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मौर्य साम्राज्य UPSC | मौर्य साम्राज्य Notes

मौर्य साम्राज्य

*मौर्य राजवंश की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी। वह भारत का प्रथम ऐतिहासिक सम्राट था। वह ऐसा पहला सम्राट था, जिसने वृहत्तर भारत पर अपना शासन स्थापित किया और जिसका विस्तार ब्रिटिश साम्राज्य से बड़ा था। उसके साम्राज्य की सीमा ईरान से मिलती थी। उसने ही ‘भारत को सर्वप्रथम राजनीतिक रूप से एकबद्ध किया।

*विशाखदत्त कृत ‘मुद्राराक्षस’ में चंद्रगुप्त को नंदराज का पुत्र माना गया है। मुद्राराक्षस में चंद्रगुप्त को ‘वृषल’ तथा ‘कुलहीन’ भी कहा गया है। धुंडिराज ने मुद्राराक्षस पर टीका लिखी थी। मुद्राराक्षस के अतिरिक्त विशाखदत्त के नाम से दो अन्य रचनाओं का भी उल्लेख प्राप्त होता  है- (1) देवीचंद्रगुप्तम् तथा (2) अभिसारिका वंचितक या आमसारिका  बंधितक(अप्राप्य)।  क्षेमेंद्र कृत ‘बृहत्कथामंजरी’ तथा सोमदेव कृत ‘कथासरित्सागर’ में चंद्रगुप्त के शूद्र उत्पत्ति के विषय में विवरण मिलता है। बौद्ध ग्रंथ महाबोधिवंश के अनुसार, चंद्रुगुप्त राजकुल से संबंधित था तथा वह मोरिय नगर में उत्पन्न हुआ था। हेमचंद्र के परिशिष्टपर्वन में चंद्रगुप्त को मयूर पोषकों के ग्राम के मुखिया के पुत्री का पुत्र बताया गया है।

*विलियम जोंस पहले विद्वान थे, जिन्होंने ‘सैंड्रोकोट्स’ की पहचान  मौर्य शासक चंद्रगुप्त मौर्य से की। *एरियन तथा प्लूटार्क ने चंद्रगुप्त मौर्य को एंड्रोकोट्स के रूप में वर्णित किया है। जस्टिन ने ‘सेंड्रोकोट्स’ (चंद्रगुप्त मौर्य) और सिकंदर महान की भेंट का उल्लेख किया है।

* ऋषि चणक ने अपने पुत्र का नाम चाणक्य रखा था। अर्थशास्त्र के लेखक के रूप में इसी पुस्तक में उल्लिखित ‘कौटिल्य’ तथा एक पद्यखंड में उल्लिखित ‘विष्णुगुप्त’ नाम की साम्यता चाणक्य से की जाती है। पुराणों में सभी कर उसे द्विजर्षम (श्रेष्ठ ब्राह्मण) कहा गया है। कौटिल्य (चाणक्य) द्वारा मौर्य अशोक  काल में रचित अर्थशास्त्र, शासन के सिद्धांतों की पुस्तक है। इसमें राज्य के सप्तांग सिद्धांत- राजा, आमात्य, जनपद, दुर्ग, कोप, दंड एवं मित्र की व्याख्या मिलती है। कौटिल्य का ‘अर्थशास्त्र’ ऐतिहासिक ग्रंथ नहीं है अपितु राजनीति शास्त्र का एक अद्वितीय ग्रंथ है। इसकी तुलना ‘मैक्यावेली’ के ‘प्रिंस’ से की जाती है।

*चंद्रगुप्त मौर्य ने दक्षिण भारत की विजय प्राप्त की थी। जैन एवं तमिल साक्ष्य भी चंद्रगुप्त मौर्य की दक्षिण विजय की पुष्टि करते हैं।

*राजनैतिक तौर पर समस्त भारत का एकीकरण चंद्रगुप्त मौर्य के नेतृत्व में संभव हुआ। प्रारंभिक विजयों के फलस्वरूप चंद्रगुप्त का साम्राज्य निग्रो व्यास नदी से लेकर सिंधु नदी तक के प्रदेश पर हो गया। रुद्रदामन के अभिलेख से पश्चिमी भारत पर उसका अधिकार प्रमाणित होता है। जैन ग्रंथों के अनुसार, सौराष्ट्र के साथ-साथ अवंति पर भी चंद्रगुप्त मौर्य का अधिकार था। उसकी मृत्यु के समय उसके साम्राज्य का विस्तार पश्चिम में हिंदुकुश पर्वत से पुरव में बंगाल की खाड़ी तक तथा उत्तर में हिमालय की श्रृंखलाओं से दक्षिण में मैसूर तक था।

*150 ई. के रुद्रदामन के जूनागढ़ शिलालेख में आनर्त और सौराष्ट्र (गुजरात) प्रदेश में चंद्रगप्त मौर्य के प्रांतीय राज्यपाल पुष्यगुप्त द्वारा सिंचाई के बांध के निर्माण का उल्लेख मिलता है। जिससे यह सिद्ध होता है कि पश्चिचम भारत का यह भाग मौर्य साम्राज्य में शामिल था। चंद्रगुप्त मौर्य ने सिकंदर के साम्राज्य के पर्वी भाग के शासक सेल्यूकस की आक्रमकारी सेना को 305 ई.पू. में परास्त किया था।

*यूनानी लेखकों ने जिंटसार को अमित्रोकेडीज कहा है। विद्वानों के अनुसार अमित्रोकेडीज का संस्कृत रूप है  अमित्रघात (शत्रुओं का नाश करने वाला )। जैन ग्रंथ में बिंदुसार की माता का नाम ‘दुर्धरा’ मिलता है। दिव्यावदान के अनुसार, बिदुसार के समय में तक्षशिला में विद्रोह हुआ था, जिसको दबाने के लिए उसने अपने पुत्र ‘अशोक को भेजा था। स्ट्रैबो के अनुसार, बिदुसार के समय में मिस्र के राजा एंटियोकस ने डाइमेकस नामक राजदूत भेजा। प्लिनी के अनुसार, मौर्य राजदरबार में मिस्र के राजा टालमी द्वितीय फिलाडेल्फस ने डायनोसिस पूर नामक राजदूत भेजा। बिदुसार ने सीरिया के शासक ऐटियोकस से तीन वस्तुओं की मांग की। ये वस्तुएं थीं- मीठी मदिरा, सूखी अंजीर तथा दार्शनिक। ऐटियोकस ने दार्शनिक को छोड़कर शेष सभी वस्तुएं बिदुसार के पास भेजवा दिया।

*बौद्ध साक्ष्यों के अनुसार, अशोक अपने पिता के शासनकाल में अवंति(उज्जयिनी) का उपराजा (वायसराय) था। असम और सुदूर दक्षिण को छोड़कर संपूर्ण भारतवर्ष अशोक के साम्राज्य के अंतर्गत था। *अशोक ने अपनी प्रजा के विशाल समूह को ध्यान में रखकर ही एक केंड में ऐसे व्यावहारिक ‘धम्म’ का प्रतिपादन किया, जिसका पालन आसानी से सभी कर सकें। सहिष्णुता, उदारता एवं करुणा उसके त्रिविध आयाम थे। अशोक 273 ई.पू. के लगभग मगध का राजा बना तथा लगभग 4 वर्ष बाद 269 ई.पू.में उसका राज्याभिषेक हुआ था। उसके अभिलेखों में सर्वत्र मंत्र की उसे ‘देवनामपिय’, ‘देवानांपियदसि’ कहा गया है जिसका अर्थ है देवताओं का प्रिय या देखने में सुंदर। *पुराणों में उसे ‘अशोकवन’ कहा गया है। दशरथ भी अशोक की तरह ‘देवानामपिय’ की उपाधि धारण करता था।

*सिंहली अनुश्रुतियों-दीपवंश तथा महावंश के अनुसार, अशोक के राज्यकाल में ‘पाटलिपुत्र’ में बौद्ध धर्म की तृतीय संगीति हुई। इसकी अध्यक्षता ‘मोग्गलिपुत्त तिस्स’ नामक प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु ने की थी।

* मौर्य के दीपवंश एवं महावंश के अनुसार, अशोक को उसके शासन के चौथे वर्ष ‘निग्रोध’ नामक भिक्षु ने बौद्ध मत में दीक्षित किया। तत्पश्चात मोग्गलिपुत्त तिस्स के प्रभाव में वह पूर्णरूपेण बौद्ध हो गया। दिव्यावदान के अनुसार, अशोक को उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु ने बौद्ध धर्म में दीक्षित किया। *मौर्य शासकों में अशोक और उसका पौत्र दशरथ बौद्ध धर्म के अनुयायी थे।

*अशोक के अभिलेखों में ‘रज्जुक’ नामक अधिकारी का उल्लेख मिलता। रज्जुकों की स्थिति आधुनिक जिलाधिकारी जैसी थी, जिसे राजस्व तथा न्याय दोनों क्षेत्रों में अधिकार प्राप्त थे। अग्रोनोमोई जिले के अधिकारी को और सौराष्ट्र कहा जाता था।  मौर्यकाल में व्यापारिक काफिलों (कारवां) के मुखिया को सार्थवाह की संज्ञा दी गई थी। बौद्ध धर्म ग्रहण करने के उपरांत अशोक ने आखेट तथा विहार यात्राएं रोक दी तथा उनके स्थान पर धर्म यात्राएं प्रारंभ की।  राज्याभिषेक के 10 वर्ष बाद (आठवां शिलालेख) संबोधि (बोध गया) तथा 20 वर्ष बाद (रुम्मिनदेई अभिलेख) रुम्मिनदेई गया तथा उनकी पूजा की।

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* इतिहासकार विंसेट आर्थर स्मिथ ने अपनी पुस्तक इंडियन लीजेंड ऑफ अशोक में साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर उपगुप्त के साथ अशोक की धम्म यात्राओं का क्रम इस प्रकार दिया है- लुम्बिनी, कपिलवस्तु, बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर और श्रावस्ती। अशोक ने अपने राज्याभिषेक के दसवें वर्ष बोधगया की यात्रा की। बीस वर्ष लम्बिनी की यात्रा की तथा वहा एक शिलास्तंभ स्थापित किया। बुद्ध की जन्मभूमि होने के कारण लुम्बिनी ग्राम को भोग कर माफ कर दिया तथा भू-राजस्व 1/6 से घटाकर 1/8 कर दिया।

*कालसी, गिरनार और मेरठ के अभिलेख ब्राह्मी लिपि में हैं। अशोक का इतिहास हमें मुख्यतः उसके अभिलेखों से ही ज्ञात होता है। उसके अभिलेखों का विभाजन 3 वर्गों में किया जा सकता है– (1) शिलालेख (2) स्तंभलेख तथा (3) गुहालेखा 

*शिलालेख 14 विभिन्न  लेखों से एक समूह है, जो आठ भिन्न-भिन्न स्थानों से प्राप्त किए गए हैं। ये स्थान – (1) शाहबाजगढ़ी, (2) मानसेहरा, (3) कालसी, (4) गिरनार, (5) बोली, (6) जीगढ़, (7) एर्रागडी तथा (8) सोपारा।

*अशोक के अधिकांश अभिलेख प्राकृत भाषा एवं ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं, केवल दो अभिलेखों शाहबाजगढ़ी एवं मानसेहरा की लिपि ब्राह्यी न होकर खरोष्ठी है। तक्षशिला से आरमेहक लिपि में लिखा गया एक भग्न अभिलेख, शरेकुना नामक स्थान से यूनानी तथा आरमेइक लिपियों में लिखा गया द्विभाषीय यूनानी एवं सीरियाई भाषा अभिलेख तथा लंधमान नामक स्थान से आरमेइक लिपि में लिखा गया अशोक का अभिलेख प्राप्त हुआ है। बाह्यी लिपि का प्रथम उद्ववाचन पत्थर की पट्टियों (शिलालेखो) पर तत्कीर्ण अक्षरों से किया गया था। इस कार्य को संपादित करने वाले प्रथम विद्वान सर जेम्स प्रिंसेप थे जिन्होंने अशोक के अभिलेखों को पढ़ने का श्रेय हासिल किया। डी.आर. भंडारकर ने मात्र अभिलेखों के आधार पर अशोक का इतिहास लिखने का प्रशंसनीय प्रयास किया है। *प्राक् अशोक ब्राह्मी लिपि का पता श्रीलंका स्थित अनुराधापुर से चला। कुछ और स्थानों के अभिलेखों से इस प्रकार की लिपि का साक्ष्य मिला है, जिनके नाम इस प्रकार है- पिपरहवां, सोहगौरा और महारथाना ।

*प्राचीन भारत में खरोष्ठी लिपि दाएं से बाएं लिखी जाती थी। इसे पढ़ने पर का श्रेय मैसन, प्रिंसेप, नोरिस, लैसेन, कनिंघम आदि विद्वानों को है। यह मुख्यतः उत्तर-पश्चिम भारत की लिपि थी। *अशोक का नामोल्लेख करने मिट वाला गुजरी लघु शिलालेख मध्य प्रदेश के दतिया जिले में स्थित है। मास्की, नेतूर एवं उडेगोलम के लेखों में भी अशोक का व्यक्तिगत नाम मिलता है।

*भाब्रू (बैराट) स्तंभ लेख में अशोक ने स्वयं को मगध का सम्राट थी। बताया है। यही अभिलेख अशोक को बौद्ध धर्मावलंबी प्रमाणित करता है। अशोक के प्रथम शिलालेख में पशु बलि निषेध के संदर्भ में लेख इस प्रकार है- यहां कोई जीव मारकर बलि न दिया जाए और न कोई उत्सव किया जाए। पहले प्रियदर्शी राजा की पाकशाला में प्रतिदिन सैकड़ों जीव मांस के लिए मारे जाते थे, लेकिन अब इस अभिलेख के लिखे जाने तक सिर्फ तीन पशु प्रतिदिन मारे जाते हैं- दो मोर एवं एक मृग, इसमें भी मृग हमेशा नहीं मारा जाता। ये तीनों भी भविष्य में नहीं मारे जाएंगे। पांचवें स्तंभ नगर लेख में भी अशोक द्वारा राज्याभिषेक के 26वें वर्ष बाद विभिन्न प्रकार के प्राणियों के वध को वर्जित करने का स्पष्ट उल्लेख है।

*अशोक के राज्यकाल की पहली बड़ी घटना कलिंग युद्ध और इसमें अशोक की विजय थी। अशोक के तेरहवें (XIII) शिलालेख से इस युद्धसके संदर्भ में स्पष्ट साक्ष्य मिलते हैं। यह घटना अशोक के शासन के 8 वर्ष बाद अर्थात 261 ई. पू. में घटित हुई। इस शिलालेख में दिया। कलिंग युद्ध से हुई पीड़ा पर अपना दुःख और पश्चाताप व्यक्त किया है। अशोक के दीर्घ शिलालेख XII में सभी संप्रदायों के सार की वृद्धि होने की कामना की गई है तथा धार्मिक सहिष्णुता हेतु पालनीय उपाय बताए गये हैं। अशोक के दूसरे (II) एवं तेरहवें (XIII) शिलालेख में ही भिन्न राज्यों-चोल,पाण्ड्य, सतियपुत्त एवं केरलपुत्त सहित ताम्रपर्णी (श्रीलंका) की सूचना मिलती है। मौर्य शासक अशोक के तेरहवें शिलालेख से यह ज्ञात होता है कि अशोक के पांच यवन राजाओं के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध थे जिनमें अंतियोक (एंटियोकस-II थियोस- सीरिया का शासक), तुरमय या तुरमाय (टालेमी II फिलाडेल्फस-मिस्र का राजा), अंतकिनी (एंटीगोनस गोनातास मेसीडोनिया या मकदूनिया का राजा), मग (साइरीन का शासक), अलिक सुंदर (एलेक्जेंडर-एपाइरस या एपीरस का राजा)।

*गोरखपुर जिले से प्राप्त सोहगौरा ताम्रपत्र अभिलेख और बांग्लादेश के बोगरा जिले से प्राप्त महास्थान अभिलेख की रचना अशोक कालीन प्राकृत भाषा में हुई और उन्हें ईसा पूर्व तीसरी सदी की ब्राह्मी लिपि में लिखा गया। ये अभिलेख अकाल के समय किए जाने वाले राहत कार्यों के संबंध में हैं। इस अकाल की पुष्टि जैन स्रोतों से होती है।

*मौर्य काल में न्यायालय मुख्यतः दो प्रकार के थे- धर्मस्थीय तथा कंटकशोधन। धर्मस्थीय ‘दीवानी’ तथा कंटकशोधन ‘फौजदारी’ न्यायालय थे। गुप्तचरों को अर्थशास्त्र में ‘गूढ पुरुष’ कहा गया है। अर्थशास्त्र में दो प्रकार के गुप्तचरों का उल्लेख मिलता है- “संस्था’ अर्थात एक ही स्थान पर रहने वाले तथा संचरा अर्थात प्रत्येक स्थान पर भ्रमण करने वाले।

*मैगस्थनीज की ‘इंडिका’ में पाटलिपुत्र के नगर प्रशासन का वर्णन ने मिलता है। इसके अनुसार, पाटलिपुत्र नगर का प्रशासन 30 सदस्यों वाली समितियों द्वारा होता था। इसकी कुल 6 समितियां होती थीं तथा प्रत्येक समिति में 5 सदस्य होते थे। तीसरी समिति जनगणना का हिसाब रखती थी। वर्तमान में भी यह कार्य नगरपालिका प्रशासन द्वारा किया जाता है। छठी समिति का कार्य ब्रिक्री कर वसूल करना था। विक्रय कर मूल्य का दसवे भाग के रूप में वसूल किया जाता था। करों की चोरी करने वाली को मृत्युदंड दिया जाता था। वह नगर के पदाधिकारियों को एस्टिनोमोई कहता है।

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*मेगस्थनीज, सेल्यूकस निकेटर द्वारा चंद्रगुप्त मौर्य की राज सभा में भेजा गया यूनानी राजदूत था, मौर्य युग में नगरों का प्रशासन नगरपालिकाओं द्वारा चलाया जाता था। जिसका प्रमुख ‘नागरक’ या ‘पुरमुख्य था।  मेगस्थनीज ने तत्कालीन भारतीय समाज को सात श्रेणियों में विभाजित किया है, जो इस प्रकार हैं-(1) दार्शनिक, (2) कृषक, (3) पशुपालक, (4) कारीगर, (5) योद्धा, (6) निरीक्षक एवं (7) मंत्री। मेगस्थनीज भारतीय समाज में दास प्रथा के प्रचलित होने का उल्लेख नहीं करता है। उसके अनुसार, मौर्य काल में कोई भी व्यक्ति न तो अपनी जाति से बाहर विवाह कर सकता था और न ही उससे भिन्न पेशा ही अपना सकता था।

*इतिहासकार स्मिथ के अनुसार, हिंदुकुश पर्वत भारत की वैज्ञानिक सीमा थी। अशोक के अभिलेखों में मौर्य सामाज्य के 5 प्रांतों के नाम मिलते हैं-

 

प्रांत राजधानी
उत्तरापथ तक्षशिला
अवंतिरट्ठ उज्जयिनी
कलिंग तोसली
दक्षिणापथ सुवर्णगिरि
प्राच्य या पूर्वी प्रदेश पाटलिपुत्र

 

*भाग एवं बलि प्राचीन भारत में राजस्व के स्रोत थे। *अर्थशास्त्र से ज्ञात होता है कि राजा भूमि का मालिक होता था, वह भूमि से उत्पन्न उत्पादन के एक भाग का अधिकारी था। इस कर को ‘भाग’ कहते थे। इसी प्रकार ‘बलि’ भी राजस्व का स्रोत था।

*मौर्य मंत्रिपरिषद में राजस्व एकत्र करने का कार्य समाहर्ता के द्वारा किया जाता था। अंतपाल सीमा रक्षक या सीमावर्ती दुर्गों की देखभाल करता था, जबकि प्रदेष्टा विषयों या कमिश्नरियों का प्रशासक था।

*उपर्युक्त पदाधिकारियों के अतिरिक्त अन्य पदाधिकारी हैं – पण्याध्यक्ष (वाणिज्य का अध्यक्ष), सुराध्यक्ष, सूनाध्यक्ष (बूचड़खाने का अध्यक्ष), गणिकाध्यक्ष (वेश्याओं का निरीक्षक), सीताध्यक्ष (राजकीय कृषि विभाग का अध्यक्ष), आकाराध्यक्ष (खानों का अध्यक्ष), लक्षणाध्यक्ष (छापे खाने का अध्यक्ष), लोहाध्यक्ष (धातु विभाग का अध्यक्ष) तथा नवाध्यक्ष (जहाजरानी विभाग का अध्यक्ष)।

* अर्थशास्त्र में पति द्वारा परित्यक्त पत्नी के लिए विवाह-विच्छेद की अनुमति दी गई है। मौर्यकालीन समाज में तलाक की प्रथा थी। *पति के बहुत समय तक विदेश में रहने या उसके शरीर में दोष होने पर पत्नी उसका त्याग कर सकती थी। इसी प्रकार पत्नी के व्याभिचारिणी होने या बन्ध्या होने जैसी दशाओं में पति उसका त्याग कर सकने का अधिकारी था।

*विदेशियों को भारतीय समाज में मनु द्वारा व्रात्य क्षत्रिय (Fallen Kshatriyas) का सामाजिक स्तर दिया गया था। सारनाथ स्तंभ का निर्माण अशोक ने कराया था।  इस स्तंभ के शीर्ष पर सिंह की आकृति बनी है, जो शक्ति का प्रतीक है। इस प्रतिकृति को भारत सरकार ने अपने प्रतीक चिह्न के रूप में लिया है। मौर्ययुगीन सभी स्तंभ चुनार के बलुआ पत्थरों से निर्मित हैं।

*स्थापत्य कला के दृष्टिकोण से सांची के स्तूप को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। सांची म.प्र. के रायसेन जिले में स्थित है। इसका निर्माण अशोक ने कराया था। इस स्तूप का आरंभिक काल तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व था। जबकि भरहुत का स्तूप म.प्र. के सतना जिले में स्थित है। सांची तथा भरहुत के स्तूपों की खोज एलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी। अमरावती का स्तूप आंध प्रदेश के गुंटूर जिले में कृष्णा नदी के दाहिने तट पर स्थित है, कर्नल कॉलिन मैकेंजी ने 1797 ई. में इस स्तूप का पता लगाया था। सारनाथ का धमेख स्तूप गुप्तकालीन है, जो बिना आधार के समतल भूमि पर बनाया गया है।

*बिहार में पटना (पाटलिपुत्र) के समीप बुलंदीवाग एवं कुम्रहार में की गई खुदाई से मौर्य काल के लकड़ी के विशाल भवनों के अवशेष प्रकाश में आए हैं। इन्हें प्रकाश में लाने का श्रेय स्पूनर महोदय को है। बुलंदीवाग से नगर के परकोटे के अवशेष तथा कुम्रहार से राजप्रासाद के अवशेष प्राप्त हुए। है। बुलंदीवाग, पाटलिपुत्र का प्राचीन स्थान था। जिस महत्वाकांक्षी व्यक्ति ने 184 ई.पू. में अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या करके शुंग राजवंश की स्थापना की, वह इतिहास में पुष्यमित्र शुंग के नाम से विख्यात है।

*ई.पू. की कुछ शताब्दियों में चंद्रगुप्त मौर्य एवं अशोक ने गिरनार क्षेत्र में जल संसाधन व्यवस्था की ओर ध्यान दिया। उस क्षेत्र में चंद्रगुप्त मौर्य ने सुदर्शन झील खुदवाई तथा अशोक ने ई.पू. तीसरी शताब्दी में इससे नहरें निकाली। शक क्षत्रप रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख में इन दोनों के कार्यों का वर्णन है। जूनागढ़ के शासक रुद्रदामन ने इस झील की मरम्मत कराई थी।

 

 

महत्वपूर्ण प्रश्न (FAQ)-

प्रश्न 1. सुदर्शन झील  का निर्माण किसने करवाया था?

उत्तर- अशोक ने सुदर्शन झील  का निर्माण किसने करवाया था।

प्रश्न 2. भरहुत का स्तूप कहाँ स्थित है?

उत्तर- भरहुत का स्तूप म.प्र. के सतना जिले में स्थित है।

प्रश्न 3. सांची तथा भरहुत के स्तूपों की खोज किसने की थी?

उत्तर- सांची तथा भरहुत के स्तूपों की खोज एलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी।

प्रश्न 4. भाग एवं बलि प्राचीन भारत में क्या थे?

उत्तर- भाग एवं बलि प्राचीन भारत में राजस्व के स्रोत थे।

प्रश्न 5. अशोक के अभिलेखों में मौर्य सामाज्य के 5 प्रांतों के नाम बताइयें?

उत्तर- मौर्य सामाज्य के 5 प्रांतों के नाम- उत्तरापथ, अवंतिरट्ठ, कलिंग, दक्षिणापथ, प्राच्य या पूर्वी प्रदेश ।

 

 

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