अन्वेषण विधि तथा ऐतिहासिक खोज विधि में अन्तर

अन्वेषण विधि तथा ऐतिहासिक खोज विधि – विशेषताएँ, अन्तर, सीमाएँ | Heuristic & Discovery Strategy in Hindi

अन्वेषण विधि (HEURISTIC STRATEGY)

अन्वेषण विधि में छात्र स्वयं खोज करके सीखते हैं। शिक्षक का कार्य केवल पथ-प्रदर्शक का होता है जो उचित समय पर गलतियाँ सुधारने में सहायता देता है। छात्र जैसे-जैसे कार्य तथा प्रयोग करते जाते हैं वैसे-वैसे ही उन्हें नवीन ज्ञान की प्राप्ति होती जाती है। अन्वेषण विधि के जन्मदाता प्रो० आर्मस्ट्राँग (Prof. Armstrong) थे। प्रो० आर्मस्ट्राँग के मत के अनुसार “किसी भी विषय को सीखने की प्रक्रिया ही अन्वेषण है और छात्रों को विषय सम्बन्धी तथ्यों एवं सिद्धान्तों की खोज स्वयं करनी चाहिये।” अन्वेषण विधि में छात्र एक अन्वेषणकर्ता की भाँति कार्य करता है। छात्र के पास प्रारम्भ में प्रयोग सम्बन्धी जानकारी नहीं होती। उसे स्वयं वांछित सूचना तथा एवं सिद्धान्तों की खोज करने के लिए अनेक आवश्यक प्रयोग करने होते हैं। साथ ही प्राप्य साहित्य का अध्ययन करना होता है।

 

अन्वेषण विधि की विशेषताएँ

(1) छात्रों में वैज्ञानिक विधि तथा भावना का विकास होता है।

(2) छात्रों को यह विधि यथातथ्य (Exact) बनाती है और सत्य के निकट पहुँचाती है।

(3) इसमें छात्र की निरीक्षण शक्ति तीव्र होती है तथा विचार प्रक्रिया सक्रिय हो जाती है।

(4) परिश्रम करने की क्षमता एवं रुचि का विकास होता है।

(5) छात्रों को क्रियाशीलता, आत्मविश्वास तथा आत्मनिर्भरता बढ़ती है।

(6) यह विधि छात्रों को जीवन के लिए तैयार करती है।

(7) इससे प्राप्त ज्ञान अधिक स्थायी होता है।

(8) छात्रों में चिन्तन तथा अवबोधन बढ़ता है।

(9) सारा कार्य कक्षा में सम्पन्न हो जाता है अतः गृहकार्य की आवश्यकता नहीं रहती।

 

अन्वेषण विधि के दोष (Demerits)

(1) शिक्षण गति धीमी रहने से पूरा पाठयक्रम निर्धारित समय में नहीं पढ़ाया जा सकता।

(2) छात्र निष्कर्षों तक पहुँचने में कठिनाई का अनुभव करता है।

(3) शिक्षक को इस विधि का प्रयोग करने पर विशेष तैयारी करनी पड़ती है।

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(4) छोटी कक्षाओं में यह विधि उपयुक्त नहीं है।

(5) इस विधि में अच्छी प्रयोगशाला तथा अच्छा पुस्तकालय आवश्यक है।

(6) अधिक धन खर्च होता है।

(7) बड़े समूहों में इस विधि से शिक्षा देना कठिन है।

(8) कमजोर छात्रों के लिए उपयोगी नहीं है।

 

 

अन्वेषण विधि के लिए सुझाव

(1) अन्वेषण विधि का रूप वास्तविक होना चाहिये।

(2) पूरे पाठ्यक्रम की अपेक्षा केवल कुछ चुने गये पाठ ही इस विधि से पढ़ाये जायें।

(3) शिक्षक अपने दायित्व के प्रति पूर्ण रूप से सजग एवं सतर्क रहें।

 

 

 

ऐतिहासिक खोज विधि (DISCOVERY STRATEGY)

ऐतिहासिक खोज में छात्रों को किसी भी घटना के अनुसन्धान को लेकर उसके प्रारम्भिक विकास के स्तर से गुजारा जाता है। इस विधि  में छात्रों को प्रथम खोजकर्ता से अन्तिम खोजकर्ता या वैज्ञानिक तक के सम्बन्ध में आविष्कारक की स्थिति में रखा जाता है। इसमें छात्रों को इस प्रकार से रखा जाता है, जिससे कि वे भली-भाँति देख सकें कि किस प्रकार से विभिन्न खोजकर्ताओं के विश्वास कैसे समय, खोजों तथा आविष्कारों के तथ्यों के साथ-साथ बदलते चले जाते हैं। किस प्रकार से एक सिद्धान्त के पश्चात दूसरा सिद्धान्त निकलता है या परिवर्तित होता है। इस प्रणाली में छात्र विभिन्न तथ्यों और अनुमान के अन्तर का मूल्यांकन भी करते हैं। श्री गर्ग (1973) ने इस विधि को स्पष्ट करते हए लिखा है कि इसमें छात्र इस बात को स्वीकार करते हैं, “अनुमान तब तक सत्य है कि जब तक कि वह समस्त प्रेक्षित घटनाओं को समझा सके। ये वैज्ञानिक सिद्धान्तों तथा घटनाओं के विकास की प्रक्रिया देख सकते हैं अर्थात् अपरिपक्व अनुमान से लेकर परिपक्व अन्वेषण (खोज) तक।”

 

ऐतिहासिक खोज विधि के प्रवर्तक जे० एस० लूनर (J. S. Burner) हैं। उनके अनुसार “खोज-विधि (Discovery) में छात्रों को अपने मानसिक स्तर, आयु, कक्षा तथा अन्य सम्बन्धित तथ्यों के अनुरूप मौलिक रूप से नवीन ज्ञान की खोज करनी पड़ती है। इसमें तथ्यों की व्याख्या इस प्रकार की जाती है। जिससे नवीन तथ्यों का बोध होने लगता है।” यह विधि छात्रों को सक्रिय बनाती है और सालों के चिन्तन, सूझ-बूझ तथा निरीक्षण क्षमताओं का विकास करती है।

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ऐतिहासिक खोज विधि की विशेषताएँ (Characteristics)

(1)यह छात्रों को खोजकर्ता बनाती है और छात्रों को खोज विधियों में पारंगत करने की ओर प्रयत्नशील रहती है।

(2) यह निरीक्षण, चिन्तन तथा सूझ-बूझ का उपयोग करती है तथा उनका विकास करती है।

(3) सामाजिक या वैज्ञानिक तथ्यों को रटने की अपेक्षा उन्हें समझने का अवसर प्रदान करती है।

(4) सृजनात्मक चिन्तन के विकास में सहायक है।

(5) ज्ञानात्मक तथा भावात्मक पक्षों के उच्च उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उपयोगी है।

(6) छात्र इसके माध्यम से नये ज्ञान की खोज करते हैं और उसे स्थायी रूप से याद रखने का प्रयत्न करते हैं।

(7) छात्रों की विश्लेषण तथा संश्लेषण करने की क्षमताओं का विकास किया जाता है।

(8) इसके माध्यम से छात्रों को यह मालूम हो जाता है कि वैज्ञानिक खोजों के फलस्वरूप सामाजिक परिवर्तन कैसे लाया जाय।

(9) छात्रों को इस बात का ज्ञान हो जाता है कि कैसे एक सिद्धान्त के बाद दूसरा सिद्धान्त परिवर्तित होता है तथा कैसे नया सिद्धान्त निकलता है।

(10) छात्रों के लिए यह विधि रोचकता उत्पन्न करती है।

(11) इस विधि से प्राप्त ज्ञान स्थायी होता है।

 

 

ऐतिहासिक खोज विधि की सीमाएँ

(1) यह विधि सभी विषयों या प्रकरणों पर लागू नहीं हो सकती।

(2) इस विधि में शिक्षण की गति काफी धीमी हो जाती है।

(3) इस विधि में छात्र सक्रिय तो रहते हैं लेकिन उन्हें स्वयं करने के लिए अवसर नहीं मिलते।

(4) यह विधि प्रतिभाशाली छात्रों के लिए अधिक उपयोगी है। निम्नांकित सारणी खोज तथा अन्वेषण प्रविधि में अन्तर बताती है-

 

 

खोज तथा अन्वेषण विधियों में अन्तर(Difference between  Discovery and Heuristic) –

  

                            खोज विधि (Discovery)                             अन्वेषण (Heuristic)
(1) इनका प्रयोग अधिकतर सामाजिक विषयों में तथ्यों के ज्ञान के लिए किया जाता है। (1) अन्वेषण का प्रयोग विशेष रूप से वैज्ञानिक  विषयों के अध्ययन में किया जाता है।
(2) इसका सम्बन्ध प्राचीन घटनाओं से होता है। (2) यह वर्तमान का अध्ययन करती है।
(3) इसमें तथ्यों की व्याख्या वस्तुनिष्ठ (Subjective) हो जाती है।

(3) इसमें पाठय-वस्तु का बोध वस्तुनिष्ठ रूप में छात्रों को कराया जाता है।  

 

यह विधि महाराष्ट्र के कुछ विद्यालयों में बहुत प्रचलित है। वहाँ पर कक्षा VI, VII तथा VII के छात्रों को इस विधि के आधार पर थीसिस लिखनी पड़ती है। ‘थीसिस’ लिखने का यह प्रयोग वहाँ काफी लोकप्रिय सिद्ध हो रहा है।

 

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