व्यक्तिनिष्ठ अनुदेशन प्रणाली की क्रियाविधि

व्यक्तिनिष्ठ अनुदेशन प्रणाली की क्रियाविधि, लाभ, सीमाएँ | Mechanism Of Personalized Instruction in Hindi

व्यक्तिनिष्ठ अनुदेशन प्रणाली की क्रियाविधि(Mechanism Of Personalized System of Instruction(PSI))

व्यक्तिनिष्ठ अनुदेशन प्रणाली की कोर्स नीति(Course Policy)-

व्यक्तिनिष्ठ अनुदेशन प्रणाली की क्रियाविधि प्रणाली में पाठयक्रम की इस सामग्री को अनेक इकाइयों में विभाजित किया जाता है, जिन्हें छात्र लगभग एक सप्ताह में भली-भाँति समझ लेते है। विषय पर ‘मास्टरी’ के बाद उन्हें 20-25 मिनट का एक उपलब्धि परीक्षण दिया जाता है, जिसकी जांच लगभग 5 मिनट में हो जाती है। यहाँ पर प्रयुक्त होने वाली अधिगम सामग्री में एक सबकी समान पाठ्य-पुस्तक तथा एक ‘स्टडी गाइड’ में यनिट की प्रस्तावना, व्यावहारात्मक उद्देश्य, प्रक्रिया पाठ्य-वस्तुपूरक (Text Supplement) तथा परीक्षण प्रश्न निहित होते हैं। प्रक्रिया में – ‘क्या पढ़े, कहाँ से पढ़े, कहाँ पर याद करें और कहाँ पर समझें जैसी चीजें निहित रहती है। प्रत्येक युनिट के लिये चार समान किन्तु विभिन्न प्रकार के Readiness Tests होते हैं।

प्रारम्भ में कोर्स नीति की व्याख्या की जाती है फिर प्रत्येक छात्र को यनिट की ‘स्टडी-गाइड’ वितरित की जाती है जिससे वे अपना अध्ययन प्रारंभ कर सके। शिक्षक प्रत्येक छात्र के पास व्यक्तिगत रूप से पहुँचता है और उनकी व्यक्तिगत कठिनाइयाँ दूर करता है। जब कोई छात्र महसूस करता है कि उसने अपने पढ़ने के उद्देश्य प्राप्त कर लिये तब उसे ‘परीक्षण’ दिया जाता है। परीक्षण की जाँच छात्रों से मौखिक स्पष्टीकरण लेने के साथ-साथ की जाती है। यदि छात्र बिना किसी प्रत्यात्मक गलती के परीक्षण में उत्तीर्ण हो जाता है तो उसे अगली यूनिट की ‘स्टडी गाइड’ दे दी जाती है। यदि वह अनुत्तीर्ण होता है तथा अपनी गलतियों का कोई संतोषप्रद उत्तर नहीं दे पाता तब उसे उचित निर्देशन प्रदान किया जाता है ताकि उसका ध्यान यूनिट के उन पहलुओं पर खींचा जाये जहाँ अधिक ध्यान देने की जरूरत है। छात्र को पुनः वह यूनिट पढ़नी पड़ती है और फिर से परीक्षा में बैठना पड़ता है। इस समय दिया जाने वाला परीक्षण पहले वाला भी हो सकता है या कोई नया भी दिया जा सकता है। यदि वह परीक्षण में निर्धारित रूप से उत्तीर्ण हो जाता है तो उसे अगली यूनिट की ‘स्टडी-गाइड’ दे दी जाती है।

कुछ प्रगति कर लेने के बाद छात्रों से ही कुछ छात्रों को अनुकर्ता (Proctor) के रूप में चुन लिया जाता है। ये अनुकर्ता, अनुदेशक (शिक्षक) को अध्ययनरत प्रत्येक छात्र के साथ व्यक्तिगत सम्पर्क करने में परीक्षण देने व अंकन करने में मदद देते है। अनुकर्ताओं के लिये एक ‘गाइड-शीट’ (Guide Sheet) दी जाती है जिसमें उनके कर्तव्यों की सूची होती है और अन्य अतिरिक्त अध्ययन सामग्री की लिस्ट भी होती है, जिसका अनुदेशकों को अध्ययन करना होता है। अनुकर्ताओं को प्रेरित करने के लिये तथा उनके नियमित कार्य करने के लिये पुरस्कृत किया जा सकता है। प्रत्येक अनुकर्ता अपने साथियों के एक छोटे समूह का प्रभारी होता है।

See also  अधिगम की परिभाषा, प्रकृति, विशेषताएं एवं अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक

 

 

व्यक्तिनिष्ठ अनुदेशन प्रणाली की ग्रेडिंग नीति (Grading Policy)

इसमें पूर्व निर्धारित 80/80 का या 90/90 स्तर की कसोटी पर ग्रेडिंग दी जाती है। 80/80 का अभिप्राय है कि कक्षा के कम से कम 80% छात्र, कम से कम 80% विषय-वस्तु के उद्देश्यों की प्राप्ति कर सके। प्रत्येक छात्र को उसके अकों के आधार पर ग्रेड दिये जाते हैं। यहाँ यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यदि आवश्यकता पड़े तो छात्रों की अधिगम-प्रगति देखने के लिये ‘रिव्यू परीक्षणों’ का प्रयोग भी किया जा सकता है।

इस प्रकार से समस्त PSI को चार सोपानों में आयोजित किया जाता है-

1. शांतिपूर्वक अध्ययन (Quit Study)

2. फ्लोटिंग क्षेत्र (Floating Area)

3. परीक्षण क्षेत्र (Test Area)

4. मूल्यांकन (Evaluation) |

 

 व्यक्तिनिष्ठ अनुदेशन प्रणाली का प्रयोग कब किया जाये? (When to Use PSI)

  1. जब दक्षता के स्तर तक पहुँचने का उद्देश्य हो।
  2. जब अच्छे स्तर की पाठ्य-पुस्तकें उपलब्ध हों।
  3. जब ‘यूनिट’ का प्रबन्धन उपयुक्त हो।
  4. जब अच्छे परीक्षण उपलब्ध हों।
  5. जब उत्तरदायी व विश्वसनीय अनुकर्ता उपलब्ध हों।
  6. जब यूनिट का Review सम्भव हो।
  7. कक्षा में जब छात्रों की संख्या कम हो।
  8. छात्र जब स्वयं अध्ययन करने में रुचि रखते हों।
  9. शिक्षक जब प्रेरणा, उत्साह तथा शिक्षण के प्रति समर्पित हों।
  10. शिक्षक को PSI के विषय में पूर्णज्ञान हो और इसका वास्तविक स्थिति में प्रयोग कर सकने में वह समर्थ हो।

यह प्रणाली आजकल उच्च स्तरीय स्कूलों, पौलटेक्निकों तथा अन्य शिक्षण संस्थाओं में काफी लोकप्रिय हो रही है। इसका प्रयोग लगभग हर विषय में सम्भव है।

 

 

व्यक्तिनिष्ठ अनुदेशन प्रणाली से लाभ (Advantages of Personalized System of Instruction (PSI))

व्यक्तिनिष्ठ अनुदेशन प्रणाली के प्रमुख लाभ नीचे दिये गये हैं-

  1. प्रत्येक छात्र अपनी मनोवैज्ञानिक, बौद्धिक, सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थिति, रुचि एवं अभिरुचि के अनुसार इस प्रणाली की कक्षा का अंग बन जाता है।
  2. प्रत्येक छात्र अपनी योग्यता और अधिगम-गति के अनुसार विषय-वस्तु को सीखता है।
  3. इस प्रणाली में छात्रों को प्रोत्साहित करने के लिये निपुणता-अधिगम, धनात्मक-पुनर्बलन, तत्काल-पृष्ठपोषण तथा अनवरत मूल्यांकन (Continuous Formative Evaluation) का सफलतापूर्वक उपयोग किया जाता है।
  4. शैक्षिक तकनीकी के जटिल तथा महँगे उपकरणों का इस प्रणाली में स्थान नहीं है।
  5. छात्र अनुकर्ता इस प्रणाली में अनुवर्ग शिक्षण तथा निर्देशन देता है। अतः विद्यालय परिवेश में अधिक सहयोग तथा Cohesion होता है।
  6. इस प्रणाली में ऋणात्मक पुनर्बलन (Negative Reinforcement) जैसे दंड आदि का प्रयोग नहीं किया जाता।
  7. इस प्रणाली में लिखित सामग्री पर ज्यादा बल दिया जाता है।
  8. छात्रों की अधिगम के लिये तत्परता (Readiness) का ध्यान रखा जाता है।
  9. शिक्षक की भूमिका Learning Facilitator की होती है। दूसरे शब्दों में उसका मुख्य कार्य आधिगम को सरल, सुगम तथा बोधगम्य बनाने वाले साधन के रूप में कार्य करना है।
  10. छात्र स्वयं अपने प्रयासों से तथा अपनी गति से सीखते हैं अतः वे अधिगम के क्षेत्र में स्वावलम्बी हो जाते हैं।
See also  राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

 

 

व्यक्तिनिष्ठ अनुदेशन प्रणाली की सीमाएँ

PSI का अधिकतम उत्तम उपयोग करने के लिये इस विधि की प्रमख सीमाओं पर भी ध्यान देने  की आवश्यकता है

  1. इस प्रणाली का प्रयोग तभी किया जाये जब निपुणता स्तर तक पहुँचना शिक्षा का उद्देश्य हो।। अन्य स्थितियों में वह उपयोगी नहीं है।
  2. यदि पर्याप्त लिखित सामग्री का अभाव है या उपयुक्त नहीं है तो इस प्रणाली का उपयोग नहीं किया जाना चाहिये।
  3. शीघ्रता से परिवर्तित होने वाले विषयों के शिक्षण के लिये यह उपयुक्त नहीं है।
  4. कक्षा में छात्रों की संख्या अधिक होने पर, छात्र-अनुकर्ताओं की संख्या कम होने पर तथा समय का अभाव होने पर भी यह प्रणाली सुचारु रूप से कार्य नहीं कर पाती।
  5. यदि शिक्षक उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखने की विधि से परिचित नहीं हैं तो इस प्रणाली का पूरी तरह सफल होना सम्भव नहीं है।
  6. यदि शिक्षकों में इस प्रणाली के प्रति उत्साह एवं रुचि न हो तो यह प्रणाली सफल नहीं हो सकती।
  7. यदि शिक्षक अपने प्राचीन शिक्षण विधियों से सन्तष्ट हैं और इस प्रणाली में उनकी आभाच नहा ह ता यह प्रणाली सफल नहीं होगी क्योंकि वे इस प्रणाली को अपने ही ढंग से परिवर्तित कर लेत हैं और यह PSI(Personalized System of Instruction)   के  स्थान पर SLI(Something Like it) बनकर रह जाता है।
  8. इस प्रणाली में शिक्षकों के लिये प्रोत्साहन की व्यवस्था नहीं है।
  9. इस व्यवस्था का भावात्मक तथा मनोगत्यात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये प्रयोग नहीं किया जा सकता।
  10. इस प्रणाली में छात्रों की ग्रेडिंग करने में अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ आती हैं।

 

 

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