शैक्षिक लक्ष्य और शिक्षण लक्ष्य में अन्तर

शिक्षा के उद्देश्य तथा मूल्य, शैक्षिक लक्ष्य और शिक्षण लक्ष्य में अन्तर | Concepts Related to Education in Hindi

 

शिक्षा से सम्बद्ध अवधारणाएँ(Concepts Related to Education)

शिक्षा के क्षेत्र में कुछ एक अवधारणाओं का प्रयोग बिना उनके मूल अर्थों को समझे हम एक-दूसरे के लिए प्रायः करते रहते हैं। इन में से प्रयुक्त होने वाले प्रायः ‘लक्ष्य’ एवं ‘उद्देश्य का अन्तर साधारणतया नहीं किया जाता या इनके लिए अंग्रेजी शब्दों ‘ऐमज’ एवं ‘ऑब्जेक्टिव्ज’ का अर्थ-भेदक प्रयोग करने में हम अपने को असमर्थ पाते हैं, अथवा एक के लिए निहित अर्थ का दूसरे के लिए प्रयोग करते हैं। इस प्रकार की भ्रांति से सभी पीड़ित हैं। अतः आवश्यकता है कि शिक्षा के संदर्भ में जहाँ कहीं भी इनका प्रयोग हो, तो इन के प्रयोग एवं अर्थ-ग्रहण में किसी प्रकार की भ्रांति न हो।

यहाँ कुछ एक अवधारणाओं जैसे ‘मूल्य’, ‘लक्ष्य’ एवं ‘उद्देश्य’ की विवेचना अभीष्ट है।

 

शिक्षा का उद्देश्य (Aim)

‘उद्देश्य’ शब्द की उत्पत्ति उत्+दिश्+य् शब्द अंशों के जोड़ से होती है। उत् से अभिप्रायः है- ‘ऊपर की ओर’ तथा ‘दश्’ का अर्थ है- “दिशा का अवलोकन कराना”। इस तरह ‘उद्देश्य’ का शाब्दिक अर्थ हुआ-उच्च दिशा का अवलोकन कराना। संक्षेप में कहा जा सकता है कि उद्देश्य में एक दूर-दृष्टि होती है, जोकि भविष्य की ओर संकेत करती है। साधारणतः उद्देश्य की पूर्ति दीर्घकालीन प्रक्रिया है। इनकी पूर्णता और अपूर्णता का वस्तुनिष्ठता के आधार पर मूल्यांकन करना कठिन है, क्योंकि इनके विस्तृत विवरण नहीं होते हैं, अतः इनका नापा जाना संभव नहीं। इनका काम मार्ग-दर्शन है। व्यापकता इनका प्रमुख गुण है। ये निश्चित और स्पष्ट नहीं होते। इनकी फल-प्राप्ति और मूल्यांकन सम्भव नहीं होता।

उद्देश्य अस्पष्ट और दूर-दृष्ट होते हैं। इनमें व्यक्तिनिष्ठता होती है। व्यक्ति निष्ठता मापन और मूल्यांकन के आधार तैयार करने में बाधक होती है।

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शिक्षा का लक्ष्य (Objectives)

लक्ष्य का गुण स्पष्टता है। इसकी पूर्ति सम्भव है। इसको प्राप्त किया जा सकता है। इसकी सम्प्राप्ति का मापन किया जा सकता है। अंग्रेजी भाषा में ऑब्जेक्टिव शब्द-ऑब्जेक्टिविटी वस्तुनिष्ठता की ओर संकेत करता है। इस स्थिति में सही मापन और मूल्यांकन सम्भव है।

 

शिक्षा के उद्देश्य तथा लक्ष्य में भ्रांति (Doubts About Aims and Objectives)

हिन्दी भाषा में साधारणतया उद्देश्य तथा लक्ष्य दोनों शब्दों के लिए प्रायः ‘उद्देश्य’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। जैसे ‘एजूकेशनल ऑब्जेक्टिव्ज’ का हिन्दी अनुवाद ‘शैक्षिक उद्देश्य’ ही किया जाता है। अंग्रेजी भाषा में ‘aim’ तथा ‘ऑब्जेक्टिव’ शब्दों को भी पर्याय के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। साधारण प्रयोग में शायद यह अखरता न हो, किन्तु शैक्षिक शब्दावली के रूप में इनमें अन्तर किये बिना अर्थ का अनर्थ भी सम्भव है।

 

शिक्षा का मूल्य तथा ध्येय (Values And Goals)

मूल्य व्यवहार के ठोस ध्येय नहीं, बल्कि इनके पक्ष मात्र हैं। मूल्य वे मानदण्ड हैं, जिनके द्वारा ध्येय चयनित किये जाते हैं। जो ध्येय किसी व्यक्ति के लिए अधिकाधिक महत्वपूर्ण है, वह उसके लिए सर्वाधिक मूल्यवान भी हैं। देखने में आया है कि लोग प्रायः अपने मूल्यों के अनुसार व्यवहार करते हैं और अपने ध्येय को तदानुसार प्राथमिकता भी देते हैं।

 

शिक्षा के आदर्श तथा मूल्य (Ideals And Values)

साधारणतः ‘आदर्श’ अप्रयाप्य के अर्थ को अभिव्यक्त करता है, जबकि मूल्य’ वांछनीय और सम्भव को व्यक्त करता है।

 

शिक्षा के विश्वास तथा मूल्य (Belief And Values)

‘विश्वास’ एक दृढ़ धारणा है जो कि वास्तविक है, जबकि ‘मूल्य’ पसंद-नापसंद की प्राथमिकताएँ हैं। विश्वास तथा मूल्य पृथक् इकाई के रूप में क्रिया नहीं करते बल्कि एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं।

 

शिक्षा के उद्देश्य तथा मूल्य (Aims and Values)

उद्देश्यों का आधार मूल्य होते हैं। मूल्यों के अनुसार ही उद्देश्यों का निर्माण किया जाता है। जहाँ तक मूल्यों के निर्धारण का सम्बन्ध है, ये समाज विशेष के दर्शन पर निर्भर करते हैं। जिस समाज का जिस प्रकार का जैसा दर्शन होगा, उस समाज के वैसे ही मूल्य होंगे। भारतीय समाज ने ‘मानव’ को उच्चतर प्राणी स्वीकार किया है, जिसका वैशिष्ट्य ‘ज्ञान युक्त’ है। परिणामस्वरूप इसके लिए उच्चतर मूल्य ‘धर्म’ तथा ‘मोक्ष’ निश्चित किये। किन्तु सभी समाजों ने ये मूल्य निश्चित नहीं किये। कुछ एक समाज तो जैविक मल्यों तक ही अपने आपको सीमित कर पाए। जैसे भी मूल्य कोई समाज निश्चित करता है, उस समाज के उद्देश्य उन मूल्यों के प्रकाश में ही तय होते हैं।

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जैसे जीवन-उद्देश्य होंगे, वैसे ही शिक्षा के उद्देश्य भी होंगे। ‘दर्शन’ के बदलाव के साथा-साथ मूल्यों में परिवर्तन तथा मूल्यों में बदलाव के साथ जीवन एवं शिक्षा के उद्देश्यों में परिवर्तन हो जाता है। प्राचीन भारतीय समाज का दर्शन आध्यात्मिक था, अतः मूल्य शाश्वत, सनातन एवं निरपेक्ष थे। निर्धारित चार मूल्यों-अर्थ, काम, धर्म एवं मोक्ष में। ‘मोक्ष’ अन्तिम मूल्य स्वीकार किया गया। परिणामस्वरूप जीवन अपने उच्चतम उद्देश्य ‘मोक्ष की ओर ही प्रवृत्त हुआ। अतः शिक्षा का उद्देश्य भी यही रहा। शिक्षा की परिभाषा को इस उद्देश्य से जोड़ दिया गया- ‘साविद्या या विमुक्तये। धर्म सम्बन्धी मूल्यों को भी जीवन एवं शिक्षा के व्यापक उद्देश्य के रूप में ग्रहण करना स्वीकार कर लिया गया।

समय पाकर जीवन-दर्शन में परिवर्तन आया। हम समय के प्रभाव से भौतिकवादी होते चले गये और अपने उच्चतर मूल्यों को भुलाते हुए अर्थ, काम के मूल्यों तक अपने आपको सीमित कर बैठे। परिणामस्वरूप हमारे जीवन के उद्देश्य भी इन तक सीमित रह गये। इसे शिक्षा के क्षेत्र में भी अनुभूत किया गया और कोठारी आयोग ने (1964-66) शिक्षा के प्राथमिक उद्देश्यों में आर्थिक विकास को स्थान दिया है। सारांश में कहा जा सकता है कि दर्शन-मूल्य-जीवन उद्देश्य-शिक्षा उद्देश्य, यह एक प्रक्रम है, जो कि अब तक चला आ रहा है।

 

 

शिक्षा के उद्देश्य तथा लक्ष्य (Aims And Objectives)

शिक्षा के उद्देश्य होते हैं और लक्ष्य शिक्षण के होते हैं- व्यापक अभिप्रायः के आधार पर शिक्षा के उद्देश्य ही होते हैं, लक्ष्य नहीं। लक्ष्य वास्तविक तौर पर शिक्षण के होते हैं। शिक्षा के संकुचित स्वरूप के उद्देश्यों का निर्माण जिस तरह मूल्यों द्वारा होता है, उसी तरह लक्ष्यों का निर्माण उद्देश्यों के प्रकाश में होता है। जैसे-

मूल्य → उद्देश्य → लक्ष्य

आर्थिक मूल्य → आर्थिक विकास→ (1) व्यवसाय विशेष की कुशलताओं का ज्ञान देना।

(2) व्यवसाय विशेष की कुशलताओं में प्रशिक्षण देना।

(3) उत्पादन वृद्धि करना।

कुछ एक शिक्षाशास्त्रियों ने शैक्षिक लक्ष्य तथा शिक्षण-लक्ष्य में अन्तर स्पष्ट करने का प्रयास किया है, जोकि नीचे स्पष्ट किया गया है। इस अन्तर को ध्यानपूर्वक देखने से स्पष्ट होते है कि जिन्हें लक्ष्य नाम दिया गया है- वे वास्तविक तौर पर शिक्षा के उद्देश्य हैं।

श्री एन. आर. सक्सेना द्वारा स्पष्ट किया गया अन्तर इस प्रकार है-

 

शैक्षिक लक्ष्य और शिक्षण लक्ष्य में अन्तर

 

शैक्षिक लक्ष्य शिक्षण लक्ष्य
(1) दार्शनिक आधार की अपेक्षा। (1) मनोवैज्ञानिक आधार की अधिक अपेक्षा।
(2) इनका संबंध सम्पूर्ण शिक्षा से। (2) इनका संबंध कक्षा तक। इनका प्रयोग विभिन्न विषय के शिक्षण तक।
(3) ये व्यापक तथा सामान्य होते हैं। (3) ये संकुचित तथा विशिष्ट होते हैं।
(4) ये औपचारिक होते हैं (4) ये कार्यपरक होते हैं।
(5) ये सैद्धान्तिक तथा अप्रत्यक्ष होते हैं।

(5) ये प्रत्यक्ष होते हैं। इनका संबंध कक्षा शिक्षण से होता है। ये सीखने की प्रक्रिया को गति प्रदान कर व्यवहार परिवर्तन में सहायता करते हैं।

(6) इन्हें प्राप्त करने के लिए लम्बा समय चाहिए। अर्थात् इन्हें प्राथमिक से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक की शिक्षा द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।

(6) इन्हें छोटी अवधि अर्थात् केवल 40 मिनट के कालांश में ही प्राप्त कियाजा सकता है।

 

 

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