पीयरे बॉर्डियू ने एक समाजशास्त्री एवं मानवशास्त्री के रूप में कार्य किया है। इन्होंने प्रमुख रूप से ज्ञान, संस्कृति और शक्ति के बीच पाये जाने वाले सम्बन्धों का अध्ययन किया है। वे मुख्य रूप से समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों और संस्कृति के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए काफी चर्चा में रहे। समाजशास्त्र के विषय में उनका मत है कि समाजशास्त्र मानवीय जीवन के छिपे हुये आधारों और समाज के सत्यों को खोजकर उन्हें प्रकाश में लाता है।
पीयरे बॉर्डियू ने व्यक्तियों और सामाजिक व्यवस्थाओं के मध्य जो दूरी दिखाई है उसे दूर करने के लिए सिद्धान्त विकास का कार्य किया। सांस्कृतिक पूँजी के वितरण और सामाजिक व्यवस्था को बनाये रखने के बीच क्या संबंध है? इस विषय के विश्लेषण के आधार पर पीयरे बॉर्डियू ने सांस्कृतिक संरचनावाद के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। सांस्कृतिक संरचनावाद यूरोप में विकसित संरचनावाद की नई धारा है। सांस्कृतिक संरचनावाद में मार्क्स एवं वेबर के सिद्धान्तों को कुछ सीमा तक शामिल किया। एक तरह मार्क्स के वस्तुनिष्ठ वर्ग की अवधारणा का प्रयोग किया है तो दूसरी तरफ वेबर के विश्लेषण के साथ इसे उत्पादन के साधनों के साथ जोड़ा है। बॉर्डियू ने वर्ग के विश्लेषण के लिए सम्पत्ति के चार रूपों – आर्थिक, सामाजिक, सांस्कतिक और प्रतीकात्मक सम्पत्ति की चर्चा की है। – इसी सन्दर्भ में उन्होंने वर्ग संस्कृति की भी विवेचना की है। वर्ग संस्कृति के माध्यम से प्रत्येक वर्ग की सांस्कृतिक विशिष्टताओं, समान विचारधारा, अनुभूति और व्यवहार को स्पष्ट किया है।
पीयरे बॉर्डियू ने सांस्कृतिक संरचनावाद ने मार्क्स के वर्ग संघर्ष को एक नया आयाम प्रदान किया है। जिसमें मार्क्स, वेबर तथा दुर्खीम के समाजशास्त्र के मूल तत्त्व को शामिल किया है। इसके सिद्धान्त का आधार केन्द्रीय वर्ग है। इन वर्गों के साथ जुड़े हुए सांस्कृतिक स्वरूपों को उन्होंने अपने विश्लेषण का मुख्य मुद्दा बनाया है। बॉर्डियू ने मार्क्स और वेबर के सिद्धान्तों का सम्मिश्रण करके अपना सिद्धान्त बनाया है। वर्ग क्या है? इसे स्पष्ट करने के लिए बॉर्डियू ने पूँजी को चार विभागों में विभाजित किया है- आर्थिक सम्पत्ति के अन्तर्गत वह सम्पूर्ण सम्पत्ति आती है जिसके द्वारा उत्पादन होता है। मुद्रा भौतिक वस्तुयें ऐसी हैं जिनके द्वारा वस्तुओं और सेवाओं को उपलब्ध किया जाता है। सामाजिक सम्पत्ति वह सामाजिक परिस्थिति है जिसके द्वारा विभिन्न समूहों के साथ सम्पर्क किया जा सकता है। सामाजिक जाल बनाने में सामाजिक सम्पत्ति का उपयोग होता है। इसी प्रकार सांस्कृतिक सम्पत्ति के द्वारा कुशलता, शिष्टाचार, शैक्षणिक क्षमता, जीवन शैली, नैतिकता आदि सम्मिलित हैं। प्रथम तीन पूँजी को वैधता देने के लिए प्रतीकों का प्रयोग करते हैं। ऐसी स्थिति में प्रतीक ही सम्पत्ति है।
वर्ग एवं सम्पत्ति का विश्लेषण करते हुए बोरदिय ने बतलाया है कि सामाजिक स्तरीकरण में वर्गों की असमानता स्पष्ट दिखलाई पड़ती है। प्रत्येक वर्ग अपनी सांस्कृतिक एवं प्रतीकात्मक संस्कृति के कारण एक समान संस्कृति का निर्माण करता है। जिसे बॉर्डियू ने वर्ग संस्कृति कहा है। यह वर्ग संस्कृति एक आश्रित चर है जो लोगों के बीच सम्बन्धों को निर्धारित करता है। सभी वर्गों में पूँजी के उपरोक्त प्रकार कम या अधिकतम रूप में अवश्य पाये जाते हैं। उदाहरणार्थ प्रभुत्त्व वर्ग में आर्थिक सम्पत्ति, सामाजिक संपत्ति सांस्कृतिक संपत्ति और प्रतीकात्मक संपत्ति सबसे अधिक होती है। मध्यम वर्ग के पास सम्पत्ति का स्वामित्व अपेक्षाकृत कम होता है। निम्न वर्ग के पास सम्पत्ति के यह स्त्रोत सबसे कम होते हैं। यह भी सम्भव है कि प्रभुत्व वर्ग में कुछ ऐसे द्वन्द्व समूह हों जिनके पास कम सम्पत्ति हो तथा निम्न वर्ग में कुछ ऐसे व्यक्ति हों जिनके पास उपरोक्त पूँजी अधिक हो। प्रत्येक वर्ग अपनी सांस्कृतिक एवं प्रतीकात्मक संस्कृति के कारण एक समान संस्कृति का निर्माण करता है।
पीयरे बॉर्डियू का सांस्कृतिक संघर्ष सिद्धान्त
पीयरे बॉर्डियू यद्यपि फ्रांस के निवासी थे, किन्तु उनका अध्ययन क्षेत्र अल्जीरिया के आदिवासी रहे हैं। आपने एक समाजशास्त्री एवं मानवशास्त्री के रूप में कार्य किया है। इन्होंने प्रमुख रूप से ज्ञान संस्कृति एवं शक्ति के बीच पाये जाने वाले सम्बन्धों पर अनुसंधान किया है। ये मुख्य रूप से समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों और संस्कृति के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए जाने जाते हैं। समाजशास्त्र के बारे में आपका विचार है कि समाजशास्त्र मानव जीवन के अप्रकट आधारों तथा समाज के सत्यों को खोजकर उन्हें प्रकाश में लाता है।
पीयरे बॉर्डियू ने व्यक्तियों और सामाजिक व्यवस्थाओं के मध्य जो दूरी दिखाई है उसे दूर करने के लिए सिद्धान्त विकास का कार्य किया है। सांस्कृतिक पूंजी के बंटवारे एवं सामाजिक व्यवस्था को बनाये रखने के मध्य क्या सम्बन्ध है? इस विषय का विश्लेषण करके आपने सांस्कृतिक संरचनावाद के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। यह सांस्कृतिक संरचनावाद यूरोप में विकसित संरचनावाद की एक नवीन शाखा है।
पीयरे बाॅर्डियू का सांस्कृतिक संघर्ष सिद्धांत की विवेचना
आपके सिद्धान्त का केन्द्रीय आधार वर्ग है। आपने इन वगों के साथ संबंद्ध कतिक स्वरूपों को ही अपने विश्लेषण का विषय बनाया है। इन्होंने मार्क्स एवं बेवर सिद्धान्तों को मिलाकर अपने सिद्धान्त को निर्मित किया। वर्ग क्या है? इसे भलीभाँति समझाने के लिए बॉर्डियू पूंजी को चार भागों में इस प्रकार विभाजित किया है-
(1) आर्थिक सम्पत्ति – इसके अन्तर्गत उन समस्त संपत्तियों को शामिल किया जाता है जिनके सहायता से उत्पादन होता है। उदाहरणार्थ- मुद्रा आदि ऐसी भौतिक वस्तुयें जिनके द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं को प्राप्त किया जाता है।
(2) सामाजिक संपत्ति – इसके अन्तर्गत उन सभी सामाजिक परिस्थितियों को शामिल किया जाता है जिनके द्वारा सामाजिक समूहों के साथ संपर्क किया जा सकता है। सामाजिक संपत्तियां सामाजिक जाल बनाने में सहायता प्रदान करती है।
(3) सांस्कृतिक संपत्ति – इन संपत्तियों में कुशलता, शिष्टता, शैक्षणिक क्षमता, जीवन शैली एवं नैतिकता आदि आते हैं।
(4) प्रतीकात्मक संपत्ति – प्रतीकात्मक संपत्ति प्रथम तीनों प्रकार की पूंजी को वैधता प्रदान करने के लिए की जाती है। ऐसी स्थिति में प्रतीक ही संपत्ति होते हैं।
वर्ग की अवधारणा को समझाते हुए बॉर्डियू कहते हैं कि सभी वर्गों में पूंजी के सभी प्रकार कम या अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। उदाहरणार्थ हम प्रभुत्त्व संपन्न वर्ग को ले सकते हैं, इनमें आर्थिक संपत्ति, सामाजिक संपत्ति, सांस्कृतिक संपत्ति एवं प्रतीकात्मक संपत्ति सर्वाधिक होती है। इसके बाद मध्यम वर्ग आता है जिसके पास संपत्ति का स्वामित्त्व अपेक्षाकृत कम होता है। सबसे बाद में निम्न वर्ग के लोग आते हैं जिनके पास संपत्ति का स्वामित्त्व न्यूनतम या सबसे कम होता है। यह भी हो सकता है कि प्रभुत्त्व संपन्न वर्ग कुछ ऐसे द्वन्द्व समूह हो जिनके पास कम संपत्ति हो तथ निम्न वर्ग में कुछ ऐसे व्यक्ति हो जिनके पास पूंजी अधिक हो।
वर्ग एवं संपत्ति की विवेचना करते हुए बॉर्डियू ने कहा कि सामाजिक स्तरीकरण , में वर्गों की यह असमानता स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। समाज का प्रत्येक वर्ग सांस्कृतिक एवं प्रतीकात्मक संस्कृति के कारण एक समान संस्कृति को निर्मित करता है। इसे बॉर्डियू वर्ग संस्कृति का नाम देते हैं। बॉर्डियू कहते हैं कि यह वर्ग संस्कृति एक आश्रित चर है जो व्यक्तियों के मध्य संबंधों का निर्धारण करता है।
आपने हर वर्ग की सांस्कृतिक विशिष्टता को प्रकट किया तथा यह बताया कि समान वर्ग के लोग समान विचारधारा, अनुभूति एवं व्यवहार के भागीदार होते हैं अर्थात् समान वर्ग के व्यक्तियों की विचारधारा, अनुभूतियां समान होती हैं तथा उनमें एक दूसरे के साथ अन्तःक्रिया सरलता से होती है। एक वर्ग के व्यक्तियों में पाये जाने वाले समान व्यवहार को बॉर्डियू सामूहिक अचेतना कहते हैं। इसी सामूहिक अचेतना के कारण समान वर्ग के व्यक्तियों की भाषा, पोशाक एवं शिष्टाचार का निर्धारण होता है। उदाहरणार्थ हम पूँजीपति वर्ग को ले सकते हैं जिसका रुझान सदैव विलासिता की ओर होता है। इसके विपरीत निर्धन व्यक्ति अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष करते रहते हैं।
इन्हें भी देखें-
- समाजशास्त्रीय सिद्धांत के प्रकार को समझाइए
- सिद्धांत निर्माण की प्रक्रिया को समझाइए
- समाजशास्त्र की प्रकृति और समाजशास्त्र मुख्य विशेषताएं
- प्रकार्यवाद का अर्थ तथा अवधारणा क्या है
- मर्टन के प्रकार्य तथा प्रकार्यवाद
- संरचनावाद और उत्तर-संरचनावाद का सिद्धांत
- धर्म के अर्थ, परिभाषा,लक्षण एवं विशेषता
- लेवी स्ट्रास का संरचनावाद | सामाजिक विनिमय सिद्धान्त
- मर्टन का सन्दर्भ-समूह सिद्धांत-Reference group
- कार्ल मार्क्स के वर्ग-संघर्ष सिद्धांत की विवेचना
- लुईस अल्थुसर और मार्क्सवाद की परम्पराएं
- हैबरमास का सिद्धांत और फ्रैन्कफर्ट स्कूल
- नव-मार्क्सवाद से आप क्या समझते हैं?
- घटना-क्रिया-विज्ञान के सिद्धांत का उल्लेख
- हरबर्ट मीड के प्रतीकात्मक अन्तःक्रियावाद का सिद्धान्त
- पीटर बर्जर और थॉमस लकमैन-सोशल कंस्ट्रक्शन ऑफ रिएलिटी
- ब्लूमर के प्रतीकात्मक अन्तःक्रियावादके सिद्धान्त | Symbolic interactionism of Blumer