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शिक्षण प्रतिमान क्या है | शिक्षण प्रतिमानों के प्रकार | What is The Teaching Model in Hindi ?

इस पोस्ट में हम लोग शिक्षण के प्रतिमान, शिक्षण के प्रतिमान का अर्थ, शिक्षण प्रतिमान क्या है, शिक्षण प्रतिमान (Teaching Models),शिक्षण प्रतिमानों (Teaching Model) का वर्गीकरण, शिक्षण प्रतिमान की अवधारणाएँ, शिक्षण प्रतिमान के तत्त्व, शिक्षण प्रतिमानों के प्रकार, ऐतिहासिक शिक्षण प्रतिमान, दार्शनिक शिक्षण प्रतिमान, आदि विषयों पर चर्चा करेंगे।

Table of Contents

शिक्षण के प्रतिमान (Models of Teaching)

शिक्षण का मुख्य उद्देश्य छात्रों में व्यवहारगत परिवर्तन लाना है। व्यवहारगत परिवर्तन हेत यह आवश्यक है कि पाठ्यक्रम निर्माता तथा अध्यापक दोनों ही विद्यालय तथा कक्षा का ऐसा वातावरण बनाने में सहयोग दें, जो सीखने के कार्य में सहायक सिद्ध हो। अधिगम अथवा सीखना एक ऐसी प्रक्रिया है, जो शिक्षण के बिना भी चलती रहती है तथा शिक्षण उस अधिगमित व्यवहार को दिशा प्रदान करता है। क्रॉनबेक (Cronback) शिक्षण की क्रिया के लिए अधिगम सिद्धान्तों को आवश्यक मानते हैं, उनके अनुसार अधिगम के सिद्धान्तों के आधार पर ही शिक्षण के सिद्धान्तों का सृजन किया जा सकता है, किन्तु, आज इसके विपरीत यह अनुभव किया गया है कि अधिगम सिद्धान्त कक्षा शिक्षण की समस्याओं तथा शैक्षिक वातावरण की समस्याओं के समाधान में असफल रहे हैं। अत: शिक्षण सिद्धान्तों के आधार पर अधिक बल दिया जा रहा है।

शिक्षण उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु विभिन्न विधियों, प्रविधियों, योजनाओं तथा स्वरूपों को प्रयोग में लाया जाता है, जिन्हें ‘शिक्षण का प्रतिमान’ (Models of Teaching) कहते है।

शिक्षण प्रतिमान में शैक्षिक क्रियाओं एवं पर्यावरण की रूपरेखा तैयार करने हेतु मार्ग निर्देशित किया जाता है तथा वह किस शिक्षण हेतु कब? कैसे? क्यों? प्रयुक्त किया जाना चाहिए यह स्पष्ट किया जाता है।

शिक्षण प्रतिमान का अर्थ (Meaning of Teaching Model)

शिक्षण प्रतिमान शिक्षण सिद्धान्तों के सम्भावित आदर्श रूप हैं। मॉडल अथवा प्रतिमान शब्द को सामान्यत: तीन अर्थों में प्रयुक्त किया जाता है :

(1) जब कोई व्यक्ति समाज या किसी महापुरुष द्वारा बताये गये आदर्शों को अपने जीवन में उतारता है, तब यह कहा जाता है कि यह व्यक्ति एक अच्छे मनुष्य का प्रतिमान है,

(2) जब किसी बड़ी वस्तु का छोटा नमूना नकल करके प्रस्तुत कर दिया जाये, जैसे, मशीन का प्रतिमान, मकान का प्रतिमान।

(3) तीसरे अर्थ में प्रतिमान शब्द को अधिक कोमल और सूक्ष्म रूप में प्रयुक्त किया जाता है, जिसमें तीन बात निहित होती हैं-क्रियाओं की एक संरचना, पहचान करने वाला केन्द्र अथवा लक्ष्य तथा ऐसा ढाँचा जिसके आधार पर क्रियाओं और लक्ष्यों की व्याख्या अथवा विश्लेषण किया जा सके। इस अर्थ को जब शिक्षण के क्षेत्र में प्रयुक्त किया जाता है, तो उसे शिक्षण प्रतिमान कहते हैं।

शिक्षण प्रतिमानों की विद्वानों द्वारा दी गई कुछ परिभाषाएँ यहाँ प्रस्तुत हैं :

(1) विल्ड-“किसी विशेष आदर्श या प्रारूप के अनुरूप व्यवहार तथा क्रिया को रूप प्रदान करने की प्रक्रिया ही प्रतिमान कहलाती है।”

(2) डी सीको तथा क्रोफोर्ड-“शिक्षण प्रतिमान शिक्षण सिद्धान्त का सर्वोच्च प्रतिस्थानापन्न है। शिक्षण प्रतिमान बताते हैं कि किस प्रकार अधिगम तथा शिक्षण परिस्थितियाँ परस्पर सम्बन्धित हैं।”

(3) हीमेन-“शिक्षण प्रतिमान शिक्षण के सम्बन्ध में सोचने तथा विचारने की एक रीति है, जो किसी वस्तु को विभाजित तथा व्यवस्थित करके तर्कसंगत ढंग से प्रस्तुत करने की विधि है।”

शिक्षण प्रतिमान में शिक्षण की विशिष्ट रूपरेखा का विवरण होता है। इसमें विशेष रूप से छ: क्रियायें सम्मिलित रहती हैं :

(अ) निष्पत्ति को व्यावहारिक रूप देना- शिक्षण प्रतिमानों में परिवर्तित व्यवहार को व्यावहारिक रूप प्रदान किया जाता है। यह शिक्षण प्रतिमान की आवश्यक दशा है तथा परिवर्तित व्यवहार को स्थायित्व प्रदान करने में इसकी भूमिका रहती है।

(ब) उद्दीपन का चयन- शिक्षण प्रतिमान का प्रयोग करते समय अनेक उद्दीपनों में से वांछित क्रिया करने वाले उद्दीपनों का चयन किया जाता है।

(स) परिस्थितियों का विशेषीकरण-शिक्षण प्रतिमान में वे सभी क्रियायें निहित रहती हैं जो परिस्थितियों का विशेषीकरण करती हैं।

(द) मानक व्यवहार का निर्धारण- मानक व्यवहार या मूल्यांकन के मानदण्ड का निर्धारण करना भी शिक्षण प्रतिमान का मुख्य कार्य है।

(च) अन्तःक्रिया विश्लेषण- शिक्षण प्रतिमान में मुख्य रूप से तीन अवस्था होती हैं-पूर्व अवस्था, अन्त:क्रिया अवस्था तथा उत्तर अवस्था। कक्षागत परिस्थितियों में अन्तःक्रिया का विश्लेषण करके वांछित शैक्षिक लक्ष्यों को विशेष युक्तियों द्वारा प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है।

(छ) व्यवहार संशोधन- वांछित लक्ष्यों की प्राप्ति न होने पर व्यवहार में संशोधन किया जाता है। उसके लिए शिक्षण कोशलो, शिक्षण प्रतिमानों तथा शिक्षण युक्तियों में भी परिवर्तन किया जाता है।

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इस प्रकार शिक्षण-प्रतिमान शिक्षकों को पाठ्यक्रम निर्माण में, शिक्षण विधि में, शिक्षण हेतु सहायक सामग्री के चयन में सहायता प्रदान करते हैं।

शिक्षण प्रतिमान की अवधारणाएँ (Assumptions of Models of Teaching) :

1. शिक्षण में छात्रों की रुचि का उपयोग करना,

2. शिक्षण सामग्री द्वारा छात्रों में वांछित अनुभव प्रदान करना,

3. अध्यापकों की वैयक्तिक मान्यताओं पर आधारित,

4. समस्याओं के निराकरण पर आधारित (अभ्यास द्वारा),

5. शिक्षण कला के साथ-साथ विज्ञान भी है, शिक्षण प्रतिमान इस पर जोर देते हैं,

6. ये शिक्षक से सम्बन्धित मौलिक प्रश्नों का उत्तर देते हैं, जैसे, शिक्षक ऐसा व्यवहार क्यों करता है,

7. इसका व्यावहारिक रूप शिक्षण सूत्रों पर आधारित होता है,

8. इसमें शिक्षक का व्यक्तित्व महत्त्वपूर्ण होता है,

9. ये दार्शनिक सिद्धान्तों पर आधारित होते हैं,

10. ये सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं,

11. ये मानव योग्यता के विकास में सहायक होते हैं,

12. शिक्षण के तत्त्वों की व्यवस्था विभिन्न प्रकार से की जा सकती है जिससे विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति सम्भव है,

13. शिक्षण एक वातावरण उत्पन्न करने का साधन है जो स्वतंत्र अवयवों को सम्मिलित करता है,

14. पाठ्यवस्तु तथा कौशल अनुदेशन का कार्य करती है जिसके द्वारा छात्रों तथा शिक्षक के मध्य अन्त प्रक्रिया होती है तथा उनको शारीरिक तथा सामाजिक क्षमताओं के विकास का अवसर मिलता है,

15. शिक्षण प्रतिमान वास्तव में वातावरण उत्पन्न करने के प्रतिमान हैं, जो सीखने के अनुभवों के लिए वास्तविक तथा व्यावहारिक रूपरेखा प्रदान करते हैं,

16. विभिन्न शिक्षण उद्देश्य शिक्षण तत्त्वों का अलग-अलग ढंग से संगठन करके प्राप्त किये जा सकते हैं,

17. शिक्षण प्रक्रिया के एक आयाम में विचलन शिक्षक के सम्पूर्ण महत्त्वपूर्ण घटकों में परिवर्तन ला देता है।

शिक्षण प्रतिमान के तत्त्व

1. उद्देश्य- किसी भी शिक्षण प्रतिमान के केन्द्रबिन्दु कतिपय शिक्षण लक्ष्य तथा उद्देश्य होते हैं जिनकी प्राप्ति हेतु उपयुक्त साधनों तथा प्रक्रियाओं से युक्त प्रतिमान विकसित किये जाते हैं।

(2) संरचना- इस तत्त्व का अर्थ है-ऐसा तक जो क्रियाओं को नियन्त्रित करे। इसमें प्रतिमानों में निहित विभिन्न क्रियाओं की व्याख्या सम्मिलित रहती है। इसमें प्रतिमान की आधारभत क्रियाएं कौन-कौन सी है? उन क्रियाओं की प्रकति क्या है ? ये क्रियाएँ किन-किन अवस्थाओं से गुजरती है ? आदि विषयों का वर्णन किया जाता है। शिक्षक या शिक्षार्थी के मध्य अन्त प्रक्रिया के प्रारूप को इस प्रकार क्रमबद्ध रूप में निर्धारित जाता है जिससे वांछित परिस्थितियाँ उत्पन्न हो तथा शिक्षण का उद्देश्य सफलतापूर्वक प्राप्त किया जा सके।

(3) सामाजिक व्यवस्था- शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में शिक्षक तथा छात्र यवहार शिक्षण की सफलता के लिए आवश्यक होता है। इसमें क्रियाओं का एक स्पष्ट क्रम होता है। कक्षा की एक सामाजिक व्यवस्था में तीन तत्त्व पाये जाते हैं:

 (1) छात्रों के मध्य परस्पर तथा छात्र एवं अध्यापक के मध्य सम्बन्ध,

(2) इन पारस्परिक सम्बन्धों में अधिकार क्रम; एवं

(3) छात्रों के व्यवहार के कुछ मानक, जिनके अनुसार कुछ छात्र व्यवहार पुरस्कृत किये जाते हैं।

(4) सहायक प्रणाली- इसमें वे समस्त सुविधाएँ तथा व्यवस्थाएँ आती हैं,जो शिक्षण प्रतिमान को निश्चित प्रकार का कक्षा-कक्ष परिवेश निर्मित करने में सहायता देती हैं।

(5) मूल्यांकन प्रणाली-इसमें मौखिक अथवा लिखित परीक्षाओं द्वारा यह निर्णय लिया जाता है कि शिक्षण के उद्देश्य प्राप्त हए अथवा नहीं। यदि शिक्षण असफल रहता है तो शिक्षण में प्रयुक्त नीतियों तथा युक्तियों में परिवर्तन किया जाता है। प्रत्येक शिक्षण प्रतिमान के उद्देश्य अलग-अलग होते हैं, अतः उन उद्देश्यों की मूल्यांकन प्रणाली भी अलग-अलग होती है । इस अन्तिम तत्त्व के आधार पर क्रिया की जाँच की जाती है।

शिक्षण प्रतिमानों के प्रकार (Types of Teaching Models)

शिक्षण प्रतिमान अधिगम के लिए दिशा निर्देश करते हैं तथा शिक्षण किस प्रकार किया जाना चाहिए ? इस प्रश्न के उत्तर को खोजने में सहायक होते हैं। किसी भी शिक्षण प्रतिमान को चुनते अथवा विकसित करते समय अध्यापक के लिए शिक्षण विधियों, उपायों व मूल्यांकन के आधारों तथा शिक्षण लक्ष्यों का ज्ञान होना आवश्यक है। इसके साथ-साथ कुछ महत्त्वपूर्ण शिक्षण प्रतिमानों की अच्छी जानकारी व समझ का होना भी शिक्षक के लिए अनिवार्य है। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों तथा शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षण प्रतिमानों का अलग-अलग ढंग से वर्गीकरण एवं उल्लेख किया है, जैसे, जॉन पी. डिसैको ने चार आधारभूत मनोवैज्ञानिक शिक्षण प्रतिमान वर्गीकरणों का उल्लेख किया है । पोफम तथा बेकर ने लक्ष्य निर्धारित शिक्षण प्रतिमान तथा किबलर, बारकर एवं माइल्स ने सामान्य शिक्षण प्रतिमान की व्याख्या की है। उपर्युक्त दोनों वर्गों के आधार पर तार्किक शिक्षण प्रतिमान का विकास किया गया। ईई. हेडन ने अध्यापक शिक्षा की समस्या का समाधान करने में सक्षम चार शिक्षण प्रतिमानों का विवेचन किया है। इजरायल सेफलर ने तीन दार्शनिक शिक्षण प्रतिमानों का वर्णन किया है।

इन प्रतिमानों का वर्गीकरण नीचे दिया जा रहा है :

(1) ऐतिहासिक शिक्षण प्रतिमान (Historical Models of Teaching) :

डिसेको ने पारम्परिक शिक्षण प्रतिमानों तथा आधारभूत शिक्षण प्रतिमानों में सम्बन्ध स्थापित कर ऐतिहासिक शिक्षण प्रतिमानों का विवेचन किया।

(क) सुकरात का शिक्षण प्रतिमान (Socrates Teaching Model)– शिक्षण प्रतिमानों का प्रयोग शिक्षा में प्राचीनकाल से होता आ रहा है। सुकरात जैसे महान शिक्षाशास्त्री ने बालक के अन्तर्निहित ज्ञान को बाहर लाने हेतु प्रश्नों का सहारा लिया। प्रश्नोत्तर विधि शिक्षक तथा छात्र के मध्य अन्तःक्रिया का अवसर प्रदान करती है। इस विधि द्वारा उच्च-स्तरीय कौशलों का विकास नहीं किया जा सकता। सुकरात के शिक्षण प्रतिमान का स्वरूप हमें फ्लैण्डर के अन्तःक्रिया शिक्षण प्रतिमान में देखने को मिलता है।

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(ख) परम्परागत मानवीय शिक्षण प्रतिमान (The Classical Humanist Model)- इस प्रतिमान का प्रतिपादन जेसूट (Jesuit) ने किया। यह औपचारिक विद्यालयी शिक्षण व्यवस्था है जिसमें अध्यापक द्वारा शिक्षण-सामग्री तथा विधियों की व्यवस्था करके प्रभावशाली अनुदेशन प्रणाली का विकास किया जाता है। जेसूट ने प्रतिद्वन्द्विता शिक्षण तकनीकी तथा निष्पत्ति परीक्षाओं का भी प्रयोग किया।

(ग) व्यक्तिगत विकास प्रतिमान (The Personal Development Model)- इस शिक्षण प्रतिमान का विकास अमेरिका में हुआ। इसमें व्यक्तिगत विकास को महत्त्व दिया जाता। है। कूम्बस और सिनेग (Coombs & Synegg) द्वारा विस्तृत शैक्षिक उद्देश्यों का प्रतिपादन किया गया। उनके अनुसार विद्यालय में इस प्रकार का शैक्षिक वातावरण उपस्थित किया जाना चाहिए जिससे प्रत्येक छात्र समाज का एक उत्तरदायी व्यक्ति बनकर अपना विकास कर सके।

(2) दार्शनिक शिक्षण प्रतिमान (Philosophical Teaching Model) :

सन् 1964 में इजराइल सेफलर (Israel Scheffler) ने शिक्षण के तीन प्रतिमानों का उल्लेख दार्शनिक दृष्टि से किया। उनका कहना था कि शिक्षण में ज्ञानात्मक, मनोवैज्ञानिक तथा सार्वभौमिक तत्त्व निहित होते हैं जो शिक्षण की प्रकृति को स्पष्ट करते हैं। शिक्षण की विशेषताओं के आधार पर इन्होंने शिक्षण के निम्नलिखित प्रतिमानों का विकास किया :

(क) प्रभाव शिक्षण प्रतिमान (The Impression Model of Teaching)-

यह प्रतिमान शिक्षण में ‘प्रभाव’ पर अधिक बल देता है। रूसो तथा लॉक जैसे शिक्षाशास्त्रियों ने। मानव मस्तिष्क को जन्म के समय कोरी स्लेट माना है। उस पर हम शिक्षण द्वारा जो कुछ प्रभाव डालते हैं, उनके अनुभवों द्वारा ही सीखने की प्रक्रिया चलती है। इस सीखने की प्रक्रिया में ज्ञानेन्द्रियों की अनुभूतियों तथा भाषा सिद्धान्तों का विशेष महत्त्व है। इस शिक्षण प्रतिमान के अनुसार शिक्षण की सफलता हेतु शिक्षक का व्यक्तित्व आकर्षक, विषय पर अधिकार, भाषा-कौशल तथा विचारों व भावों के सम्प्रेषण में दक्षता आदि गुणों का होना आवश्यक है।

(ख) सूझ शिक्षण प्रतिमान (The Insight Model of Teaching)-

इस प्रतिमान के अनुसार छात्रों में बाहर से ज्ञान ज्ञानेन्द्रियों की अनुभूति द्वारा ही प्रदान नहीं किया जा सकता, अपितु उन्हें विषय-वस्तु को समझना बहुत आवश्यक है। इस प्रतिमान के प्रतिपादक प्लेटो थे। इस प्रतिमान में शिक्षण तथा अधिगम हेतु छात्रों की सूझ की क्षमता को अधिक महत्त्व दिया गया है । इसके द्वारा शिक्षण के सभी उद्देश्यों की प्राप्ति नहीं की जा सकती, यह ज्ञानात्मक उद्देश्यों पर अधिक बल देता है।

(ग) नियम शिक्षण प्रतिमान (The Rule Model of Teaching)-

इस प्रतिमान में काण्ट महोदय ने तर्क शक्ति को अधिक महत्त्व दिया है। तर्क में किन्हीं नियमों का पालन किया जाता है। इस प्रतिमान का मुख्य लक्ष्य बालकों की क्षमताओं का विकास करना है। इस कार्य हेतु विशेष प्रकार के नियमों का पालन किया जाता है, जैसे, शिक्षण का नियोजन, व्यवस्था तथा अन्तःप्रक्रिया आदि। इस प्रतिमान के द्वारा उपर्युक्त वर्णित दोनों प्रतिमानों की कमी को दूर करने का प्रयल किया जाता है।

(3) मनोवैज्ञानिक शिक्षण प्रतिमान (Psychological Teaching Model) :

(क) बुनियादी शिक्षण प्रतिमान (A Basic Teaching Model)

(ख) कम्प्यूटर पर आधारित शिक्षण प्रतिमान (Computer-Based Teaching Model)

(ग) विद्यालय अधिगम का शिक्षण प्रतिमान (A Teaching Model for School Learning)

(घ) अन्त:-प्रक्रिया शिक्षण प्रतिमान (An Interaction Model of Teaching)

(4) अध्यापक शिक्षा के लिए शिक्षण प्रतिमान (Teaching Models for Teacher Education) :

(क) तबा का शिक्षण प्रतिमान (Taba’s Model of Teaching)

(ख) टरनर का शिक्षण प्रतिमान (Turner’s Model of Teaching)

(ग) शिक्षक अभिविन्यास शिक्षण प्रतिमान (A Model of Variation in Teacher Orientation)

(घ) फॉक्स लिपिट शिक्षण प्रतिमान (The Fox Lippit Teaching Model)

(ङ) द फ्लोरिडा राज्य विश्वविद्यालय प्रतिमान (The Florida State University Model)

(च) जॉर्जिया शिक्षण प्रतिमान (The Georgia Model of Teaching)

(5) आधुनिक शिक्षण प्रतिमान :

बी. जॉयस तथा मार्शा वेल : (विस्तृत वर्णन इसी पाठ में आगे किया गया है।

(6) चार पदीय शिक्षण प्रतिमान (Four Stage Models of Instruction) :

पोफम एवं बेकर प्रतिमान (Popham & Baker Model), सामान्य शिक्षण प्रतिमान (General Model of Instruction), तार्किक शिक्षण प्रतिमान (Logical Instruction Model)|

(7) सृजनात्मक शिक्षण प्रतिमान (Creativity Models of Teaching) :

ब्रेन स्टॉर्मिंग एलेक्स ऑसबॉर्न (Brain Storming by Alex Osborn), सृजनात्मकता के विकास हेतु व्यूह (Strategies for Developing Creativity by EE. Williams), सुजनात्मक कार्य (Creativity Task by Covington), ध्वनि और प्रतिमाएँ (Sound and Images by Torrance and Connington)

(8) एन.सी.ई.आर.टी. के निर्देशन में बने शिक्षण प्रतिमान :

उन्नत व्यवस्थापक प्रतिमान-आसुबेल (Advance Organizer Model of Ausubel), पच्छा शिक्षण प्रतिमान-सचमैन (Inquiry Teaching Model of Suchman), पूर्ण अधिगम प्रतिमान-ब्लूम (Master-Learning Model of Bloom)।

(9) व्यवहार रूपान्तर स्रोत के अन्तर्गत :

म्यजिबल हसन सिद्धिकी तथा मोहम्मद शरीफ खान ने चार प्रकार के शिक्षण इस प्रकार प्रस्तुत किया है : प्रतिमानों को अपनी पुस्तक ‘Models of Teaching Theory and Research’ में इस प्रकार प्रस्तुत किया हैः

(i)आकस्मिक प्रबन्ध प्रतिमान (Contingency Management – Model of B.F. Skinner)

(ii) आत्म-नियन्त्रण प्रतिमान (Self Control Model of B.E. Skinner)

(iii) प्रभाव पराभव प्रतिमान (Stress Reduction of Rimm & Masters)

(iv) असंवेदीकरण प्रतिमान (Desensitization Model of Walpe).

जॉयस एवं वेल ने व्यवहार परिवर्तन स्रोत के अन्तर्गत सक्रिय अनुकूलन शिक्षण प्रतिमान का वर्णन किया है

 

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