की सामाजिक-आर्थिक  प्रगति हेतु विशेष व्यवस्था होनी चाहिए।

17. पशुपलन, मत्स्य पालन, मधुमक्खी पालन, ग्रामोद्योग तथा लघु कुटीर उद्योगों के अनुसंधान कार्यों में अपूर्व वृद्धि की जानी चाहिए।

18 सामदायिक विकास कार्यक्रम से सम्बन्धित प्रशासनिक कुशलता में भी वद्धि की जानी चाहिए।

19. सहकारी आन्दोलन में वृद्धि करके इसको प्रोत्साहित भी किया जाना चाहिए।

20. परिवार नियोजन को सरकार और जनमानस दोनों के ही द्वारा अधिकाधिक महत्व प्रदान किया जाये।

 

 

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