शैक्षिक तकनीकी के प्रकार,महत्त्व | Types of Educational Technology In Hindi

शैक्षिक तकनीकी के प्रकार,महत्त्व | Types of Educational Technology In Hindi

 

लुम्सडेने (Lumsdane) ने 1964 में शैक्षिक तकनीकी के प्रकार मुख्यत: तीन रूपों में विभाजित किया, जो निम्नांकित हैं –

1. शैक्षिक तकनीकी प्रथम अथवा हार्डवेयर उपागम (Educational Technology-1 or Hardware Approach)

2. शैक्षिक तकनीकी द्वितीय अथवा सोफ्टवेयर उपागम(Educational Technology-2 or Software Approach)

3. शैक्षिक तकनीकी तृतीय अथवा प्रणाली विश्लेषण (Educational Technology-3 or System Analysis)

 

(1) शैक्षिक तकनीकी प्रथम अथवा हार्डवेयर उपागम :

शिक्षण की इस प्रक्रिया में यन्त्रीकरण को विशेष महत्त्व दिया गया जिसे स्थूल वस्तु माध्यम (Hardware Approach) कहते हैं। 1968 में सिल्वरमैन ने इसे सम्बन्धी तकनीकी (Relative Technology) का भी नाम दिया। इसका प्रारम्भ भौतिक विज्ञान, अभियंत्रण अथवा मशीन की तकनीकी (Engineering Technology) से हुआ। डेवीज ने हार्डवेयर उपागम के सम्बन्ध को स्पष्ट करते हुए कहा कि यह शिक्षा और शिक्षण प्रणाली में भौतिक विज्ञान का उपयोग है जिसके द्वारा शिक्षण प्रक्रिया का शनैःशनैः मशीनीकरण किया जा रहा है जिससे कम समय, शक्ति व धन व्यय करके अधिकाधिक छात्रों को शिक्षित किया जा सके। इसके लिए आजकल रेडियो, टेपरिकॉर्डर, ग्रामोफोन, टेलीविजन,प्रोजैक्टर, स्लाइड्स, कम्प्यूटर, बन्द सर्किट टेलीविजन, इलैक्ट्रॉनिक विडियो टेप आदि शिक्षण मशीनों का प्रयोग किया जा रहा है। इनका अधिकाधिक उपयोग मुक्त विद्यालयों (Open Schools), मुक्त विश्वविद्यालयों (Open Universities), पत्राचार पाठ्यक्रमों (Correspondence Courses) के द्वारा तीव्रगति से किया जा रहा है । इस प्रकार मानवीय ज्ञान के तीनों पक्षों में हार्डवेयर उपागम विशेष सहायक होता है, जैसे :

(1) ज्ञान का संचय करने हेतु छापने की मशीनों का उपयोग करके पुस्तकों का एकत्रीकरण करना,

(2) ज्ञान का हस्तान्तरण करने हेतु दूर-दराज के क्षेत्रों में निवास करने वाली जनता तक रेडियो तथा टेलीविजन आदि उपकरणों का प्रयोग करना; एवं

(3) ज्ञान के अधिकाधिक विकास हेतु अनुसन्धान करना, जिसमें आँकड़ों का संग्रह तथा विश्लेषण करने के लिए कम्प्यूटर जैसे आधुनिकतम उपकरणों का प्रयोग करना।

इस प्रकार शैक्षिक तकनीकी का प्रथम रूप शिक्षण के तीनों स्तरों (प्राथमिक, माध्यमिक तथा उच्च माध्यमिक) पर अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हुआ है, क्योंकि स्थूल वस्तुओं के शिक्षण में प्रयोग से छात्रों का विषय के प्रति अधिक ध्यान केन्द्रित किया जा सकता है।

(2) शैक्षिक तकनीकी द्वितीय अथवा सोफ्टवेयर उपागम:

शैक्षिक तकनीकी के द्वितीय रूप में शिक्षण तथा सीखने के सिद्धान्तों का उपयोग किया। जाता है। इसमें मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों द्वारा विद्यार्थी के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाया। जाता है। इसमें शैक्षिक तकनीकी के विभिन्न प्रकारों जैसे, व्यवहार तकनीकी (Behavioral Technology), अनुदेशन तकनीकी (Instructional Technology) तथा शिक्षण तकनीकी (Teaching Technology) को सम्मिलित किया जाता है । यह स्मरण रहे कि इसमें प्रायःशिक्षण मशीनों का प्रयोग नहीं किया जाता। यदि मशीनों का प्रयोग किया भी जाता है, तो वह केवल पाठ्यवस्तु को प्रभावशाली बनाने के लिए किया जाता है । सोफ्टवेयर उपागम के द्वारा शिक्षण  उद्देश्यों के व्यावहारिक परिवर्तनों कार्य विश्लेषण, उद्देश्यों का संक्षिप्तिकरण, वांछित अधिगम। कौशलों का चुनाव, पनर्बलन, पृष्ठ-पोषण प्रणालियों एवं मूल्यांकन पर अधिक बल दिया जाता है ।

इसके माध्यम से छात्र के पूर्वज्ञान से प्रारम्भ होकर अंतिम व्यवहार का आकलन किया जाता है और उसके द्वारा आन्तरिक एवं बाह्य व्यक्तित्व का विकास किया जाता है । इस प्रकार उपर्युक्त वर्णित शैक्षिक तकनीकी प्रथम तथा द्वितीय उपागम एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं, क्योंकि प्रथम उपागम में शिक्षण मशीनों के प्रयोग पर बल दिया जाता है तथा द्वितीय उपागम में शिक्षक तथा सीखने के सिद्धान्तों का उपयोग करना बताया जाता है। सिल्वरमैन (1968) ने इसे ‘संरचनात्मक शैक्षिक तकनीकी’ (Constructive Educational Technology) कहा है। इस शैक्षिक तकनीकी में संरचनात्मक कार्यों को सम्मिलित किया गया है जैसे, अनुदेशनात्मक समस्याओं का विश्लेषण, अनुदेशनात्मक उपलब्धियों का मूल्यांकन करने हेतु उपकरणों का चयन तथा निर्माण करना आदि।

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(3) शैक्षिक तकनीकी तृतीय अथवा प्रणाली विश्लेषण :

इसका विकास द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् हुआ। इसे शैक्षिक तकनीकी तृतीय अथवा प्रणाली विश्लेषण की प्रबन्ध तकनीकी (Management Technology) भी कहते हैं। इसके द्वारा शिक्षा प्रशासन एवं प्रबन्ध को वैज्ञानिक आधार प्रदान किया जाता है, जिससे उन्हें अधिक प्रभावशाली एवं सुदृढ़ बनाया जा सकता है तथा इस क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली जटिल से जटिल समस्याओं का समाधान वैज्ञानिक विधि से किया जा सकता है। अत: आजकल शैक्षिक तकनीकी तृतीय का शिक्षण के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह प्रणाली विश्लेषण गणित पर आधारित है। इस तकनीकी ने शैक्षिक प्रशासन तथा प्रबन्ध को एक वैज्ञानिक तथा संख्यात्मक उपागम प्रदान किया है जो अधिक वस्तुनिष्ठ, क्रमबद्ध, शुद्ध तथा कम खर्चीली भी है।

शैक्षिक तकनीकी का महत्त्व (Importance of Educational Technology) :

आधुनिकतम वैज्ञानिक तथा प्रतिस्पर्धात्मक युग में नवीनतम आविष्कारों का पदार्पण इस जगत में तीव्रगति से हुआ, अत: मानव जगत में ज्ञान का विस्तार हुआ जिससे शिक्षा भी अछूती नहीं रही। शैक्षिक तकनीकी ने शिक्षा के क्षेत्र में क्रान्ति उत्पन्न कर दी। आज भारत ही नहीं, अपितु विश्व के सभी देशों में शैक्षिक तकनीकी के महत्त्व को स्वीकार किया गया है। आज प्रत्येक देश अपनी शैक्षिक व्यवस्था में शैक्षिक-तकनीकी का प्रयोग कर रहा है। इसके महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं में देखा जा सकता है :

(1) जनसाधारण तक शिक्षा -राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में स्पष्ट वर्णित है कि शैक्षिक तकनीकी की सहायता से दूरदराज के क्षेत्रों तक शिक्षा का प्रसार किया जा सकता है। जिसका प्रयोग आज ‘दूरस्थ शिक्षा’ के द्वारा किया जा रहा है जैसे, पत्राचार पाठ्यक्रमों, मुक्त विद्यालयों तथा मुक्त विश्वविद्यालयों द्वारा  पत्राचार पाठ्यक्रमों को अभिक्रमित अनुदेशन की सहायता से, मुक्त विद्यालयों तथा मुक्त विश्वविद्यालयों द्वारा संचालित विविध पाठ्यक्रमों को दूरदर्शन, आकाशवाणी, दूरभाष आदि के माध्यम से अधिक प्रभावशाली बनाया जा सकता है । इस प्रकार यह निरक्षरता को दूर करने तथा प्रौढ़ शिक्षा के अधिकाधिक प्रसार का आकर्षक व रोचक साधन है।

(2) विचारों व विविध ज्ञान का संकलन-शैक्षिक तकनीकी के प्रयोग से महान व्यक्तियों एवं शिक्षाविदों के मौलिक विचारों को मौलिक रूप में ही ज्यों-का-त्यों संचित किया जा सकता है । इसके अनेक माध्यम हैं जैसे टेपरिकॉर्डर वीडियो रिकॉडिंग आदि

(3) शिक्षक-प्रशिक्षण में सहायक-शैक्षिक तकनीकी के प्रयोग से शिक्षकों को प्रशिक्षण प्रभावशाली ढंग से दिया जा सकता है,क्योंकि नवीनतम उपकरणों के प्रयोग से शिक्षण विधि तथा शिक्षण की नवीनतम प्रभावशाली शैली से भावी अध्यापकों को भली-भाँति परिचित करवाया जा सकता है। जैसे सूक्ष्म शिक्षण, दल शिक्षण, अनुकरणीय शिक्षण (Simulated Teaching), दूरदर्शन, बन्द परिपथ दूरदर्शन, वीडियो टेप, टेप रिकॉर्डर आदि के द्वारा।

(4) शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाना-शैक्षिक तकनीकी शिक्षण एवं अधिगम की प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने में पूर्ण सहयोग देती है। इसके माध्यम से शिक्षण के उद्देश्यों से सम्बन्धित तीनों पक्षों जैसे, ज्ञानात्मक, भावात्मक तथा क्रियात्मक का विकास कर छात्रों में व्यवहारगत परिवर्तन कर उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकती है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि बालक के सर्वांगीण विकास में शिक्षा तकनीकी का सर्वाधिक योग है।

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(5) विषयों के समन्वय में सहायक-शैक्षिक तकनीकी विविध विषयों यथा, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, गणित, अभियान्त्रिकी, सामाजिक विज्ञान सम्बन्धित विषयों द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों का प्रयोग कर अधिगम सुविधाओं में वृद्धि करती है एवं उन्हें एक-दूसरे के समीप लाती है।

(6) अनौपचारिक शिक्षा में सहायक-शिक्षा के अनौपचारिक रूप को सफल बनाने में शैक्षिक तकनीकी विशेष योगदान देती है, क्योंकि इसके माध्यम से शिक्षा के अनौपचारिक साधनों का प्रयोग सफलतापूर्वक शिक्षा प्रदान करने में किया जाता है। ये साधन हैं-रेडियो, दूरदर्शन, टेप रिकॉर्डर, कम्प्यूटर, दूरभाष आदि।

(7) परिवर्तित व्यवहार की अधिकतम उपलब्धि-शैक्षिक तकनीकी के द्वारा अधिगम की अधिकतम सुविधाओं के कारण छात्रों में नवीन व्यवहार सीखने तथा सीखे गये व्यवहार का विनियोग करने की क्षमता विकसित होती है। इस प्रकार प्राप्त किया हुआ ज्ञान उसका अपना अनुभवजन्य क्रियाशील ज्ञान होता है, जो विद्यार्थी की अधिकतम योग्यता का प्रतीक है।

(8) शिक्षा क्षेत्र में नवीन दृष्टिकोणों के विकास में सहायक-शैक्षिक तकनीकी ने अधिगम के क्षेत्र में नया दृष्टिकोण उत्पन्न किया है जैसे, शिक्षण अधिगम का वैज्ञानिक ज्ञान कराना, अधिगमकर्ताओं की विशेषताओं का विश्लेषण करना, विषयवस्तु को व्यवस्था देना, उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु छात्रों का मूल्यांकन करना, विद्यार्थी को परिमार्जित व्यवहार तक पहुँचने हेतु अपेक्षित पुनर्बलन एवं पृष्ठपोषण देना, शिक्षण अधिगम के प्रशिक्षण में सुधार करना, छात्रअध्यापक के मध्य अन्त:क्रिया पैदा करना, मनुष्य की अधिगम परिस्थितियों पर विचार करना, वैज्ञानिक ज्ञान के तरीके को अपनाना आदि।

(9) नवीन शोध-कार्यों में सहायक-शैक्षिक तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में नवीन प्रयोगों, शोधकार्यों व अध्ययनों के लिए अवसर प्रदान करती है। इसके माध्यम से आधनिक युग में आँकड़ों का संकलन करना तथा उनका विश्लेषण करना बहुत ही सुविधाजनक हो गया है।

(10)शैक्षिक प्रशासन में सहायक-शैक्षिक तकनीकी शैक्षिक प्रशासन तथा प्रबन्ध की समस्याओं का अध्ययन वैज्ञानिक ढंग से करती है। इसके लिए ‘प्रणाली विश्लेषण’ का प्रयोग किया जाता है।

(11) शिक्षण के नये प्रतिमानों का निर्माण-शैक्षिक तकनीकी के प्रयोग की सहायता से शिक्षण के रूप को आसानी से समझा व समझाया जा सकता है। और शिक्षण के सिद्धान्तों को प्रतिपादित किया जा सकता है तथा शिक्षण के नये प्रतिमान विकसित किये जा सकते हैं।

(12) व्यक्तिगत विभिन्नता पर बल-इसमें अभिक्रमित अध्ययन द्वारा व्यक्तिगत विभिन्नता की समस्या का समाधान तथा विद्यार्थियों में अपने आप अध्ययन करने की प्रवृत्ति का विकास किया जा सकता है।

अतः शैक्षिक तकनीकी का महत्त्व शिक्षण अधिगम तथा प्रशिक्षण की दृष्टि से अत्यधिक है, किन्तु इसके आधुनिकतम शिक्षण साधनों को देखते हुए जनमानस में यह भ्रान्ति उत्पन्न हो गई है कि ये आधुनिकतम साधन धीरे-धीरे शिक्षक का स्थान ले लेंगे। वस्तुत: शैक्षिक तकनीकी का विकास शिक्षक का स्थान न तो ले रहा है और न ही भविष्य में लेगा, अपितु यह प्रभावशाली शिक्षकों के निर्माण में हमेशा सहायक होगा। इसके द्वारा राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा तथा शिक्षण के स्तर को और उन्नत किया जा सकेगा।

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