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शिक्षण कौशल क्या है: प्रस्तावना कौशल | Teaching Skill in Hindi

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शिक्षण कौशल (Teaching Skill)

 

शिक्षक का मुख्य उद्देश्य अपने शिक्षण को प्रभावशाली बनाना है। प्रभावशाली शिक्षण के लिए यह आवश्यक है कि उसमें विशिष्ट शिक्षण कौशलों का विकास किया जाये। शिक्षण कौशल विकास की प्रक्रिया अध्यापकों के प्रशिक्षण काल से प्रारम्भ हो जानी चाहिये जिससे उनमें शिक्षण कौशलों को पहचानने तथा आवश्यकतानुसार उनका प्रयोग करन की क्षमता विकसित हो सके। छात्राध्यापकों में शिक्षण कौशल का विकास करने की सरलतम विधि सूक्ष्म शिक्षण है। सूक्ष्म शिक्षण में सम्पूर्ण शिक्षण प्रक्रिया को अनेक कौशलों में विभक्त किया जाता है।

कौशल की परिभाषा देते हुए एन.एल. गेज (1968) ने कहा, “शिक्षण कौशल वह विशिष्ट अनुदेशन प्रक्रिया है, जिसे अध्यापक अपने कक्षा शिक्षण में प्रयोग कर सकता है। यह शिक्षणक्रम की विभिन्न क्रियाओं से सम्बन्धित होता है, जिन्हें शिक्षक अपनी कक्षा अन्त:क्रिया में लगातार प्रयक्त करता है।”

शिक्षण कौशल के निर्माण हेतु शिक्षक को निम्नलिखित बिन्दुओं का ध्यान रखना चाहिए:

1. शिक्षण बिन्दुओं का क्रम निश्चित करना,

2. सूक्ष्म विचारों को स्थूल रूप प्रदान करना; एवं

3. छात्रों का पूर्वज्ञान।

 

भारतीय शिक्षाशास्त्री बी.के. पासी (1976) ने शिक्षण कौशलों का अध्ययन किया और उन्होंने 13 शिक्षण कौशलों की सूची दी, जो इस प्रकार है :

1. अनुदेशन उद्देश्यों को लिखना (Writing instructional objectives),

2. पाठ की प्रस्तावना (Introduction of a lesson),

3. प्रश्नों की प्रवाहशीलता (Fluency of questioning),

4. खोजपूर्ण प्रश्न (Probing Questions),

5. व्याख्या कौशल (Explaining),

6. दृष्टान्त देना (Illustrating),

7. उद्दीपन भिन्नता (Stimulus Variation),

8. मौन तथा अशाब्दिक अन्तःप्रक्रिया (Silence and Non-verbal cues),

9. पुनर्बलन (Reinforcement),

10. छात्रों के कार्यों को प्रोत्साहन (Increasing students Participation),

11. श्यामपट्ट का प्रयोग (Use of Black Board),

12.समीपता की प्राप्ति (Achieving closure); एवं

13.पार व्यवहार की पहचान (Attending Behavior)

 

शिक्षण कौशल के सभी विवरणों के अध्ययन एवं वर्गीकरणों को ध्यान में रखते हए एक व्यापक सूची तैयार की गई, जिसमें अब तक 22 शिक्षण-कौशलों को सम्मिलित किया गया।

 

शिक्षण कौशलों का वर्गीकरण (पाठ-योजनानुसार)

1. पाठ-योजना निर्माण हेतु :

(अ) पाठ से सम्बद्ध उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखना,

(ब) पाठ के नियोजन का कौशल,

(स) दृश्य-श्रव्य सामग्री के प्रयोग का कौशल।

 

2. प्रस्तुतिकरण हेतु :

(अ) प्रस्तावनात्मक कौशल,

(आ) प्रश्न कौशल, व्याख्या कोशल,

(इ) व्याख्यान कौशल,

(ई) उदाहरण सहित दृष्टान्त कौशल,

(उ) श्यामपट्ट लेखन कौशल,

(ऊ) अशाब्दिक कौशल,

(ए)अन्तः क्रिया कौशल,

(ऐ) नियोजित पुनरावृत्ति कौशल,

(ओ) उद्दीपन भिन्नता कौशल,

(औ) पुनर्बलन कौशल; एवं

(अं) विकेन्द्रित प्रश्न कौशल ।

 

3. पाठ व्यवस्था हेतुः

(अ) कक्षा व्यवस्था कौशल,

(ब) छात्र व्यवहार का प्रत्यभिज्ञान ।

 

4. पाठ समापन हेतु :

(अ) समीपता कौशल,

(ब) पाठ समापन कौशल,

(स) गृहकार्य कौशल।

 

5. पाठ के मूल्यांकन हेतु :

(अ) सम्प्रेषण कौशल,

(ब) अभ्यास कौशल।

 

विद्यालय में शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए विभिन्न विषयों में किन विशिष्ट कौशलों की आवश्यकता होती है। इस दृष्टि से रमा (1978) ने माध्यमिक स्तर पर भौतिकशास्त्र के शिक्षण में 14 कौशलों को बताया:

1. सामान्य अध्यापन क्षमता,

2. अध्यापक की छात्रों में रुचि,

3. दृश्य-श्रव्य साधनों का उपयोग,

4. व्यावसायिक प्रशिक्षण,

5. कार्य देयन,

6. दृष्टान्त कला,

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7. विन्यास-प्रेरण सहित पाठगति,

8. तर्कसंगत व्याख्या,

9. कक्षा प्रबन्ध,

10. छात्रों का उपयोग,

11. छात्र सहभागिता प्रेरण,

12. श्यामपट्ट उपयोग,

13. छात्र व्यवहार अभिज्ञान,

14. पाठ समापन।

पासी व शर्मा (1981) ने माध्यमिक स्तर पर भाषा अध्यापन में जिन विभिल कौशलों का सामान्यतः प्रयोग होता है, उनकी सूची इस प्रकार दीः

1 कार्य देना

2. उच्च स्वर वाचन

3. प्रश्न पूछना

4. पाठ प्रारम्भ करना

5. कक्षा प्रबन्ध

6.स्पष्टीकरण

7. अनुपूरक उच्च स्तर पाठन

8. श्यामपष्ट उपयोग

9. प्रबलन का उपयोग

10. पाठ गति

11. अनावश्यक पुनरावृत्ति को रोकना

12. पाठ को संगठित करना

13, छात्रों के उत्तरों का उपयोग

14. छात्र व्यवहार में सुधार

15. श्रवणीयता

16. अनुपूरक प्रबलन का उपयोग

17. छात्र व्यवहार अभिज्ञान

18. मौखिक प्रस्तुतिकरण

19. संवेदिका वर्ग का परिवर्तन ।

 

गणित शिक्षण में श्रीमती शुक्ल व श्रीवास्तव (1984) ने छ: कौशलों की पहचान की :

1. संप्रत्यय शिक्षण कौशल

2. सिद्धान्त निर्माण का कौशल

3. प्रेरण कौशल

4. निगमन कौशल

5. चित्र निर्माण कौशल

6. समस्या समाधान कौशल ।

 

मुख्य शिक्षण कौशलों का विस्तृत वर्णन सूक्ष्म पाठयोजना सहित प्रस्तुत किया जा रहा है :

 

 

प्रस्तावनात्मक कौशल (Introducing skill) :

इस कौशल का प्रयोग शिक्षक द्वारा नवीन पाठ को प्रारम्भ करते समय किया जाता है। छात्रों को मानसिक रूप से नवीन ज्ञान प्राप्त करने के लिए तैयार किया जाता है तथा उनका ध्यान नवीन पाठ पर केन्द्रित करने हेतु उनके पूर्वज्ञान की परीक्षा की जाती है, जिससे पूर्वज्ञान के आधार पर नवीन ज्ञान प्रदान करने में सुविधा हो तथा शिक्षक अपने उद्देश्यों की प्राप्ति कर सकें। इसे विन्यास प्रेरण कौशल (Set Induction) भी कहते हैं। इस कौशल हेतु विविध प्रविधियाँ प्रचलित हैं। पाठ्यवस्तु की प्रकृति के अनुसार विविध प्रविधियों में से किसी एक अथवा एक साथ दो, तीन,प्रविधियों का प्रयोग कर पाठ को प्रभावशाली बनाया जाता है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी पाठ में प्रस्तावना एक महत्त्वपूर्ण सोपान है, क्योंकि इसका प्रस्तुतिकरण जितना आकर्षक तथा रोचक होगा उतना ही छात्रों का ध्यान पाठ की ओर अधिक केन्द्रित होगा।

 

प्रस्तावनात्मक कौशल हेतु विविध प्रविधियाँ :

कहानी द्वारा, काव्यांश द्वारा, प्रतिकृति, चित्र अथवा रेखाचित्र द्वारा, प्रश्नों द्वारा, प्रयोग तथा प्रदर्शन द्वारा, उदाहरण द्वारा।

उपर्युक्त प्रविधियों में से कौनसी, कब और कैसे प्रयुक्त की जाए; यह विषयवस्तु की प्रकृति पर निर्भर करता है। वैसे शिक्षक की स्वयं की योग्यता पर इनके प्रयोग की सफलता आधारित होती है। प्राथमिक स्तर के लिए प्रायः दृश्य-श्रव्य सामग्री तथा कहानी का प्रयोग अधिक आकर्षक व रुचिकर सिद्ध होता है तो माध्यमिक स्तर पर विषय के अनुसार किसी भी प्रविधि का प्रयोग किया जा सकता है। एक ही पाठ्यांश को एक अध्यापक एक प्रविधि से छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करता है तो दूसरा दसरी तरह से किन्तु दोनों ही अपने उद्देश्य को पाका पाठ को प्रस्तुत करने में सफल होते हैं। इसलिए यह कहना सम्भव नहीं कि कौनसी प्रविधि सर्वाधिक उपयुक्त है। इनका प्रयोग कक्षा के स्तर, विषय व पाठ्यांश पर निर्भर करता है।

 

प्रस्तावनात्मक कौशल से सम्बन्धित कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं :

उदाहरण-1

कहानी द्वारा

विषय : हिन्दी                                                                                     कक्षा:8 

प्रकरण : कर्मवीर (पद्य)                                                                            समय: 10 मिनट

एक बार एक आचार्य ने अपने शिष्यों से पूछा संसार में जल का सर्वश्रेष्ठ रूप कोनसा है? एक शिष्य ने उत्तर दिया ‘गंगाजल’। किन्तु इस उत्तर से आचार्य सन्तुष्ट नहीं हुए। उनकी प्रश्नवाचक मुद्रा बनी रही। दूसरे शिष्य ने उत्तर दिया “किसी माँ के मृत पुत्र के जीवित हो जाने पर उसे देखकर उसकी आँखों से प्रसन्नता और ममता के आँसू निकलते हैं, ये आँसू ही श्रेष्ठतम जल-कण हैं। आचार्य अब भी सन्तुष्ट नहीं हुए। एक अन्य शिष्य ने कहा, मृत्यु के समय मनुष्य की आँखों से जो आँसू निकलते हैं, उनमें जीवनभर का पश्चात्ताप और वेदना भरी रहती है। वे आंसू निश्चित रूप से जल का सर्वश्रेष्ठ रूप है। उत्तर से असन्तुष्ट हुए आचार्य स्वयं बोले, “श्रेष्ठता का निवास तो निर्माण में है, मनुष्य के श्रमबिन्दु ही जल के श्रेष्ठतम रूप है।

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शिष्यों का समाधान हो चुका था।

अध्यापक-आचार्य ने शिष्यों से क्या पूछा?

छात्र- संसार में जल का श्रेष्ठ रूप कौनसा है?

अध्यापक- दूसरे शिष्य ने क्या उत्तर दिया?

छात्र- किसी माँ के मृत पुत्र के जीवित हो जाने पर माँ की आँखों में जो प्रेम के आँस निकलते है।

अध्यापक- अन्त में आचार्य ने जल का श्रेष्ठतम रूप किसे बताया?

छात्र- मनुष्य के श्रमबिन्दु ही जल के श्रेष्ठतम रूप हैं।

अध्यापक – प्रस्तुत वृत्तान्त से आपको क्या शिक्षा मिलती है?

छात्र – परिश्रम करने की शिक्षा मिलती है।

अध्यापक-आज हम श्रम के उपासक किस प्रकार कठिन से कठिन परिस्थिति में भी विचलित नहीं होते व निरन्तर आगे बढ़ने का प्रयत्न करते रहते हैं। इन भावों से ओतप्रोत कर्मवीर नामक कविता का अध्ययन करेंगे।

 

 

उदाहरण-2:

काव्यांश तथा चित्र द्वारा

अध्यापक चित्र सहित कुछ पंक्तियाँ छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करेगाः

 

दो टूक कलेजे के करता, पछताता पथ पर आता

पेट पीठ दोनों मिलकर है एक,

चल रहा लकुटिया टेक

मुट्ठी भर दाने को भूख मिटाने को,

मुँह फटी पुरानी, झोली का फैलाता,

दो टूक कलेजे के करता, पछताता पथ पर आता।

– सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’

 

अध्यापक- प्रस्तुत चित्र में आप क्या देख रहे हैं?

छात्र- इस चित्र में मुझे भिखारी दिखाई दे रहा है।

अध्यापक- भिखारी की दशा कैसी है?

छात्र- वह निर्बल, निःसहाय तथा निर्धन है।

अध्यापक- मनुष्य भिखारी बनने को मजबूर क्यों हो जाता है?

छात्र- मनुष्य निर्धनावस्था में अपनी भूख मिटाने के लिए भिखारी बन जाता है।

अध्यापक- समाज में भिखारी की क्या स्थिति है?

छात्र- समाज में भिखारी की दयनीय स्थिति है।

अध्यापक- आज हम ‘जूठे पत्ते’ नामक कविता के माध्यम से गरीबी व भूख से पीड़ित मनुष्य ‘जूठे पत्ते’ चाटने पर किस तरह मजबूर हो जाते हैं? उनकी दयनीय स्थिति के विषय में अध्ययन करेंगे।

 

प्रस्तावनात्मक कौशल की परीक्षा करने के लिए दो विधियों का प्रयोग किया जाता है :

(अ) निरीक्षण विधि- प्रस्तावनात्मक कौशल का निरीक्षण करते समय निरीक्षण प्रपत्र पर प्रति मिनट में शिक्षणं क्रिया कितनी बार हुई उसकी आवृत्ति लगाई जाती है –

छात्राध्यापक का विवरण………..नाम……….विषय…..कक्षा…..दिनांक….. प्रकरण……..आवृत्ति (एक क्रिया के लिए एक मिनट का समय)

 

प्रस्तावनात्मक कौशल के त्तव

प्रस्तावनात्मक कौशल

(ब) मूल्यांक विधि- मूल्यांकन हेतु निम्नलिखित प्रपत्र का प्रयोग किया जाता है।

छात्राध्यापक का नाम…………. दिनांक……… विषय पाठ्यप्रकरण……..कक्षा…….

 

प्रस्तावनात्मक कौशल के तत्त्व

प्रस्तावनात्मक कौशल

 

अध्यापक को मूल्यांकन करते समय उपर्यक्त पाँचों श्रेणियों के सामने उनके समक्ष दिये गये बिन्द के अनुसार सही () का निशान लगाना चाहिए। प्रस्तावनात्मक कौशल सम्पूर्ण पाठ का महत्त्वपूर्ण पक्ष है, अतः अध्यापक को चाहिए कि वह विषय-वस्तु की क्रमबद्धता को बनाये रखते हुए पूर्वज्ञान से सम्बन्धित प्रश्न करे।

 

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