अन्वेषण उपागम (Discovery approach)
अन्वेषण उपागम छात्रों में स्वयं खोज करके ज्ञान प्राप्त करने की प्रवृत्ति के विकास पर बल देता है। इस उपागम के प्रवर्तक जे एस. बनर हैं। इसे ह्ररिस्टिक पद्धति के नाम से भी जाना जाता है। ह्ररिस्टिक शब्द ग्रीक भाषा के ‘Heurisco’ शब्द से विकसित हुआ है जिसका अर्थ है-‘मैं स्वयं खोज करता हूँ’। इस प्रकार इस पद्धति में स्वयं खोज करके ज्ञान प्राप्त करने को महत्त्व दिया जाता है। सामान्यतः ऐतिहासिक खोज तथा अन्वेषण (Heuristics) को एक ही अर्थ में प्रयुक्त कर लिया जाता है जबकि दोनों में अन्तर है। ऐतिहासिक खोज में सामाजिक विषयों के तथ्यों की खोज की जाती है जबकि अन्वेषण में वैज्ञानिक विषयों,प्रत्ययों एवं सिद्धान्तों की खोज की जाती है। ये दोनों ही उपागम हरबर्ट स्पेंसर के इस कथन पर आधारित हैं कि “बालकों को जितना सम्भव हो, कम से कम बताया जाये और यथासम्भव उनको खोजने के लिए प्रोत्साहित किया जाये।”
अन्वेषण उपागम समस्या-समाधान पद्धति का ही एक अंग है। इसमें उन शिक्षण परिस्थितियों को प्रस्तुत किया जाता है जिनकी सहायता से अनुदेशन के तथ्यात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है तथा शिक्षक इसमें आवश्यकतानुसार निर्देशन देता है ।
अन्वेषण उपागम के सिद्धान्त
1. करके सीखने का सिद्धान्त,
2. क्रियाशीलता का सिद्धान्त,
3. वैज्ञानिकता का सिद्धान्त,
4. मनोवैज्ञानिकता का सिद्धान्त,
5. अन्तर्दृष्टि का सिद्धान्त,
6. स्वतन्त्र चिन्तन का सिद्धान्त; एवं शिक्षण सूत्रों के अनुकरण का सिद्धान्व।
अन्वेषण उपागम के सोपान
(Steps of Discovery Approach)
अन्वेषण उपागम में निम्नलिखित सोपानों का अनुसरण किया जाता है :
(1) प्रकरण का निर्धारण छात्रों के स्तर, उपलब्ध साधनों तथा समस्या के औचित्य को ध्यान में रखते हुए शिक्षक प्रकरण के निर्धारण में सहायता देता है।
(2) उपयुक्त साधनों की उपलब्धता-प्रकरण निर्धारण के साथ ही उपयुक्त साधनों को उपलब्ध करवा कर सभी छात्रों को अलग-अलग अन्वेषण कार्य दे दिये जाते हैं।
(3) समस्या प्रस्तुत करना-इस सोपान में शिक्षक छात्रों के समक्ष समस्या इस तरह प्रस्तुत करता है कि वे स्वयं उसके समाधान हेतु प्रेरित हो जाते हैं।
(4) तथ्यों की खोज-यह सोपान निश्चित परिणामों तक पहुँचाने में बहुत सहायक होता है।
(5) उपकल्पना का निर्माण-तथ्यों के एकत्रीकरण के बाद परिकल्पना का निर्माण किया जाता है जिसमें छात्र समस्या के सम्भावित हल खोजते हैं।
(6) उपकल्पनाओं का परीक्षण-इस सोपान में उपकल्पनाओं का सत्यापन इसलिए किया जाता है कि उपकल्पनाएँ सही हैं अथवा नहीं और उनमें से किन्हें स्वीकार किया जाये।
(7) निष्कर्ष निकालना-सत्यता की कसौटी पर सही सिद्ध होने वाली उपकल्पनाओं को निष्कर्ष रूप से स्वीकृत किया जाता है।
अन्वेषण उपागम पर आधारित आदर्श पाठ-योजना
कालांश: प्रथम
कक्षा: 8
प्रकरण : विद्युत मापन
विषय : विज्ञान
उद्देश्य :
1. छात्र विद्युत की इकाई तथा विद्युत चुम्बकीय प्रभाव, नियमों का प्रत्यभिज्ञान तथा प्रत्यास्मरण कर सकेंगे।
2. ऊर्जा के किसी एक गुण के आधार पर विद्युत का मापन किया जा सकता है इस विषय में जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।
3. विद्युत मापन के सिद्धान्त को समझ सकेंगे।
4. विद्यार्थी निरीक्षण कर सकेंगे तथा निरीक्षण के आधार पर निष्कर्ष निकाल सकेंगे।
समस्या का प्रस्तुतीकरण
शिक्षक छात्रों के सामने प्रकरण से सम्बन्धित प्रश्न प्रस्तुत करेगा :
1. तापमापी क्या काम आता है ? तापमापी द्वारा ताप कैसे मापा जाता है ?
2. तापमापी में ताप के किस गुण का उपयोग किया जाता है ?
3. विद्युत के कुछ प्रभावों के विषय में बताइये।
4. विद्युत के चुम्बकीय गुण को विद्युत मापन में कैसे काम में लिया जाता है ?
उपर्युक्त समस्याओं के समाधान हेतु छात्र तथ्यों की खोज करना प्रारम्भ करेंगे।
उपकल्पनाओं का निर्माण :
1. किसी भी गुण का मापन उस गुण के प्रभावों पर आधारित होता है।
2. ताप के प्रभाव की तरह विद्युत के भी अनेक प्रभाव हैं।
3. विद्युत के चुम्बकीय प्रभाव को कई जगह काम में लिया जाता है। विद्युत के चुम्बकीय प्रभाव को विद्युत मापन के काम में लिया जाता है।
उपकल्पनाओं का परीक्षण:
तथ्यों की खोज तथा उपकल्पनाओं का निर्माण करने के बाद छात्र उपकल्पनाओं का परीक्षण प्रारम्भ करता है जिसमें विद्युत के चुम्बकीय प्रभाव को ज्ञात करने हेतु वह प्रयोग करेगा, जैसे, एक तार की कुण्डली (Coil) के बीच एक चम्बकीय सई रखकर विद्युत प्रवाहित करेगा तथा सूई में जो परिवर्तन होगा वह नोट करेगा। तार की कण्डली को सैल से जोडकर बीच में चुम्बकीय सूई रखेगा। कुण्डली में विद्युतधारा कम व अधिक करके उसका प्रभाव चुम्बकीय सूई पर देखेगा।
निष्कर्ष निकालना-
प्रयोगों के परिणाम के आधार पर छात्र उपर्युक्त उपकल्पनाओं का परीक्षण कर निष्कर्ष निकालेगा जिसमें अध्यापक उसकी सहायता करेगा।
अन्वेषण उपागम की विशेषताएँ
(Characteristics of Discovery Approach)
1. इसके द्वारा छात्रों में निरीक्षण-शक्ति, क्रियाशीलता, आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता, परिश्रम करने की क्षमता एवं रुचि का विकास होता है।
2. यह उपागम छात्रों में तर्क, निर्णय तथा कल्पना-शक्ति का विकास करने में सहायता देता है।
3. यह पद्धति बालक में वैज्ञानिक भावना और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करती है।
4. इसके द्वारा छात्रों में स्वतन्त्र अध्ययन करने तथा करके सीखने की आदत का विकास होता है।
5. इसमें आगमन पद्धति का अनुसरण किया जाता है।
6. इस पद्धति में अनेक शिक्षण सत्रों तथा सामान्य सिद्धान्तों का अनुसरण किया जाता है।
7. इससे प्राप्त ज्ञान स्थायी होता है तथा यह छात्रों को सत्य के निकट पहुंचाती है ।
8. इसमें छात्र को सभी कार्य विद्यालय में रहकर पूरे करने होते हैं तथा अन्वेषण में निष्कर्ष प्राप्त करने के बाद शिक्षण समाप्त हो जाता है अतः गृहकार्य की आवश्यकता नहीं होती।
9. इसमें शिक्षक मार्गदर्शक का कार्य करता है।
10. इसके द्वारा छात्रों में भावी जीवन में आने वाली समस्याओं को सुलझाने की योग्यता का विकास किया जाता है।
11. यह गणित, विज्ञान में विशेष रूप से तथा सामाजिक ज्ञान (भूगोल, इतिहास व नागरिकशास्त्र आदि) के कुछ प्रकरणों के शिक्षण हेतु प्रयुक्त की जा सकती है।
12. यह पद्धति समस्या पद्धति का ही एक अंग है।
अन्वेषण उपागम की सीमाएँ
(Limitations of Discovery Approach)
1. यह उपागम उच्च स्तर के छात्रों तथा कुशाग्र बुद्धि के छात्रों के लिए ही उपयोगी है।
2. इस पद्धति में समय, शक्ति और धन अधिक खर्च होता है।
3. पाठ्यक्रम का निर्माण अन्वेषण उपागम के अनुसार नहीं होता, अतः शिक्षक को स्वयं पाठ्य-विषय की सामग्री क्रमबद्ध रूप से संगठित करनी पड़ती है, अत: शिक्षण गति धीमी रहने से पाठयक्रम निर्धारित समय में पूर्ण नहीं हो पाता।
4. अधिक छात्रों वाली कक्षा में इसका प्रयोग सम्भव नहीं क्योंकि इसमें छात्र और शिक्षक के बीच व्यक्तिगत सम्पर्क की आवश्यकता होती है।
5. इसमें यन्त्रों, उपकरणों, पर्याप्त संदर्भ ग्रन्थों आदि की आवश्यकता होती है, अतः यह साधन-सम्पन्न विद्यालयों में ही सम्भव है।
6. इस पद्धति में वैज्ञानिक विधि का प्रशिक्षण प्रमुख और ज्ञान प्राप्त करना गौण होता है।
यद्यपि दिन-प्रतिदिन छात्रों की संख्या में वृद्धि होती जा रही है तथापि इस विधि का। प्रयोग छात्रों में मौलिक चिन्तन, तथ्यों का विश्लेषण व संश्लेषण करने का अवसर प्रदान करता। है। अत: आज बड़ी-बड़ी प्रायोजनाओं में भी इस विधि के प्रयोग को महत्त्व दिया जा रहा है।
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