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ग्रामीण विकास में पंचायती राज की भूमिका की विवेचना

सन् 1947 में हमारे देश को सहस्रों वर्षोपरान्त स्वतन्त्रता प्राप्त हुई और स्वाधीन सरकार ने प्रजातांत्रिक आधार पर ग्रामीण विकास हेतु सम्पूर्ण देश में ‘लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण अथवा ‘पंचायती राज‘ के महान आदर्श को अपनाया। इस आदर्श की पूति हेतु सर्वप्रथम राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने ही पहल प्रारम्भ की और यह विचार प्रस्तुत किया कि ग्रामीण जीवन की समन्नति और पनर्निर्माण वस्तुतः ग्राम पंचायतों की स्थापना और सफलता में ही निहित है। इसी उददेश्य को दृष्टिगत रखते हुए स्वाधीन सरकार ने सम्पूर्ण देश में ग्राम पंचायतों की स्थापना की और इसके द्वारा ही ग्रामीण पुननिर्माण के महान आन्दोलन का श्रीगषेण भी किया। ग्रामीण पुनर्निर्माण मे ग्राम पंचायतों का महत्व और योगदान निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है –

Table of Contents

(अ) ग्रामीण सामाजिक जीवन में पंचायतों का योगदान

1. सामाजिक सुधार –

सामान्य ग्रामीणजन बाल विवाह, विधवा विवाह निषेध, दहेज प्रथा, ऊँच-नीच और छुआछूत की भावना जैसी विभिन्न सामाजिक कुरीतियों से ग्रस्त रहते हैं । इसीलिए कुछ विद्वानों ने भारतीय ग्रामीणों की तुलना में कुंए में रहने वाले मेंढक से की है । ग्राम पंचायतों की स्थापना के पश्चात् भारतीय ग्रामवासियों में इनके सामाजिक सुधार परिलक्षित हुए हैं और इस प्रकार परम्पराग कुरीतियों, रूढ़ियों और दुष्प्रथाओं का भी अन्त हुआ है।

2. शिक्षा की समुचित व्यवस्था

भारतीय ग्रामों में आजादी के पर्व सर्वत्र अशिक्षा का साम्राज्य स्थापित रहा है, तथापि ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम पंचायतों की स्थापना के पश्चात् अधिकाधिक मात्रा में सर्वत्र शिक्षा व्यवस्था में महत्वपूर्ण प्रगति सम्भव हुई है । ग्राम पंचायतें अपने-अपने क्षेत्रो में बालक-बालिकाओं की प्राथमिक शिक्षा के साथ-साथ प्रौढ शिक्षा की भी व्यवस्था करती है । ग्राम पंचायतों का यह कार्य अति महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ है।

3. बाल तथा मातृ कल्याण के कार्य –

ग्राम पंचायतें राष्ट्र के भावी नागरिकों के चतुर्दिक विकास में भी अपना योगदान करती हैं । यह बालकों को खेलकुद, मनोरंजन तथा अन्य सविधायें प्रदान करके उनका शारीरिक और मानसिक विकास करती हैं। इसी प्रकार से वर्तमान युग में ग्राम पंचायतें मातृत्व कल्याण से सम्बद्ध विभिन्न कार्य करती हैं। ग्राम पंचायतों की स्थापना के पूर्व ग्रामीण समुदायों में अनेक चिकित्सकीय सविधाओं की कमी। के परिणामस्वरूप प्रस्ता महिलाओं की मृत्यु तक हो जाती थी किन्तु अब इस क्षेत्र में भी ग्रामीण पंचायतें विभिन्न प्रकार की सुविधायें प्रदान करती हैं और इस प्रकार पर देश में प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में नवजात शिशुओं और प्रसूती स्त्रियों की प्राण रक्षा करती है।

4.सार्वजनिक बाजारों और मेलों की देख-रेख –

सभी ग्राम पंचायत अपने-अपने क्षेत्र की परिधि में ग्रामीणों की उपज का विक्रय करने तथा खेतीबारी की वस्तुए खरीदने में भी सहयोग प्रदान करती हैं और इस प्रकार उनको दलालों, बिचौलियों और आढ़तियों के चंगुल में फंसने से बचाती है । इसी प्रकार ग्राम पंचायतें अपने क्षेत्रों में लगने वाले हाट-बाजारों तथा मेलों आदि के प्रबन्ध सम्बन्धी विभिन्न कार्यों को सम्पादित करते हुए उनकी समुचित देखरेख भी करती हैं।

5. मद्यपान निषेध कार्यक्रम –

अज्ञानता, अशिक्षा, मनोरंजनात्मक साधनों का अभाव और कुसंगति के कारण विभिन्न प्रकार के नशों के आदी बन जाते हैं, जिनमें शराब, भाँग, चरस, गाँजा, अफीम, ताडी आदि प्रचिलत होते हैं। ग्राम पंचायतों की स्थापना के फलस्वरूप ग्रामीण सामाजिक जीवन में सर्वत्र मद्यपान निषेध कार्यक्रम आयोजित हुए हैं, जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीणों में नशाखोरी की प्रवृत्ति कुछ-कुछ अवरुद्ध और शिथिल हुई है ।

(ब) ग्रामीण राजनैतिक जीवन में ग्राम पंचायतों का योगदान

1.ग्रामोत्थान या ग्रामोन्नति –

भारतीय समाज के सन्दर्भ में अति प्राचीन युग से ही ग्राम राजनैतिक जीवन की एक अति महत्वपूर्ण और विशिष्ट इकाई रहे हैं । इसलिए यह स्पष्ट है कि भारतवर्ष में कोई भी महत्वपूर्ण राजनैतिक कार्य अथवा आन्दोलन ग्रामोन्नति की उपस्थिति मे कदापि सफलता नहीं प्राप्त कर सकता है। ग्राम पंचायतें अपने-अपने क्षेत्र के ग्राम वासियों में राष्ट्रीय चेतना और जागरुकता तथा स्वालम्बन की भावना के विकास हेतु उनमें श्रमदान, साप्ताहिक स्वास्थ दिवस, सचल पुस्तकालय आदि संचालित करती हैं और इस प्रकार राजनैतिक दृष्टिकोण से उनमें ग्रामोत्थान की भावना का विकास भी करती हैं ।

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2. उत्तम नागरिकता का पाठ पढ़ाना –

आधुनिक के भारतीय समाज में विशेषकर ग्रामीण समाज के सन्दर्भ में उत्तम नागरिकों की अतीव आवश्यकता है, जो कि ग्रामोत्थान और सामुदायिक उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकें | इस क्षेत्र में भी ग्रामीण पंचायतें सर्वथा महत्वपूर्ण और उपयोगी संस्था सिद्ध हुई हैं, क्योंकि यह विशेष रूप से ग्रामवासियों को उत्तम नागरिकता की शिक्षा प्रदान करती है ।

3. प्रशासनिक शिक्षा देना –

सभी ग्राम पंचायतें अत्यधिक महत्वपूर्ण रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित विभिन्न प्रकार की सामुदायिक पंचायतें अत्यधिक महत्वपूर्ण रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित विभिन्न प्रकार की सामुदायिक विकास योजनाओं को सफलता प्रदान करने और ग्रामोदय तथा ग्रामोत्थान आन्दोलन को सफल बनाने की दिशा में अपने-अपने क्षेत्र के ग्रामीणों को प्रशासनिक सम्बन्धी विभिन्न प्रकार का प्रशिक्षण प्रदान करती हैं । ग्राम पंचायतें इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण एवं स्तरीय योगदान करती हैं।

5. शान्ति और सुरक्षा प्रदान करना –

ग्राम पंचायतें अपने विशेष अधिकारों और कर्तव्यों को आधार पर अपने-अपने क्षेत्र में सर्वत्र शान्ति और सुरक्षा का वातावरण भी स्थापित करती हैं । वास्तविकता भी यही है कि ग्राम्य जीवन मे प्रबल और प्रभावी नियन्त्रण तथा महत्वपूर्ण प्रत्यक्ष कार्यों को द्वारा शान्ति और सुरक्षा स्थापित हो सकती है, वह किसी भी अन्य संस्था के द्वारा सम्भव नहीं है।

6. मुकदमेबाजी में कमी –

ग्राम पंचायत और पंचायती अदालतों की स्थापना के परिणामस्वरूप ग्रामीणों में जो मुकदमेबाजी की प्रवृत्ति दिखाई पड़ती थी, उसमें भी कमी उत्पन्न हुई है, जिसका मुख्य श्रेय हम ग्रामीण पंचायतों को ही प्रदान कर सकते हैं। सामान्यतः ग्रामीणजन थोडी-थोड़ी समस्याओं और बातों पर भी एक-दूसरे से मुकदमेबाजी कर बैठते हैं । इस अवस्था में ग्रामीण पंचायतें दोनों पक्षों में पारस्परिक सौहाद्र और स्वस्थ वातावरण स्थापित करके मुकदमें बाजी की दुष्प्रवृत्ति को समाप्त करती हैं ।

(स) ग्रामीण आर्थिक जीवन में ग्राम पंचायतों का योगदान

1. ग्रामोद्योगों की स्थापना –

ग्रामों में उत्तरोत्तर वृद्धि करती हुई विशाल जन अब केवल परम्परागत कृषि पर ही जीवित नहीं रह सकती है । औद्योगीकरण और ना सम्पर्क के परिणामस्वरूप वर्तमान भारतीय ग्रामवासियों की आवश्यकतायें भी कार्फ चुकी हैं । इसके अतिरिक्त ग्रामों में उपस्थिति बेरोजगारी और निर्धनता आदि को भी पंचायतें विभिन्न प्रकार के लघु उद्योग-धन्धे स्थापित करके दूर कर सकती है । विभिन्न प्रत की ग्राम पंचायतें सामुदायिक प्रयासों के आधार पर ग्रामीण उद्योग धन्धों की स्थापना का ग्रामोद्योग आन्दोलन में एक विशिष्ट भूमिका का सफलतम निर्वाह भी करती हैं।

2. कृषि सम्बन्धी सुधार तथा प्रगति –

ग्रामी जीवन का सर्वप्रमुख व्यवसाय कृषि ही होता है, इसीलिये कहा भी जाता है कि भारतीय ग्रामवासी खेतों में उत्पन्न होता है वही पर उसका पालन-पोषण होता है तथा वहीं पर वह मृत्यु को प्राप्त होता है । कहने का सारांश यह है कि भारतीय किसान कृषिमय है । इस परिप्रेक्ष्य में भी ग्राम पंचायतों की एक विशिष्ट भूमिका है, क्योंकि ये सामुदायिकता के आधार पर अपने-अपने क्षेत्रों में कृषि सम्बन्धी विभिन्न सुधारवादी कार्य करती हैं तथा यथासम्भव इसकी उन्नति हेतु प्रयत्नरत होती हैं।

3 . उन्नत बीज और कृषि यन्त्रों की व्यवस्था करना –

सभी ग्राम पंचायतें अपने-अपने क्षेत्र में आर्थिक रूप से कृषि की समुन्नति हेतु उन्नत किस्म के बीजों, अनाज, भण्डारग्रहों एवं कृषि सम्बन्धी औजारों तथा यन्त्रों आदि की व्यवस्था भी करती हैं, जिसके  परिणामवरूप ग्रामीण समुदाय का आर्थिक जीवन की उच्चता की ओर वृद्धि कर रहा है।

4. कुटीर उद्योग-धन्धों की व्यवस्था करना –

ग्राम पंचायतें अपने-अपने क्षेत्र में आर्थिक रूप से कृषि की समुन्नति हेतु उन्नत किस्म के बीजों, अनाज, भण्डारगृहों एवं कृषि सम्बन्धी औजारों तथा यन्तों आदि की व्यवस्था भी करती हैं, जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण समुदाय का आर्थिक जीवन की उच्चता की ओर वृद्धि कर रहा है।

5. सिंचाई की व्यवस्था करना –

भारतीय कृषि अति प्रारम्भ से ही प्रकृति पर ही  निर्भर करती है अर्थात् जब कभी आवश्यक समय पर वर्षा हो जाती है, तब कृषि की फसल भी लहलहाती है, और जब कभी समयोचित वर्षा नहीं होती, तब किसान की खेती नष्ट हो  जाती है । इसके अन्तिम परिणामस्वरूप कृषक वर्ग को पूरे वर्ष संघर्ष करने को विवश होना  पड़ता है।  ग्राम पंचायतों की स्थापना के पश्चात् यह अवस्था बहुत कुछ सुधरी भी है, क्योंकि ग्राम पंचायतें अपने क्षेत्र में कुओं, तालाबों, नलकूपों आदि सिंचाई के साधनों के  निर्माण की व्यवस्था कर सकती है।

6. सहकारी समितियों का संगठन करना –

ग्राम पंचायतें अपने क्षेत्र के  ग्रामवासियों की विभिन्न आर्थिक कठिनाइयों एवं समस्याओं के समुचित निदान हेतु सहकारी समितियों का निर्माण भी करती हैं, जिससे ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार होता है । यह सहकारी समितियाँ ग्रामीणों को अनेक प्रकार की आर्थिक-वित्तीय सहायता प्रदान  करने के साथ-साथ उनकी उपज को बेंचने का दायित्व भी सफलतापूर्वक निभाती हैं।

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7. वक्षों तथा चारागाहों की व्यवस्था करना –

ग्राम पंचायतें अपने-अपने क्षेत्र में  पशुओं के लिए आवश्यक चारागाहों की व्यवस्था और देखरेख आदि से सम्बन्धित विभिन्न  महत्वपूर्ण कार्य भी करती हैं, जिससे ग्रामों में पशुधन सर्वथा समृद्ध होता रहता है । चारागाहों की व्यवस्था के अतिरिक्त ग्राम पंचायतें अपनी ग्राम परिधि में वृक्षारोपण और इनकी सुरक्षादि से सम्बन्धित कार्यों का भी निष्पादन करती हैं । वर्तमान समय में तो प्रदूषण की समस्या के फलस्वरूप सर्वत्र पौधारोपण कार्यक्रम चल रहा है । इस सन्दर्भ में ग्राम पंचायतों का यह कार्य सर्वथा महत्वपूर्ण सिद्ध हो रहा है ।

8.भूमिहीनों के लिए भूमि की व्यवस्था करना –

भारतीय ग्रामों में अनेक ऐसे ही व्यक्ति निवास करते हैं, जिनके पास थोड़ी सी भी कृषि योग्य भूमि नहीं होती है । ग्राम चायतें इस सन्दर्भ में भूदान और ग्रामदान आन्दोलनों के अतिरिक्त ग्राम समाज की भूमि धनको प्रदान करती हैं और इस प्रकार ग्रामों में भूमिहीन मजदूरों को भूमि की व्यवस्था करके ग्रामीणों की बेरोजगारी तथा निर्धनता में कमी उत्पन्न करती हैं।

(द) ग्रामीण सार्वजनिक जीवन तथा कल्याण में ग्राम पंचायतों का योगदान

1. सफाई की व्यवस्था –

ग्राम पंचायतें अपने-अपने क्षेत्र में ग्रामवासियों के स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने हेतु सफाई की महत्वपूर्ण व्यवस्था भी करती हैं । इस सन्दर्भ मे ग्राम पंचायतें सार्वजनिक स्थानों की सफाई, कुओं और तालाबों की स्वच्छता तथा चिकित्सा आदि के कार्य करती हैं।

2. स्वास्थ्य की व्यवस्था –

ग्रामीण पंचायतें अपने-अपने क्षेत्र में सार्वजनिक चिकित्सालय तथा औषधालयों की स्थापना करके ग्रामवासियों के स्वास्थ्य कल्याण का कार्य भी करती हैं। इसके अतिरिक्त यह पंचायतें विभिन्न प्रकार की संक्रामक बीमारियों की रोकथाम भी करती हैं।

3. पेय जल की व्यवस्था –

ग्राम पंचायतें अपने ग्रामवासियों के लिए शुद्ध और स्वच्छ पीने के जल की भी व्यवस्था करती हैं, जिससे उनका स्वास्थ्य खराब न हों ।

4.बाढ़ तथा अकाल में सहायता –

ग्रामों में अकाल, महामारी, अनावृष्टि या सूखा, बाढ़, पाला आदि की विपत्तियों के अवसर पर ग्राम पंचायतें अपने ग्रामवासियों को अनेकानेक प्रकार की सहायता और राहत सम्बन्धी कार्य करती हैं । ग्राम पंचायतें इस सन्दर्भ में एक महत्वपूर्ण एवं विशिष्ट भूमिक अदा करती हैं।

5. यातायात तथा संचार की सुविधायें –

ग्रामीण पंचायतें अपने-अपने क्षेत्र में ग्रामीण जनता की आवश्यकताओं के अनुरूप विभिन्न प्रकार की ट्रान्सपोर्ट या यातायात तथा संचार सम्बन्धी विभिन्न सुविधाओं की भी व्यवस्था करती हैं । इस सन्दर्भ में वे राज्य और केन्द्र सरकारों के द्वारा भी सहायता प्राप्त करती हैं।

6.मनोरंजन की व्यवस्था –

ग्राम पंचायतें अपने-अपने क्षेत्र में ग्रामीण जनों के मनोरंजन हेतु रेडियो, दूरदर्शन, सिनेमा, रंगमंच तथा अन्यान्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन करती हैं, जिसके परिणामस्वरूप ग्रामवासियों के जीवन में नीरसता उत्पन्न नहीं हो पाती है।

ग्राम पंचायतों की उन्नति के सुझाव

1. ग्राम पंचायतों के चुनाव हेतु गुप्त और सरल मतदान प्रणाली प्रारम्भ की जाये. जिससे ग्रामवासियों में पारस्परिक शत्रुता, ईष्या और वैमनस्यता की भावना विकसित न हो।

2.  ग्राम पंचायतों का निर्वाचन वयस्क मताधिकार पर आधारित किया जाये तथा ग्रामसभा के सभी सदस्यों को अनिवार्य रूप से बालिक होने पर ही निर्वाचित किया जाये।

3. ग्राम पंचायतों की सफलता और विकास हेतु ग्रामवासियों को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जाये तथा यथासम्भव उनको प्रशासनिक तथा सामुदायिक जीवन के विभिन्न पक्षों में भाग लेने के अवसर भी प्रदान किये जायें ।

4. संविधान में निहित विभिन्न उददेश्यों की पति के सन्दर्भ में ग्राम पंचायतों को स्वराज्य की एक महत्वपूर्ण इकाई के रूप में क्रियाशील बनाने  के अतिरिक्त उनको सामाजिक न्याय और आमदनी के अन्य स्रोत भी उपलब्ध कराये जायें।

5. ग्राम पंचायतों को यथाशीघ्र गुटबन्दी और कुटिल राजनीतिक से विमुक्त किया जाये।

6. ग्राम पंचायतों को सरकारी तौर पर कर वसूली, ऋण, व्यवसाय आदि में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहन प्रदान किया जाये।

7. ग्राम पंचायतों में कुशल नेतृत्व प्रदान कराया जाये, जिससे यह सुचारु रूप से अपना दायित्व निर्वाह कर सके।

8. सरकारी स्तर पर जाये, जिससे यह सुचारु रूप से अपना दायित्व निर्वाह कर सके ग्राम पंचायतों की इस महत्वपूर्ण संस्था के द्वारा राजनैतिक तथा आर्थिक विकेन्द्रीकरण गम्भीर और व्यवस्थित कार्यरम्भ हों।

9. ग्राम पंचायतों के निर्वाचन में सर्वसम्मति प्रणाली विशेष बल दिया जाये।

10.ग्राम पंचायतों को म्युनिस्पिल, सामाजिक, आर्थिक और न्यायिक आदि के कार्य के अधिकार भी प्रदान किया जाये ।

11. सभी प्रकार की सरकारी योजना, ग्राम पंचायतों के आधार पर ही बनाई जायें |

12. इनके विभिन्न कार्यो की देखरेख एवं निरीक्षण हेतु तहसील सरपंचों के द्वारा एक निरीक्षक का चुनाव किया जाये |

13. शनैः शनैः ग्राम पंचायतों को भमि कर वसलने का कार्य सौपा जाए और उनको लगान का लागभग 15-25% अंश अपने नित्यप्रति के कार्यों पर व्यय हेतु प्रदान किया जाये।

 

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