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रॉबर्ट मेगर द्वारा ज्ञानात्मक उद्देश्य और भावात्मक उद्देश्य | Affective and Cognitive Objectives by Robert Mager

सीखने के उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखना ( Writing Learning Objectives in Behavioral Terms)

उद्देश्यों के निर्धारण के बाद उनका सुव्यवस्थित रूप से लेखन भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य है। उद्देश्यों के लेखन में जितनी स्पष्टता, क्रमबद्धता, व्यापकता तथा निश्चितता होगी, उतना ही उद्देश्यों को प्राप्त करना सहज एवं सरल होगा। इसके लिए शिक्षक को शिक्षण उद्देश्यों के विषय में सरल भाषा में यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि उन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए विकास सम्बन्धी कौन-कौन से क्षेत्रों में विद्यार्थियों के अन्दर कौन-कौन से परिवर्तन करने हैं, जिससे सभी प्रकार की अनिश्चिततायें तथा अस्पष्टतायें दूर हो जायें तथा निष्पत्ति का मापन सम्भव हो सके। सीखने के उद्देश्यों के लेखन के समय निम्नलिखित तथ्यों का ध्यान रखना चाहिये :

  1. सीखने के उद्देश्यों को व्यवहारगत परिवर्तन के संदर्भ में लिखा जाना चाहिये।
  2. उद्देश्यों को अधिगम से सम्बन्धित करके लिखा जाना चाहिये।
  3. उद्देश्य परिवर्तनशील होने चाहियें।
  4. उद्देश्य छात्र के स्तर से जुड़े होने चाहिये।
  5. उद्देश्य प्राप्त करने के लिए विषय पर अधिकार होना चाहिये।
  6. प्रत्येक उद्देश्य से केवल एक ही सीखने के अनुभव की उपलब्धि सम्भव होनी चाहिये।
  7. उद्देश्य व्यापक तथा विश्लेषणात्मक होने चाहिये।
  8. उद्देश्य इतने स्पष्ट होने चाहियें, जिससे उनका मूल्यांकन सुविधापूर्वक सम्भव हो सके।
  9. उद्देश्य लेखन में सम्बन्धित उद्देश्य के विशिष्टिकरण (Specification) भी दिये जाने चाहिये।
  10. उद्देश्य निर्धारण में ज्ञान की अपेक्षा व्यवहारगत परिवर्तनों को महत्त्व दिया जाना चाहिये।
  11. उद्देश्य सामान्य तथा विशिष्ट दोनों रूपों में स्पष्ट रूप से अलग-अलग लिखे जाने चाहियें।

 

उद्देश्यों का व्यावहारिक शब्दावली में लिखने की आवश्यकता (Need for Writing Objectives in Behavioural Terms) :

  1. इनसे शिक्षण क्रियायें सुनिश्चित तथा सीमित करने में सहायता मिलती है।
  2. इन उद्देश्यों की सहायता से अधिगम के अनुभवों की विशेषताओं को निर्धारित किया जा सकता है तथा इनसे उनका मापन भी सम्भव होता है।
  3. छात्र व शिक्षक दोनों ही विभिन्न प्रकार के व्यवहारों में अन्तर कर लेते हैं जिससे शिक्षक को शिक्षण व्यूहरचना (Teaching Strategy) के चयन में सहायता मिलती है।
  4. सामान्य तथा विशिष्ट रूप में उद्देश्यों के द्वारा सारांश प्रस्तुत किया जा सकता है, जो शिक्षण तथा अधिगम का आधार बनता है।
  5. स्केफोर्ड ने उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखने से शिक्षक को मिलने वाली सहायता इस प्रकार बतायी है :
  • (क) उद्देश्यों के विस्तार में,
  • (ख) परीक्षण प्रश्नों के चयन में,
  • (ग) शिक्षण तथा अधिगम में सन्तुलन बनाये रखने में,
  • (घ) सभी पक्षों से सम्बन्धित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए,
  • (द) परीक्षा की व्यवस्था करने में,
  • (ङ) शिक्षण युक्तियों, व्यूहरचना तथा दृश्य-श्रव्य सामग्री के चयन में।

 

शिक्षण उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखने की विधियाँ :

सीखने के उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखने का प्रयास समय-समय पर अनेक शिक्षाविदों तथा मनोवैज्ञानिकों द्वारा किया गया। इनमें बी.एस.ब्लूम, रॉबर्ट मेगर, रॉबर्ट मिलर के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं । भारतीय परिस्थितियों में क्षेत्रीय शिक्षा महाविद्यालय,मैसूर ने भी शिक्षण उद्देश्यों की व्यावहारिक रूपरेखा प्रस्तुत की है :

(अ) बी. एस. ब्लूम विधि :

ब्लूम और उनके सहयोगियों ने शैक्षिक लक्ष्यों के निर्धारण की दिशा में अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किये। ब्लूम ने स्पष्ट किया, कि मूल्यांकन की दृष्टि से निष्पत्ति परीक्षाओं के निर्माण में विषयवस्तु के स्थान पर उसके विभिन्न शैक्षिक उद्देश्यों का मापन एवं मूल्यांकन होना चाहिए। उन्होंने निष्पत्ति परीक्षा को विषयवस्तु केन्द्रित बनाने के बजाय उद्देश्य केन्द्रित बनाने पर बल दिया तथा प्रत्येक प्रश्न को किसी न किसी शैक्षिक उद्देश्य के मूल्यांकन के लिए निर्माण करने पर बल दिया। इसके लिए उन्होंने शिक्षण उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखने का प्रयास किया। ब्लूम ने सम्पूर्ण शिक्षण उद्देश्यों को तीन मुख्य भागों में विभक्त किया, जैसे :

  1. ज्ञानात्मक उद्देश्य (Cognitive objectives),
  2. प्रभावात्मक उद्देश्य (Affective objectives); एवं
  3. मनोगत्यात्मक उद्देश्य अथवा क्रियात्मक उद्देश्य (Psychomotor objectives).

ब्लूम ने उपर्युक्त उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में जिस प्रकार प्रस्तुत किया, उससे सम्बन्धित सारणियाँ इसी पाठ के आगे के पृष्ठों में दी गई हैं, जहाँ पर ज्ञानात्मक उद्देश्य आदि का अलग-अलग वर्णन है।

 

(ब) रॉबर्ट मेगर विधि :

रॉबर्ट मेगर (1962) ने अभिक्रमित अनुदेशन के क्षेत्र में उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखने पर विशेष बल दिया। उन्होंने शैक्षिक उद्देश्यों-ज्ञानात्मक एवं भावात्मक; को व्यावहारिक रूप में लिखने में अधिक रुचि ली तथा उनके लेखन की विधि का विकास किया। लेखन विधि में मेगर ने बी. एस. ब्लूम के वर्गीकरण को आधार मानकर प्रत्येक वर्ग के लिए उसके उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखने के लिए कार्यसूचक क्रियाओं (Action Verbs) की सूची तैयार की तथा इन सूचियों के आधार पर शैक्षिक उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप प्रदान किया गया।

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रॉबर्ट मेगर ने उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखने हेतु मुख्यतः तीन बिन्दुओं को आधार बताया :

(i) अन्तिम व्यवहारों को पहचानना तथा निर्धारित करना-उद्देश्यों को इस प्रकार लिखा जाना चाहिए, जिससे यह पूर्णतः स्पष्ट हो कि छात्रों में शिक्षण के उपरान्त किन व्यवहारों में परिवर्तन हो सकेगा, क्योंकि मानसिक परिवर्तनों को बालक के व्यवहार में ही देखा जा सकता है। ये परिवर्तन शाब्दिक तथा अशाब्दिक दोनों प्रकार के हो सकते हैं। शिक्षक को इन परिवर्तनों की पहचान करनी चाहिए तथा उनका पूर्वनिर्धारण कर लेना चाहिए।

(ii) अपेक्षित व्यवहारों को पारिभाषित करना-उद्देश्यों को लिखते समय उन परिस्थितियों तथा सीमाओं का वर्णन भी किया जाना चाहिए जो उस विशिष्ट व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए आवश्यक है तथा अपेक्षित व्यवहारों को स्पष्ट रूप से इस प्रकार पारिभाषित करना चाहिए जिससे शिक्षक को व्यवहारों में परिवर्तन करने में सहायता मिले।

(iii) निष्पत्ति परीक्षा के लिए मानदण्ड का विशिष्टिकरण-उद्देश्यों को किस सीमा तक सफलतापूर्वक शिक्षण द्वारा प्राप्त किया गया है, इसके लिए इन पर आधारित निष्पत्ति परीक्षा ली जाती है। इसमें न्यूनतम व्यवहार, जो विद्यार्थी शिक्षणोपरान्त प्रदर्शित कर पायेगा,उसको इस रूप में लिखा जाता है, जिससे उनका मापन सम्भव हो सके। मेगर के अनुसार, किसी भी शैक्षिक उद्देश्य को व्यावहारिक रूप में लिखने के लिए उपर्युक्त तीनों बिन्दुओं का होना आवश्यक है, तभी हम शैक्षिक उद्देश्य के व्यावहारिक निर्धारण में सफल होंगे।

मेगर ने उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखने के लिए ब्लूम की टैक्सोनोमी को ही आधार माना है। उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखने की मेगर की योजना में ‘कार्यसूचक क्रियाओं (Action Verbs) की सहायता ली गई है। ब्लूम के प्रत्येक उद्देश्य के लिए ‘कार्यसूचक क्रियाओं की सूची तैयार की गई है। शिक्षक इस सूची में से कार्यसूचक क्रियाओं का चयन करके उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखता है। एक ही उद्देश्य के लिए अनेक कार्यसूचक क्रियाएँ बताई गई हैं जिनका पूर्ण विवरण निम्नांकित सारिणी में प्रस्तुत किया जा रहा है :

रॉबर्ट मेगर द्वारा ज्ञानात्मक उद्देश्यों के लिए ‘कार्यसूचक क्रियाओं’ की सूची (A List of Action Verbs of Cognitive Objectives by Robert Mager)

 

रॉबर्ट मेगर द्वारा ज्ञानात्मक उद्देश्यों के लिए 'कार्यसूचक क्रियाओं' की सूची

रॉबर्ट मेगर द्वारा ज्ञानात्मक उद्देश्यों के लिए 'कार्यसूचक क्रियाओं' की सूची

 

रॉबर्ट मेगर ने भावात्मक उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखने के लिए श्री ब्लूम (Bloom) के उद्देश्यों के लिए कार्यसूचक क्रियाओं की सूची दी है जो कि निम्नलिखित है :

रॉबर्ट मेगर द्वारा भावात्मक उद्देश्यों के लिए कार्यसूचक क्रियाओं की सूची (List of Action Verbs of Affective Objectives by Robert Mager)

रॉबर्ट मेगर द्वारा भावात्मक उद्देश्यों के लिए कार्यसूचक क्रियाओं की सूची

रॉबर्ट मेगर द्वारा भावात्मक उद्देश्यों के लिए कार्यसूचक क्रियाओं की सूची

रॉबर्ट मेगर की विधि की सीमायें :

(1) रॉबर्ट मेगर व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक हैं, इस कारण उन्होंने अधिगम को उद्दीपन तथा अनुक्रिया के रूप में अभिव्यक्त किया है, किन्तु सम्पूर्ण अधिगम प्रक्रिया को उद्दीपन अनुक्रिया की सीमा में व्यक्त नहीं किया जा सकता।

(2) मेगर ने क्रियात्मक अथवा मनोगत्यात्मक उद्देश्य को व्यावहारिक रूप में किस प्रकार लिखा जाये इसका अपनी विधि में उल्लेख नहीं किया है।

(3) उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखने के लिए मेगर द्वारा प्रस्तावित विभिन्न कार्यसूचक क्रियाओं को ज्ञानात्मक तथा भावात्मक दोनों ही उद्देश्यों में सम्मिलित किया गया है। यह गलत है,क्योंकि इससे शंका की स्थिति पैदा होती है,जबकि उद्देश्यों का व्यावहारिक रूप अधिक स्पष्ट होना चाहिए।

(4) मेगर की व्यावहारिक रूप में लिखने की विधि में मानसिक प्रक्रियाओं की पूर्णरूप से।

(5) मेगर विधि का प्रयोग विशेषतः अभिक्रमित-अधिगम के लिए अधिक उपयोगी होता है। इसमें उच्च उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखने की मानसिक क्रियाओं को ध्यान में रखा जाता है, जैसे, विश्लेषण तथा संश्लेषण ।

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(स) रॉबर्ट मिलर विधि :

डॉ.रॉबर्ट बी. मिलर ने सन् 1962 में सैन्य अनुदेशन के लिए शिक्षण उद्देश्यों को व्यवहार रूप में लिखने के लिए प्रयास किया। इन्होंने ज्ञानात्मक तथा भावात्मक उद्देश्यों के स्थान पर क्रियात्मक अथवा मनोगत्यात्मक उद्देश्य को व्यवहार रूप में लिखने का प्रयास किया क्योंकि मिलर विधि का विकास एयरफोर्स ट्रेनिंग के अनुसंधान के दौरान हुआ और सामान्य स्कूल के लिए उपयोग नहीं हुआ। यह विधि, मेगर विधि की तुलना में कुछ कठिन है । मिलर के अनुसार क्रियात्मक उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखने के लिए निम्नलिखित बिन्दुओं का अनुसरण करना चाहिए :

(1) शिक्षक को सर्वप्रथम संकेतक अथवा उद्दीपक का वर्णन करना चाहिए जिससे अनुक्रिया हो सके,

(2) इसके पश्चात् शिक्षक को उस नियन्त्रण वस्तु का वर्णन करना चाहिए जिसको सक्रिय बनाना है,

(3) इसके बाद अनुक्रिया को लिखा जाना चाहिए, एवं

(4) अन्त में पृष्ठपोषण को स्थान देना चाहिए अर्थात् अनुक्रिया कहाँ तक उचित है ? यह लिखा जाना चाहिए।

उपर्युक्त प्रक्रिया को देखने से स्पष्ट होता है कि मेंगर एवं मिलर को व्यावहारिक रूप में लिखने की विधि में मात्र शब्दों का अन्तर है, जैसे :

मेगर एवं मिलर के उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप

डॉ. आर. एफ. मेगर ने ज्ञानात्मक तथा भावात्मक उद्देश्यों को तथा डॉ. आर. बी. मिलर ने क्रियात्मक उद्देश्यों को लिखने की विधि बताई । छात्राध्यापकों को उक्त दोनों विधियों को ध्यान में रखते हुए सीखने के उद्देश्यों को सरल तथा स्पष्ट भाषा में लिखना चाहिए, ताकि वे शिक्षण के अगले सोपानों की ओर बढ़ते हुए अपने निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त कर सकें।

(द) क्षेत्रीय शिक्षा-महाविद्यालय, मैसर की विधि (The R.C.E.M. System) :

राबर्ट मेगर एवं मिलर की विधियों की सीमाओं को देखते हुए क्षेत्रीय शिक्षा महाविद्यालय मेसर द्वारा एक नवीन विधि का विकास किया गया जिसे आर.सा.इएम.प्रणाली अथवा विधि के नाम से जाना जाता है। मेगर विधि में उत्पादन को अधिक महत्त्व दिया जाता है, जबकि मेसर विधि में प्रक्रिया को अधिक महत्त्व दिया जाता है । मेगर विाया

मेगर विधि अधिगम में मात्र उद्दापक एवं अनुक्रियाओं को ही महत्त्व दिया गया है जबकि मैसूर विधि में उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखने के लिए मानसिक क्रियाओं को भी प्रयुक्त किया गया है। मैसूर विधि में भी ब्लूम की टैक्सोनॉमी को आधार माना गया है। ब्लम ने ज्ञानात्मक उद्देश्यों को छ: वों में बाँटा है, लेकिन मैसर विधि में जानात्मक उद्देश्यों को चार वर्गों में ही बॉटा गया है। ब्लूम के अंतिम तीन उद्देश्य-विश्लेषण संश्लेषण तथा मल्यांकन: को इस विधि में सृजनात्मकता का नाम दिया गया है। इन चारों उद्देश्यों के पीछे निहित मानसिक क्रियाओं को 17 भागों में बाटा गया है। इन्हीं मानसिक क्रियाओं का ज्ञानात्मक भावात्मक तथा क्रियात्मक उद्देश्यों को लिखने में प्रयोग किया जाता है।

मेटफिसल, माइकल व क्रिशनर द्वारा प्रदत्त सारणी अधोलिखित है :

 

सारणी -1

शैक्षिक उद्देश्यों के वर्गीकरण का उपकरण (ज्ञानात्मक क्षेत्र)

शैक्षिक उद्देश्यों के वर्गीकरण का उपकरण (ज्ञानात्मक क्षेत्र)

शैक्षिक उद्देश्यों के वर्गीकरण का उपकरण (ज्ञानात्मक क्षेत्र)

 

शैक्षिक उद्देश्यों के वर्गीकरण का उपकरण (ज्ञानात्मक क्षेत्र)

शैक्षिक उद्देश्यों के वर्गीकरण का उपकरण (भावात्मक क्षेत्र)

 

उपर्युक्त सारणी के दूसरे काॅलम में दिये गये बिन्दुओं के उद्देश्यों को व्यावहारि रूप में लिखने में प्रयुक्त किया जा सकता है। यह सारणी ज्ञानात्मक क्षेत्र से सम्बन्धित है। इसी प्रकार भावात्मक क्षेत्र से सम्बन्धित सारणी मैटफेसल, माइकल तथा क्रिशनर द्वारा प्रस्तुत गई है जो निम्नवत् हैः

 

सारणी-2

शैक्षिक उद्देश्यों के वर्गीकरण का उपकरण(भावात्मक क्षेत्र)

शैक्षिक उद्देश्यों के वर्गीकरण का उपकरण(भावात्मक क्षेत्र)

शैक्षिक उद्देश्यों के वर्गीकरण का उपकरण(भावात्मक क्षेत्र)

शैक्षिक उद्देश्यों के वर्गीकरण का उपकरण(भावात्मक क्षेत्र)

 

सारणी-3

शैक्षिक उद्देश्यों का मनोगत्यात्मक या क्रियात्मक क्षेत्रः

यह क्षेत्र छात्रों की गामक क्रियाओं अथवा शारीरिक क्रियाओं पर अधिक बल देता है। इससे समबन्धित किवलर बार्कर व माइल्स ने बाल विकास की क्रमिक घटनाओं को लेकर गामक व्यवहारों का वर्णन किया है जो निम्नलिखित सारणी में प्रस्तुत हैः

शैक्षिक उद्देश्यों का मनोगत्यात्मक या क्रियात्मक क्षेत्रः

शैक्षिक उद्देश्यों का मनोगत्यात्मक या क्रियात्मक क्षेत्रः

शैक्षिक उद्देश्यों का मनोगत्यात्मक या क्रियात्मक क्षेत्रः

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