gramin niyojan aur punernirman ki paribhasha

ग्रामीण पुनर्निर्माण और नियोजन की परिभाषा,उद्देश्य

ग्रामीण पुनर्निर्माण और नियोजन की परिभाषा

ग्रामीण पुनर्निर्माण और नियोजन की अवधारणा एक अत्यधिक महत्वपूर्ण तथा क्रान्तिकारी आन्दोलन है, जिस पर भारत की भावी सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक तथा नैतिक प्रगति निर्भर करती है । ग्रामीण पुनर्निर्माण अथवा कल्याण शब्द का तात्पर्य ग्रामीण । समाज और समुदया में निवास करने वाले व्यक्तियों के चतुर्मुखी विकास से सम्बन्धित है । ग्रामीण पुनर्निर्माण वह अभिव्यक्ति है, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त अभावों, समस्याओं तथा बुराइयों का पूर्णरूपेण निराकरण करके ग्रामीण समाज को एक सर्वथा नवीन एवं सशक्त ढाँचे में प्रस्तुत करते हैं, “ग्रामीण पुनर्निर्माण‘ शब्द का उदभव स्वतन्त्रोपरान्त ही स्पष्ट हुआ है, जिसका शाब्दिक अर्थ ग्राम समाज का पुनः निर्माण करना अथवा फिर से बनाना है | ग्रामीण पुननिर्माण एक ऐसी प्रक्रिया अथवा एक ऐसी क्रान्ति है, जो पिछड़े हुए भारतीय ग्रामों को एक. सर्वथा नवीन स्वरूप प्रदान करे और उनको समाज के अन्य प्रगतिशील समुन्नत मानव समूहों के स्तर पर लाने एवं उनके साथ सन्तुलन स्थापित करने का महान प्रयास करे । ग्रामीण पुनर्निर्माण तथा नियोजन दोनों ही परस्पर अत्यधिक घनिष्ठ प्रक्रियायें हैं, क्योंकि दोनों का एक समान लक्ष्य भी है ।

भारतीय योजना आयोग के शब्दों में ‘नियोजन वस्तुतः परिभाषित सामाजिक साध्यों के अर्थ से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए साधनों को संगठित करने और उपयोग करने का एक ही तरीका है

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1. ग्रामीण दरिद्रता, विपन्नता और अभावग्रस्तता को दूर कर ग्रामीणों का जीवनस्तर उच्च करना

2. कृषि के समस्त साधनों तथा विधियों में आमूल-चूल परिवर्तन द्वारा सुधार करना ।

3. ग्रामीण ऋणग्रस्तता को समाप्त करके उनकी आर्थिक स्थिति की उन्नति करना।

4. ग्रामीणों में श्रमदान की भावना के महत्व का जागरण करके स्वयं सेवा की भावना का विकास करना ।

5. ग्रामीण कुटीर उद्योगों को पुनर्जीवन प्रदान करके ग्रामवासियों की आर्थिक आत्मनिर्भरता को सुदृढ़ करना ।

6. सहकारी तथा मनोरंजनात्मक संस्थाओं की स्थापना करना।

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7. भूमि तथा सम्पत्ति का समान वितरण करके ग्रामीण समाज में वर्गविहीन समाज की स्थापना करना।

8. जन-स्वास्थ्य एवं स्वच्छता का वातावरम निर्मित करना ।

9. ग्रामीण आवास-निवास की समस्या का निदान करना।

10.यातायात तथा संचार साधनों की उन्नति कर उनको आधुनिकता की शिक्षा प्रदान करना ।

11. ग्रामीणों में लोकतान्त्रिक भावना की उत्पत्ति करके पंचायती राज और स्थानीय स्वशासन की भावना स्थापना करना।

12. ग्रामवासियों को सामूहिक जीवन-यापन का शिक्षण-प्रशिक्षण प्रदान करके उनमें संगठन की भावना का विकास करना ।

13. ग्रामीण समाज में परम्परागत रूप से प्रचलित ऊँच-नीच, जाति-पाँति और छुआछूत की भावना को समाप्त करना ।

14. ग्रामीण जीवन को समृद्धशाली और समुन्नतशील बनाना |

15. ग्रामीणों में शिक्षा, संस्कृति तथा विज्ञानवादी दृष्टिकोण का विकास करना ।

16. जन सहभागिता और सहयोग के आधार पर ग्रामों तथा सम्पूर्ण देश की उन्नति करना ।

भारतीय ग्रामीण पुनर्निर्माण की समस्याएं

1. ग्रामीण जनमानस का नैराश्यवादी दृष्टिकोण।

2. ग्रामीण क्षेत्रों में अस्वच्छता तथा गन्दगी का स्थापित साम्राज।

3. कुशल चिकित्सकों, नौं एवं दाइयों का अभाव तथा चिकित्सा सम्बन्धी औषधियों का अभाव ।

4. मनोरंजनात्मक साधनों की अत्यधिक कमी।

5. पशुओं की बीमारियाँ और कुपोषण की समस्याएं

6. शिक्षण-प्रशिक्षण के साधनों तथा सुविधाओं का अभाव

7. ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त बेरोजगारी तथा निर्धनता की समस्यायें।

8. ग्रामीण पंचायतों के पुनर्गठन की समस्या ।

9. सामाजिक कुप्रथाओं और रीति-रिवाज आदि की समस्यायें |

10. उत्तम किस्म के बीजों तथा सिंचाई के साधनों का अभाव ।

11. कृषि तथा पशुपालन के दोष से सम्बन्धित समस्यायें ।

12. ग्रामीण ऋणग्रस्तता एवं मुकदमेंबाजी की समस्यायें ।

ग्रामीण पुनर्निर्माण हेतु स्वतन्त्रतोपरान्त किये गये सरकारी प्रयास

15 अगस्त, 1947 को भारतवर्ष को राजनैतिक स्वतन्त्रता प्राप्त हुई और स्वाधीन सरकार ने सर्वप्रथम ग्रामीणों के चतुर्दिक विकास की दृष्टि से ग्रामोत्थान आन्दोलन का श्रीगणेश किया । इस सन्दर्भ में सरकार के द्वारा 2 अक्टूबर, 1952 को गाँधी जयन्ती के सुअवसर पर सामुदायिक विकास योजना प्रारम्भ की गई, जिसने ग्रामीण पुनर्निर्माण हेतु विभिन्न कार्यक्रमों की रूपरेखा निर्मित करके उसको क्रियान्वित भी किया । भारत सरकार द्वारा ग्रामीण पुनर्निर्माण की दिशा में अभी तक निम्नांकित प्रमुख कार्य सम्पन्न किये गये हैं-

1.जमींदारी प्रथा की समाप्ति

2. ग्राम पंचायतों का पुनर्गठन एवं पंचायती राज की स्थापना

3. सहकारी आन्दोलन का प्रारम्भ।

4. कुटीर उद्योग धन्धों का विकास ।

5. कृषि उत्पादन की वृद्धि अथवा अधिक अन्न उपजाओ आन्दोलन।

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6. ग्रामीण पुनर्निर्माण और उत्थान हेतु पंचवर्षीय योजनाओं का प्रारम्भ

7. ग्रामीण पुनर्निर्माण हेतु विभिन्न संगठनों तथा संस्थाओं को विशेष प्रोत्साहन ।

ग्रामीण पुनर्निर्माण से सम्बन्धित अन्य नवीन कार्यक्रम

1. सूखाग्रस्त क्षेत्र कार्यक्रम अथवा ग्रामीण विकास कार्यक्रम (Drought Prone Areas Programme) –

यह सन् 1970-71 में गैर सरकारी केन्द्रीय कार्यक्रम के रूप में आरम्भ किया गया था, जिसके अनुसार सूखाग्रस्त क्षेत्रों में आवश्यक वस्तुओं की आपर्ति की जाती है तथा इन क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों की वृद्धि हेतु विशेष कार्य सम्पन्न किये जाते हैं।

2. सम्पूर्ण ग्राम विकास कार्यक्रम (Whole Village Development Program) –

सम्पूर्ण देश में कृषि उत्पादन तथा बेरोजगारी के निवारण और कार्यात्मक समन्वय हेत यह कार्यक्रम पंचवर्षीय योजना अवधि में प्रारम्भ किया गया था । यह कार्यक्रम भूमि की चकबन्दी, सामान्य भूमि विकास के नियोजन, सिंचाई द्वारा ग्रामीण विकास तथा फसल उगने की नई विधियों का प्रशिक्षण देता है।

3. ग्रामीण रोजगार सघन योजना (Rural Employment Crash Scheme) –

इसका निर्माण सन 1971 में केवल मात्र 3 वर्षों के लिए किया गया था । जिससे ग्रामीण क्षेत्र की बेरोजगारी को दर कम किया जा सके । इस कार्यक्रम में सड़क निर्माण, भूमि का पकास. बाढ़ नियन्त्रण, लघ सिंचाई तथा वृक्षारोपण आदि के कार्य सम्पन्न किये गये थे ।

4. एप्लायड न्यूटीशन प्रोग्राम (Applied Nutrition Programme) –

यह कार्यक्रम  केन्द्रीय स्तर 3 प्रमुख विश्व संगठनों के सम्मिलित प्रयासों द्वारा किया गया था । इस कार्यक्रम का प्रमुख उददेश्य ग्रामीणों को उत्तम और पौष्टिक आहार की जानकारी और प्रशिक्षण प्रदान करना है तथा प्रारम्भिक शिशुओं और प्रसूता माताओं का पंचायतों की सहायता से कल्याण करना है ।

5. स्त्रियों और शिशुओं का समन्वित कार्यक्रम (Composite women & children Programme) –

यह कार्यक्रम सन् 1969-70 में प्रारम्भ किये गये थे । इसमें वह सभी ग्राम सम्मिलित हैं, जो कि अन्य कार्यक्रमों से सम्मिलित नहीं हो पाये हैं।

 

 

 

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