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धर्म के अर्थ, परिभाषा,लक्षण एवं विशेषता

धर्म की अवधारणा की विवेचना

 

धर्म का अर्थ तथा परिभाषा

सामान्यत: धर्म का अर्थ एक अलौकिक शक्ति से सम्बन्धित माना जाता है । भारतीय संस्कृति में धर्म का अर्थ कर्तव्य, करने योग्य कार्य, पवित्रता, बड़ों की सेवा इत्यादि में लगाया जाता है । शाब्दिक दृष्टि से ‘धर्म’ ‘धृ धातु से बना है, जिसका अर्थ है – धारण करना, बनाये रखना अथवा पुष्ट करना। हिन्दु धर्म में यह मान्यता है कि धर्म का पालन  सभी को करना है धर्म का पालन करने से ही उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी । हिन्दु धर्म में वेद, उपनिषद, गीता, स्मृतियां, पुराण इत्यादि धर्म के मल स्रोत हैं । इन ग्रन्थों में धर्म की विस्तृत व्याख्या की गयी है | धर्म के अर्थ को विभिन्न विद्वानों ने निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है-

 

“धर्म आध्यात्मिक शक्ति पर विश्वास है।- एडवर्ड टायलर

 

धर्म क्रिया का एक ढंग है और साथ ही विश्वासों की एक व्यवस्था, और धर्म एक समाजशास्त्रीय घटना के साथ-साथ एक व्यक्तिगत अनभव भी है -मैलिनोवस्की।

यह ‘धृ धातु (बनाये रखना, धारण करना, पुष्ट करना) से बना है । यही वह मापदण्ड है जो विश्व को धारण करता है, किसी भी वस्तु का वह मूल तत्व है जिसके। कारण वह वस्तु वह है । वेदों में इस शब्द का प्रयोग धार्मिक विधियों के अर्थ में किया गया है । धर्म की परिभाषा हम इस प्रकार कर सकते हैं कि वह चारों वर्गों और चारों आश्रम के सदस्यों द्वारा जीवन के चार प्रयोजनों (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) के सम्बन्ध पालन करने योग्य मनुष्य का समूचा कर्तव्य है । – डा० राधाकृष्णन्

उपरोक्त परिभाषाओं से धर्म का अर्थ स्पष्ट हो जाता है । भारतीय संस्कृति में धर्म ज्यादा जोर दिया जाता है इनका मानना है कि धर्म से ही सभी प्राणियों की रक्षा होती है। सब कुछ धर्म में ही समाया हुआ है । धर्म को भली-भाँति जानने के लिए उसके लक्षणों का विवेचन करना अत्यन्त आवश्यक है।

 

 

वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल में अंतर
वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल में अंतर

 

भारतीय संस्कृति में धर्म के प्रमुख लक्षण

 

1. धर्म का स्रोत या मूल समस्त वेद है । इस प्रकार धर्म का पहला लक्षण है कि वेदों द्वारा निर्धारित कार्य करना।

2.कर्मों द्वारा सिद्ध होकर दूसरों के लिए कल्याणकारी होना ही धर्म है ।

3.धर्म की उत्पत्ति सत्य से होती है, दया और दान से वह बढ़ता है, क्षमा में वह निवास करता है और क्रोध से उसका नाश होता है ।

4.धर्म ही समस्त विश्व का आधार है, सभी कुछ धर्म पर निर्भर है, क्योंकि धर्म का पालन करने से ही व्यक्ति के आचरण की सभी बुराइयाँ कम हो जाती है।

5.धर्म ही शाश्वत सत्य है, सारा संसार धर्म के पालन से ही चलता है ।।

6.जो धर्म सभी धर्मों के साथ लेकर चले, वही यथार्थ धर्म है । जो धर्म के विपरीत चले वह अधर्म है।

7.अपने धर्म को मानना ही श्रेष्ठ है । पराये धर्म को छोडना ही कल्याणकारी है। गीता में तो श्रीकृष्ण ने यहाँ तक कहा है कि स्वधर्म पालन में यदि आपकी मृत्यु भी हो जाये, तो भी वह श्रेष्ठ है, परन्तु दसरों का धर्म भयावह होता है। ।

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8.धर्म ही एक ऐसा मित्र है जो मरने के बाद भी साथ देता है, धर्म ही जीव के साथ जाता है बाकी सब शरीर नष्ट हो जाने के बाद साथ छोड़ देते हैं ।

 

धर्म की प्रमुख विशेषतायें

 

भारतीय संस्कृति में धर्म की निम्नलिखित विशेषतायें देखी जाती हैं –

1. धर्म के अन्दर देवलोक, पितृलोक, प्रेत लोक, स्वर्गलोक की भावनायें निहित हैं। जिसमें कि पितृलोक से तात्पर्य मृत पूर्वजों का संसार, प्रेतलोक से तात्पर्य अमूर्त आत्माओं का संसार तथा देवलोक से तात्पर्य देवी-देवाताओं का संसार और स्वर्गलोक से तात्पर्य स्वर्ग अथवा परलोक में ‘सुख’ के संसार से है । भारतीय संस्कृति में इन सभी लोगो पक अटूट विश्वास है । इसका यह भी विश्वास है कि मनुष्यों के ऊपर सुख-दुख आपत्ति-विपत्ति इसी के कारण आती है।

2. प्रार्थना और आराधना द्वारा धर्म का निर्वाह किया जाता है। भारतीय संस्कृति में धर्म को व्यवहार तथा जीवन में लाने के लिए भगवान की प्रार्थना या आराधना करना आवश्यक है । यह प्रार्थनायें देवी-देवताओं को प्रसन्न रखने के उद्देश्य से की जाती है । कोई। मन्दिर जाता है, कोई पीपल पूजता है तो कोई बरगद इस प्रकार सभी की अपनी-अपनी अलग-अलग मान्यतायें तथा रीति-रिवाज हैं । भारतीय संस्कृति में हिन्दू धर्म, मुस्लिम धमा पंजाबी धर्म तथा ईसाई धर्म सभी धर्मों को मानने वाले व्यक्ति रहते हैं । वह अलग-अलग ढंग से अपने-अपने धर्मों की पूजा करते हैं, उन्हें मानते हैं।

3. धर्म को मानने के लिए कछ धार्मिक कार्य भी सम्पन्न किये जाते है । जैसे घर को बनवाने के पश्चात गृह प्रवेश कराना, त्योहारों, रीति-रिवाजों को मानना, विवाह के समय मुहूर्त निकलवाकर विवाह सम्पन्न कराना इत्यादि। आजकल तो फिल्मों के बनने से लेकर उसके बाजार में आने तक सभी का शुभ मुहूर्त निकलवाया जाता है । बच्चा जन है. तब से लेकर अन्त तक बहुत से धार्मिक कार्य सम्पन्न कराये जाते हैं। भारतीय में सुबह जल्दी उठना, फिर स्नानादि से निवृत्त होने के पश्चात् पूजा-पाठ करना पाठ के बाद ही नाश्ता व खाना-खाने की व्यवस्था होती है । इस प्रकार हम देश भारतीय संस्कृति में मनुष्य के जन्म के पश्चात् और मृत्यु तक धार्मिक कार्य चलते – उनका इनके जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है।

4. भारतीय संस्कृति में हिन्दू धर्म बहुत ही कठिन माना जाता है । धर्म की सारी शाखायें हैं, जो कि एक संस्था का रूप धारण किये हुए हैं । इनका कार्य है धर्म प्रचार करना । ये संस्थायें तथा संगठन अलग-अलग राज्यों में होती हैं । इनका अपना अलग-अलग सिद्धान्त है । इनके अपने अलग-अलग मन्दिर, मठ तथा आश्रम इत्यादि हो। हैं । इन्हें धार्मिक संस्थाओं के नाम से भी पुकारा जाता है । ये संस्थायें समाज सेवा के लिए भी कार्य करती हैं, जैसे- कुएं खुदवाना, औषधालय चलवाना, विधवाश्रम, वृद्धाश्रम खुलवाना इत्यादि । इन संस्थाओं में आर्य समाज, ब्रह्म समाज और प्रार्थना समाज के नाम प्रमुख हैं।

5. हिन्दू धर्म में कोई ‘राज्य धर्म’ नहीं है । यूरोपीय देशों में राज्य धर्म होने के कारण कई रक्त की नदियाँ बहींभारतीय संस्कृति में हिन्दु धर्म सभी जगह एक सा ही । है सभी का उद्देश्य इंसान को एक अच्छा मनुष्य बनाना है। यद्यपि हमारे यहाँ भी धर्म के साथ कुछ बाहरी आडम्बर तथा कुरीतियां जोड़ दी गई हैं लेकिन समय-समय पर इसके विरुद्ध आवाज उठाकर उन्हें हटाने का प्रयास किया जाता रहा है ।

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6. धर्म की छठी विशेषता है बलिदानग्रामीण क्षेत्रों में बलिदान का बहुत महत्व है। यहाँ देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए अनेक चढ़ावे चढ़ाये जाते हैं । कहीं-कही पशु-बलि दी जाती है । पहले तो ‘नर बलि’ भी दी जाती थी परन्तु अब सरकार ने इसको अपराध घोषित कर दिया है । बलिदान का अर्थ केवल बलि देना ही नहीं होता है बल्कि इसमें प्रसाद, वस्त्र, गहने, नारियल इत्यादि को भी लिया जाता है । इस प्रकार भारतीय संस्कृति में धर्म को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है । धर्म का पालन करना यहाँ पर बच्चे को जन्म के बाद थोड़ा बड़ा होने पर ही सिखाया जाने लगता है।

7. भारतीय संस्कृति में ग्रामीण धर्म में रूढिवादिता अधिक होती है वे आज भी पुरानी मान्यताओं को ही ज्यादा महत्व देते हैं, जिससे समाज की उन्नति नहीं हो पाती है, वह जहाँ पहले था वहीं पर ही बना रहता है । ग्रामीण सारी बातें धर्म तथा ईश्वर पर ही छोड़ देता है । वे भाग्यवादी बन जाते हैं । कुछ तो साधु-सन्यासी बनकर भिक्षा मांगकर ही अपना पेट भरने लगते हैं।

8. धर्म, विज्ञान का विरोध करता है । आज के युग में विज्ञान के आविष्कारों ने अद्भुत चमत्कार कर दिखाये हैं । आज मानव क्लोन तक को बनाने में विज्ञान सक्षम हो। गया है | धर्म में लोग सब कुछ भाग्य पर तथा ईश्वर पर छोडकर निश्चित हो जाते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि जो कुछ भी वह करता है सब ईश्वर की कृपा से ही होता है । बहुत समय तक तो विज्ञान का विकास धर्म की रूढ़िवादिता के कारण ही रुका रहा है । प्रारम्भ में वैज्ञानिकों को बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। गेलेलियो को धार्मिक विश्वासों का विरोध करने के परिणामस्वरूप फॉसी पर भी लटकना पड़ा था ।

9. धर्म एक तरफ तो सभी लोगों को एक सूत्र में पिरोने की बात करता है लेकिन कभी-कभी ग्रामीण क्षेत्रों में धर्म को लेकर बड़े बड़े संघर्ष हो जाते हैं । धर्म के नाम पर हजारों लोगों जिसमें स्त्री, बच्चे, बूढ़े, जवान सभी शामिल थे मौत के घाट उतार दिये जाते थे। धर्म के प्रचार के लिये व संख्या बढ़ाने के लिए कहीं-कहीं पर तो जबरदस्ती धर्म का कराया जाता है । मध्य युग में तो यह संघर्ष आम बात थी।

10. भारतीय संस्कृति में धर्म का स्थान सदैव ही सर्वोपरि रहा है। धर्म ने समय-समय संकटों से मनुष्यों की रक्षा भी की है । रामायण, महाभारत इत्यादि में इसका उल्लेख मिलता है कि किस प्रकार भगवान ने धर्म की रक्षा के लिए ही इस संसार लेकर तथा कष्टों को सहकर भी इसकी रक्षा की थी।

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