मौड्यूलर एप्रोच क्या है?

मौड्यूलर एप्रोच क्या है?, मौड्यूल निर्माण के पद, विशेषताएँ | Modular Approach in Hindi

मौड्यूलर एप्रोच(MODULAR APPROACH)

“Module is an organized collection of learning experiences assembled in order to achieve as specified group of related objectives. It is really a self contained section of a course or programme of instructions. And, Modular Course is a flexible course that allows individual learnes to select the course programme that best suits them from a structural hierarchy of modules, some of which are compulsory and some optional.”

 

मौड्यूलर एप्रोच में मोड्यूलस (Modules) का निर्माण किया जाता है और मौड्यूल्स का जिस कोर्स में उपयोग किया जाता है उन्हें मौडूलर कोर्स कहा जाता है।

मौड्यूलर एप्रोच, सामान्य कक्षाओं में अधिगम प्रक्रिया के लिये चलने वाली सामान्य दिन प्रतिदिन की असंरचित अधिगम-शिक्षण क्रियाओं तथा अभिक्रमित अध्ययन सामग्री (जो भलीभांति सराचत होती है) के बीच की एक कड़ी है।

डा0 श्रीवास्तव (1988) के शब्दों में, “मौड्यूलर एप्रोच एक ऐसा नवाचार है जिसमें शिक्षक और छात्रा का सीखने एवं सिखाने में स्वतन्त्रता के साथ-साथ एक निश्चित पदानुक्रम का पालन करते हुये अधिगम उद्देश्यों तक पहुँचने में सहायता मिलती है।”

 

राबर्ट हॉस्टन (W.R. Huston, 1972) के अनुसार-

“Module is a set of experiences designed to facilitate the learner’s demonstration of specified objectives.”

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि-

1. मौड्यूल अधिगम क्रियाओं का एक सैट है।

2. शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में शिक्षक और छात्र दोनों को सीमित स्वतन्त्रता होती है।

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3. मौड्यूल्स में एक निश्चित पदानुक्रम का पालन करना होता है।

4. मौड्यूल्स के द्वारा अधिकमकर्ता अधिगम के अभीष्ट उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक है।

5, छात्रों को इसमें अपनी गति व क्षमता के अनुसार कार्य करने की आजादी है।

मौड्यूलर एप्रोच में मौड्यूलों की विशेषतायें (Characteristics of Modules in Modular Approach)

मौड्यूल्स की प्रमुख विशेषताएँ नीचे दी जा रही है-

  1. यह एक संरचित स्वतःपूर्ण यूनिट है।
  2. मौड्यूलर की भूमिका पढ़कर छात्र इस बात का निर्णय लेने में समर्थ हो जाते हैं कि प्रस्तुत मौड्यूल उनके लिये उपयोगी होगा या नहीं।
  3. मौड्यूल में उन सभी बातें का भी समावेशन होता है, जिनके आधार पर मौड्यूल को सरलता से सीखा जा सकता है।
  4. मौड्यूल सीखने के लिये छात्रों के पास पूर्वाप्रेक्षा(Pre-requisite) ज्ञान या कौशल का होना आवश्यक है।
  5. मौड्यूल में उद्देश्य अधिकतर व्यावहारिक (Behavioural) रूप में दिये गये होते हैं।
  6. मौड्यूल में प्रत्येक व्यावहारिक उद्देश्य की प्राप्ति के लिये क्रिया-कलापों हेतु संकेत या कार्य-प्रारूप दिये गये होते हैं।
  7. मौड्यूल में छात्रा का प्रगति की जांच करने के पश्चात् परीक्षण भी अनिवार्य होता है।
  8. मौड्यूल में दिये गये क्रिया-कलाप छात्रों के लिये अनेक वैकल्पिक कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं।
  9. प्रत्येक मौड्यूल में अधिगम सामग्री, उद्देश्यों, ज्ञान के स्रोतो, क्रिया-कलापों तथा मूल्यांकन में स्पष्ट सम्बन्ध होता है।
  10. मौड्यूल की विषय-वस्तु में तारतम्यता रहती है।

 

 

मौड्यूल निर्माण के पद (Steps in the Preparations of the Module)

मौड्यूल के निर्माण में निम्नांकित पदों/सोपानों का प्रयोग किया जाता है-

  1. मौड्यूल की आवश्यकता एव महत्व पर भूमिका लिखना।
  2. उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखना।
  3. पूर्व मूल्यांकन करना।
  4. अधिगम क्रिया-कलापों की सूची तथा सम्बन्धित ज्ञान सोतों के बारे में सामग्री तैयार करना।
  5. मौड्यूल के निर्धारित उद्देश्यों के सन्दर्भ में मूल्यांकन करना। 
  6. मूल्यांकन के आधार पर आवश्यकतानुसार उपचारात्मक निर्देशन प्रदान करना।
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मौड्यूल के आवश्यक अंग/तत्व (ESSENTIAL ELEMENTS OF A MODULE)

किसी भी मौड्यूल में निम्नलिखित अंग या तत्व अत्यन्त आवश्यक हैं-

 

मौड्यूल के आवश्यक अंग (तत्व)

 

 

मौड्यूल ‘मनोवैज्ञानिक-तर्कात्मक’ सिद्धान्त पर आधारित रहते हैं। मौड्यूलर एप्रोच में विशेष रूप से 90×90 का सिद्धान्त प्रयोग किया जाता है। जिसका अर्थ है कक्षा के 90% छात्रों द्वारा 90% विषय-वस्तु पर अधिकार (Mastery) प्राप्त करना। जब तक छात्र एक मौड्यूल की विषय-वस्तु के 90% भाग पर अधिकार नहीं करता तब तक उसे अगला मौड्यूल नहीं दिया जाता। नये मौड्यूल के लिए आवश्यक है-कम से कम 90% विषय-वस्तु पर अधिकार। यह अधिकार या मास्टरी करने के पश्चात् ही अगला मौड्यूल दिया जाता है। इस प्रकार मौड्यूलर एप्रोच में 90 x 90 (ninety x ninety) के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया जाता है।

इस एप्रोच के द्वारा छात्र सरलता से क्रमानुसार, क्रमबद्ध तरीके से सीखने का प्रयास करते है। इसमें छात्रों के स्वतः अधिगम (Self-learning) पर जोर दिया जाता है। छात्र अपने प्रयासों से सीखते हैं। शिक्षक का कार्य एक गाइड के रूप में रहता है। आजकल अनेक कोर्सों की आयोजना मौड्यूलर एप्रोच के आधार पर की जा रही है।

 

 

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