फ्रान्सिस बेकन आधुनिक युग

फ्रांसिस बेकन की जीवनी, योगदान और आगमन विधि | Francis Bacon in Hindi

फ्रान्सिस बेकन (Francis Bacon) [सन् १५६१ से १६१७]

फ्रान्सिस बेकन आधुनिक युग के सर्वप्रथम महत्त्वपूर्ण दार्शनिक हैं। इनका जन्म सेमॉस में हुआ था। इनके पिता का नाम सर निकोलस बेकन था जो राजदरबार में ग्रेट सील के लॉर्ड कीपर थे। इनकी माता लेडी एन ग्रीक तथा लैटीन भाषा की विदुषी थीं। इनके चाचा सर विलियम सेसिल के प्रधान मन्त्री थे। बेकन का जन्म सभ्य तथा शिक्षित परिवार में हुआ था। इस वातावरण में जन्म लेने के कारण बेकन के मन में प्रारम्भ से ही महात्वाकांक्षा थी। बारह वर्ष की अवस्था में इन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटो कालेज में प्रवेश पाया। उन दिनों विश्वविद्यालय में अरस्तू का बड़ा प्रभाव था। लोग अरस्तू का उद्धरण देने में बड़े गर्व का अनुभव करते थे। सोलह वर्ष की अवस्था से बेकन अरस्तु के विचारों पर प्रहार करने लगे।

बेकन का जन्म यद्यपि धनी परिवार में हुआ था फिर भी इनकी धन की आवश्यकता बराबर बनी रहती थी। ये अपने पिता के छठवें पुत्र थे, अतः इनके पिता इनके लिए कुछ छोड़ न गये। पिता की मृत्यु के बाद इनके ऊपर कर्ज का बोझ आ गिरा। इसी कारण यद्यपि प्रारम्भ से दार्शनिक जिज्ञासा थी फिर भी अधिक धन उपार्जन करने के लिए इन्होंने बैरिस्टर की परीक्षा पास कर वकालत करना शुरू किया। अपनी मेधा तथा वाक्-चातुर्य के कारण थोड़े ही दिनों में इन्होंने बहुत धन कमाया। २३ वर्ष की उम्र में इन्हें पार्लियामेण्ट में स्थान मिला।

अपने वाक्-चातुर्य से उन्होंने लार्ड एसेक्स को अपना मित्र बनाया। एसेक्स समय-समय पर बेकन की आर्थिक सहायता किया करते थे। परन्तु इतने पर भी बेकन अपने कर्ज से मुक्ति न पा सके धन लोभ से इन्होंने महारानी एलिजाबेथ का गुणगान प्रारम्भ किया। महारानी प्रसन्न हो गयीं पर इन्हें वरदान न मिला। धन के लोभ से ही इन्होंने एक विधवा से शादी करना चाहा, परन्तु वहाँ भी इन्हें निराशा मिली। उस विधवा ने बेकन के प्रतिद्वन्द्वी को अपना पति चुन लिया। ये कई बार भीषण कर्ज में फँसे, परन्तु एसेक्स की सहायता से मुक्ति पा गये। धीरे-धीरे एसेक्स का प्रभाव कम होने लगा। एसेक्स के विरोधी बढ़ने लगे। एसेक्स पर विद्रोह का मुकदमा चलाया गया।

इस समय बेकन ने अपने मित्र, हितैषी और रक्षक के साथ विश्वासघात किया कहा जाता है कि बेकन ने एसेक्स के विरुद्ध झूठी गवाही दी कि सरकार का कहना ठीक है। लार्ड एसेक्स राजद्रोही, देशद्रोही है, क्योंकि यह महान की हत्या का षड्यन्त्र रच रहा था। इस घटना से बेकन के ऊपर विश्वाधात आरोप लगाया जाता है। कुछ दिनों बाद एलिजाबेथ की मृत्यु हो गयी और जेम्स प्रथम इंग्लैण्ड की गद्दी पर बैठा। जेम्स प्रथम लार्ड एसेक्स को बहुत मानता था यह देख बेकन ने फिर एसेक्स की प्रशंसा करना शुरू किया। इसी बीच बेकन ने एक धनी लड़की से शादी कर ली।

इस शादी से बेकन को काफी धन हाथ लगा। सन् १७१८ में बेकन को लार्ड चैन्सेलर का पद मिला। इस पद पर दो वर्ष काम करने के बाद बेकन पर घूस लेने का मुकदमा चलाया गया। बेकन ने अपनी सफाई में इस घस को झूठ सिद्ध करना चाहा। परन्तु न्यायाधीशों ने बेकन की न सनी और बेकन को ४० हजार रुपये का जुर्माना तथा कारागार का दण्ड मिला। चार दिन कारागार में रहने के बाद बेकन की वहीं मृत्यु हो गयी। बेकन का जीवन और पतन दोनों का उदाहरण है। बेकन अपने समय का सबसे बड़ा बुद्धिमान, प्रतिभावान तथा (चारित्रिक दृष्टि से) सबसे बड़ा नीच समझा जाता था।

बेकन उत्कृष्ट साहित्यिक, कुशल राजनीतिज्ञ तथा मेधावी दार्शनिक थे। उनकी साहित्यिक कृति उनका निबन्ध संग्रह (Essays) है। इस निबन्ध संग्रह के कारण अंग्रेजी साहित्य में बेकन अमर माने जाते हैं। उनकी दार्शनिक कृतियाँ दो हैं:-

१. ज्ञान का विकास (Advancement of Learning)

२. तर्क पद्धति (Novum Organum)

बेकन को आधुनिक युग का दुन्दुभिवादक कहा जाता है, क्योंकि बेकन से ही नए युग, नयी विचारधारा का जन्म होता है। बेकन प्राचीन युग के कट्टर विरोधी है तथा वैज्ञानिक युग के पक्के समर्थक। बेकन के समय अरस्तू के विचारों का समाज में बड़ा प्रभाव था। अरस्तू के उद्धरणों को प्रस्तुत करना ही पाण्डित्य की परीक्षा मानी जाती थी। प्रारम्भ से ही बेकन का प्रधान लक्ष्य अरस्तू के कुप्रभावों से समाज की रक्षा करना था। मानव जाति की उन्नति करना मेरा काम है, बौद्धिक सभ्यता की नयी नींव डालना मेरा कर्त्तव्य है। बेकन ने आधुनिक बुद्धि को विभिन्न व्यामोहोडु (Idols) से दूर किया, अतः हाइवर्त्त आदि बेकन को आधुनिक दर्शन का जनक मानते हैं। यह कथन अंशत: सत्य भी है।

                                                फ्रान्सिस बेकन का युग

बेकन का युग मध्य युग और यूनानी विचारों की दासता का युग है। मध्य युग में दर्शन धर्म का दास बन गया था। धर्म और ईश्वर मीमांसा (Theology) मध्ययुगीन दार्शनिकों की बुद्धि पर छा गये थे। अधिकांश दार्शनिक इन्हीं दो विषयों पर चिन्तन किया करते थे। धर्म और ईश्वर के अतिरिक्त किसी भी विषय पर सोचना उनके लिये सम्भव न था। इसका फल सह हुआ कि दार्शनिक चिन्तन बिल्कुल समाप्त-प्राय हो गया था। बेकन के सामने सबसे बड़ी समस्या थी दर्शन तथा धर्म के क्षेत्र को पृथक करना। दर्शन के आधार हैं इन्द्रिय विज्ञान और आगमनात्मक तक धर्म का आधार है अतीन्द्रिय विज्ञान और श्रद्धा।

दर्शन का लक्ष्य है मानव समाज का कल्याण तथा इसका साधन है भौतिक विज्ञान के आविष्कारों द्वारा प्रकृति पर विजया बेकन के युग में कई उपयोगी आविष्कार हुए। उसी समय चुम्बक, लोहे और कम्पास का पता लगा था जिसके सहारे नाविकों को आशा हो गयी थी कि वे संसार भर का भ्रमण आसानी से कर लेंगे। बारूद बनाने तथा छापाखाने का भी आविष्कार हो गया था, जिससे लोग समझते थे कि ज्ञान का प्रसार कुछ दिनों का खेल है। हार्बी ने रुधिर संचालन के नियमों को सिद्ध कर दिया था और लोग समझने लग गये थे कि मानव अब दीर्घायु हो जायेगा। बेकन की विज्ञान पर पूरी आस्था थी। अतः उनके दर्शन में दो बातें मुख्य है- प्रकृति को हमें इनके नियमों के लिए जानना चाहिये और प्रकृति तथा मानव के प्रति वैज्ञानिक ज्ञान का एकमात्र उद्देश्य है कि उससे मानव कल्याण हो।

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उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि बेकन ने सर्वप्रथम दर्शन का सम्बन्ध धर्म से विच्छेद कर विज्ञान से जोड़ा। विज्ञान भौतिक तथा मानव जीवन से सम्बद्ध है; अतः दर्शन का सम्बन्ध भी मानव समाज से हो गया तथा इसका स्वरूप भी अतीन्द्रिय न होकर भौतिक हो गये। यह बेकन की सबसे बड़ी देन है। बेकन के अनुसार दर्शन शास्त्र का लक्ष्य मानव है तथा इसका प्रयोजन मानव समाज के लिये उपयोगी सिद्धान्तों का निर्माण करना है।

बेकन का दृष्टिकोण पूर्णतः व्यावहारिक है। व्यावहारिक दृष्टि से बेकन ने बतलाया है कि ज्ञान शक्ति है। प्राचीन काल में ज्ञान को प्रेम कहा जाता था। इस दृष्टि से दर्शनशास्त्र (Philosophy) को ज्ञान के प्रति प्रेम (Philos Sophia) माना जाता है। बेकन इससे सहमत नहीं है। यदि दर्शन शास्त्र शुद्ध बौद्धिक ज्ञान है जिसका व्यावहारिक जीवन में कोई उपयोगी नहीं तो यह मानव जीवन के लिये भी उपयोगी नहीं। इसी प्रकार मध्य युग में ज्ञान को धर्म का वाहन मान लिया गया था। अतः ज्ञान का कार्य केवल धर्मशास्त्रों में आस्था उत्पन्न करना था।

धर्मशास्त्रों से ज्ञान की सीमा बँध गयी थी। बेकन ने सर्वप्रथम ज्ञान शक्ति है इस सिद्धान्त पर जोर दिया है। इससे स्पष्टतः प्रतीत होता है कि बेकन जान केवल शब्द-जाल नहीं मानते। उनके अनुसार ज्ञान का उद्देश्य मानव सुख हो जान मानव सख का साधन है। इस प्रकार बेकन उपयोगितावाद (utilitarianism) के प्रवर्तक माने जाते हैं। ज्ञान को शक्ति मानकर बेकन ने दर्शन और जीवन की सम्बन्ध जोड़ा। ज्ञान क्रियापरक है, ज्ञान के विषय अतीन्द्रिय विज्ञान नहीं कर भौतिक इन्द्रिय विज्ञान है।

 

आगमन प्रणाली(Inductive Method)

बेकन आधुनिक आगमन प्रणाली के जन्मजाता (Father of the modern empirical method) माने जाते हैं। इसी कारण कुछ लोग (हाइवर्ट आदि) बेकन को आधुनिक दर्शन का पिता मानते हैं। वस्तुतः बेकन आधुनिक आगमनात्मक तर्क के पिता हैं। बेकन के पूर्व केवल निगमन प्रणाली ही सर्वमान्य तर्क प्रणाली थी। निगमन प्रणाली अरस्तू की देन है। अरस्तू से लेकर बेकन के पूर्व तक यही दार्शनिक प्रणाली थी। इस प्रणाली में तीन वाक्य होते हैं-वृहत् वाक्य, लघु वाक्य तथा निगमन। वृहत् तथा लघु आधार वाक्य (Premises) हैं। निगमन की सत्यता इन्हीं आधार वाक्यों पर निर्भर रहती है। तात्पर्य यह है कि यदि आधार वाक्य सत्य है तो निगमन भी सत्य होगा। उदाहरणार्थ,

सभी मनुष्य मरणशील हैं,

सुकरात मनुष्य है, 

अतः सुकरात भी मरणशील है।

 

यह निगमनात्मक तर्क है। इस तर्क का विश्लेषण यों है यदि सभी मनुष्य मरणशील हैं और सुकरात मनुष्य है। यदि ये दोनों आधार-वाक्य सत्य हैं तो ‘सुकरात मरणशील हैं’ यह निगमन भी सत्य होगा। परन्तु आधार वाक्यों की सत्यता की परीक्षा हम नहीं कर सकते। प्रश्न यह है आधार वाक्य हम कहाँ से पाते हैं? बेकन पूर्व के दार्शनिक आधार वाक्य मुख्यतः अरस्तू और प्लेटो से पाते थे। उदाहरणार्थ, अरस्तू और प्लेटो ने बतलाया कि नक्षत्रों का परिक्रमा-पथ गोल है। उनके बाद के दार्शनिकों के लिये यही आधार वाक्य बन गया। इस प्रकार निगमनात्मक तर्क के माध्यम से दार्शनिकों के बीच अरस्तू का बोलबाला था। बेकन अरस्तू से थोड़ा भी प्रभावित नहीं थे।

बेकन के अनुसार अरस्तू का निगमनात्मक तर्क दार्शनिक प्रगति का घातक है। बेकन ने बतलाया कि निगमनात्मक प्रणाली वैज्ञानिक विचार के लिये सर्वथा अनुपयुक्त है। तर्क किसी मान्यता से प्रारम्भ नहीं होता। लेकिन निगमन प्रणाली में हम आधार-वाक्य को सत्य मानकर ही प्रारम्भ करते हैं, अतः यह प्रणाली उचित नहीं। हमें प्रकृति में उदाहरणों का निरीक्षण करना चाहिए। इसी निरीक्षण से हमें आधार-वाक्य प्राप्त करना चाहिये। जब हम प्रकृति की घटनाओं का निरीक्षण कर आधार-वाक्य प्राप्त करते हैं तो आधार-वाक्य अवश्य ही सत्य होंगे तथा आधारवाक्य के सत्य होने से निगमन भी सत्य होगा। उदाहरणार्थ,

सुकरात मरणशील है,

प्लेटो मरणशील है,

अरस्तू मरणशील हैं,

अतः सभी मनुष्य मरणशील है।

 

यह आगमनात्मक अनुमान है। आधार-वाक्य यहाँ केवल मान्यता नहीं हैं। आधार-वाक्य हम प्रकृति के निरीक्षण से प्राप्त करते हैं। जैसे सुकरात, प्लेटो, अरस्तू को मरते हुए देखकर सभी मनुष्यों की मरणशीलता का अनुमान करते हैं। बेकन इसी आगमनात्मक प्रणाली को आदर्श मानते हैं। यही वैज्ञानिक प्रणाली है। विज्ञान में हम प्रकृति की घटनाओं का निरीक्षण कर कोई अनुमान निकालते हैं। हम किसी मान्यता से प्रारम्भ करें तो हमारा निगमन दूषित होगा। इसी कारण बेकन को निगमनात्मक प्रणाली मान्य नहीं है। मध्य युग के दर्शन का सबसे बड़ा दोष निगमनात्मक प्रणाली ही है। बेकन मध्य युग की दार्शनिक प्रणाली में निम्नलिखित दोष बतलाते हैं-

१. प्राकृतिक घटनाओं के निरीक्षण तथा प्रयोग के प्रति उदासीनता की भावना।

२. धर्म के प्रति अत्यधिक आस्था (धार्मिक आस्था) अन्धविश्वास तथा रूढिगत भावनाओं को जन्म देना।

३. ईश्वर को ही दार्शनिक विषयों का केन्द्र मान लेना।

४. धर्मशास्त्रों में अतिशय आस्था रखना।

उपरोक्त दोषों से बचने के लिए ही बेकन ने आगमनात्मक तर्क का प्रतिपादन किया है। आगमनात्मक विधि प्रकृति की घटनाओं का निरीक्षण है, सत्य की खोज का उचित मार्ग है। इस प्रणाली का आधार आप्तवचन नहीं, वरन् अनुभव है। आगमनात्मक तर्क में हम अपने अनुभवों के आधार पर सामान्यीकरण (Generalization) करते हैं। परन्तु बेकन के अनुसार आगमनात्मक प्रणाली भी पक्षपात तथा दुराग्रह से रहित होनी चाहिए। पक्षपात, दुराग्रह से हमारा अनुमान दूषित होता है। हमें तटस्थ भाव से प्रकृति के उदाहरणों का निरीक्षण करना चाहिए। बेकन स्वयं अपने आगमनात्मक तर्क के सम्बन्ध में कहते हैं कि वैज्ञानिकों को मकड़ी के समान नहीं होना चाहिए जो अपने भीतर के रेशों में ही जाला बुन डालती है और न चीटियों के समान ही होना चाहिए जो केवल सञ्चय करते हैं तथा (सञ्चित वस्तु को) दूसर रंग (मधु) में परिणत करती है।

लेकिन आगमन विधि को सफल बनाने के लिए तर्क तथा पक्षपात रहित होना आवश्यक है। सावधानी से तथा पक्षपात शून्य होकर ही हम प्रकृति का अध्ययन सकते हैं। परन्तु या तो हम प्रकृति का निरीक्षण करते ही नहीं या करते भी हो ठीक से नहीं करते। हम केवल दो-चार उदाहरणों को देखकर किसी सामान्य की कल्पना कर लेते हैं। प्रायः हम एक समान उदाहरणों का ही निरीक्षण करते विपरीत उदाहरणों को नहीं लेते। इसे एक दृष्टान्त द्वारा स्पष्ट कर सकते है।

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दो-चार बार बकरे की बलि चढ़ा देने से हम विपत्ति से बच जाते है, तो हम सामान्य नियम बना लेते हैं कि बलि देने से अलौकिक शक्ति प्रसन्न होती है तथा दुःख को नष्ट कर देती है। परन्तु हम उन उदाहरणों को नहीं देखते जिसमें लोग बलि तो चढ़ाते हैं, किन्तु विपत्ति से मुक्त नहीं होते। इस प्रकार हम उदाहरणों का समुचित अध्ययन नहीं करते। हम प्रकृति का अध्ययन करते समय अपने पूर्वाग्रह तथा अन्धविश्वास को प्रकृति पर लाद देते हैं, फलतः हमारा अध्ययन दूषित हो जाता है। अन्धविश्वास भी अनेक है-

 

१. जातीय अन्धविश्वास (Idols of the tribe) यह मानव जाति में व्याप्त अन्धविश्वास है। ये अन्धविश्वास मानव जाति में सहज संस्कार रूप में विद्यमान रहते हैं। उदाहरणार्थ, सभी लोग विश्वास करते हैं कि प्रकृति की प्रत्येक घटना सप्रयोजन है, परन्तु यह कदापि सत्य नहीं। हम अपनी भावना को प्रकृति पर लाद देते हैं।

 

२. गुफा या व्यक्तिगत अन्धविश्वास (Idols of the cave)-ये अन्धविश्वास व्यक्ति के अपने (Personal) होते हैं। व्यक्ति जिस वातावरण, शिक्षा तथा संस्कार में पलता है, उसके बाहर वह नहीं सोच सकता। वह वातावरण तता संस्कार उसके लिए गुफा या कन्दरा (Cave) का काम करती है जिसके बाहर जाना व्यक्ति के लिए सम्भव नही। दार्शनिक विचारों में संकीर्णता का मुख्य कारण व्यक्ति का अन्धविश्वास ही है। हम अपने अन्धविश्वास के कारण प्रकृति की घटनाओं के निरीक्षण में न्याय नहीं कर सकते।

 

३. बाजारू अन्धविश्वास (Idols of the market place) यह व्यावहारिक भाषा सम्बन्धी अन्धविश्वास है| इसे बाजारू अन्धविश्वास भी कहा गया है, क्योंकि यह प्रचलित अन्धविश्वास है। प्रायः हम सोचते हैं कि विचार से भाषा नियन्त्रित होती है, परन्तु व्यवहार में भाषा से ही विचार नियन्त्रित होते हैं। अतः बेकन का कहना है कि यदि शब्दों का व्यवहार उचित ढंग से न करें तो हमें यथार्थ बोध भी कदापि न होगा। प्रत्येक शब्द का एक विशेष अर्थ है। यदि हम इस विशेष अर्थ को छोड़कर सामान्य अर्थ को ग्रहण करें तो हमें शब्द का सही अर्थ कदापि ग्रहण नहीं होगा। प्रायः दार्शनिक विवादों के मुल में यही शब्द और अर्थ सम्बन्धी कठिनाइयाँ होती हैं। यदि प्रयोगकर्ता के विशेष अर्थ को हम ध्यान में न रखते तो हम प्रयोगकर्ता के अभिप्राय को भी नहीं जान पाते।

 

४. नाटक के अन्धविश्वास (Idols of the theater) यह परम्परागत धर्मशास्त्र या आगम के प्रति अन्धविश्वास है। हम आगम या धर्मशास्त्र के वचनों को निर्विवाद सत्य मान लेते हैं। हम इन सत्यों की परीक्षा नहीं करते। इसी प्रकार प्लेटो, अरस्तू और बाइबिल के वचन को प्रमाण मानते हैं। यह रूढ़िवादिता और अन्धानुकरण है। इसे नाटक का अन्धविश्वास कहते हैं, क्योंकि यह यथार्थ नहीं। जिस प्रकार नाटक के पात्रों की रंगमञ्च पर भूमिका कल्पित होती है उसी प्रकार यह भी यथार्थ नहीं। तात्पर्य यह है कि धर्मशास्त्र के बहुत से सिद्धान्त कोरी कल्पना है, यथार्थ नहीं।

बेकन के अनुसार आगमनात्मक तर्क करते समय हमें उपरोक्त सभी बातों पर ध्यान देना आवश्यक है। बेकन के अनुसार प्रकृति की घटनाओं का निरीक्षण करते समय हमारे मन में किसी प्रकार का आग्रह नहीं होना चाहिए। हमें सर्वप्रथम घटनाओं का निरीक्षण करना चाहिए, तत्पश्चात् उनका विश्लेषण (Analysis) करना चाहिये। निरीक्षण और विश्लेषण से ही हम घटनाओं की तालिका बना सकते हैं।

तालिका भावात्मक (Positive) तथा अभावात्मक (Negative) दोनों प्रकार की होनी चाहिये। इसी तालिका के आधार पर हम सामान्य वाक्य बना सकते हैं। यह सामान्य वाक्य ही व्याप्ति है। परन्तु सामान्य वाक्य बनाते समय हमें शीघ्रता तथा पक्षपात दोनों दोषों से बचना चाहिये। सामान्य वाक्य की भी दो अवस्थाएँ हैं-कम सामान्य (Less general) तथा अधिक सामान्य (More general)| सर्वप्रथम हमें कम सामान्य वाक्य की स्थापना करनी चाहिए, अधिक सामान्य की। इस प्रकार का व्यापक या सामान्य वाक्य असन्दिग्ध होता है। इसी प्रकार के असन्दिग्ध तथा निश्चयात्मक वाक्य हमारे दार्शनिक ज्ञान के आधार हैं। तात्पर्य यह है कि आगमन ही दर्शनशास्त्र की एकमात्र विधि है।

 

 

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