शिक्षा में सम्प्रेषण के विविध माध्यम

शिक्षा में सम्प्रेषण के विविध माध्यम: परिचय एवं विकास

शिक्षा में सम्प्रेषण के विविध माध्यम : परिचय एवं विकास

संगणक (कम्प्यूटर)- कम्प्यूटर एक ऐसा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जिसका कार्यक्षेत्र बहुत व्यापक है। आज यह शिक्षा, चिकित्सा, वाणिज्य, व्यापार, उद्योग, मौसम एवं प्रयोगशालाओं में तीव्र गति से प्रयोग किया जा रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में कम्प्यूटर द्वारा नये-नये प्रयोग निरन्तर हो रहे हैं और यह शिक्षा में संचार का महत्त्वपूर्ण माध्यम है। भारत में स्कूली शिक्षा में प्राथमिक स्तर से उच्च स्तर तक की कक्षाओं में कम्प्यूटर द्वारा शिक्षा प्रदान की जा रही हैं। वर्तमान में कम्प्यूटर के कई क्षेत्र विकसित कर लिए गए हैं जिनमें अपराध, कृषि, भाषा विज्ञान, अन्तरिक्ष, डिजाइनों तथा प्रकाशन कार्यों में भी इसकी भूमिका अहं है। कम्प्यूटर शिक्षा एक ऐसा रुचिकर एवं विकासशील क्षेत्र है जिसमें युवा पीढ़ी अपने उज्जवल भविष्य का निर्माण कर सकती है।

इंग्लैण्ड की शैक्षणिक प्रौद्योगिकी के लिए गठिन राष्ट्रीय परिषद (एन.सी.ई.टी) विद्यालयों में कम्प्यूटर की आवश्यकता के आकलन के लिए एक परियोजना का भी संचालन कर रही है। भारत सरकार द्वारा एक स्वायत्तशासी संस्थान का गठन भी किया गया है जो डी.ओ.ई.ए.सी.सी. नाम से जानी जाती है। इस संस्थान द्वारा कम्प्यूटर के विभिन्न पाठ्यक्रम चलाए जाते हैं।

कम्प्यूटर के विषय में यह गलत धारणा है कि यह केवल अंग्रेजी में ही काम करते हैं। अंग्रेजी कम्प्यूटरों के लिए आदर्श भाषा है इसके विपरीत सही तथ्य यह है कि कम्प्यूटर तो एक मशीन मात्र है उसे जैसे निर्देश दिए जाएंगे उसी के अनुरूप कार्य करेगा। भारतीय भाषाओं की लिपि का जन्म ब्राह्मी लिपि से हुआ है। यह ध्वन्यात्मक लिपि है, अतः एक ही कम्प्यूटर पर कुंजी पटल बदले बिना यह 14 भारतीय भाषाओं में भी कार्य कर सकता है। अनुसन्धानों द्वारा यह ज्ञात हुआ है कि स्वर (फोनेटिक) दृष्टि से हिन्दी व भारतीय भाषाएँ कम्प्यूटर के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं। वर्तमान के कम्प्यूटर अंग्रेजी की रोमन लिपि पर आधारित हैं किन्तु सी-डेक शोध संस्थान द्वारा विकसित जिस्ट कार्ड देने से ये हिन्दी तथा 14 भारतीय भाषाओं में कार्य कर सकते हैं। बाजार में हिन्दी में सोफ्टवेयर सुलिपि, भाषा, लिपि, आकृति, हिन्द स्क्रिप्ट, एल्प रूपा, रत्न शब्द, इंडिका, स्वदेश व अन्य कई सोफ्टवेयर उपलब्ध हैं।

भारत के कई प्रमुख शिक्षा संस्थान कम्प्यूटर विषय में स्नातक व स्नातकोत्तर डिप्लोमा व डिग्री पाठ्यक्रम हिन्दी माध्यम से चला रहे हैं। प्रिंटिंग कार्य में आने वाली कठिनाइयों को अब ग्राफिक्स मोड, लेजर प्रिन्टर द्वारा समाप्त कर लिया गया है। अब कम्प्यूटर का ऑपरेटिंग सिस्टम आई.वी.एम. ने पी.सी. डॉस-7 तैयार कर लिया है। इससे हिन्दी में कमांड, संदेश व आँकड़े डालने की सुविधा हो गई है।

इसके अतिरिक्त अमरीका की एक विशाल कम्पनी द्वारा ऐसे कम्प्यूटर बनाए गए है, जिनसे बात करना भी सम्भव है। अब इनका प्रयोग भारत में भी होने लगा है। ये दो प्रकार के होते हैं-

(1) स्वर पहचानने वाला कम्प्यूटर सिर्फ बोलने वाले की ही आवाज को पहचानने की ताकत रखता है जबकि

(2) बोली को पहचानने वाला कम्प्यूटर अधिक विकसित और समझदार है। वह बोले गए शब्दों का मतलब भी समझता है और विभिन्न बातों को समझकर उसके अनुरूप कार्य भी करता है। उसे विभिन्न बोलियों की खास बातें पहचानने के लिए प्रशिक्षित भी किया जा सकता है।

देश के वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग ने एक कम्प्यूटर आधारित ‘राष्ट्रीय तकनीकी शब्दावली बैंक’ स्थापित किया है। इसक द्वारा विकसित वैज्ञानिक तथा तकनी विषयों के शब्दों को विभिन्न भारतीय भाषाओं के लिए सॉफ्टवेयर और बहुमाध्यम करने वाली इलेक्टॉनिक अभिकरणों (एजेन्सियों) द्वारा उपयोग में लिया जा सकता है। केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर ने सॉफ्टवेयर ‘भाषा’ का विकास किया है। दो भाग हैं- भारतीय लिपि उपयोग और भारतीय लिपि संसाधक भाषा की प्रथम श्रृंखला के अन्तर्गत छ: भारतीय भाषाएँ- हिन्दी, कन्नड़, मराठी, संस्कृत, तमिल तथा तेलगू आती हैं। सात भारतीय भाषाओं गुजराती, कन्नड़, मलयालम, मराठी, सिंधी, तमिल तथा तेलगू में मूल पाठों का एक ‘कारपोरा’ विकसित किया गया है। इस कारपोरा से अनुवाद यंत्रों भारतीय भाषाओं के शिक्षण के पैकेजों, भाषागत विश्लेषण तथा भाषा विकास के लिए सहायता मिलेगी।

कम्प्यूटर निरन्तर मानवीय दिमाग की बराबरी करने की ओर बढ़ रहा है और अब वह दिन दूर नहीं है जब माइक्रोचिप्स प्रति सेकण्ड में एक खरब क्रियाएँ करने लगेगी। जो मानवीय दिमाग की क्षमता के लगभग बराबर है। सन् 2010 तक ‘टेर कम्प्यूटर्स’ में सूचना प्रौद्योगिकी की संघातीय वृद्धि दर शुरू हो जाएगी जो कि प्रति सेकण्ड में एक खरब क्रियाएँ कर सकेगी। हैदराबाद में जनवरी 1998 में आयोजित ‘विज्ञान कांग्रेस’ के अवसर पर अमरीका के कार्नेजिया मेलन विश्वविद्यालय के प्रो. राज रेड्डी ने उक्त जानकारी दी थी। इसी प्रकार भविष्य और सूचना तकनीकी की गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए प्रो. रेडी ने कहा था, कि अब वह समय आ गया है जबकि एक सौ अरब ट्रांजिस्टरों को 2020 तक एक छोटे से चिप्स में समाहित किया जा सकेगा। अब बार-बार कम्प्यूटर पासवर्ड भूलने से होने वाली समस्या से निजात पाने के लिए एक छोटी सी रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेन्टीफिकेशन (आर.एफ.आई.डी.) नामक कम्प्यूटर चिप को अंगुली पर प्रत्यारोपित कर दिया जाएगा। इस चिप को अंगुली पर लगाने के बाद जैसे ही कोई कम्प्यूटर चालू करेगा वैसे ही कम्प्यूटर स्वयं पासवर्ड समझकर कार्य प्रारम्भ कर देगा। इस चिप के बारे में ‘टैकण्ड’ नामक वेबसाइट से जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

 

 

बहुमाध्यम (मल्टी मीडिया) और सी.डी. रोम (Compact Disk-Read Only Memory)

सी.डी. रोम से जुड़े कम्प्यूटर शिक्षण व विषय को रोचक तथा सरस बना रहे हैं। इनकी भूमिका गणित, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान से लेकर भाषा से सम्बन्धित सभी विषयों में अहं है। विशेषज्ञों ने माना है कि इन्टरेक्टिव कम्यूनिकेशन सॉफ्टवेयर के कारण वर्तमान शिक्षा पद्धति में एक बहुत बड़ा परिवर्तन होने जा रहा है।

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भारत में मल्टी मीडिया का प्रचलन सन् 1990 में आरम्भ हुआ। मल्टी मीडिया के लिए परमावश्यक सुविधाएँ हैं- 486 पैन्टियम या पावर पी.सी. प्रोसेसर, जिसमें कम से कम 16 मैगावाट की सी.पी.यू. मेमोरी हो, 14 इन्च कलर टीवी मॉनीटर, 1 गीगाबिट हार्डडिस्क, डिस्केट डाइव, आधुनिक उच्च क्षमता वाली सीडी रोम ड्राइव, ध्वनिकार्ड, लाउडस्पीकर, माइक्रोफोन एवं माउस, उच्च संचरण गति वाला लैन कनेक्शन, वी.सी.आर. से ऑप्टिकल कनेक्शन, वीडियो कैमरा, ऑडियो टेप, ऑप्टिकल स्केनर और एक कलर प्रिन्टर।

 

सॉफ्टवेयर-फर्मवेअर- विंडो ऑपरेटिंग सिस्टम, टैक्स्ट एवं इमेज प्रोसेसिंग टूल्स, स्पैड शीट, ई-मेल।

संचरण हेतु – मल्टी मीडिया के लिए निम्न उपभोक्ता सेवाएँ अपेक्षित हैं- विस्तृत वैन्ड-आई.एस.डी.एन., वीडियो ऑन डिमाण्ड, वीडियो गैम्स जैसी इन्टरेक्टिव वीडियो सेवा।

सूचना सेवाओं के क्षेत्र में- समाचार, खेलकूद, मौसम, दूरस्थ शिक्षा, हवाई होटल रिजर्वेशन, वीडियो बैंकिंग, रीयल एस्टेट सूचीकरण, होम शॉपिंग इत्यादि सुविधाएँ मल्टीमीडिया में समाहित हैं।

इस प्रकार मल्टीमीडिया किट में टैक्स्ट आवाज, संगीत, डेटा, ग्राफिक्स, एनीमेशन और चल-अचल वीडियो सभी कुछ मिलता है। इसके प्रयोग से छात्र न केवल विषय का ज्ञानार्जन करता है अपितु विषय से सम्बद्ध प्रश्नों के उत्तर भी उसे उसमें प्राप्त होते हैं, साथ ही वह स्वयं भी अपने प्रश्नों के हल खोज सकता है।

एन.आई.आई.टी. ने बच्चों के लिए केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की रूपरेखाओं के आधार पर एक ‘लीडा‘ नामक कोर्स निकाला है। इसके साथ ही इस संस्था ने ऐसे सॉफ्टवेयर तैयार किये हैं, जो बच्चों को पढ़ाई में विशेष सहायता देते हैं जैसे-‘दी वर्ल्ड ऑफ प्लाण्ट्स’ और लर्न विद बूडी मोर अबाउट प्लाण्ट्स जो बच्चों को आसानी से वनस्पति विज्ञान के मूलभूत सिद्धान्तों को समझाता है। इसी प्रकार ‘डिजिटल ज्योमेट्री’ से – ज्यामिति के विषय में, लर्न विद एटोमिक से एटम के विषय में छात्र ज्ञान प्राप्त करता है। इसी प्रकार भारतीय त्योहारों, धार्मिक एवं पौराणिक विषयों व भारतीय संगीत पर भी सी.डी. तैयार है तथा सी.डी. ‘गुरु’ में हिन्दी का मौखिक ज्ञान समाहित है। 2 अक्टूबर, 1999 को ‘महात्मा गाँधी’ के व्यक्तित्व व कृतित्व पर भी सी.डी. जारी की गई।

सी.डी. रोम में एनसाइक्लोपीडिया, शब्दकोष, डेस्कटॉप प्रिंटिंग इत्यादि के लिए ऑडियो-वीडियो के क्लिपिंग्स संचय किए जा सकते हैं। सी.डी. रोम तकनीक एक ऑप्टिकल संचय युक्ति है जिसमें काम्पैक्ट डिस्क तकनीक का प्रयोग किया गया है। इसका विकास सन् 1978 में उच्च तदर्धता (हाइफाइडेलिटी) म्यूजिक सुनने के लिए हुआ। सी.डी. रोम 1.2 मिमी. मोटी व 12 सेमी. व्यास वाली पोली कार्बोनेट पदार्थ की डिस्क होती है।

 

सी.डी. तकनीक के लाभ-

(1) यह वायरस से मुक्त अंगलियों के निशान, खरोंच, धूल कणों व चुम्बकीय क्षेत्र से अप्रभावित रहती है।

(2) लेसर किरण द्वारा पठन के कारण डिस्क घिसती नहीं है अतः विपरीत पर्यावरण कारणों से भी डिस्क में रिकॉर्डेड डाटा को कोई हानि नहीं होती।

(3) सी.डी. रोम चौक केवल पठनीय ही होती है, अत: इस पर गलती से भी कोई अवांछनीय रिकॉर्डिंग नहीं हो सकती है।

 

सुपर कम्प्यूटर परम- 10000-पारम्परिक कम्प्यूटरों से कई गुना अधिक तेजी से कार्य करने वाले सुपर कम्प्यूटर परम-10000 का विकास हमारे देश में भी वैज्ञानिकों द्वारा कर लिया गया है। इस कम्प्यूटर की कार्यक्षमता साधारण कम्प्यूटर की अपेक्षा एक हजार से एक अरब गना अधिक है। इसमें कई प्रोसेसर कार्य करते हैं, इस कारण इसको गति क्षमता। अत्यधिक बढ़ जाती है। इसकी क्षमता चल बिन्दु संक्रिया प्रति सेकण्ड, जिसे फ्लॉप कहते हैं, के रूप में नापी जाती है। अतिआधुनिक सुपर कम्प्यूटरों की क्षमता 100 खरब या 1 टेरा फ्लॉप की पराम में होती है। इसकी आवश्यकता तभी पड़ती है, जब लगातार बदल रहे अनेक आंकड़ों को क्रमबद्ध करना हो। इसका उपयोग अनेक क्षेत्रों में किया जा सकता है।

मिसाइल पथ, प्रतिरक्षा विज्ञान, नाभिकीय संयंत्र नियन्त्रण, चिप परीक्षण, खगोलीय क्षेत्र के आकलन, दूरसंचार क्षेत्र, दुर्घटना नियन्त्रण, भौतिकी क्षेत्र, अनुसन्धान विकास कार्य, आनुवांशिक अभियांत्रिकी, बाह्य अन्तरिक्ष का मानचित्र, जटिल रासायनिक परीक्षण, मौसम विज्ञान, द्रवगति  विज्ञान, वायुगति विज्ञान, परमाणु शक्ति से जुड़े अनुसन्धान जैसे अनेकानेक क्षेत्रों में इसका उपयोग बखूबी किया जा सकता है, जिससे वाछित सफलता प्राप्त होती है।

यह हमारे देश का सर्वाधिक शक्तिशाली और एशिया का दूसरा सर्वाधिक गति से कार्य करने वाला कम्प्यूटर है। इसमें अत्याधुनिक भाषाओं को प्रयुक्त किया गया है तथा इसे देशभर में इन्टरनेट के माध्यम से सुलभ कराने का परियोजना पर कार्यवाही चल रही है। सुपर कम्प्यूटर परम-10000 के कारण अब हमारा दश बिना परमाणु शक्ति विस्फोट किया उनका विश्वसनीय ढंग से तीव्रतापूर्वक परीक्षण करने में सक्षम है। मई 1998 में सम्पन्न परमाणु परीक्षणों के बाद वहाँ से एकत्र जानकारा द्वारा परमाणु हथियारों का डिजाइन बनाने में भी सफलता प्राप्त हुई है। इस प्रकार यह कम्प्यूटर 21वां सदी में हमें विकास के शिखर तक पहुंचाने में अवश्य सहायता करेगा। अमरेका ऊर्जा विभाग ने प्रति सेकण्ड सात सौ खरब अंकों की गणना करने की क्षमता वाले सुपर कम्प्यूटर बनाने का दावा 2005 में किया। इसकी गति 70.72 टेराफ्लॉप है। इससे पहले जापान का अर्थ सिमुलेटर था, जिसकी गति 35.86 टेराफ्लॉप है। इन अति तीव्र गति वाले कम्प्यूटरों से भी हम लाभान्वित हो सकते हैं। ।

 

मिनी कम्प्यूटर-  डेस्क पर रखा वजनी मोनीटर, की-डिस्क और सी.डी. रोम सडक पर चलते समय प्रयोग में नहीं लाया जा सकता है अत: इस कमी को पूरा करने के लिए अब अति लघु आकार के कम्प्यूटर बनाए गए हैं। इनके तीन रूप उपलब्ध हैं-

1. सब नोट बुक,

2. मिनी नोट बुक,

3. पर्सनल डीजिटल असिस्टेंट।

 

इस समय सबसे छोटा कम्प्यूटर ‘सब नोटबुक‘ श्रेणी का है। इसका की-बोर्ड मॉनीटर के साथ ही जुड़ा होता है। इस तरह के कम्प्यूटर में बाहर से  फ्लॉपी डिस्क लगाने की व्यवस्था भी होती है। उपर्युक्त तीनों तरह के कम्प्यूटर में हिसाब-किताब, मित्रों व रिश्तेदारों के पते, जन्मदिन, विवाह की वर्षगाँठ आदि की तिथियाँ, आवश्यक सन्देश आदि एकत्रित करके रखे जा सकते हैं।

 

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कम्प्यूटर संग्रहालय (कम्प्यूटेरियम)- कर्नाटक सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने बच्चों के लिए ‘कम्प्यूटेरियम’ नामक कम्प्यूटर संग्रहालय स्थापित किया है। यह बच्चों को कम्प्यूटर की शिक्षा देने वाला पहला संग्रहालय है। कम्प्यूटेरियम में बच्चों को सूचना प्रौद्योगिकी और संचार के क्षेत्रों में सभी सम्भावनाओं का प्रयोग और अनुभव करने की अनुमति दी जाती है। इसका कार्य निदेशक सुगंधा एस. राज के निर्देशन में जारी किया गया था। सन् 2000 से यह संग्रहालय अपना कार्य भलीभाँति करने लग गया।

 

कम्प्यूटरीकृत पुस्तकें- सूचना वैज्ञानिक लेनकास्टन ने 21वीं शती में कागज रहित समाज की कल्पना के साथ-साथ पुराने परम्परागत पुस्तकों के स्थान पर डिजीटल इलेक्ट्रानिक पुस्तकालयों का भविष्यवाणी गत कुछ वर्षों में की थी, वह सत्य होती जा रही है। पुस्तकों के पृष्ठ अब कम्प्यूटर की फ्लॉपी व सीडी डिस्क, माइक्रोफिल्म, माइक्रोफिश, मैगनेटिक टेप आदि में सिमटने लगे हैं एवं पुस्तकालयों ने मोटी-मोटी भारी-भरकम पुस्तकों के स्थान पर छोटी-छोटी डिस्कें खरीदना आरम्भ कर दिया है।

 

कम्प्यूटर द्वारा मूल्यांकन- वर्तमान में कम्प्यूटर पर मूल्यांकन करने के नवीन तरीकों का प्रयोग भी किया जा रहा है जैसे

(1) कम्प्यूटर एडेड पेपरलेस एग्जामिनेशन (सी.ए.पी.ई.एस.)।

(2) ऑप्टीकल मार्क रीडिंग (ओ.एम.आर.) स्केनर

 

(1) कम्प्यूटर एडेड पेपरलेस एग्जामिनेशन (सी.ए.पी.ई.एस.)

नेशनल इन्फॉर्मेटिक्स सेंटर ने अपनी कागज रहित परीक्षा पद्धति को पूर्णतया सुरक्षित बताया है। इसमें कम्प्यूटर के माउस और की-बोर्ड ने क्रमश: पैन व कागज का स्थान ले लिया है। सेन्टर ने जुलाई 1997 में ही कुछ सरकारी पदों के लिए ली जाने वाली चयन परीक्षा में इसका प्रयोग किया और यह सफल भी रहा।

इसके लिए सेंटर ने एक नए प्रकार का की-बोर्ड विकसित किया है, इस ‘की-बोर्ड’ में उत्तर देने के लिए ‘न्यूमेरिक की’ तथा ‘चार फंक्शनल की’ हैं। ‘न्यूमेरिक की’ प्रश्नों का उत्तर देने का कार्य करती है जबकि ‘फंक्शनल की’ से परीक्षार्थी प्रश्न देख सकते हैं। एवं अन्य निर्देश दे सकते हैं।

यदि इस पद्धति से परीक्षा देते समय परीक्षार्थी एक-दूसरे के बिल्कुल पास बैठे हों या एक दूसरे के कम्प्यूटरों की स्क्रीन पर देखें तो भी वे नकल नहीं कर सकते। उन्हें अपनेअपने कम्प्यूटर में प्रश्नों का अलग-अलग सेंट दिया जाता है।

 

(2) ऑप्टीकल मार्क रीडिंग (ओ.एम.आर.) स्केनर

अधिकांश प्रतियोगी परीक्षाओं व सामान्य परीक्षाओं में पूछे जाने वाले बहुवैकल्पिक प्रश्नों की लाखों उत्तरपुस्तिकाओं का कम समय में सही मूल्यांकन करवाने हेतु कम्प्यूटर में ‘ऑप्टीकल मार्क रीडिंग’ का प्रयोग किया जाता है। इसके लिए ऑप्टिकल मार्क रीडर नामक यंत्र काम में लिए जाते हैं, जिनमें पैन अथवा पेंसिल के कागज पर बने चिह्नों को तेज गति से सूक्ष्म परीक्षण करके (स्केन करके) कम्प्यूटर तक सही सूचना पहुंचाने की क्षमता होती है। यह तकनीक उन संस्थानों व कार्यों के लिए अत्यधिक उपयोगी है, जहाँ बड़ा सख्या में डाटा की जाँच करके सूचनाएँ सम्प्रषित करनी होती है, जैस-विश्वविद्यालयो, परीक्षा बोर्ड, जनगणना एवं चुनाव आदि की प्रक्रिया में।

इस यंत्र द्वारा एक घण्टे में अनेक कागजों की स्केनिंग की जा सकती है। भारत में तमिलनाडु लोक सेवा आयोग, मेडिकल विश्वविद्यालय, पूना विश्वविद्यालय आदि कई विश्वविद्यालयों में यह यन्त्र बखूबी कार्य कर रहा है।

 

 

इलेक्ट्रॉनिक मेल

आधुनिकीकरण के परिणामस्वरूप दूरसंचार सूचना क्रान्ति आकाशवाणी, दूरदर्शन, टेलीफोन, तार, पेजिंग, सेल्यूलर मोबाइल, फैक्स आदि मागों से गुजरती हुई उच्च तकनीकी युगम प्रवेश कर गई हैं। इस प्रणाली में संसार के लाखों कम्प्यूटर करोड़ों लोगों के विचार व एकत्र की गई सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं।

जर्मनी व अमरीकी एयर प्लेन राकवेल कॉलिन्स के बीच 1999 में एक समझौता हुआ, जिसके तहत अब विमान यात्रा के दौरान ई.मेल से सन्देश धरती पर भी भेजे जा सकते है। इसका प्रारम्भ विमान चालकों के लिए किया गया था, अब यह सेवा विमान यात्रियों के लिए भी उपलब्ध है।

ब्रिटिश टेलीकॉम ने ई-मेल के लिए एक विशेष पैन ‘स्मार्टकिल्ट’ तैयार किया यह उपकरण लेखक के हाथ की हलचल को ए.एस.सी. II करेक्टर्स में परिवर्तित कर देता है। इसमें लिखी गई बात को पढ़ने के लिए स्क्रीन भी है। सामान्य पेन से चार गुना भारी यह उपकरण सेल्यूलर फोन अथवा मोडम से जुड़ सकता है।

हिन्दी में ‘ई-मेल’ करने की सुविधा हेतु ‘वैव दुनिया’ पोर्टल वैबसाइट का उद्घाटन 23 अक्टूबर, 1999 को राजस्थान की राजधानी जयपुर में किया गया। इसका मख्य उद्देश्य विश्व के हिन्दी व अन्य भारतीय भाषा-भाषी लोगों को इन्टरनेट से जोड़ना है और इन्टरनेट पर हिन्दी के उपयोग को बढ़ावा देना है। ‘ई-मेल’ का हिन्दी रूप ‘ई-पत्र’ है जिस पर हिन्दी में संदेश भेजे जाते हैं। ‘चैट’ को ‘ई-वार्ता’ का नाम दिया गया है। हिन्दी वैब दुनिया की भाँति गुजराती, मराठी, पंजाबी, तमिल, कन्नड़ सहित सभी भाषाओं की वैब दुनिया के प्रयास जारी हैं।

ई-मेल में एक क्षण में एक ही नहीं सैकड़ों हजारों संदेश भेजे जा सकते हैं और एक संदेश में शब्दों की कोई सीमा नहीं है। चित्र भी भजे जा सकते हैं। इस समय इन्टरनेट का सर्वाधिक प्रयोग ई-मेल के रूप में ही हो रहा है। यह तन्त्र सामाजिक सम्बन्धों का वाहक बन गया है।

ई-अधिगम (E-Learning)- शिक्षा के क्षेत्र में अधुनिकतम विद्युतीय उपकरणों (Electronic Equipments) के प्रयोग द्वारा छात्रों के व्यवहार में परिवर्तन लाना ही ‘ई अधिगम’ है। इसका विस्तृत वर्णन प्रस्तुत हैं

इन्टरनेट- सूचना क्रान्ति के युग में इन्टरनेट ने विशेष हलचल मचा दी। इन्टरनेट क्या है- इसका परिभाषित करना ब्रह्माण्ड को शब्दों में बाँधने जैसा है। इन्टरनेट का अर्थ है-‘ए विण्डो टू ग्लोबल इन्टरनेशनल सुपर हाइवे’, यह कई छोटे कम्प्यूटर नेटवर्कों से मिलकर बना विश्वव्यापी कम्प्यूटरों का विशालकाय जाल है, जिसके माध्यम से इसके सदस्य कम्प्यूटर आपस में एक-दूसरे से बात कर सकते हैं। ।

 

 

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