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समाजशास्त्रीय सिद्धांत के प्रकार को समझाइए

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समाजशास्त्रीय सिद्धान्त का अर्थ एवं परिभाषा

मोटे तौर पर सिद्धान्त से तात्पर्य एक ऐसे नियम से है, जिसमें वैज्ञानिकता, सत्यता एवं सर्वव्यापकता पाई जाती है। ये सिद्धान्त तथ्यों एवं घटनाओं को समझने में बडे सहायक होते हैं। प्रत्येक विषय के समान समाजशास्त्र की अपनी अध्ययन सामग्री के सुव्यवस्थित विवेचन, वर्णन तथा विश्लेषण हेतु कुछ सिद्धान्तों का निर्माण करता है।

रॉबर्ट के0 मर्टन के अनुसार, ” व्यवस्थित समाजशास्त्रीय प्रारम्भिक सिद्धान्तों के विभिन्न भागों का संग्रह है, जो कि अनुसन्धान कार्य द्वारा जाँच के बाद भी अपना अस्तित्व बनाए हुए है। एक अन्य स्थल पर उन्होंने कहा है कि, समाजशास्त्रीय सिद्धान्त तर्क पर आधारित वे अवधारणाएं हैं, जो कि क्षेत्र की दृष्टि से सीमित तथा आडम्बरहीन है, न कि विशाल तथा समग्र को सम्मिलित करने वाली।”

 

समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों के प्रकार

समाजशास्त्रीय सिद्धान्त कई प्रकार के हैं, क्योंकि विभिन्न समाज वैज्ञानिकों ने उन्हें भिन्न-भिन्न तरीकों से प्रस्तुत/प्रदर्शित किया है। 1920 ई० में प्रकाशित पुस्तक ‘कान्टेम्पोरेरी सोशियोलॉजिकल थ्योरी‘ में पिटिरिम सोरोकिन ने समकालीन समाजसास्त्रीय सिद्धान्तों को वर्गीकृत कर उन्हें सम्प्रदायों के आधार पर विभाजित किया। इन सम्प्रदायों का निर्धारण आधारभूत समस्याओं के सैद्धान्तिक हल के प्रकारानुसार सम्पन्न किया गया था। उदाहरणार्थ- सामाजिक जीवन पर भौगोलिक परिस्थितियों का क्या तथा कितना प्रभाव पड़ता है? इस समस्या का उत्तर देने वालों को भौगोलिक सम्प्रदाय का सदस्य माना गया और इसी सम्प्रदाय के अन्तर्गत आने वाले विचारकों और समाजशास्त्रियों के सिद्धान्तों को एक वर्ग या प्रकार का स्वीकृत किया गया।

एक अन्य विधि से भी समाजशास्त्रीय सिद्धान्त के प्रकारों का उल्लेख सम्भव हुआ है। इसके अनुसार सभी समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों को ऐसे ऐतिहासिक क्रमानुसार प्रदर्शित किया जाये कि जैसे वह प्रतिपादित किये गये थे। इस प्रकार के ऐतिहासिक क्रमानुसार सिद्धान्तों का प्रस्तुतीकरण हम जे. एल. लिचेनबर्गर की पुस्तक Development of Social Theory में देख सकते है।

अन्यान्य समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों को तत्कालीन भौगोलिक क्षेत्रानुसार भी विभाजित किया जा सकता है, जिससे सम्बन्धित सिद्धान्त प्रवर्तक विद्वान रहते हैं। An Introduction to the History of Sociology नामक पुस्तक में एच.ई.बार्न्स ने इसी विधि के समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों का वर्णन किया है।

समाजशास्त्रियों के एक अन्य वर्गानुसार यह मत भी प्रकट किया गया है कि साजशास्त्रीय सिद्धान्तों के विभिन्न प्रकारों का वर्गीकरण अध्ययन वस्तु की प्रकृति के आधार पर अथवा सिद्धान्त प्रतिपादक द्वारा निर्मित दृष्टिकोण के आधार पर सम्भव हो। जैसे कछ सिद्धान्त सामाजिक सम्बन्धों के सन्दर्भ में उपस्थित है। इन सभी सिद्धान्तों को। सामाजिक सम्बन्धों के सिद्धान्त के रूप में समाजशास्त्रीय सिद्धान्त का एक प्रकार माना जाये। इसी प्रकार अपराध सम्बन्धी सिद्धान्तों को एक दूसरे का सिद्धान्त माना जाये।

एक अन्य समाजशास्त्री रॉबर्ट के. मर्टन ने समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया है। प्रथम को उन्होंने समाजशास्त्रीय सिद्धान्त की सम्पूर्ण व्यवस्थायें’ (Total system of Sociological Theory) और द्वितीय को ‘मध्य-अभिमीसा के समाजशास्त्रीय सिद्धान्त’ (Sociological theories of Middle-Range) की संज्ञा से विभूषित किया है।

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डॉन मार्टिनडेल के अनुसार समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों के प्रकार

सन् 1961 में प्रकाशित ‘The Nature and Types of Sociological Theory’ नामक पुस्तक में डॉ. डॉन मार्टिनडेल ने समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों के विभिन्न प्रकारों का वर्गीकरण वाद (Ism) के आधार पर निम्नांकित विधि से प्रस्तुत किया है-

(1) प्रत्यक्षात्मक सावयवीवाद (Positivistic Organicism)-

इस शीर्षक के अन्तर्गत उन सिद्धान्तों का उल्लेख किया गया है, जिनमें सामाजिक घटना की व्याख्या या विवेचना को किसी भी रूप में विचारक आगस्ट काम्टे, हर्बर्ट, स्पेन्सर, लेस्टरबार्ड, टॉनीज तथा इमाईल दुर्खीम कृत सिद्धान्तों को इसी वर्ग में सम्मिलित किया गया है। इसके अतिरिक्त विल्फ्रेडो पैरेटो तथा डॉ. सिगमांड फ्रायड के सिद्धान्त भी इसी में रखे गये हैं, क्योंकि इन्हीं विद्वानों ने उपर्युक्त समाजशास्त्रियों द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों में रूपान्तरण किया है।

(2) संघर्ष का सिद्धान्त (Theory of Conflict)-

मार्टिनडेल ने इस वर्ग में उन सिद्धान्तों का समावेश किया है, जो मनुष्य जीवन और मनुष्य समाज में संघर्ष की स्थिति से सम्बन्धित है। जोनबोग्नि, हॉब्स, ह्यम, आदि समाजशास्त्रियों तथा बाद में अन्यान्य विचारक स्पेन्सर, समनर तथा कार्ल मार्क्स आदि के द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं। समाजशास्त्रीय संघर्ष सिद्धान्तों में बेजहॉट, रैटजैनहोफर, स्माल तथा ओपेनहाइमर आदि अन्य सुप्रसिद्ध विचारक माने जाते हैं।

(3) स्वरूपात्मक सम्प्रदाय (Formal School) –

मार्टिनडेल ने इस वर्ग में उन सिद्धान्तों को शामिल किया है, जिनको स्वरूपात्मक सम्प्रदाय के समाजशास्त्रियों द्वारा निरूपित या प्रतिपादित किया गया है। इसके अनुसार समाजशास्त्र का अध्ययन विषय ‘मानवीय सम्बन्धों का स्वरूप’ अथवा ‘समाजीकरण का स्वरूप’ होता है। प्रसिद्ध समाजशास्त्री जार्ज सिमैल, वीर कान्त, वॉन-वीजे आदि के सिद्धान्त इसी वर्ग में रखे गये हैं।

(4) सामाजिक व्यवहारवाद (Social Behaviorism)-

इस वर्ग में उन सिद्धान्तों का समावेश किया गया है, जो सामाजिक व्यवहार अथवा क्रिया से सम्बन्धित होते हैं। टार्ड कृत ‘अनुकरण का सिद्धान्त तथा ली. बोन द्वारा प्रतिपादित भी व्यवहार से सम्बन्धित’ सिद्धान्त इसी वर्ग में रखे गये हैं। इसके अतिरिक्त गिडिंग्स,रौस, चार्ल्सकले विलियम थामस ,जाज भीड, मैक्सवेवर वेब्लन तथा टालकॉट पारसन्स आदि के सिद्धान्तों को भी इसी वर्ग में सम्मिलित किया गया है।

(5) समाजशास्त्रीय प्रकार्यवाद (Social Functionalism)-

डॉन मार्टिनडे ने इस वर्ग में उन समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों का समावेश किया है, जिनका निरूपण समाज के निर्माणक अंगों अथवा इकाइयों के प्रकार्यों के सन्दर्भ में किया है। समाजशास्त्री हर्बर्ट स्पेन्सर, इमाइल दुर्खीम, विल्फ्रेडे पैरेटो, मेलिनोवस्की तथा रेडक्लिफ ब्राउन द्वारा प्रतिपादित प्रकार्यात्मक सिद्धान्त इसके ज्वलन्त उदाहरण है। इस सन्दर्भ में आधुनिक प्रवृत्ति, सामाजिक संरचना तथा प्रकार्यों के अन्तर्सम्बन्धों व आत्मनिर्भरता का विश्लेषण करना होता है तथा – इस सन्दर्भ में मर्टन व पारसन्स का सिद्धान्त अधिक उल्लेखनीय माना जाता रहा है।

वाल्टर वैलेस के अनुसार समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों के प्रकार

अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘Sociological Theory’ में वाद (Ism) पर आधारित निम्नलिखित प्रकारों का वर्णन किया है-

(1) परिस्थितिवाद (Ecologism)-

वैलेस ने इस वर्ग में उन सिद्धान्तों को रखा है, जो मानवीय परिस्थितिकी (Human ecology) से सम्बद्ध है। सिद्धान्त में मानव और उसके अमनवीय पर्यावरण (Non human environments) के मध्य आन्तरिक सम्बन्धों की विशद व्याख्या होती है। समाजशास्त्री ली. प्ले. और डब्लू ई. मूर के सिद्धान्त इसके प्रमुख उदाहरण माने गये हैं।

(2) जनांकिकीवाद (Demographism)-

इस वर्ग में उन सिद्धान्तों का समावेश किया गया है जो जनांकिकी या मानवीय पर्यावरणों से सम्बन्धित है या उससे सम्बन्धित किसी प्रवृत्ति की व्याख्या आदि करते हैं। अल्फ्रेड माल्थस और सैडलर का जनसंख्या सिद्धान्त (Demographic Theory) इसका ज्वलन्त उदाहरण हो सकते है।

(3) भौतिकवाद (Materialism)-

सामाजिक जीवन में घटनाओं की मौलिक व्याख्या वाले सिद्धान्तों को वैलेस ने इस वर्ग में रखा है। कार्लमार्क्स द्वारा प्रतिपादित ‘द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद’ (Dialectical materialism) और ‘ऐतिहासिक भौतिकवाद’ का सिद्धान्त इसी प्रकार के उदाहरण हैं।

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(4) मनोवैज्ञानिकवाद (Psychologism)-

अनेकानेक समाजशास्त्रियों ने सामाजिक जीवन और मानवीय व्यवहारों की मनोवैज्ञानिक व्याख्या प्रतिपादित की है। ऐसे लोगों के सिद्धान्तों को वैलेस ने इसी श्रेणी में रखा है। चार्ल्स कूले कृत सिद्धान्त ‘स्वयं का दर्पण’ (Looking Glass sell) या टार्ड कृत ‘अनुकरण का सिद्धान्त’ इसका प्रमुख उदाहरण हैं।

(5) प्रौद्योगिकवाद (Technologism)-

इस वर्ग में उन सिद्धान्तों को रखा गया है, जिनमें प्रौद्योगिकी अथवा औद्योगिकी को सामाजिक घटनाओं का निर्णायक कारक माना  जाता है। कार्लमार्क्स और वेब्लन कृत ‘सामाजिक परिवर्तन का सिद्धान्त’ और आगबर्न  कृत ‘सांस्कृतिक विलम्बना’ (Culture Lag) का सिद्धान्त इसके प्रमुख उदाहरण हैं। ।

(6) प्रकार्यात्मक संरचनात्मकवाद (Functional Structuralism)-

वाल्टर वैलेस ने इस श्रेणी में प्रकार्यात्मक-संरचनात्मक सिद्धान्तों को रखा है। उदाहरणार्थ मर्टन और लीवी कृत ‘संरचनात्मक सिद्धान्त’ (Functional Theory)

(7) विनिमय संरचनात्मकवाद (Exchange Structuralism)-

सामाजिक जीवन और घटनाओं में हिस्सा लेने वाले दो या अधिक इकाइयों के व्यवहारों के विनिमय  के परिणामस्वरूप संरचनात्मक निर्माण की उपकल्पना को उद्घाटित करने वाले सभी सिद्धान्त इस वर्ग में सम्मिलित किये गये हैं। इमाइल दुर्खीम के मतानुसार- ‘इसमें कोई सन्देह नहीं है, कि सामाजिक तथ्य व्यक्ति के मस्तिष्क में उपस्थित रहता है, फिर भी कोई सामाजिक तथ्य तब तक नहीं पनपता, जिस समय तक यह व्यक्ति दूसरे के साहचर्य Association) में नहीं आता मक्सवेवर कृत ‘सामाजिक तथा आर्थिक संगठन का सिद्धान्त’ इस श्रेणी का एक अन्य उदाहरण माना जाता है।

(8) संघर्ष संरचनात्मकवाद (Conflict Structuralism)-

वाल्टर वैलेस ने इस वर्ग में उन सिद्धान्तों को सम्मिलित किया है, जिनमें यह प्रदर्शित करने का प्रयास किया जाता है कि सामाजिक जीवन में भाग लेने वाले दो या अधिक इकाइयों के व्यवहारों के विनिमय के परिणामस्वरूप संरचना का ही नहीं, अपितु विघटन का जन्म भी हो सकता है। इस प्रकार के विनिमय हानिकारक व्यवहार पर निर्भर करते हैं। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि इस श्रेणी के सिद्धान्त सामाजिक संरचना के अन्तर्गत कछ अधिक तत्त्वों के मध्य होने वाले संघर्ष के फलस्वरूप उसके रूप और परिणामों के प्रदर्शित करते हैं। कार्लमार्क्स द्वारा प्रतिपादित समाज के दो वर्गों में होने वाला ‘वर्ग संघर्ष’ (Class Conflict) का सिद्धान्त इस श्रेणी का जीवन्त उदाहरण माना गया है।।

(9) प्रतीकात्मक अन्तःक्रियावाद (Symbolic-Inter-actionalism)-

इस वर्ग में उन सिद्धान्तों को रखा गया है, जिनमें सामाजिक अन्तःक्रियाओं को वस्तुनिष्ठ व्यवहार सम्बन्धों (objective behaviour relations) के विषय में विवेचित किया जाता है। चार्ल्स कुले, विलियम थामस और हरबर्ट मीड कृत सिद्धान्त इसी वर्ग के जीवन्त उदाहरण हैं।

(10) सामाजिक क्रियावाद (Social Actionalism)-

वाल्टर वैलेस ने इस श्रेणी में उन सिद्धान्तों को रखा गया है, जो कि सामाजिक अन्तःक्रियाओं में हिस्सा लेने वाली इकाइयों के प्रकार्यात्मक अनिवार्यता को उनके व्यक्तिनिष्ठ व्यवहार सम्बन्धों के सन्दर्भ में परिभाषित करे। मर्टन और पारसन्स के सिद्धान्त इसी श्रेणी के सिद्धान्त माने गये हैं।

 

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