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पीटर बर्जर और थॉमस लकमैन-सोशल कंस्ट्रक्शन ऑफ रिएलिटी

पीटर बर्जर और थॉमस लकमैन : सोशल कंस्ट्रक्शन ऑफ रिएलिटी |Peter Berger & Thomas Luckmann: Social Construction of Reality

 

वास्तविकता की सामाजिक रचना पर बर्जर एवं लुकमान के विचार

ज्ञान के समाजशास्त्र से सम्बन्धित दो विद्वानों का घटनाशास्त्रीय दृष्टिकोण विकास में महत्वपूर्ण स्थान है। ये विद्वान हैं बर्जर और लुकमान । इन विद्वानों की मान्यता के विषय में ‘वैलेस’ तथा ‘उल्फ’ ने लिखा है, “उनकी आधारभूत मान्यता है कि दैनिक वास्तविकता एक समाज द्वारा निर्मित व्यवस्था है, जिसमें लोग घटनाओं को वास्तविकता की एक निश्चित व्यवस्था प्रदान कर देते हैं।” उनके विचार से सामाजिक वास्तविकता अन्तरंग या वैयक्तिक भी होती है और वैषयिक भी। जहाँ तक सामाजिक वास्तविकता के वैषयिक होने का प्रश्न है, दुर्खीम आदि सभी विद्वानों ने समाज को व्यक्ति से पृथक और।स्वतन्त्र अस्तित्व रखने वाली घटना कहा है, जिसका निर्माण व्यक्तियों के पारस्परिक सम्मिलन और अन्तःक्रिया से होता है। समाज व्यक्ति के ऊपर है, उससे अधिक शक्तिशाली है, और उसके लिए एक बाहरी चीज है। स्वयं व्यक्ति समाज की उपज है। इस दृष्टिकोण को हम समष्टिवादी दृष्टिकोण कह सकते हैं।

किन्तु सामाजिक वास्तविकता का एक अंतरंग और वैयक्तिक पक्ष भी है। समाज का अर्थ व्यक्ति अपने अनुभवों के आधार पर लगाता है। हर व्यक्ति के लिए दुनिया एक जैसी नहीं, किसी के लिए यह संसार दुख का सागर है, किसी के लिए रंगीनियों का आलम और किसी के लिए कर्तव्य पूर्ति का दैवी अवसर। ये सब अर्थ शक्ति के द्वारा समाज को दिये गये हैं। मनुष्य इस समाज में केवल निष्क्रिय और गुलाम जीव नहीं है, बल्कि विचारों, व्यवस्थाओं और आदर्शों का सृष्टा है। वह वस्तुओं को, घटनाओं को, व्यक्तियों को और क्रियाओं को अर्थ प्रदान करता है। इसे हम समाज की व्यष्टिवादी व्याख्या कह सकते हैं। बर्जर और लुकमान ने सामाजिक वास्तविकता के पक्ष को स्पष्ट करते हुए लिखा है, ” दैनिक जीवन एक ऐसी वास्तविकता के रूप में प्रकट होता है, जिसकी व्याख्या स्वयं मनुष्य करते हैं और जो एक सम्यक संसार के रूप में उनके लिए अर्थपूर्ण होता है।” ।

घटनाशास्त्रीय दृष्टिकोण प्रत्यक्षवाद के विरोधी दृष्टिकोण के रूप में विकसित हुआ है। हुर्सन को घटनाशास्त्रीय दृष्टिकोण का प्रणेता कहा जाता है। टिमाशेफ (Timasheff) के अनुसार, हर्सल का घटनाशास्त्रीय दर्शन प्रत्यक्षवाद का विरोध करता है। प्रत्यक्षवाद की मान्यता है कि वैज्ञानिक अपनी पाँच ज्ञानेन्द्रियों द्वारा संसार की खोज कर सकते हैं, जिसके द्वारा वैषयिक वास्तविकता का सही पता लगाया जा सकता है। घटनाशास्त्रीय दृष्टिकोण इस मान्यता को इस आधार पर चुनौती देता है कि प्रत्यक्षवाद मनुष्य की बुद्धि के, उसके मस्तिष्क के अस्तित्व को स्वीकार करता है। प्रत्यक्षवाद मानव मस्तिष्क को एक खाली डिब्बा समझता है, जो केवल बाहर से विचार प्राप्त करता है, स्वयं विचारों का निर्माण नहीं करता। हर्सन का कहना है कि यह सत्य है कि मनुष्य से पृथक एक बाहरी संसार है, किन्तु उसका ज्ञान मनुष्य की आन्तरिक चेतना के आधार पर होता है। अतः इसकी व्याख्या तभी की जा सकती है जब हम इस वास्तविकता को सामाजिक सृष्टि मान लें। इस प्रकार जब समाजशास्त्र में इन्द्रियग्राह्य (Empirical) या अनुभवसिद्ध आधारों को चुनौती दी गई और यह कहा गया कि कोई ऐसा वैषयिक वैज्ञानिक ज्ञान सम्भव नहीं है, जो अध्ययनकर्ता अन्तरंग चेतना से प्रभावित न हों, तो घटनाशास्त्रीय समाजशास्त्र का जन्म हो गया। अतः माॅरगन का यह कथन ठीक है कि हमें याद रखना चाहिए कि घटनाशास्त्रीय समाजशास्त्र का नवप्रत्यक्षवाद का प्रतिवाद समझा जाना चाहिए।

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बर्जर और लकमैन की संस्था की अवधारणा

 अमेरिकी समाजशास्त्री बर्जर एवं लकमैन का मत है कि सामाजिक वास्तविकता का निर्माण लोगों के जीवित रहने और दूसरों के साथ अन्तःक्रिया करने के लिए आवश्यक है। लोग क्रिया के आदत प्रतिमानों को निर्मित करते हैं। उनका कहना है कि आदत के अभाव में जीवन असम्भव हो जायेगा और यह अत्यत्न कठिन कार्य है कि हम हर एक नई स्थिति से सही क्रिया को ही निर्धारित करें। क्रियाओं का आदतीकरण संस्था के विकास का एक चरण है। बर्जर और लकमैन संस्था को वर्गीकरण की पारम्परिक क्रिया मानते हैं। इस अर्थ में उनकी संस्था की अवधारणा समाजशास्त्रीय अवधारणा से भिन्न है। उनका कथन है कि संस्थाएँ मनुष्य के व्यवहार को नियंत्रित करती है। 

पीटर बर्जर तथा थॉमस लकमैन अमेरिकी समाजशास्त्री हैं, जिन्होंने ज्ञान के समाजशास्त्र, घटना क्रिया विज्ञान एवं लोकविधिशास्त्र के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है। दोनों ने मिलकर ‘वास्तविकता का सामाजिक निर्माण कार्य (The Social Construction of Reality) नामक पुस्तक की रचना की है। यह पुस्तक ज्ञान के समाजशास्त्र के नियमों का अत्यन्त स्पष्ट व्याख्या करती है। सामाजिक परिवर्तन एवं राजनीतिक आचारों के सम्बन्धों का व्यक्त करने वाली एक अन्य पस्तक ‘पिरामिस ऑफ सैक्रीफाइस‘ (1974) में बर्जर ने सामान्यतः दो परस्पर सम्बद्ध विषयों का सूक्ष्म विश्लेषण प्रस्तुत किया है। 1. तीसरे विश्व का विकास तथा 2. सामाजिक परिवर्तन से सम्बन्धित आचार उन्होंने पुस्तक के आरम्भ में ही ऐसी 25 मौलिक प्रस्थापनाओं को प्रस्तुत किया है, जो कि सामाजिक परिवर्तन, विकास तथा आधुनिकता के विषयों से सम्बन्धित है।

पाटर बर्जर ने अपनी एक अन्य रचना ‘आधुनिकता से समानता‘ में आधुनिकता की पाँच मुख्य विशेषताओं तथा असमंजसों का उल्लेख किया है-

  1. सुगठित और सुसम्बद्ध समुदायों का कमजोर होना।
  2. समय एवं नौकरशाही के कार्यक्रमों के प्रति सनकपन की स्थिति की सीमा।
  3. मानवीय इच्छा को निर्बल करने वाली ‘स्वातन्त्रीकरण’ की प्रक्रिया का प्रोत्साहित करना।
  4. व्यक्ति तथा समाज के बीच द्वैधात्मक स्थिति के कारण उत्पन्न संकट तथा अलगाव।
  5. अर्थपूर्ण जगत में विश्वास को निर्बल करता हुआ निरन्तर वृद्धि करता हुआ धर्मनिरपेक्षीकरण या लौकिकीकरण।
  6. पीटर बर्जर की रचनाओं की एक मुख्य विशेषता यह है कि वह अपनी व्याख्याओं द्वारा सामाजिक संरचना की दमनकारी शक्तियों का मानवीय स्वायत्तता के साथ सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करते हैं।

बर्जर एवं लकमैन के विचारानुसार घटना क्रिया विज्ञान के अन्तर्गत वास्तविकता (Reality) को जानने/समझने का प्रयास किया जाता है। वास्तविकता वही होती है, जिसकी व्याख्या समाज के सदस्यों द्वारा उनकी दैनिक जीवन की क्रियाओं के आधार पर की जाती है। बर्जर के अनुसार, एक समाजशास्त्री के लिये अत्यावश्यक है कि वह सामाजिक संसार की व्याख्याओं का ज्ञान प्राप्त करे। समाज का निर्माण स्वयं मनुष्य द्वारा ही होता है तथा समाज एक वस्तुनिष्ठ यथार्थ/वास्तविकता है, जबकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी। उनका विचार है कि ज्ञान का समाजशास्त्र असामान्य है तथा उसका सम्बन्ध वास्तविकता की सामाजिक रचना या निर्माण से होता है।

बर्जर एवं लकमैन ने घटना क्रिया विज्ञान (फिनेमिनोलॉजी) की व्याख्या करने में निम्नलिखित विशिष्ट शब्दों को प्रयुक्त किया है –

1. दैनिक जीवन में वस्तुनिष्ठता (Objectivity in Every day Life) –

वैयक्तिक स्तर पर बर्जर एक लकमैन का विश्लेषण दैनिक जीवन में विद्यमान वास्तविकता से आरम्भ होता है। उनका कथन है कि वस्तुनिष्ठता की प्रवृत्ति भाषा में निहित होती है, जो निरन्तर दैनिक जीवन को अर्थ प्रदान करती है। सामाजिक जगत चेतन प्रक्रिया की सांस्कृतिक उत्पत्ति है। बर्जर एवं लकमैन ने व्यक्ति/व्यक्तियों की आमने-सामने की अन्तःक्रिया को ‘हम सम्बन्ध’ के नाम से सम्बोधित किया है, जिसका अभिप्राय लोगों के मध्य पाये जाने वाले उन सम्बन्धों से है, जिनसे उनकी घनिष्ठता कम होती है या वे अनभिज्ञ होते हैं। बर्जर एवं लकमैन ने सामाजिक संरचना की व्याख्या करते हुये कहा है कि सामाजिक ढांचा अन्तःक्रिया की निरन्तर पुनरावृत्ति और उनके प्रकारों द्वारा निर्मित होते हैं। उनका यह भी विचार है कि भाषा मौखिक संकेतों की वह व्यवस्था है जो समाज के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण है। वास्तव में भाषा व्यवस्था एक मुख्य सामाजिक संरचना है।

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2. संस्थाकरण (Institutionalization)-

बर्जर एवं लकमैन के विचारानुसार, सामाजिक वास्तविकता की रचना लोगों के जीवित रहने और दूसरे लोगों के साथ अन्तःक्रिया करने के लिए एक प्रकार से अनिवार्य है, क्योंकि व्यक्ति क्रिया के अनुरूप ही प्रतिमानों को निर्मित करता है। उन्होंने यह भी स्वीकार किया है कि आदत के अभाव में दैनिक जीवन कठिन एवं असम्भव हो जायेगा। फिर यह कार्य अत्यधिक कठिन भी है कि, व्यक्ति प्रत्येक नई परिस्थिति में नवीन क्रिया को निर्धारित करे। क्रियाओं का ‘ईदतीकरण’ संस्था के विकास का पहला चरण होता है। बर्जर एवं लकमेन का मत है कि संस्थाओं को वगीकृत की पारस्परिक क्रिया मानना चाहिये । उनका विचार है कि मानव व्यवहार को संस्थाओं के द्वारा नियन्त्रित और नियमित किया जाता है।

3. भूमिकायें (Roles)-

बर्जर एवं लकमैन ने भूमिका की व्याख्या करते हुये स्पष्ट किया है कि भूमिकायें वास्तव में, वस्तुनिष्ठ सामाजिक यथार्थ/वास्तविकता का एक अत्यन्त विशिष्ट स्वरूप होती है। बर्जर एवं लकमैन का विचार है कि भूमिकायें एक प्रदत्त सामाजिक प्रस्थिति में कर्ता से की जाने वाली अपेक्षित क्रिया है। भूमिका इसलिये भी आवश्यक है। कि यह लघु और वृहद् दोनों ही प्रकार के समाजों में मध्यस्थता करती है। उनका मत है कि भूमिका विश्लेषण ज्ञान के समाजशास के लिये आवश्यक नहीं, अपरिहार्य भी है।

4. रिइफीकेशन (Reification)-

बर्जर एवं लकमैन ने ‘रिइफिकेशन’ शब्द की व्याख्या एक ‘व्यक्तिनिष्ठ तथ्य के रूप में की है। वे मानवीय तथ्यों को इस रूप में अवलोकन करने का प्रयास करते हैं, जैसे वे मानव से परे या अमानवीय तथ्य हो । बर्जर एवं लकमैन की मान्यतानुसार, ‘रिइफिकेशन’ मानवीय उत्पादों को इस प्रकार से देखने की प्रवृत्ति है, जैसे कि वे कोई अन्य तथ्य हों। वे रिइफिकेशन के अन्य पक्षों की उपयोगिता को स्वीकार नहीं करते हैं।

5. वैधीकरण (Legitimations)-

बर्जर एवं लकमैन का विचार है कि वैधता अथवा वैधीकरण द्वारा संस्थात्मक व्यवस्था का विश्लेषण किया जाता है और उसकी वैधता का पता लगाया जाता है। उन्होंने समाज की व्यक्तिनिष्ठ विशेषताओं का वर्णन किया और ज्ञान के समाजशास्त्र को भी प्रस्तुत किया है, लेकिन वे समाज को एक वस्तुनिष्ठ वास्तविकता के रूप में स्पष्ट करने में असफल सिद्ध हये हैं। बर्जर एवं लकमैन की इस कमजोरी के। बाद भी घटना क्रिया विज्ञान के क्षेत्र में उनके विचारों का महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उन्होंने घटना क्रिया विज्ञान को उसके परम्परागत स्वरूप के स्थान पर एक नवीन आयाम प्रदान किया है।

 

 

 

इन्हें भी देखें-

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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