निर्देशन के प्रकार- शैक्षिक निर्देशन, व्यावसायिक निर्देशन

निर्देशन के प्रकार- शैक्षिक निर्देशन, व्यावसायिक निर्देशन, व्यक्तिगत निर्देशन | Education Guidance in Hindi

निर्देशन के प्रकार

व्यक्तिगत जीवन की परिधि की व्यापकता के साथ ही व्यक्ति की समस्याएँ भी बहुमखी होती जा रही हैं। अतः उन्हें निर्देशन सहायता की ओर अग्रसर होना पड़ता है।

 

सन् 1930 में विलियम मार्टिन प्रोक्टर ने अपनी पुस्तक ‘शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन’ में निर्देशन के प्रकार के छ: रूप प्रस्तुत किये-

1. व्यावसायिक निर्देशन,

2. शैक्षिक निर्देशन,

3. सामाजिक एवं नागरिक कार्यों में निर्देशन,

4. स्वास्थ्य एवं शारीरिक समस्याओं में निर्देशन,

5. चरित्र-निर्माण क्रियाओं में निर्देशन,

6. अवकाश के समय का उत्तम उपयोग के लिए निर्देशन ।

 

सन् 1932 में जान एम. विबर ने इस सूची में निर्देशन के दस (10) प्रकार बताये जो निम्नानुसार हैं-

1. शैक्षिक निर्देशन,

2. व्यावसायिक निर्देशन,

3. घरेलू सम्बन्धों में निर्देशन,

4. धार्मिक निर्देशन

5. अवकाश एवं मनोरंजन के लिए निर्देशन,

6. नागरिकता के लिए निर्देशन,

7. वैयक्तिक उन्नति सम्बन्धी निर्देशन,

8. उचित कार्य करने के लिए निर्देशन,

9. सहयोग एवं विचार सम्बन्धी निर्देशन,

10. सांस्कृतिक कार्यों से सम्बन्धित निर्देशन

 

पैटरसन और विलियमसन के अनुसार-

1. शैक्षिक निर्देशन,

2. व्यावसायिक निर्देशन,

3. व्यक्तिगत निर्देशन,

4. स्वास्थ्य सम्बन्धी निर्देशन,

5. आर्थिक निर्देशन।

 

जोन्स ने जीवन की समस्याओं की प्रकृति के आधार पर निर्देशन को आठ क्षेत्रों में विभाजित किया है-

1. व्यक्तिगत निर्देशन,

2. सामाजिक निर्देशन,

3. व्यावसायिक निर्देशन,

4. पाठ्यक्रम एवं विद्यालय निर्देशन,

5. स्वास्थ्य सम्बन्धी निर्देशन,

6. खाली समय से सम्बन्धित निर्देशन,

7. परिवारिक निर्देशन

8. धार्मिक कार्यों में निर्देशन,

 

मायर्स ने आठ प्रकार के निर्देशन बताये हैं-

1. व्यावसायिक निर्देशन,

2. शैक्षिक निर्देशन,

3. मनोरंजनात्मक निर्देशन,

4. नागरिक निर्देशन,

5. सामुदायिक सेवा निर्देशन,

6. सामाजिक और नैतिक निर्देशन,

7. स्वास्थ्य निर्देशन,

8. नेतृत्व निर्देशन।

शैक्षिक निर्देशन(EDUCATIONAL GUIDANCE)

शैक्षिक निर्देशन की व्याख्या से पूर्व निर्देशन तथा शिक्षा के मध्य के सम्बन्ध को समझना अत्यन्त आवश्यक है।

शिक्षा व्यक्ति में परिवर्तन लाने वाली प्रक्रिया है– बाल्यावस्था में मानव सबस प्राणी होता है। वह भौतिक वातावरण में समायोजित नहीं हो पाता है। अतः यह आवश्यक हक समायोजन स्थापन के लिए व्यक्ति में कुछ परिवर्तन किया जाए। पहले की अपेक्षा समाज भी अधिक जटिल हो गया है। सभ्यता के विकास से सामाजिक जटिलता बढ़ती ही जाती है। इस प्रकार के सामाजिक वातावरण के अनुकूल बालक को बनाने के लिए सहायता की आवश्यकता होती है। उसको समाज के साथ समायोजित होने के लिए कुछ परिवर्तन करने होते हैं। शिक्षा ही वह क्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति आवश्यक परिवर्तन करता है। इस दृष्टि से शिक्षा एक व्यक्तिगत क्रिया है। अगर शिक्षा का अर्थ इस विचारानुसार लगाया जाए तो किसी प्रकार के निर्देशन की आवश्यकता नहीं होती है।

शिक्षा शिक्षण है- समाज के कुछ आदर्श तथा उद्देश्य होते हैं। इन उद्देश्यों का ज्ञान अध्यापक को होता है। अध्यापक को उन विधियों का ज्ञान होता है जिनकी सहायता से ये आदर्श प्राप्त किया जाते हैं छात्र कुछ सीख सकते हैं। लेकिन प्रभावशाली सीखना तभी हो सकता है, जबकि अध्यापक अधिक कार्यशील हो। इस विधि में छात्र निष्क्रिय रहते हैं। यह विचारधारा अब विद्यार्थी केन्द्रित शिक्षण के आगे प्राचीन हो चुकी है। मनोवैज्ञानिक विकास के साथ ही शिक्षण से तात्पर्य बालक को सीखने में सहायता देना है। अब बालक को शिक्षण क्रिया में प्रधानता दी जाने लगी है। लेकिन उद्देश्यों का नाश्चत करने में अध्यापक की सहायता आवश्यक होती है। यही सहायता निदेशन हा इन उद्देश्यों की प्राप्ति की अनेक विधियाँ हो सकती हैं। जब अध्यापक किसी विधि का चयन करता है तो यह शिक्षण है, लेकिन जब छात्र को किसी विधि के चुनने में सहायता प्रदान करता है तो यह निर्देशन है।

शिक्षा समाज का कार्य- मनुष्य को सामाजिक प्राणी बनाना तथा उसका नैतिक, सांवेगिक, शारीरिक और बौद्धिक विकास में पथ-प्रदर्शन करना समाज का उत्तरदायित्व है। इस दृष्टि से शिक्षा तथा निर्देशन में घनिष्ठ सम्बन्ध है।

 

 

शैक्षिक निर्देशन की परिभाषाएँ

1. जोन्स के अनुसार- “शैक्षिक निर्देशन उस सहायता से सम्बन्धित है जो विद्यार्थियों को स्कूलों, पाठ्यक्रमों, कोर्स और विद्यालय-जीवन के साथ समायोजन करने के लिये प्रदान की जाती है।”

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“Educational Guidance is concerned with assistance given to pupils in their choices and adjustments with relations to schools, curriculum, courses and school life.”

 

2. ब्रेवर ने शैक्षिक निर्देशन की परिभाषा देते हुए कहा है- “शैक्षिक निर्देशन व्यक्ति के बौद्धिक विकास में सहायता प्रदान करने का सचेतन प्रयत्न है “शिक्षण या अधिगम के लिए किये गये। सभी प्रयत्न शैक्षिक निर्देशन के अंग हैं।

“Educational Guidance may be defined as conscious effort to assist in the intellectual growth of an individual………….Anything that has to do with instruction or with learning may come under the term educational guidance.”  -Braber

 

 3.आर्थर ई. टेक्सलर के अनुसार, “निर्देशन प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं की योग्यताओं, रुचियों और व्यक्तित्व सम्बन्धित गुणों को समझने, उनका सम्भावित विकास करने, उनको जीवन के उद्देश्यों से सम्बन्धित करने तथा अन्त में प्रजातान्त्रिक सामाजिक व्यवस्था के योग्य नागरिक की भाँति पूर्ण तथा परिपक्व स्वनिर्देशन की स्थिति तक पहुँचने के योग्य बनाता है। अतः निर्देशन विद्यालय के प्रत्येक पहल जैसे पाठयक्रम, शिक्षण विधि, निरीक्षण, अनुशासन, उपस्थिति की समस्याएँ, पाठ्यातिरिक्त क्रियाएँ, स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्यक्रम तथा समाज के सम्बन्धों से सम्बन्धित है।”

“Guidance enables each individual to understand his abilities……….as a desirable citizen of a democratic social order. Guidance is thus vitally related to every aspect of schools, the curriculum, the methods of instruction………and home community relations.”    -Arther E. Traxler

 

4. रूथ स्ट्रंग के अनुसार, “व्यक्ति को शैक्षिक निर्देशन प्रदान करने का मुख्य उद्देश्य छात्र को उपयोगी कार्यक्रम का चयन तथा उसमें प्रगति करने में सहायता देना है।

“Educational Guidance is intended to aid the individual in choosing an appropriate program and in making progress in it.”       -Ruth Strang

रूथ स्ट्रंग की इस परिभाषा से शैक्षिक निर्देशन के अन्तर्गत निम्न बिन्द प्रकाश में आते है-

1. छात्र की योग्यताओं तथा रुचियों का ज्ञान होना,

2. शैक्षिक अवसरों के विस्तृत क्षेत्र का ज्ञान, तथा

3. कार्यक्रम तथा परामर्श जो उपर्यक्त दो प्रकार के ज्ञान के आधार पर छात्रों का चयन करने में सहायता देता है।

 

उक्त परिभाषाओं से स्पष्ट तौर पर शैक्षिक निर्देशन के चार प्रमुख कार्य प्रकाश में आते हैं-

1. विद्यार्थी को क्षमता, रुचि एवं साधनों के अनुसार शैक्षिक योजना का निर्माण करना।

2. विद्यार्थियों की भावी सम्भावनाओं के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करना।

3. शैक्षिक कार्यक्रम में आवश्यक प्रगति के लिये सहायक होना।

4. विद्यार्थियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये।

 

 

शैक्षिक निर्देशन के सोपान (Steps of Educational Guidance)

शैक्षिक निर्देशन द्वारा छात्रों को लाभान्वित करने हेतु निम्नांकित सोपानों का पालन करना पड़ता है-

1.अनुस्थापन वार्ताएँ (Orientation Talks),

2. प्राथमिक साक्षात्कार (Initial Interview),

3. सामाजिक व आर्थिक स्तर का अध्ययन (Social and Economic Status Study),

4. मनोवैज्ञानिक परीक्षण (Psychological Testing),

5. विद्यालय-जीवन का अध्ययन (Study of School Life),

6. स्वास्थ्य परीक्षण (Medical Examination),

7. अन्तिम साक्षात्कार (Final Interview),

8. पार्श्वचित्र निर्माण (Construction of Profile),

9. सम्मेलन (Conference),

10. लेखा लिखना (Report Writing),

11. अनुवर्ती कार्य (Follow-up Work)|

 

 

व्यावसायिक निर्देशन (VOCATIONAL GUIDANCE)

व्यावसायिक निर्देशन की व्याख्या करते हुए नेशनल वोकेशनल गाइडेंस एसोसिएशन ने अपनी एक रिपोर्ट में सन् 1924 में लिखा है कि, किसी व्यवसाय को चनने उसके लिए आवश्यक तैयारी करने, उसमें नियुक्ति पाने तथा वहाँ प्रगति करने के लिए सूचना, अनुभव एवं राय देना ही व्यावसायिक निर्देशन है।

“Vocational Guidance is the giving of information, experience and advice in regard to choosing an occupation, preparing for it, entering it, and progressing in it.”

सन् 1949 में अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने व्यावसायिक निर्देशन की परिभाषा देते हुए कहा-

“व्यक्ति के गुणों तथा उनका व्यावसायिक अवसरों के साथ सम्बन्ध को ध्यान में रखते हुए व्यक्ति को व्यवसाय चयन और उसमें प्रगति से सम्बन्धित समस्याओं को हल करने में दी जाने वाली सहायता ही व्यावसायिक निर्देशन है।

“Vocational guidance is an assistance given to an individual in solving problems related to occupational choice and progress with due regard for the individual’s characteristics and their relation to occupational opportunities.”

 

 

व्यक्तिगत निर्देशन(PERSONAL GUIDANCE)

शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन के अतिरिक्त मानव-जीवन के कछ अन्य पक्ष ऐसे हैं जिनका समाधान हम उपर्युक्त दो प्रकार के निर्देशन द्वारा नहीं कर सकते हैं। मनुष्य के वैयक्तिक जीवन से सम्बन्धित समस्याएँ उसके जीवन के विविध पक्षों के अन्तर्गत सम्मिलित की जा सकती है।

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व्यक्ति के जीवन के चार प्रमुख पक्ष निम्न हैं-

1. शारीरिक,

2. मानसिक,

3. सामाजिक,

4. पारिवारिक।

इन सभी क्षेत्रों में उत्पन्न समस्याएँ जैसे स्वास्थ्य, संवेग, धार्मिक, सामाजिक सामंजस्य आदि व्यक्ति के जीवन में अधिकतम सम्भव सामंजस्य प्राप्त करने में बाधा बनती हैं। व्यक्ति के जीवन को आनन्दप्रद बनाने के लिए और उपर्युक्त प्रकार की समस्याओं के समाधान के लिए जो भी सहायता की जाती है वह व्यक्तिगत निर्देशन कहलाती है। इस प्रकार व्यक्तिगत निर्देशन स्वास्थ्य एवं शारीरिक क्रियाओं, सामाजिक और नागरिक समस्याओं एवं अवकाश के सदुपयोग की क्रियाओं से सम्बन्ध रखता है।

 

 

व्यक्तिगत निर्देशन के प्रकार

डॉ. सीताराम जायसवाल ने अपनी पुस्तक ‘शिक्षा में निर्देशन और परामर्श’ में निम्न व्यक्तिगत समस्याओं का उल्लेख किया है-

1. स्वास्थ्य एवं शारीरिक विकास से सम्बन्धित समस्याएँ,

2. सामाजिक सम्बन्धों से जुड़ी हुई समस्याएँ, 

3. संवेगात्मक व्यवहार से सम्बन्धित समस्याएँ,

4. यौन, प्रेम एवं विवाह सम्बन्धी समस्याएँ,

5. पारिवारिक जीवन से जुड़ी हुई समस्याएँ,

6. धर्म, आदर्श और नैतिक मूल्यों से सम्बन्धित समस्याएँ।

 

 

 

पारिवारिक निर्देशन (FAMILY GUIDANCE)

चूंकि व्यक्ति परिवार की एक इकाई के रूप में होता है तथा परिवार ही प्रथम अनौपचारिक संस्था है जो कि बालक के जीवन की आधारशिला रखता है। बाल्यावस्था में बालक अपनी जैविक आवश्यकताओं की पर्ति के लिए पूर्णतः परिवार के सदस्यों पर निर्भर रहता है। परिणामस्वरूप शनैः-शनैः उसको भी परिवार के नियम एवं परम्पराओं के अनुकूल स्वयं को ढालना पड़ता है। इसी प्रकार भावात्मक प्रतिक्रियाओं की उत्पत्ति भी परिवार के मध्य ही विकसित होती है।

वर्तमान यग में होने वाली वैज्ञानिक प्रगति से विश्व के सभी भागों में क्रान्तिकारी परिवर्तन का बीजारोपण हआ है जिसका प्रभाव सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्र पर भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। जनसंख्या वृद्धि एवं उद्योगों की निरन्तर बढ़ती संख्या ने प्राचीन जीविकोपार्जन के साधनों पर निर्भरता को जहाँ एक ओर लगभग समाप्त कर दिया है वहीं परिवार का विघटन तथा सदस्यों में असन्तोष की वृद्धि जैसी विभिन्न नवीन समस्याओं ने परिवार के प्राचीन रूप को ही चुनौती दे दी है।

साथ ही इस परिवर्तन के परिणामस्वरूप पारिवारिक समस्याएँ एक विकट रूप में सामने आने लगी हैं जिनका हल मात्र पारिवारिक निर्देशन द्वारा ही सम्भव हो सकता है।

 

 

सामूहिक निर्देशन(GROUP GUIDANCE)

व्यक्ति एक समूह का सदस्य होता है, परन्तु वह इस संसार में सामाजिक भिवृत्तियां लेकर नहीं आता। ये तो वह समाज में से ग्रहण करता है। सामाजिक सीखना अलगाव द्वारा सम्भव नहीं हा स्लावसन के अनुसार, शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है जो परिवार, कक्षा, क्लब तथा ऐसे ही स्थायी या अस्थायी समूहों में चलती रहती है। इसलिए शिक्षा एक सामूहिक अनुभव का ही रूप है और समस्त सामूहिक अनुभव शैक्षिक होते हैं।

 

सामूहिक निर्देशन की परिभाषा

जेल वार्ट्स ने कहा है कि– ‘सामूहिक निर्देशन को साधारणतया इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है कि यह सामूहिक अनुभवों का व्यक्ति के उत्तम विकास में सहायता देने एवं इच्छित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु चेतनापूर्ण प्रयोग है।’

“Group Guidance may be defined simply as the conscious use of group experiences for aiding good development of the participants an achievement of desirable goals.”

सामूहिक निर्देशन की परिभाषा करते हुए रॉबर हॉपोक ने कहा है- “सामूहिक निर्देशन वह कोई भी सामूहिक क्रिया है जो कछ निर्देशन कार्यक्रम को सुविधा देने या सुधार करने के लिए सम्पन्न की जाती है।”

“Group Guidance is any group activity undertaken for the primary purpose of facilitating or improving the total guidance program.”

 

सामूहिक निर्देशन का अन्तिम लक्ष्य व्यक्तिगत विकास ही है। डाउनिंग के ये शब्द सामूहिक निर्देशन को पूर्णतया स्पष्ट करते हैं-

सामूहिक निर्देशन संगठित निर्देशन कार्यक्रम का ही एक अंग है जिसमें वे क्रियाएँ सम्मिलित की जाती है जिसमें अनेक छात्रों का परस्पर मिलन होता है, सूचनाएँ प्राप्त करते हैं, विचारों का आदान-प्रदान होता है, भविष्य की योजना बनाते हैं और निर्णय लेते हैं।

“Group Guidance includes those activities within the organization of a guidance program where in several students meet, interact, gain information, share ideas, plan for the future and make decisions.”

 

 

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