इमान्युएल काण्ट के अनुसार बुद्धि परीक्षा, प्रत्यय, पदार्थ

इमान्युएल काण्ट के अनुसार बुद्धि परीक्षा, प्रत्यय, पदार्थ | Immanuel Kant’s test of intelligence

बुद्धि-परीक्षा (Transcendental Logic)

संवेदन परीक्षा में हमने संवेदन ग्राहिता पर विचार किया है। संवेदनाएँ तो यथार्थ ज्ञान के उपकरण या सामग्री हैं। संवेदनाएँ अस्त-व्यस्त तथा अव्यवस्थित रहती हैं। इन्हें क्रमबद्ध तथा व्यवस्थित बनाना तो बुद्धि का कार्य है। बुद्धि इन्हें सामान्य या प्रत्ययात्मक स्वरूप प्रदान करती है। तात्पर्य यह है कि संवेदनाएँ बुद्धि के नियमों के अनुकूल होकर ही बुद्धि या ज्ञान का विषय बनती है। बौद्धिक विषय या बलि विषय, काण्ट के अनुसार प्रत्यय (Concept) है। अतः बुद्धि-परीक्षा में काण्ट प्रत्ययों पर विचार करते है। इन प्रत्ययों पर हम आगे विचार करेंगे। इमान्युएल काण्ट इन प्रत्ययों (Concepts) को संवेदन शक्ति (Sensibility) के समान ही महत्वपूर्ण बतलाते है।

संवेदन-शक्ति तो संवेदनाओं के प्रवेश द्वार हैं। इनसे संवेदना-रश्मि मन में आती है। आते ही इन पर अनिवार्य और सार्वभौम (देश-काल) का आवरण चर जाना परन्त ये अलग-अलग रहती हैं। इन्हें एक साथ जोड़ना, द्रव्य, गुण, कर्म आदि की। संज्ञा प्रदान करना, कार्य कारण-सूत्र में बाँधना आदि सभी बौद्धिक-कार्य है। इनक सम्मिलित नाम मानसिक प्रत्यय (Concept) है। ये सभी बौद्धिक-कार्य या व्यापार संवेदनाओं के लिये आवश्यक हैं। इन प्रत्यययों के बिना संवेदनाएँ अन्धी है तथा प्रत्यय (मानसिक क्रियायें) संवेदनाओं के बिना प्रत्यय रिक्त है। संवेदन-शक्ति सोच-विचार (मानसिक व्यापार) नहीं कर सकती तथा प्रत्यय संवेदनाओं को ग्रहण नहीं कर सकते।

संवेदनाओं का ग्रहण तो संवेदन शक्ति (देश और काल के माध्यम से ही होगा। परन्तु जैसे ही संवेदनाएँ प्राप्त होंगी, बौद्धिक कार्य या प्रत्ययीकरण प्रारम्भ हो जाएगा। वस्तुत: संवेदनाओ को ग्रहण करना तथा उन्हें संयोजन, नियमन आदि करना दोनों ही बौद्धिक-कार्य हैं। बुद्धि के बिना तो इनमें कोई कार्य नहीं हो सकता। बुद्धि निष्क्रिय (Passive) और सक्रिय (Active) दोनों है। संवेदनाओं को देश और काल के माध्यम से ग्रहण करने में बुद्धि निष्क्रिय रहती है, केवल संवेदनाओं को ज्यों का त्यों ग्रहण करती जाती है। परन्तु ग्रहण करने के बाद इन्हें बुद्धि अपने नियमों के अनुकूल बनाती है। यह बुद्धि का सक्रिय स्वरूप है।

बुद्धि परीक्षा में हम बुद्धि के सक्रिय स्वरूप (Concepts) पर ही विचार करते है। बुद्धि का सक्रिय स्वरूप संवेदनाओं का प्रत्ययीकरण है। अतः इस भाग में हम प्रत्ययों पर विचार करते हैं। आगे हम देखेंगे कि प्रत्यय का सम्बन्ध पदार्थों (Categories) से है। तथा पदार्थों का सम्बन्ध परामर्शों (Judgements) से है। इस प्रकार पदार्थ और परामर्श दोनों बुद्धि परीक्षा के अंग हैं। पदार्थ १२ माने गये हैं, परामर्श भी १२ हैं। अतः पदार्थ और परामर्श में बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध है। इमान्युएल काण्ट के अनुसार जितने प्रकार के परामर्श हैं, उतने ही प्रकार के पदार्थ हैं। इस प्रकार बुद्धि परीक्षा में काण्ट प्रत्यय (Concept), पदार्थ (Category) और परामर्श (Judgement) पर विचार करते हैं।

प्रत्यय-परीक्षा(Transcendental Logic)

प्रत्ययों के कारण ही संवेदनाओं में व्यवस्था तथा क्रम आता है। (इसमें भौतिक शास्त्र के निर्णय को यथार्थ ज्ञान माना गया है)

1. पदार्थ परीक्षा(Transcendental Analytic) –

प्रत्योयों का सम्बन्ध पदार्थों से है। यह अनुभवेतर विषयों की परीक्षा है बौद्धिक प्रत्यय के द्वारा हम संवेदनाओं अनुभवेतर अतीन्द्रिय विषय है जो को पदार्थ का रूप देते हैं। किसी संवेदना यथार्थ ज्ञान के बाहर है। तत्त्व मीमांसा को द्रव्य, कार्य-कारण, भाव आदि का रूप देना ही पदार्थ है। पदार्थ 12 प्रकार के परामर्शों में अभिव्यक्त होते हैं। अतः पदार्थ परामर्श भी शक्ति से सम्पन्न हैं।

1.1 – पदार्थों की तात्विक उत्पत्ति (MetaPhysical deduction of categories)

1.2- आकार योजना (Schematisation) आकार योजना से सम्बद्ध होकर ही पदार्थ साकार (Schematised category) कहलाते हैं।

2. प्रज्ञा परीक्षा (Transcendental dialectic)

यह अनुभवेतर विषयो की परीक्षा है अनुभवेतर अतीन्द्रिय विषय है जो यथार्थ ज्ञान के बाहर है। तत्व मीमांसा के विषय (आत्मा, परमात्मा) अतीन्द्रिय देना ही पदार्थ है। इनका यथार्थ ज्ञान सम्भव नहीं। अतः इन पर विचार करने से अनुभावतीत भ्रम (Transcendental illusion) होता है।

 

 

इमान्युएल काण्ट के अनुसार प्रत्यय(Concept)

प्रत्ययों के सम्बन्ध में दो महत्वपूर्ण प्रश्न हैं कि प्रत्यय क्या हैं, इनका स्वरूप या कार्य क्या है? प्रत्ययों पर पूर्ण विचार इमान्युएल काण्ट ने प्रत्यय परीक्षा (Transcendental Analytic) में किया है। जिस प्रकार संवेदन परीक्षा (Transcendental Aesthetic) में इमान्युएल काण्ट ने बतलाया है कि संश्लेषणात्मक प्रागनुभविक निर्णय (Synthetic Judgement, Apriori) गणित में सम्भव है क्योंकि गणित के निष्कर्ष प्रागनुभविक अनुभवनिस्पक्ष या सार्वभौम और अनिवार्य होते हैं तथा संश्लेषणात्मक (प्रत्यय) होते है। प्रत्यय परीक्षा में इमान्युएल काण्ट सिद्ध करते हैं कि संश्लेषणात्मक प्रागनुभविक निर्णय भौतिक विज्ञान में प्राप्त होते हैं, अतः भौतिक विज्ञान (Physics) में भी वैज्ञानिक या यथार्थ ज्ञान सम्भव है। भौतिक विज्ञान कार्य-कारण नियम, गुरुत्वाकर्षण नियम, पदार्थों का स्वरूप, गुण आदि विषयों पर प्रकाश डालता है। संक्षेप में, पदार्थ तथा पदार्थ के धर्म ही भौतिक विज्ञान के विषय हैं।

भौतिक विज्ञान के निष्कर्ष का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि ये सार्वभौम, अनिवार्य तथा संश्लेषणात्मक होते हैं। उदाहरणार्थ भौतिक पदार्थ के सभी परिवर्तनों में भौतिक पदार्थ का परिमाण स्थायी रहता है, यह भौतिक पदार्थ सम्बन्धी भौतिक विज्ञान का नियम है। यह नियम एक वाक्य है, यह वाक्य सार्वभौम तथा अनिवार्य है, अतः यह प्रागनुभविक (Apriori) है। पुनः यह वाक्य संश्लेषणात्मक है, क्योंकि इस वाक्य में स्थायी होना होना वाक्य का विधेय है। यह विधेय अपने उद्देश्य भौतिक पदार्थों के सम्बन्ध में एक नयी बात बतलाया है। अतः इस वाक्य में अनिवार्यता और नवीनता दोनों है। इसे एक उदाहरण के द्वारा हम स्पष्ट रूप से समझ सकते है।

सोना (स्वर्ण) एक भौतिक पदार्थ है। सोने को तपाकर विभिन्न आकृतियों (आभूषणों) का निर्माण किया जाता है, परन्तु सभी आकतियों में सोने का वजन एक ही रहता है। भौतिक विज्ञान का यह नियम तो सभी पदार्थों के स्वरूप के विषय में है। अत: यह नियम सार्वभौम और अनिवार्य है। साथ ही साथ यहाँ, इस सन्दर्भ (सोने) में यह नियम लागू है इस सन्दर्भ का अर्थ किसी विशेष उदाहरण (सोने) में है। यह विशेषता ही नवीनता का द्योतक है। अतः भौतिक विज्ञान में अनुभव निरपेक्ष (प्रागनुभविक) संश्लेषणात्मक निर्णय सम्भव है। यह कैसे? इस प्रश्न पर काण्ट प्रत्यय (Concept) और पदार्थ (Category) की परीक्षा करते हैं।

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बुद्धि के कार्यों या व्यापारों को काण्ट महोदय प्रत्यय की संज्ञा देते हैं। बुद्धि के कार्य या व्यापार संयोजन, वियोजन, वर्गीकरण, एकीकरण आदि हैं। ये सभी प्रत्ययात्मक है। उदाहरण के लिए हम किसी वस्तु की संवेदना प्राप्त कर रहे हैं। परन्तु संवेदनाओं को ग्रहण करना एक बात है और इनसे ज्ञान प्राप्त होना दूसरी बात है। पहली अवस्था में हमारी बुद्धि निष्क्रिय रहती है। हमारी बद्धि ज्यों का त्यों संवेदनाओं को ग्रहण कर लेती है। इसके बाद बद्धि संवेदनाओं पर विचार-विमर्श प्रारम्भ करती है। यह बुद्धि का सक्रिय स्वरूप है। इस अवस्था में बद्धि संवेदनाओं के द्रव्य, गुण, धर्म आदि पर विचार करती है। यही बौद्धिक व्यापार प्रत्यय (Concept) है। इन प्रत्ययों के कारण ही हम विभिन्न संवेदनाओं में एकता का अनुभव करते हैं।

अतः विभिन्न संवेदनाओं को बौद्धिक व्यापार के द्वारा द्रव्य गण, धर्म आदि से सम्बन्ध जोडने का नाम प्रत्यय है। यह बद्धि का कार्य है। इसी कारण काण्ट महोदय बतलाते हैं कि संवेदन-ग्राहिता (Sensibility) से हम विभिन्न संवेदनाओं को ग्रहण करते हैं। बुद्धि इन्हें एक सूत्र में बाँधती है। इन्हें एक सूत्र में बाँधे बिना हमें किसी एक वस्तु का ज्ञान नहीं होगा। अतः संवेदन-ग्राहक शक्ति तथा बौद्धिक व्यापार दोनों अलग-अलग है। पहले से संवेदनाओं (अनेकता) का ग्रहण होता है। दूसरे से संवेदनाओं पर विचार-विमर्श द्वारा उन्हें एक सूत्र में बाँधा जाता है। यही प्रत्यय है। से प्रत्यय बौद्धिक कार्य या व्यापार है। इन प्रत्ययों के कारण ही संवेदनाओं का संयोजन हो पाता है। इन प्रत्ययों के कारण ही हमे पदार्थ का बोध होता है।

इस विवरण से स्पष्ट है कि जिस प्रकार संवेदनाओं के बिना ज्ञान नहीं होता। उसी प्रकार प्रत्ययों के बिना भी ज्ञान नहीं हो पाता। संवेदनाओं का काण्ट प्रत्यक्ष (Percept) कहते है। इन प्रत्यक्षों (संवेदनाओं) के बिना ज्ञान की सामग्री या उपकरण ही नहीं प्राप्त होगा। अतः शुद्ध प्रत्यय प्रत्यक्षों के बिना तो खाली है (Concepts without percepts are empty)| इसी प्रकार केवल प्रत्यक्षों से ही ज्ञान नहीं होगा। संवेदनाओं के किसी वस्तु, द्रव्य, गुण आदि से सम्बद्ध करना आवश्यक है। यह तो बौद्धिक कार्य या प्रत्यय (Concept) है। अतः प्रत्यक्ष (संवेदना) प्रत्ययों के बिना अन्धा (Percepts without concepts are blind) है। वैज्ञानिक ज्ञान के लिये दोनों प्रत्यक्ष और प्रत्यय की आवश्यकता है। इनमें किसी के बिना यथार्थ ज्ञान नहीं हो सकता। अतः प्रत्यय भी प्रत्यक्ष के समान ही महत्वपूर्ण है।

एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि प्रत्ययों का स्वरूप क्या है तथा इस स्वरूप की प्राप्ति कैसे होती है? जिस प्रकार प्रत्यक्ष का स्वरूप प्रागनुभविक (Apriori) है उसी प्रकार प्रत्ययों का स्वरूप भी। तात्पर्य यह है कि प्रत्यय भी प्रागनुभविक (Apriori) है, अर्थात् प्रत्यय भी सार्वभौम और अनिवार्य है। प्रश्न यह है कि इनकी प्रागनुभविकता कहाँ से आती है। उत्तर यह है कि इनकी प्रागनुभविकता बुद्धि की देन है। इसे हम अनुभव से प्राप्त नहीं कर सकते। प्रत्ययों का सार्वभौम और अनिवार्य स्वरूप अवश्य ही अनुभव-निरपेक्ष होगा। इसे एक उदाहरण के द्वारा स्पष्ट समझ सकते हैं, हमें एक मेज का ज्ञान हो रहा है। इस मेज का कुछ रंग, वजन, विस्तार, अस्तित्व आदि है। इनमें रंग, वजन आदि का हमें प्रत्यक्ष हो रहा है, परन्तु अस्तित्व, इकाई आदि का ज्ञान तो प्रत्यय रूप ही इन प्रत्ययों के बिना हम मेज को नहीं जान सकते। अस्तित्व इकाई आदि तो बौद्धिक कार्य (प्रत्यय रूप) हैं। ये प्रत्यय सार्वभौम तथा अनिवार्य है। मेज के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं में भी इकाई, अस्तित्व आदि प्रत्यय लागू होते है। अत: मेज की इकाई, अस्तित्व, द्रव्यत्व आदि सभी सार्वभौम तथा अनिवार्य प्रत्यय है। सभी बुद्धि पर आश्रित है। बुद्धि में द्रव्यत्व, अस्तित्व, इकाई आदि के जन्मजात प्रत्यय है। इन प्रत्ययों को बुद्धि प्रत्यक्षों (संवेदनाओ) पर लागू करती है, तभी हमें किसी वस्तु का यथार्थ जान प्राप्त होता है।

मानसिक या बुद्धिगत प्रत्यय बाह्य विषयों पर लागू किये जाते हैं, परन्तु प्रत्ययों का अस्तित्व बुद्धि पर आश्रित है। अत: प्रत्ययात्मक बौद्धिक कार्य के बिना हमें बाह्य विषयों का बोध नहीं हो सकता।

बाह्य विषयों से हमें संवेदनाएँ (सामग्री) प्राप्त होती हैं परन्तु इन संवेदनाओं को बौद्धिक नियमों अनुकूल होना पड़ता है। यदि ये बौद्धिक नियमों के अनुकूल नहीं हों तो ये ज्ञेय (ज्ञान का विषय) नहीं बन पायेंगे। इसी आधार पर इमान्युएल काण्ट की प्रसिद्ध उक्ति है कि बुद्धि संवेदनाओं के उपादान से प्रकृति सम्बन्धी नियमों की स्थापना करती है, परन्तु ये उपादान बुद्धि की देन नहीं (Understanding makes nature out of materials does not make)| तात्पर्य यह है कि बुद्धि संवेदनाओं पर अपने नियमों को लागू कर क्षेत्र बना देती है, परन्तु संवेदनाओं को उत्पन्न नहीं करती। इस प्रकार बुद्धि निष्क्रिय और सक्रिय दोनों है|

संवेदनाओं को ग्रहण करने में निष्क्रिय तथा संवेदनाओं को ज्ञान का रूप देने में (ज्ञेय बनाने में) सक्रिय है। संवेदनाएँ तो प्रकृति प्रसूत या बाह्य विषयों से उत्पन्न होती हैं। इन्हें काण्ट प्रत्यक्ष (Percent) कहते हैं, परन्तु संवेदनाओं को संयोजित करना, व्यवस्थित या क्रमबद्ध बनाना बुद्धि का कार्य है। इसे प्रत्यय (Concept) कहा गया है। इसी से हमें किसी प्रत्यक्ष (संवेदना) के द्रव्य, गुण, कार्य-कारण, भाव आदि का पता लगता है। ये सभी प्रत्यय तो बौद्धिक हैं। इन बौद्धिक प्रत्ययों के बिना संवेदनाएँ अव्यवस्थित ज्ञान का विषय नहीं बन सकती। अतः जहाँ तक संवेदनाओं को ज्ञेय बनाने का प्रश्न है, बुद्धि अवश्य ज्ञेय बनाकर प्रकृति को उत्पन्न करती है। परन्तु जहाँ तक संवेदनाओं की उत्पत्ति का प्रश्न है, बुद्धि उत्पन्न नहीं करती। अतः बुद्धि प्रकृति (बाह्य विषयों) को उत्पन्न नहीं करती तथा करती भी है। बुद्धि में उत्पत्ति तथा अनुत्पत्ति दोनों धर्मों को स्वीकार करने में तो विरोध समाप्त हो जाता है। विरोधाभास अवश्य प्रतीत होता है परन्तु जब हम बुद्धि के दोनों रूपों को देखते हैं।

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इमान्युएल काण्ट के अनुसार पदार्थ (Category)

हमने पहले देखा है कि बुद्धि संवेदनाओं को क्रमबद्ध तथा व्यवस्थित बनाती है। इस बौद्धिक कार्य का नाम प्रत्यय (Concept) है। ये प्रत्यय पदार्थों के माध्यम से कार्य करते हैं। प्रश्न यह है कि पदार्थ क्या है? पदार्थ को कुछ लोग वास्तविक विषय मानते हैं, तो कुछ लोग वर्ग-गत धारणा मानते हैं। इमान्युएल काण्ट के पदार्थ न तो वास्तविक विषय हैं और न वर्ग-गत धारणा। इमान्युएल काण्ट के पदार्थ बुद्धि के आकार है। जिस प्रकार देश-काल संवेदना के आकार है, वैसे ही पदार्थ बुद्धि के आकार हैं। ये आकार बाह्य विषय नहीं हैं। ये बाह्य विषयों पर बुद्धि के द्वारा आरोपित धर्म या आकार हैं। आकार सार्वभौम और अनिवार्य माने गए हैं। इन आकारों या धर्मों के कारण ही संवेदनाएँ अनिवार्य तथा सार्वभौम बन जाती हैं। इस प्रकार पदार्थ बौद्धिक हैं जिनका स्वरूप सार्वभौम तथा अनिवार्य है।

सार्वभौम तथा अनिवार्य होना अनुभव-निरपेक्ष या नभविक (Apriori) होना है। अतः पदार्थ अनुभव-निरपेक्ष, परन्तु अनुभव के विषयों पर लागू किये जाते हैं। जब वस्तुजन्य संवेदनाएँ बुद्धि में आने लगती हैं तो बौद्धिक आकार उन पर कार्य करने लगते हैं। यह कैसे? इसे एक उदाहरण द्वारा माया सकते हैं। मान लिया जाये, हम अपने सामने एक लाल रंग की मेज देख रहे हैं। मेज में रंग, वजन, विस्तार आदि है जो देश और काल के माध्यम से हमें प्राप्त हो रहा है। मेज का लाल रंग है, इसमें कुछ वजन है, यह चौपाया होकर कुछ स्थान घेरे हुए है। इन सबकी संवेदनाएँ हमें देश और काल के माध्यम से प्राप्त हो रही है। परन्तु मेज एक है, यह इकाई का ज्ञान, मेज है, यह अस्तित्व या भाव का ज्ञान, मेज लकडी का बना है, यह द्रव्य का ज्ञान आदि सभी मानसिक प्रत्यय है।

इन प्रत्ययों के बिना हमें मेज का ज्ञान नहीं होगा। अतः उसी प्रकार हम कह सकते हैं कि मेज का रंग, वजन, विस्तार आदि प्रत्यक्ष मेज में कारण है, जिस प्रकार इकाई, द्रव्यत्व, भावत्व आदि प्रत्यय भी मेज ज्ञान में कारण है। इकाई, द्रव्यत्व, भावत्व आदि प्रत्यय तो सार्वभौम तथा अनिवार्य है। अतः सभी बौद्धिक आकार सार्वभौम तथा अनिवार्य है। ये अनुभव के विषयों पर आरोपित धर्म है, परन्तु ये वस्तुतः अनुभव निरपेक्ष (Apriori) है। इन्हें हम अनुभव के विषयों पर लागू कर सकते हैं, परन्तु अनुभव से इन्हें प्राप्त नहीं कर सकते। प्रश्न यह है कि ये आकार (Categories) कहाँ से आते हैं?

पदार्थों का तात्विक निगमन (Metaphysical Deduction of Categories)

हम पहले विचार कर आए हैं कि आकार बौद्धिक हैं तथा बौद्धिक होने के कारण अनिवार्य और सार्वभौम है। अनिवार्य तथा सार्वभौम होना अनुभव निरपेक्ष या प्रागनुभविक (Apriori) होना है। इस प्रकार आकार का स्वरूप अनुभव निरपेक्ष है। परन्तु ये अनुभव के विषयों पर लागू किये जाते हैं। इनके बिना अनुभव के विषय या संवेदनाएँ सार्थक नहीं हो सकतीं। इससे बौद्धिक आकारों का महत्त्व स्पष्ट है। इन्हें ही काण्ट पदार्थ (Category) कहते हैं।

ये पदार्थ परमर्शों (Judgements) की क्षमता या सामर्थ्य माने गए हैं। तात्पर्य यह है कि प्रत्येक परामर्श में हम किसी पदार्थ की अभिव्यक्ति करते हैं। पदार्थों के बिना परामर्श सम्भव नहीं। अतः जितने प्रकार के परामर्श हैं उतने ही प्रकार के पदार्थ भी है। आकारिक तर्कशास्त्र (Formal logic) में बारह प्रकार के परामर्श माने गए है। इन बारह परामर्शों से बारह पदार्थों का निगमन होता है। यही पदार्थों का तात्विक निगमन है।

बारह प्रकार के परामर्श निम्नलिखित है-

(क) परिमाण वाचक (Quantitative) परामर्श

१. सर्वव्यापी (Universal) : सभी मनुष्य मरणशील हैं।

२. अंशव्यापी (Particular) : कुछ मनुष्य श्वेत हैं।

३. एकव्यापी (Singular) : यह मनुष्य श्वेत है।

 

(ख) गुण वाचक (Quantative) परामर्श

१. भावात्मक (Affirmative) : देवता अमर हैं।

२. निषेधात्मक (Negative) : मनुष्य अमर नहीं हैं।

३. सीमित (Limited) : आत्मा अमर है।

 

(ग) सम्बन्ध वाचक (Relational) परामर्श

१. निरपेक्ष (Categorical) : मनुष्य मरणशील है।

२. सापेक्ष (Hypothetical) : यदि ईश्वर न्यायप्रिय है तो पापी को दण्ड मिलेगा।

३. वैकल्पिक (Disjunctive) : या तो विद्रोह करो या सहन करो।

 

(घ) प्रकार वाचक (Modal) परामर्श

१.सम्भावित (Problematic) : सम्भव है कि नक्षत्रों पर प्राणी निवास करते हैं।

२. प्रतिपन्न (Assertoric) : पृथ्वी गोल है।

३. आवश्यक (Apodeitic) युद्ध विनाश का घर है ।

 

उपरोक्त बारह परामर्शों के अनुरूप निम्नलिखित बारह पदार्थ हैं-

(क) परिमाण वाचक (Quantitative) पदार्थ

१. पूर्णता (Unity)

२. अनेकता (Plurality)

३. एकता (Totality)

(ख) गुण वाचक (Qualitative) पदार्थ

१. सत्ता (Reality)

२. अभाव (Negation)

३. सीमा (Limitation)

 

(ग) सम्बन्ध वाचक (Relational) पदार्थ

१. द्रव्य-गुण सम्बन्ध (Substance and Accident)

२. कार्य-कारण सम्बन्ध (Cause and Effect)

३. अन्योन्याश्रित सम्बन्ध (Reciprocity between the Active and the Passive)

(घ) प्रकार वाचक (Modal) पदार्थ

१. सम्भावना असम्भावना (Possibility-Impossibility)

२. भाव-अभाव (Existence and Non-Existence)

३. अनिवार्यता-सन्दिग्धता (Necessity and Contingency)

 उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि बारह प्रकार के परामर्श या निर्णय से हमें रह प्रकार के पदार्थ का पता चलता है। अतः प्रत्येक पदार्थ एक निर्णय की क्षमता या सामर्थ्य है।

 

 

 

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This Post Has One Comment

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