लाइबनिट्ज का चिदणुवाद क्या है।

 लाइबनिट्ज का चिदणुवाद क्या है | Leibniz’s Monad in Hindi

चिदणुवाद 

 लाइबनिट्ज का द्रव्य सिद्धान्त चिदणुवाद कहलाता है, क्योंकि चिदणु ही द्रव्य हैं। चिदणु (Monad) ग्रीक शब्द है जो एकतावाचक है। मोनॉड शब्द का प्रयोग ब्रूनो (Bruno) के विचारों में अधिक प्राप्त होता है, परन्तु ब्रूनो के विचारों से लाइबनिट्ज प्रभावित नहीं थे। सम्भवतः लाइबनिट्ज ने मोनॉड शब्द प्रसिद्ध रासायनिक वान हेलमोण्ट (Van Helmount) से लिया था। वान हेलमोण्ट ने ही सर्वप्रथम सरल, सूक्ष्म, न्यूनतम अवयव को मोनॉड या चिदणु माना है। लाइबनिट्ज के अनुसार चिदण विश्व के परम सूक्ष्म न्यूनतम विशेष पदार्थ हैं जो शक्तिसम्पन्न,अविनश्वर तथा त्रिभुज हैं। ये चिदणु ही विश्व के परम द्रव्य हैं।

देकार्त के अनुसार सापेक्ष और निरपेक्ष रूप से द्रव्य दो प्रकार का है। चित्, अचित सापेक्ष द्रव्य है और ईश्वर निरपेक्ष द्रव्य है। स्पिनोजा के अनुसार द्रव्य केवल एक ही है। ऐसा निरपेक्ष द्रव्य केवल ईश्वर ही है। चित् अचित् ईश्वर के गुण है। लाइबनिट्ज के अनुसार द्रव्य एक नहीं अनेक हैं, परन्तु ये चित् रूप है। ये चिदणु ही जगत् के मूल कारण हैं। ये अचेतन अणुरूप नहीं, वरन् चेतन शक्तिरूप हैं। संसार का प्रत्येक पदार्थ इन्हीं सरल शक्तिरूप तत्वों का संघात है। विश्व में अनेक वस्तुएँ हैं। अतः प्रकृति अनन्त शक्तियों से परिपूर्ण हैं। प्रत्येक शक्ति एक वस्तु विशेष की सूचना देती है। शक्ति का विभाजन सम्भव नहीं, क्योंकि अभौतिक होने के कारण इसमें विस्तार नहीं। विस्तार ही भौतिक पदार्थों का गुण है। जिसमें विस्तार नहीं वह भौतिक भी नहीं, वह तात्त्विक है। ये शक्तिरूप सरल द्रव्य ही तात्त्विक पदार्थ हैं जिन्हें लाइबनिट्ज मोनॉड कहते हैं।

लाइबनिट्ज के मोनॉड की व्याख्या के लिए शक्ति तथा विचार को समय आवश्यक है। विस्तार भौतिक पदार्थों का आवश्यक गुण माना गया है। देकार्त बतलाया कि विस्तारविहीन भौतिक पदार्थ की कल्पना नहीं की जा सकती, क्योंकि कोई भी भौतिक पदार्थ किसी स्थान में अवश्य ही विस्तृत रहेगा। स्पिनोजा ने भी विस्तार को भौतिक पदार्थों का आवश्यक गुण माना है। स्पिनोजा के अनुसार विस्तार ईश्वर का असीम भौतिक गुण है। लाइबनिट्ज का कहना है कि यदि विस्तार ही भौतिक तत्वों का आवश्यक गुण है तो अन्तिम अविभाज्य अवयव को परमाणु कहते है।

अतः यदि भौतिक पदार्थ हैं तो उनमें विस्तार अवश्य होगा। यदि उनका विस्तार है तो उनका विभाजन अवश्य होगा, इस प्रकार अविभाज्य भौतिक पदार्थ की कल्पना व्यर्थ है। यदि भौतिक पदार्थ है तो वह अवश्य ही विभाज्य है, क्योंकि उसमें विस्तार है। अत: लाइबनिट्ज भौतिक पदार्थों का गुण विस्तार नहीं मानते। उनके अनुसार भौतिक पदार्थों का आवश्यक गुण शक्ति है| जड पदार्थ शक्ति सम्पन्न हैं। जड पदार्थों में परिणाम या परिवर्तन होता है, क्योंकि वे सशक्त है। लाइबनिट्ज के दर्शन में इसी शक्ति का नाम मोनॉड या चिदणु है।

मोनॉड विश्व के अन्तिम अविभाज्य अवयव है। न्यूनतम भाग होने के कारण इन्हें परमाणु रूप माना गया है, परन्तु मोनॉड तथा परमाणु में भेद है। भौतिक पदार्थों के अन्तिम अवयव, अविभाज्य परमाणु हैं, परन्तु ये भौतिक नहीं, क्योंकि भौतिक होने से उनका विभाजन सम्भव है| अत: वह अविभाज्य न्यूनतम अवयव नहीं हो सकता। अविभाज्य, अन्तिम अवयव अवश्य ही भौतिक नहीं, वरन् अभौतिक अर्थात् चेतन है। परमाणुवादियों से लाइबनिट्ज का विरोध स्पष्ट है। वैज्ञानिक परमाणुओं को शक्ति रूप तो मानते हैं, परन्तु अचेतन स्वीकार करते हैं। लाइबनिट्ज के अनुसार परमाणु चेतन है, क्योंकि ये अभौतिक है। इन्हीं अभौतिक, शक्तिसम्पन्न परमाणु रूप (अविभाज्य अवयवों) पदार्थ को लाबिनिट्ज मोनॉड कहते है।

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि लाइबनिट्ज के चिदणु शक्ति रूप हैं। शक्ति ही विश्वरूप का स्रोत है, अर्थात् सभी वस्तुओं का उद्भव शक्ति से ही सम्भव है। अतः शक्ति ही संसार का परम द्रव्य है। शक्ति विस्तार शून्य हैं, क्योंकि यह जड पदार्थ नहीं। अतः शक्ति का विभाजन भी सम्भव नहीं। अविभाज्य होने के कारण शक्ति सरल है। सरलता तथा अविभाज्यता के कारण शक्ति को मौलिक द्रव्य (Fundamental substance) भी माना गया है।

विश्व के सभी पदार्थ इस मौलिक शक्ति के परिणाम है। शक्ति मौलिक होने के कारण अविनाशी है। शक्तिसंघात के कारण विभिन्न वस्तुओं की उत्पत्ति होती है। संघातरूप वस्तु का विनाश होता है, परन्तु मौलिक नहीं। जिसकी उत्पत्ति होती है उसी का विनाश होता है। शक्ति सनातन होने के कारण इसकी उत्पत्ति नहीं होती। उत्पत्ति न होने से इसका विनाश भी नहीं होता। संघात वस्तु की ही उत्पत्ति तथा विनाशा दोनों होते है, उनके कारण शक्ति का की शक्ति अकारण है, अजन्य है, अतः अविनाशी है। इसलिए शक्ति (मोनाड) ही परम द्रव्य है।

परम तत्व (मोनॉड) का संख्या के सम्बन्ध में लाइबनिट्ज का कहना है कि तत्व एक नहीं अनेक है। विश्व में अनेक पदार्थ हैं तथा सभी पदार्थ शक्ति प्रस्त का शक्तिसम्पन्न हैं। अतः शक्ति अनेक है। तात्पर्य यह है कि लाइबनिट्ज के अनुसार परमतत्व एक नहीं अनेक हैं। अनेकता की सिद्धि के लिए लाइबनिन प्रमाण भी देते। चित-अचित दोनों की परीक्षा से शक्ति की अनेकता सिद्ध होती है। अचित पदार्थ शारीरादि विस्तारमय हैं। परन्तु इनका विस्तार किसी स्थान में ही सम्भव है। दो शरीर एक ही स्थान में विस्तृत नहीं हो सकते। प्रत्येक के लिए भिन्न-भिन्न स्थान की आवश्यकता है। स्थान की भिन्नता से सिद्ध है कि शरीर या अचित पदार्थ अनेक है। अतः उनका कारण (शक्तिरूप) मोनॉड भी भिन्न है। इसी प्रकार चित् पदार्थो के विश्लेषण से भी अनेकता सिद्ध होती है। चित-पदार्थ भी अचित के समान अनेक है।

चेतना के कारण ही एक व्यक्ति का दूसरे से भेद सम्भव है। दो व्यक्तियों के शरीर में जिस प्रकार भेद है उसी प्रकार उनकी चेतना के कारण भी उनमें भेद है। इस भेद से सिद्ध है कि चेतना अनेक है। चेतना के कारण ही एक व्यक्ति का दूसरे से भेद सम्भव है। दो व्यक्तियों के शरीर में जिस प्रकार भेद है उसी प्रकार उनकी चेतना के कारण भी उनमें भेद है। इस भेद से सिद्ध है कि चेतना अनेक है, अतः अचित् के समान चित भी अनेक ही हैं। इन दोनों की भिन्नता तथा अनेकता से मोनॉड की भिन्नता तथा अनेकता सिद्ध है। यदि मोनॉड की संख्या एक होती तो चित् था। अचित् सभी द्रव्यों की संख्या एक होती। स्पष्ट है कि लाइबनिट्ज के मोनॉड परम तत्व होते हुए भी अनेक है।

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 मोनॉड के स्वरूप की व्याख्या करते हुए लाइबनिट्ज कहते हैं कि चिदणु चेतन परमाणु हैं। परमाणु कहने से लाइबनिट्ज का तात्पर्य है कि मोनॉड विश्व के अन्तिम, अविभाज्य, सरलतम, शक्तिरूप अवयव है। वैज्ञानिकों के अनुसार न्यूनतम, अविभाज्य अवयव ही परमाणु है। परन्तु वैज्ञानिकों के परमाणु अचेतन पदार्थ है। लाइबनिट्ज के परमाणु चेतन है। अतः उनका वैज्ञानिकों से भेद स्पष्ट है।

लाइबनिट्ज के चेतन परमाणु या चिदणु विश्व की अन्तिम इकाई (Unit) है। परन्तु ये गणित की इकाई से भिन्न है। गणित की इकाई शक्तिहीन निर्जीव पदार्थ है। लाइबनिट्ज के चिदणु सशक्त चेतन पदार्थ हैं। गणित की इकाई काल्पनिक है, लाइबनिट्ज के चिदणु तात्विक हैं। क्योंकि चिदणु ही विश्व के वस्तुतः परम तत्व है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि स्वतन्त्र, शक्तिमान, चेतन, विशेष द्रव्य ही चिदणु हैं। लाइबनिट्ज के अनुसार ये ही परम तत्व है।

 

 

चिदणु और चेतना

हम पहले विचार कर आये हैं कि लाइबनिट्ज के अनुसार चेतन परमाणु ही चिदणु है। अतः चेतन ही चिदणु का लक्षण माना गया है। विश्व असंख्य चेतन परमाणुओं से भरा है। प्रत्येक चिदणु अपने आपमें व्यक्ति विशेष है। चिदणु की विशिष्टता उसकी स्वगत चेतना से सिद्ध होती है। तात्पर्य यह है चेतना ही चिदणु का गुण है जिसके कारण चिदणु का सजातीय भेद सम्भव है। जातिरूप सभी चिदणु समान है, परन्तु स्वगत चेतना के कारण उनमें भेद हैं।

इसी दृष्टि से कहा गया है कि चिदणु में गुणात्मक तथा संख्यात्मक दोनों भेद (Difference in quality and quantity both) है। तात्पर्य यह है कि न्यूनाधिक चेतना के कारण चिदण भिन्न है। तथा अनेक होने के कारण उनमें संख्यात्मक भेद अवयव ही है। प्रत्येक चिदण में चित्-शक्ति है, परन्तु समान नहीं। यही प्रत्येक चिदणु की विशेषता है तथा इसी गुण वैषम्य के कारण प्रत्येक चिदणु को व्यक्ति-विशेष स्वीकार किया है।

चेतना के आधार पर लाइबनिट्ज चिदणु की तारतम्यक श्रेणी (Hierarchical order) की व्याख्या बतलाते है। लाइबनिट्ज के सम्मुख दो समस्याएँ है-एक ओर तो चिदणु समान नहीं, क्योंकि प्रत्येक चिदणु में स्वगत चेतना भिन्न-भिन्न है दूसरी ओर वे चेतना के विकास के आधार पर चिदणु की तारतम्यक श्रेणी भी मानते हैं। यदि चिदणु भिन्न-भिन्न है तो उनकी श्रेणी कैसी? इसकी व्याख्या लाइबनिट्ज क्रमबद्धता के नियम (Law of continuity) से करते हैं।

लाइबनिट्ज के अनुसार चेतना के विकास की एक श्रृंखला है। चेतना के पाँच स्तर हैं—अचेतन, उपचेतन, चेतन, स्वचेतन और पूर्ण चेतन। सबसे पहली अवस्था अचेतन है। परन्तु अचेतन का अर्थ चेतना का अभाव नहीं, वरन् चेतना की न्यूनतम मात्रा है| तात्पर्य यह है कि लाइबनिट्ज के अनुसार अचेतन वही चेतन होगा जिसमें चेतना कम मात्रा में हो, नहीं के बराबर हो। यह निम्नतम श्रेणी है जिसे लाइबनिट्ज सरल या निम्न चिदणु का स्तर बतलाते हैं। इस स्तर के चिदणु में चेतना नई सी रहती है। चेतना की कमी के कारण इन्हें कुछ भी प्रत्यक्षात्मक भान हो पाता। यह स्तर निद्राकाल के चेतना की अवस्था है। यह जड जगत है। दूसरा स्तर उपचेतन का है। इस स्तर की चेतना स्वजावस्थित जैसी है। इस स्तर में स्मृति विदामान रहती है। यह पशु जगत तथा वनस्पति जगत है।

तीसरा स्तर चेतन का है। इस स्तर पर चेतना जाग्रत अवस्था में रहती है। अतः प्राणी को प्रत्यक्षात्मक ज्ञान होता है तथा उसे अहं बोध (Self-consciousness) रहता है। चेतन तथा स्वचेतन का स्तर मानव का है। मानव की अपने आपमें चेतना विद्यमान रहती है। अतः वह स्वचेतन है। मानव विचारशील होता है, क्योंकि विचार आत्मा का गुण है। इसीलिये इस स्तर को आत्मा (Soul) का स्तर कहते हैं। पशु में भी आत्मा है, परन्तु आत्म-चेतन नहीं, विचार नहीं। पूर्ण चेतन स्तर ईश्वर का है। ईश्वर को ब्रह्माण्ड की सभी वस्तुओं का पूर्ण बोध रहता है।

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि चेतना ही चिदणु का आन्तरिक धर्म है। सभी स्तर के चिदणु में न्यूनाधिक मात्रा में चेतना अवश्य रहती है। पूर्णतः अचेतन विश्व में कोई पदार्थ नहीं। अचेतन का अर्थ न्यूनतम चेतन है, जड़ नहीं। चेतन के कारण ही चिदणु में संवेदन-शक्ति होती है। जो अधिक चेतन है वह अधिक संवेदन-शक्ति सम्पन्न है। अतः चेतना को आधार मानकर संवेदन-शक्ति की भिन्नता से चिदणु के पाँच प्रकार माने गये हैं। यह संवेदन-शक्ति ही प्रत्येक चिदणु का कार्य (Activity) कही जाती है। प्रत्येक चिदणु चेतन होने से संवेदनशील है, परन्तु संवेदना की मात्रा भिन्न-भिन्न है। जो अधिक संवेदनशील है, उसे अधिक स्पष्ट ज्ञान (Clear perception) होता है तथा जो कम संवेदनशील है उसे अस्पष्ट ज्ञान होता है।

अतः स्पष्ट तथा अस्पष्ट ज्ञान को ध्यान में रखते चिदणु के पाँच प्रकार माने गये है। प्रथम प्रकार के क्षीणतम चिदणु है। इन्हें अस्पष्ट ज्ञान होता है। इनमें ज्ञानात्मक शक्ति अवश्य रहती है, परन्तु नहीं के बराबरा यह निजी जगत है। इन्हें लाइबनिट्ज नग्न चिदणु (Nacked or bare monad) कहते हैं। दितीय प्रकार क्षीणतर चिदणु का है। इस प्रकार के चिदणु को भी अस्पष्ट ही ज्ञान होता यह उपचेतन, वनस्पति जगत है। इस जगत के प्राणियों को संवेदना तो होती है परन्तु स्पष्ट नहीं। तृतीय प्रकार के चिदणु क्षीण कहे जाते हैं। इस जगत् में संवेदन स्पष्ट होता है। यह पशु जगत है।

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लाइबनिट्ज इसे चेतन जगत (Soul monad) मानते है। चतुर्थ प्रकार चिदण का स्पष्टतर ज्ञान होता है। यह स्वचेतन मानव जगत का है। लाइबनिटज इसे आत्म जगत (Spirit monad) मानते हैं। मानव में स्मति शक्ति होती है तथा वह विवेकपूर्ण होता है। विवेक के कारण ही मानव तथा पशु जगत् में भेद होता है। पञ्चम प्रकार का चिदणु केवल एक है जिसे लाइबनिट्ज ईश्वर (God monad) कहते हैं।

ईश्वर को स्पष्टतम ज्ञान होता है। इस प्रकार लाइबनिट्ज चिदणु को चित्स्वरूप मानते हैं तथा ज्ञान ही इनका कार्य बतलाते है। एक ही चेतनशक्ति विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त होती है। पत्थर से लेकर मनुष्य तक सभी चेतन है। पत्थर में चेतन की मात्रा कम है तथा मनुष्य में अधिका परन्तु सभी एक ही श्रृखंला की विभिन्न कड़ियाँ हैं। यहाँ स्पष्टतः लाइबनिट्ज देकार्त के द्वैतवाद का निषेध करते हैं। देकार्त ने चित्, अचित् द्रव्यों में मूलतः द्वैत बतलाया है। मन का गुण विचार है तथा शरीर का गुण विस्तार है। लाइबनिट्ज के अनुसार दोनों में मूलतः साम्य है। दोनों चेतन हैं, केवल मात्रा का भेद है।

 

 

चिदणु का स्वभाव

लाइबनिट्ज के अनुसार विश्व में असंख्य चिदणु है। प्रत्येक चिदणु चित् है तथा शक्तिमान विशेष है। परन्तु प्रत्येक चिदणु अन्य को अपने भीतर प्रतिबिम्बित करते है। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्तिगत चिदणु में सभी चिदणु विद्यमान हैं, अर्थात् व्यक्ति में समष्टि का प्रतिबिम्ब है। इसी दृष्टि से लाइबनिट्ज व्यक्तिगत चिदणु को विश्वरूप मानते हैं तथा बतलाते हैं कि प्रत्येक चिदणु में सम्पूर्ण विश्व का इतिहास देखा जा सकता है। इसी कारण चिदणु को संसार का लघु रूप माना गया है। अणु में विराट समाहित है। चिदणु चित्स्वरूप हैं, अतः संसार भी ज्ञानस्वरूप है। चित्स्वरूप होने के कारण प्रतिनिधित्व (Representation) चिदणु का स्वभाव स्वीकार किया गया है।

चिदणु के स्वभाव के सम्बन्ध में एक दूसरी विशेष बात यह बतलायी गयी है  कि ये बाह्य प्रभाव से रहित है। इसी दृष्टि से चिदणु को गवाक्षहीन माना गया है। प्रत्येक चिदणु अपने आप में पूर्ण है, वह दूसरे चिदणु से प्रभावित नहीं होता, क्योंकि प्रत्येक चिदणु छिद्र रहित है। यह चिदणु की स्वतन्त्रता सिद्ध करता है। प्रत्येक चिदणु  विश्व को प्रतिबिम्बित करता है, परन्तु अपने ही ढंग से। तात्पर्य यह है कि प्रत्येक चिदणु स्वतन्त्र है तथा व्यक्तिगत रूप से विश्व को प्रतिबिम्बित करता है। कोई चिदणु स्पष्ट ढंग से तथा कोई अस्पष्ट ढंग से प्रतिबिम्बित करता है। जो स्पष्ट प्रतिबिम्बित करता है वह अधिक सक्रिय माना गया है।

अतः स्पष्टता सक्रियता का सूचक है। पूर्णतः स्पष्टतम रूप में प्रतिबिम्बित करना तो केवल उच्चतम चिदणु(ईश्वर) का कार्य है, परन्तु अन्य चिदणु न्यूनाधिक भाव से प्रतिबिम्बित करते है। अतः उच्चतम चिदणु को पूर्णतः सक्रिय स्वीकार किया गया है। यहाँ एक स्वाभाविक प्रश्न यह उपस्थित होता है कि प्रत्येक चिदणु चित् शक्ति का केन्द्र है फिर भी विश्व को अलग-अलग रूप से प्रतिबिम्बित करता है। 

यह कैसे? लाइबनिट्ज का कहना है। कि पूर्णतः चेतन चिदणु केवल ईश्वर ही है। अन्य सभी प्रकार के चिदणु में किसी में जडता अवश्य रहती है। यही जड़ता उनकी क्रिया में अवरोध उत्पन्न करती है। जिसमें जितनी जड़ता है वह उतने ही निम्न ढंग से या अस्पष्ट रूप से विश्व को प्रतिबिम्बित करता है। अतः उच्चतम चिदणु ईश्वर ही पूर्णतः सक्रिय है। ईश्वर के अतिरिक्त अन्य सभी में जड़ता अवश्य विद्यमान है। यही जड़ता उनके सक्रिय होने में अवरोध उत्पन्न करती है। परन्तु प्रत्येक चिदणु विकास के क्रम में है, अतः निष्क्रियता से सक्रियता की ओर वे सदा अग्रसर होते रहते हैं। प्रत्येक चिदणु विकास की इस प्रक्रिया में अपनी आन्तरिक शक्ति को विकसित कर रहा है। शक्ति सबमें समानतः है परन्तु शक्ति के विकास में भेद हैं। इसी विकास भेद के कारण चिदणु में भी वैषम्य है।

 

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