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सामाजिक प्रगति में सहायक दशाएँ और कसौटियाँ | Conditions and Criteria for Social Progress in Hindi

सामाजिक प्रगति क्या है

मोटे तौर पर मान्य एवं वांछित लक्ष्य या उद्देश्य की ओर बढ़ने की प्रक्रिया को प्रगति कहा जाता है। प्रगति मात्र परिवर्तन ही नहीं है, बल्कि एक निश्चित दिशा की और होने वाला परिवर्तन है। ‘प्रगति’ अंग्रेजी के ‘Progress’ शब्द का हिन्दी रूपान्तर है, जो लैटिन भाषा के ‘Prograditor’ शब्द से निकला है। इसका तात्पर्य है – ‘आगे बढ़ना’। (To Steep Forward) । प्रगति का साधारण अर्थ किसी इच्छित या वांछित लक्ष्य की ओर अग्रसर होना है। चूंकि समाजों के लक्ष्यों में समानता नहीं होती, अतः कहा जा सकता है। कि समाज में कल्याणकारी परिवर्तनों को ही सामाजिक प्रगति कहते हैं। ऑगवर्न एवं निमकॉफ के अनुसार, “प्रगति का तात्पर्य है अच्छाई के लिए परिवर्तन और इसीलिए प्रगति में मूल्य निर्धारण होता है |

हार्नेल हार्ट ने लिखा है, “सामाजिक प्रगति सामाजिक संरचना में ऐसे परिवर्तन हैं, जो कि मानवीय कार्यों को मुक्त करें, प्रेरणा एवं सुविधा प्रदान करें और उसे संगठित करें।

स्पष्ट है कि प्रगति एक परिवर्तन है, किन्तु यह परिवर्तन इच्छित या मान्यता प्राप्त दिशा में परिवर्तन है, न कि किसी भी दिशा में परिवर्तन | यह मानवीय सुख में वृद्धि करती है। प्रगति की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. सामाजिक प्रगति में परिवर्तन एक निश्चित, इच्छित/वांछित या मान्यता प्राप्त दिशा में होता है। यानी सामाजिक प्रगति एक उद्देश्यपूर्ण परिवर्तन है।
  2. सामाजिक प्रगति स्वतः यानी अपने आप नहीं होती। इसके लिए सचेत प्रयास करने पड़ते हैं। जब समाज के लोग समाज द्वारा स्वीकृत उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु सचेत रूप से प्रयत्न करते हैं, तभी सामाजिक प्रगति सम्भव होती है।
  3. सामाजिक प्रगति में सबकी यानी सामूहिक प्रगति होती है। यदि किसी व्यक्ति विशेष की उन्नति हो रही है अथवा किसी विशेष समूह या समुदाय को ही लाभ मिल रहा है, तो उसे सामाजिक प्रगति नहीं कहते हैं। जब समूह के अधिकांश सदस्यों को लाभ पहुँचता है, तो यह स्थिति सामाजिक प्रगति कहलाती है।
  4. यद्यपि सामाजिक प्रगति एक प्रकार का परिवर्तन अवश्य है, किन्तु यह एक ऐसा परिवर्तन है, जिससे समाज को या समाज के सदस्यों को हानि की तुलना में लाभ अधिक मिलता है।
  5. सामाजिक प्रगति का एक इच्छित/स्वीकृत लक्ष्य होता है। समाज अथवा समूह इस लक्ष्य को अपने सामाजिक मूल्यों, आदशो, प्रथा और परम्परादि के आधार पर निर्धारित करता है।
  6. सामाजिक प्रगति की अवधारणा परिवर्तनशील है, न कि स्थिर। इसमें समय के अनुसार परिवर्तन होता रहता है, क्योंकि सामाजिक प्रगति का सम्बन्ध काफी कुछ सामाजिक मूल्यों से होता है। ये सामाजिक मूल्य समय-समय पर बदलते रहते हैं।
  7. प्रगति की अवधारणा तुलनात्मक है, यानी समय तथा स्थान के अनुसार यह बदलता रहती है। किसी समाज में जनसंख्या वृद्धि को प्रगति माना जा सकता है, तो दूसरे समाज में नहीं।
  8. प्रगति की अवधारणा का सम्बन्ध केवल मानव समाज से ही है, पशु समाज से नहीं, क्योंकि मूल्य की अधारणा मनुष्यों में ही पाई जाती है।

सामाजिक प्रगति में सहायक दशाएँ

 

प्रायः निम्नलिखित सामाजिक दशाएँ प्रगति में सहायक होती है

1. स्वतन्त्रता – स्वतन्त्रता के अभाव में प्रगति असम्भव हैं। काम करने की स्वतन्त्रता विचार करने की स्वतन्त्रता, धर्म में आस्था एवं विश्वास की स्वतन्त्रता से ही प्रगति होती है। देश के नागरिक जब तक यह अनुभव नहीं करते कि वे कार्य करने के लिये स्वतन्त्र है, तब तक प्रगति करने की भावना दबी – दबी सी रहती है।

2. समानता – समानता का तात्पर्य अवसरों की समानता से है। प्रगति के लिये यह आवश्यक है कि लोगों के साथ धर्म, जाति और लिंग के आधार पर कोई पक्षपात/ भेदभाव न किया जाये। सभी लोगों को राजनैतिक, धार्मिक एवं आर्थिक क्षेत्रों में समान अवसर उपलब्ध होने चाहिये। प्रत्येक नागरिक को तरक्की करने की समान सविधायें प्राप्त होनी चाहिये । अन्यथा उसे प्रगति नहीं माना जा सकता है।

3. आदर्श जनसंख्या – प्रगति और आदर्श जनसंख्या में गहरा सम्बन्ध है। यदि देश की जनसंख्या इतनी अधिक होगी कि नागरिकों की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति न हो पाती हो, तो देश में बेकारी, निर्धनता, लोभ, अपराध-वृद्धि होगी। प्रगति तभी सम्भव होगी, जबकि जनसंख्या इतनी हो कि लोगों की न्यूनतम आवश्यकताओं को पूर्ण किया सकें।

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4. न्यूनतम जीवन-स्तर की व्यवस्था – रोटी, कपडा और मकान जैसी मूल आवश्यकताओं की सन्तुष्टि न होने पर जीवन सम्भव नहीं होता। अतः राज्य का यह कर्तव्य है कि वह अपने सभी नागरिकों के लिये इनकी अनिवार्य व्यवस्था करें। ऐसा न होने पर लोगों में असुरक्षा भावना विकसित होगी, वे अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह नहीं कर पाएंगे तथा इस स्थिति में प्रगति भी सम्भव न होगी।

5. शिक्षण एवं प्रशिक्षण – शिक्षा को ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ या अन्धकार से प्रकाश की ओर यात्रा कहा गया है। शिक्षा से ही व्यक्ति के अज्ञान का नाश होता है परिस्थितियों का व्यावहारिक ज्ञान होता है, परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाने की क्षमता विकसित होती है। नवीन ज्ञान से सम्बन्धित प्रशिक्षण के बिना भी प्रगति सम्भव नहीं होती।

6. शान्ति एवं सुरक्षा – प्रगति की कसौटी अन्तरिक शांति एवं बाह्य आक्रमणों से सुरक्षा है। यदि देश / समाज में आन्तरिक संघर्ष / अशांति व्याप्त है, भाषा, धर्म एवं प्रान्तवाद को लेकर संघर्ष जारी है. सरकारी व गैर-सरकारी संस्थाओं में हड़ताल चल रही है, बाहरी आक्रमण खतरा मण्डरा रहा है, तो सभी नागरिक स्वयं को असुरक्षित समझेंगे।

7. सामाजिक सुरक्षा – प्रगति की वास्तविक कसौटी तो सामाजिक सुरक्षा ही है। राज्य की ओर से नागरिकों को जीवन-बीमा, बीमारी, दुर्घटना एवं मृत्यु से उत्पन्न संकट में सुरक्षा, पारिवारिक पेंशन, बद्धावस्था में सहायता आदि उपलब्ध कराने की व्यवस्था होती आवश्यक है। जब तक ऐसी सामाजिक सुरक्षा लोगों को नहीं मिलेगी, तब तक प्रगति का कल्पना व्यर्थ होगी।

8. अनुकूल भौगोलिक दशाएँ – प्रगति पर भौगोलिक दशाओं का पर्याप्त प्रभाव पड़ता है। भौगोलिक दशाएँ न तो इतनी अनुकूल होनी चाहिये कि लोग आलसी और अकर्मण्य हो जाएँ और न इतनी प्रतिकूल, कि लोग कर्महीन कर पाये। प्रगति के लिये ऐसी जलवायु आवश्यक है कि लोगों को अपने प्रयास में सफलता मिले, ताकि वे आगे भी प्रयास करते रहे और निरन्तर प्रगति होती रहे।

9. कुशल एवं सक्षम नेतृत्व – यदि देश का नेतृत्व योग्य होगा, तो देश की प्रगति अवश्य होगी। कोई भी देश कितना ही धन-धान्य से पूर्ण हो, लोग बड़े परिश्रम हो, किन्तु यदि उसका नेतृत्व भ्रष्ट हाथों में होगा, तो प्रगति नहीं हो सकती।

10. उत्तम स्वास्थ्य – शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य भी प्रगति में सहायक है। प्रगतिशील देश में नागरिकों को स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यक सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिये। बीमारियों की रोकथाम होनी चाहिये । नागरिकों का अच्छा स्वास्थ्य देश को प्रगति की ओर से सहायता करता है। अफ्रीका महाद्वीप की अवनति का एक कारण वहाँ के निवासियों का बुरा स्वास्थ्य भी रहा हैं।

11. दीर्घायु – प्रगति के लिये देश के निवासियों की आयु का लम्बा होना भी आवश्यक है। आयु का अर्थ औसत आयु से हैं। लोग दीर्घायु तक स्वस्थ रहते हुये जीवित रहें, ताकि प्रगति में योगदान करते रहें।

12. तकनीकी/ प्रौद्योगिकीय प्रगति – प्रौद्योगिकीय प्रगति का सम्बन्ध समाज की प्रगति से भी है। प्रौद्योगिकीय प्रगति का आशय है- नए-नए आविष्कार एवं नवीन यन्त्रों / मशीनों का ज्ञान। बड़े उद्योगों की स्थापना, व्यापार/ वाणिज्य की उन्नति, यातायात एवं संसार साधनों का विकास, कृषि की नवीन प्रविधियाँ आदि प्रगति के ही लक्षण माने जाते हैं।

13. भौतिक संसाधन – इसका तात्पर्य खनिज-पदार्थों से है। देश में विशाल मात्रा में खनिज पदार्थ होने आवश्यक है तथा उन पर देश का पूर्ण अधिकार होना भी आवश्यक है। अधिकार से तात्पर्य यही हैं कि देश द्वारा भौतिक साधनों का दोहन अधिकाधिक मात्रा में किया जाये।

14. नागरिकों में भय एवं आशंका – प्रगति के लिये नागरिकों के मन-मस्तिष्क में भय/ आशंका नहीं होनी चाहिये। राज्य का भय, जाति का भय, धर्म का भय, रोजी-रोटी का भय प्रगति के मार्ग के रोड़े माने जाते है।

15. प्रगति की सम्भावना या आशा – प्रगति के लिये जरूरी है कि लोगों को ऐसा विश्वास हो कि वे प्रगति कर सकते हैं। जिन्हें यह लगता है कि प्रगति सम्भव नहीं है, तो वे प्रगति नहीं कर सकते। प्रगति के लिये प्रगति की आशा करना अत्यावश्यक है।

सामाजिक प्रगति की कसौटियाँ

विभिन्न समाजशस्त्रियों ने प्रगति की कसौटियों का निर्धारण किया हैं, जिनमें से कुछ  निम्नवत् प्रस्तुत की जाती है –

1. बोगार्ड्स के अनुसार

बोगार्ड्स ने प्रगति की चौदह कसौटियाँ निर्धारित की है, यथा –

1. चालाक लोगो हेतु नहीं, बल्कि सार्वजनिक हित के लिये प्राकृतिक साधनों का लाभकारी उपयोग।

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2. ऐस लोगों की संख्या में वृद्धि होना, जो शारीरिक एवं मानसिक दोनों ही दृष्टि से स्वस्थ हैं।

3. स्वास्थ्यप्रद पर्यावरण एवं स्वच्छता में वृद्धि और गन्दी बस्तियों व संक्रमिक रोगों में कमी।

4. उपयोगी मनोरंजन साधनों में वृद्धि ।

5. संगठित परिवारों की संख्या में वृद्धि ।

6. समाज के अधिकाधिक लोगों की रचनात्मकता एवं रुचि के अनुसार कार्यों को करने की अधिकाधिक स्वतन्त्रता।

7. उद्योगों एवं व्यापारों में जनता का अधिकतम अधिकार।

8. दुर्घटना, बीमारी, मृत्यु, वृद्धावस्था एवं बेकारी के समय सामाजिक सुरक्षाओं की अधिक से अधिक व्यवस्था।

9. समाज के अधिकांश लोगों के जीवन स्तर के विकास ।

10. सरकार एवं जनता के मध्य सहयोग की मात्रा में वृद्धि।

11. विविध कलाओं – संगीत, चित्रकाल, मूर्तिकला काव्य आदि का अधिकाधिक विस्तार।

12. व्यावसायिक तथा कल्याणप्रद शिक्षा का प्रचार।

13. मानव स्वभावन में धार्मिक व आध्यात्मिक प्रवृत्तियों का अधिकाधिक विकास।

14. सामुदायिक एवं सहयोगी जीवन में वृद्धि।

2. हॉवहाउस के अनुसारहॉवहाउस ने प्रगति की अग्रलिखित चार कसौटियों का उल्लेख किया है –

1. आदर्श जनसंख्या 2. व्यक्तियों की कार्य कुशलता में वृद्धि 3. स्वतन्त्रता की भावना 4. पारस्परिक सेवा की भावना।

3. टॉड के अनुसार – ए. जे. टॉज ने प्रगति की अग्रलिखित पाँच कसौटियों बतायी हैं –

1. सम्पत्ति की प्रचुरता 2. उत्तम स्वास्थ्य 3. आदर्श जनसंख्या 4. उपयुक्त सामाजिक व्यवस्था जहां अवसरों की समानता हो 5. सामाजिक स्थायित्व/स्थिरता

4. हार्ट के अनुसार – हार्ट ने प्रगति की तीन कसौटियों का निर्धारण किया है –

1. लम्बी/दीर्घ आयु 2. उच्च मानसिक स्वास्थ्य 3. अवसर का अधिक समय।

5. केस के अनुसार – केस ने सामाजिक प्रगति की निम्नलिखित तीन प्रमुख कसौटियों का उल्लेख किया है –

(अ) उपयोगिता – प्रगति के लिये जरूरी है कि प्रकृति द्वारा प्रदत्त साधनों का अधिकतम उपयोग किया जाये। साथ-साथ अधिक स्वस्थ लोगों की संख्या में वृद्धि की जाये। और लोगों के रहने की अधिकाधिक व्यवस्था भी की जाये।

(ब) समानता – इसका तात्पर्य यह है कि आर्थिक सामाजिक राजनैतिक एवं धार्मिक क्षेत्रो में समानता स्थापित हो तथा लोगों की आवश्यकता के अनुसार समान वितरण हो।

(स) मूल्यांकन – सामाजिक मूल्यों का जीवन में बड़ा महत्व है, अतः ऐसी व्यवस्था की जाये, जिससे समाजिकरण में सामाजिक मूल्यों का महत्व हो।

6.  ई. टी. डिवाइन ने भी सामाजिक प्रगति की चौदह कसौटयां बतायी हैं-

1. प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण तथा उनका अधिकाधिक व्यक्तियों के लिए शोषण/दोहन।

2. अधिक स्वास्थयप्रद पर्यावरण में वृद्धि तथा गंदे मकानों, गंदगी एवं छूत के रोगों की संख्या में कमी।

3. मानसिक दष्टि से दुर्बल और ऐसे माता- पिता की सन्तानों की संख्या में कमी करना। डिवाइन ने ऐसे बच्चों को नष्टधर्मी माना है।

4. हानिकारक मनोरंजनात्मक साधनों में कमी करना, स्वस्थ मनोरंजन में वृद्धि करना तथा नगरीय जीवन में विश्राम की सुविधाएं उपलब्ध कराना ।

5. अधिकाधिक लोगों के लिए सृजनात्मक कार्यों हेतु अधिक से अधिक अवसर प्राप्त कराना।

6. ईमानदारों की संख्या में वृद्धि करना । कामचोर व बेकार व्यक्तियों की संख्या में कमी करना।

7. व्यापार तथा उद्योगों के प्रजातंत्रिक विशेषताओं की वृद्धि करना, ताकि मजदूर, पूंजीपति और जनसाधारण के मध्य समानता विकसित हो तथा एक-दूसरे का अधिकाधिक ध्यान रखने वाले मजदूरों व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि हो।

8. दुर्घटना, बीमारी, मृत्यु, रोग व बेकारी के समय सामाजिक बीमा की व्यवस्था ।

9. जीवन स्तर में अधिकाधिक वृद्धि की जाये, ताकि अधिक से अधिक लोगों के पौष्टिक आहार, स्वस्थ मनोरंजन व ऐसे अवसर सुलभ हों, जिससे वे सृजनात्मक कार्य कर सकें।

10. सरकार से अधिकाधिक अधिकारों की अपेक्षा कर्तव्यों पर अधिक बल।

11. लोगों में अच्छी कविता, संगीत एवं चित्रकारी आदि के प्रति रुचि में वद्धि।

12. ऐसी शिक्षा का प्रसार जो कि व्यवसायिक, बौद्धिक एवं कल्याणप्रद हो।

13. लोगों के आध्यात्मिक व धार्मिक जीवन के प्रति रुचि में वृद्धि।

14. व्यक्तियों में ऐसी भावना का अधिकाधिक विकास किया जाये, ताकि वे परस्पर मिल-जुल कर कार्य कर सकें।

 

 

इन्हें भी देखें-

 

 

 

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