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पुनर्बलन कौशल क्या हैं, अर्थ एवं परिभाषा | Reinforcement Skill in Hindi

इसमें हम लोग पुनर्बलन कौशल, Reinforcement Skill in Hindi, पुनर्बलन कौशल का अर्थ एवं परिभाषा, पुनर्बलन के प्रकार, सकारात्मक पुनर्बलन, नकारात्मक पुनर्बलन, पुनर्बलन कौशल के प्रयोग में सावधानियाँ, पुनर्बलन कौशल के लिए सूक्ष्म पाठ-योजना आदि ।

 पुनर्बलन कौशल (Reinforcement Skill)

शिक्षक को अपने शिक्षण को प्रभावशाली बनाने, छात्रों में पाठ के प्रति रुचि उत्पन्न करने तथा अधिगम हेतु अभिप्रेरित करने के लिए पुनर्बलन कौशल की आवश्यकता होती है। सिअर्स और हिलगार्ड (1964) के अनुसार, “अध्यापक कक्षागत अधिगम परिस्थितियों का निर्माता होने के कारण दण्ड और परस्कार प्रदान करने वाला प्रशासक है। वह इन्हें इस रूप में प्रयोग करता है कि जिसमें अधिगम अधिक प्रभावशाली हो।”

पुनर्बलन कौशल में दण्ड और परस्कार दोनों को ही परिस्थिति के अनुसार व्यवहार में लाया जाता है। इस कौशल को प्रतिष्टि या पृष्ठपोषण कौशल (Feed-back skill) भी कहा जा सकता है। थॉर्नडाइक, स्किनर तथा हल आदि मनोवैज्ञानिकों ने भी अधिगम के क्षेत्र में पुनर्बलन के महत्त्व को स्वीकार किया है। स्किनर का मानना है कि पुनर्बलन को दैनिक जीवन की गतिविधियों में देखा जा सकता है, क्योंकि मानव का यह स्वभाव है कि वह प्रशंसा तथा पुरस्कार मिलने पर कार्य के लिए स्वत: अधिकाधिक प्रेरित होता है। वह सुखद अनुभूतियों को बार-बार स्मरण कर प्रसन्न होता है तथा उन्हें स्थायी बनाना चाहता है एवं दुःखद अनुभूतियों से दूर रहना चाहता है। इसी तरह यदि अध्यापक बालकों को प्रोत्साहित करता है, तो वे सीखने के लिए प्रेरित होते हैं।

 

पुनर्बलन कौशल का अर्थ एवं परिभाषा

शिक्षक का व्यवहार, जिससे छात्रों को पाठ के विकास में भाग लेने हेत. प्रश्नों के सही उत्तर देने व सही विचार व्यक्त करते हुए प्रोत्साहन प्राप्त हो, उसे पुनर्बलन कहते हैं। अध्यापक कक्षा में शिक्षण के दौरान छात्रों से विभिन्न क्रियाएँ कराता है, जैसे ही बालक किसी इच्छित व्यवहार का प्रदर्शन करता है, अध्यापक उसे शाब्दिक या अशाब्दिक स्वीकृति प्रदान कर पुनर्वलित कर देता है। इससे बालक की प्रतिक्रिया शक्ति को बढ़ावा मिलता है। स्किनर का मानना है कि अध्यापक द्वारा छात्र की प्रशंसा करना, उत्तर को स्वीकार करना अथवा सिर हिलाने मात्र से ही बालक का पुनर्बलन सम्भव है। यह अध्यापक के शिक्षण कौशल पर निर्भर करता है कि किस व्यवहार को किस समय व किस प्रकार से पुनर्बलित किया जाये। इनके अनुसार पुनर्बलन वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा प्रतिक्रिया के फौरन बाद किसी उद्दीपक को यदि उपस्थित किया जाये तो प्राणी की प्रतिक्रिया-शक्ति बढ़ती है।

पुनर्बलन से तात्पर्य है,ऐसे उद्दीपनों (Stimuli) का प्रयोग करना या उन्हें प्रस्तुत करना या उन्हें हटाना ताकि किसी अनुक्रिया के होने की सम्भावना बढ़ जाये। इस स्थिति में प्रशंसा के शब्द उद्दीपन का कार्य करते हैं तथा विद्यार्थी का व्यवहार उद्दीपनों के परिणामस्वरूप होने वाली अनुक्रिया कहलाती है।

स्किनर ने पुनर्बलन को इन शब्दों में पारिभाषित किया है – “Strengthening of a conditional response by re-introducing the original unconditional stimulus or increase in response strength, where the response leads to the reduction of a drive.” दूसरे शब्दों में, पुनर्बलन वह स्थिति है जो छात्र की प्रतिक्रिया में वृद्धि करती है।

हल (Hull)- “पुनर्बलन वह प्रक्रिया है जिससे व्यक्ति में उत्पन्न चालक को सन्तुष्टि होती है।”

लीडहम और अनविन (Leedhom and Unwin)- “विद्यार्थियों को उनकी प्रगति का ज्ञान देना उनको पुनर्वलित करता है इससे उनके व्यवहार को उनके द्वारा पुनः प्रकट करने की सम्भावना बढ़ जाती है। निष्कर्षतः जब किसी अनुक्रिया से आवश्यकता कम हो जाती है तो हमें एक ऐसी परिस्थिति प्राप्त होती है, जिसे हम पुनर्बलन कहते है।।

वर्मा (1977) ने अपने अनुसन्धान में पाया कि कक्षा XI के छात्रों को पढ़ाते समय यदि पुनर्बलित किया जाये तो इन छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि में वृद्धि होती है।

एस.सी. आई आर.टी. (1976) के एक दल ने अध्ययन किया तथा पाया कि अध्यापक द्वारा अथवा सहपाठी यदि शिक्षण के मध्य पुनर्बलित किया जाये तो दोनों ही लगभग समान रूप से छात्र को अभिप्रेरित करते हैं।

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भाटिया (1977), देसाई (1977), प्रजापति (1977), रामा (1977), विश्वेशरण (1977), पिल्ले (1977) आदि ने कुछ समानान्तर अध्ययन किये व उनके अध्ययनों का निष्कर्ष भी यही स्पष्ट करता है कि सहपाठी तथा पर्यवेक्षक दोनों के द्वारा दिया गया पुनर्बलन समान रूप से प्रभावशाली होता है।

विमला महेश (1981) ने पाया कि यदि प्रशिक्षित व्यक्ति के द्वारा पुनर्बलन दिया जाये तो शिक्षण योग्यता अधिक बढ़ती है।

ओलिवर (1964) ने पाया कि वीडियो के द्वारा पुनर्बलन पर्यवेक्षक द्वारा दिये गये मौखिक पुनर्बलन से अधिक प्रभावशाली होता है।

पर्लबर्ग (1970) व मौरिस (1972) ने पाया कि वीडियो पुनर्बलन ऑडियो पनर्बलन से अधिक प्रभावशाली है।

मैकएलीज (1973) ने पाया कि सूक्ष्म शिक्षण काफी प्रभावी होता है, यदि पढ़ाये गये पाठ को दृश्य व श्रव्य दोनों तरह की रिकॉर्डिंग की जाये।

 

पुनर्बलन के प्रकार:

पुनर्बलन को मुख्यतः दो भागों में बांटा जा सकता है ।

1. सकारात्मक पुनर्बलन :

यदि किसी घटना एवं क्रिया के प्रस्तुतिकरण से अनक्रिया होने की सम्भावना बढ़ती है। तो इसे ‘सकारात्मक पुनर्बलन’ कहते हैं, जैसे, किसी विद्यार्थी की सही अनुक्रिया तथा अच्छी उपलब्धि पर उसे प्रशंसित करने अथवा परस्कत करने से वैसे ही व्यवहार की सम्भावनायें अधिक बढ़ जाती हैं। इस पुनर्बलन को दो रूपों में कक्षा में प्रयुक्त किया जाता है:

(अ) सकारात्मक शाब्दिक पुनर्बलन- इसमें अध्यापक, ‘शाबाश’, ‘उत्तम’, ‘बहुत अच्छा’, ‘ठीक है’ आदि शब्दों के माध्यम से छात्र को प्रशंसित करता है। अधूरे सही उत्तर को अध्यापक अर्थपूर्ण अतिरिक्त संकेत देकर छात्रों को अभिप्रेरित करता है।

(ब) सकारात्मक अशाब्दिक पुनर्बलन- इसमें अध्यापक शब्दों का प्रयोग किये बिना अपनी मुखमुद्रा, हाव-भाव, हाथ के संकेतों आदि से छात्रों को प्रोत्साहित करता है और उनके व्यवहार का पुनर्बलन होता है। इसी प्रकार छात्रों के उत्तरों को श्यामपट्ट पर लिखना भी पुनर्बलन ही है इससे छात्रों में उत्साह आता है व सीखने की प्रेरणा मिलती है। छात्र की पीठ थपथपाना, सिर पर हाथ फेरना। आदि भी उसे पुनर्वलित करता है। किन्तु भारतीय समाज में लड़कियों की पीठ थपथपाना, सिर पर हाथ फेरना आदि पुरुष अध्यापक के लिए समाजोचित नहीं है, अतः उसको ऐसा नहीं करना चाहिए।

2. नकारात्मक पुनर्बलन :

इसमें अध्यापक छात्रों के टिपूर्ण तथा अवांछित व्यवहार को दूर करने की चेष्टा करता है, इसे नकारात्मक पुनर्बलन कहते हैं। इस पुनर्बलन के लिए अध्यापक कक्षा में दो रूपों में व्यवहार करता है :

(अ) नकारात्मक शाब्दिक पुनर्बलन- इसमें अध्यापक ‘नहीं’, ‘गलत है’, ‘सोचकर बोलिए’ ‘ऊँहूं’ ‘ठहरो’ आदि शब्दों के माध्यम से छात्रों की अनुचित अथवा त्रुटिपूर्ण प्रतिक्रिया को हतोत्साहित करते हैं।

(ब) नकारात्मक अशाब्दिक पुनर्बलन- अध्यापक द्वारा नकारात्मक सिर हिलाना, छात्र को घूर कर देखना, क्रोधित होना आदि क्रियाएँ अपनी अस्वीकृति का प्रदर्शन करती हैं। इनके द्वारा छात्रों की त्रुटिपूर्ण प्रतिक्रियाओं को सही करने के लिए। प्रेरित किया जाता है।

 

पुनर्बलन-कौशल के प्रयोग में सावधानियाँ : 

1. स्वाभाविक पुनर्बलन- अध्यापक द्वारा कक्षा में स्वाभाविकता लिए हुए पुनर्बलन प्रस्तुत करना चाहिए। यदि इसे बहत अधिक कृत्रिम बनाया जायेगा तो इसका प्रभाव छात्रों पर स्थायी रूप से नहीं पड़ेगा।

2. आवश्यकतानुसार पुनर्बलन- पुनर्बलन का आवश्यकता से अधिक प्रयोग इसकी महत्ता को कम कर देता है, अत: जरा-जरा-सी बात पर अधिक प्रशंसा से इसका प्रभाव कम हो जाता है। अध्यापक को किसी विशिष्ट प्रतिक्रिया में ही इसका उपयोग करना चाहिए।

3. विविध पुनर्बलन- पुनर्बलन में विविधता होनी चाहिए, यदि हर बार अध्यापक छात्र को पुनर्बलित करने के लिए एक ही शब्द का प्रयोग करता है, तो कई बार हास्यास्पद स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है। शैतान छात्र अध्यापक के ‘शाबाश’ बोलने से पहले ही शाबाश’ बोल देते हैं अर्थात वे उसे अध्यापक का तकिया कलाम मानते है तथा ये कक्षा शिक्षण में नीरसता उत्पन्न करते हैं, अतः अध्यापक को कभी शाब्दिक तथा कभी अशाब्दिक पुनर्बलन का प्रयोग शिक्षण में समयानुसार करना चाहिए।

4. सीमित प्रयोग न करना- उत्तर देने वाले कतिपय छात्रों को प्रोत्साहित करना गलत है, क्योंकि कक्षा में कुछ छात्र प्रतिभाशाली होते हैं, यदि उन्हें ही बार-बार पुनर्बलित किया जायेगा तो सामान्य व मन्दबुद्धि छात्र विषय के प्रति रुचि नहीं लेंगे।

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5. पुनर्बलन के लिए पुरस्कार, पदक व लिखित प्रशंसनीय टिप्पणियों को कम प्रयोग में लाना चाहिए।

6. छात्र को प्रतिक्रिया के तुरन्त बाद पुनर्बलन दिया जाना चाहिए।

7. व्यक्तिगत रूप से छात्र को नाम से पुकार कर पुनर्बलित करना चाहिए।

8. पुनर्बलन के भाव छात्र द्वारा समझने योग्य होने चाहिए जिससे वह अपने व्यवहार तथा पुनर्बलन के बीच सम्बन्ध को समझ सके।

 

 

पुनर्बलन कौशल के लिए सूक्ष्म पाठ-योजना :

विषय : हिन्दी (निबन्ध लेखन)

कक्षा : VII

प्रकरण : महात्मा गाँधी

समय : 10 मिनट

शिक्षक-कतिपय प्रसिद्ध महान् स्वतन्त्रता सेनानियों के नाम बताइये।

छात्र- शहीद भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद महात्मा गाँधी, सरदार वल्लभभाई पटेल आदि।

शिक्षक- शाबाश महात्मा गाँधी को किस विशिष्ट नाम से पुकारा जाता है ?

छात्र- राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी।

शिक्षक-ठीक है, महात्मा गाँधी का जन्म कब हुआ था ?

छात्र-2 अक्टूबर, 1869 ई. को पोरबन्दर में।

शिक्षक- सही कहा, (अध्यापक इस उत्तर को श्यामपट्ट पर लिखेगा)

महात्मा गाँधी के बचपन का नाम क्या था ?

छात्र- मोहनदास करमचन्द गाँधी।

शिक्षक-शाबाश, गाँधीजी को किस नाटक ने बचपन में सर्वाधिक प्रभावित किया? 

छात्र-मौन रहते हैं।

शिक्षक-प्रयत्न करें, सोचिए ‘श्रवण पितृभक्ति’ नाटक में श्रवण द्वारा माता-पिता को कॉवर में बैठाकर यात्रा के लिए ले जाते हुए चित्र ने महात्मा गाँधी को सर्वाधिक प्रभावित किया।

शिक्षक-गाँधीजी के तीन बंदर हमें क्या संदेश देते हैं ?

छात्र- न कहो बुरा, न सुनो बुरा, न देखो बुरा।

शिक्षक- शाबाश, गांधीजी ने भारत की स्वतन्त्रता के लिए किन रास्तों को अपनाया?

छात्र- सत्य और ताकत का रास्ता।

शिक्षक- ऊहूँ, और सोचिए, सत्य के साथ महात्मा गाँधी ने अहिंसा और प्रेम के रास्ते कोअपनाया।

शिक्षक-1942 में महात्मा गाँधी ने कौनसा आन्दोलन प्रारम्भ किया?

छात्र- अंग्रेजो भारत छोड़ो।

शिक्षक- शाबाश, हमारा भारत कब आजाद हुआ?

छात्र- 15 अगस्त, 1947 को।

शिक्षक- बहुत अच्छे, महात्मा गाँधी की पुण्य तिथि क्या है?

छात्र- 30 जनवरी, (सन् बताने में त्रुटियाँ)

शिक्षक-सोचिए, 30 जनवरी सन् 1948

30 जनवरी को किस दिवस के रूप में मनाया जाता है?

छात्र-शहीद दिवस के रूप में शिक्षक-बहुत सुन्दर।

पुनर्बलन कौशल की निरीक्षण सूची :

छात्राध्यापक का नाम…………. कक्षा.……

दिनांक…… विषय…………………

प्रकरण….……………………….

समय : 10 मिनट

(निम्न कौशल तत्वों की आवत्ति का अंकन प्रति मिनट के अन्तराल से करें)

पुनर्बलन कौशल

पुनर्बलन कौशल की  मूल्यांकन सूची :

छात्राध्यापक का नाम…………. कक्षा…….

दिनांक…… विषय…………………

प्रकरण…………………………..

(पुनर्बलन कौशल के तत्वों की आवृत्ति का गुणात्मक मूल्यांकन अंकित करें।)

 

पुनर्बलन कौशल

 

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