You are currently viewing दूरस्थ शिक्षा का इतिहास, अर्थ, | दूरस्थ शिक्षा की आवश्यकता | Distance Education in Hindi

दूरस्थ शिक्षा का इतिहास, अर्थ, | दूरस्थ शिक्षा की आवश्यकता | Distance Education in Hindi

दूरस्थ शिक्षा का इतिहास (Distance Education)

भारत में प्राचीनकाल में शिक्षा गुरुकुलों तथा आश्रमों के सुरम्य वातावरण में प्रदान की जाती थी। इसी प्रकार पाश्चात्य देशों में प्लेटो की ‘अकादमी’ तथा अरस्तू का ‘लाइसेम’ भी गुरुकुल व्यवस्था की भाँति शिक्षा प्रदान करने के स्थल थे। शनैः शनै: शिक्षा प्रदान करने की प्रक्रिया में ‘कक्षा कक्ष व्यवस्था’ का आगमन हुआ, किन्तु वर्तमान प्रतिस्पर्धात्मक एवं वैज्ञानिक युग में ‘औपचारिक शिक्षा’ व्यवस्था पर निर्भर रह कर सार्वजनिक शिक्षा के लक्ष्यों की प्राप्ति असम्भव है, क्योंकि आज एक तरफ सतत जनसंख्या वृद्धि हो रही है तो दूसरी ओर शिक्षा के विभिन्न क्षेत्र विकसित हो रहे हैं।

‘इवान इलिच’ की पुस्तक ‘डी स्कूलिंग सोसाइटी’, ‘पॉल फ्रेरे’ की पुस्तक पेडागाँजी ऑफ दी ऑप्रेस्ड’, जॉन होल्ट की पुस्तक ‘हाउ चिल्ड्रन फेल’ आदि में प्रकाशित विचारों ने शिक्षा के स्वरूप परिवर्तन के विषय में एक क्रान्ति ला दी। तब शिक्षाविदों के मन में अनेक प्रश्न उठे कि किसे कौन सी शिक्षा दें? कैसे दें? ताकि कम शक्ति, धन व समय में सबको उनकी आवश्यकता व योग्यतानुसार शिक्षा दी जा सके व शिक्षा किसी सीमित वर्ग व राज्यों तक न रहकर पिछड़े हुए इलाकों, पहाड़ी क्षेत्रों व दूर दराज तब सबके लिए पहुंचे। जिसमें किसी जाति, वर्ग, सम्प्रदाय, धर्म, संस्कृति तथा विशेष भाषा-भाषी होने का कोई बन्धन न हो।

अत: उपर्युक्त कारणों से दूरस्थ शिक्षा जैसा नवीनतम सम्प्रत्यय शिक्षा जगत में आया और इसे सबको शिक्षा प्रदान करने का सशक्त माध्यम माना गया।

 

 

दूरस्थ शिक्षा का अर्थ-

‘संचार तकनीकी’ की सूचनाओं के आदान प्रदान में विशिष्ट भूमिका है। निरन्तर ‘उपग्रहों’ के बढ़ते हुए योगदान से आज समस्त विश्व एक छोटे से बॉक्स में सिमटा हुआ नजर आने लगा है यही कारण है, कि अब देश के किसी भी कोने में रहने वाले व्यक्ति के लिए शिक्षा का प्रबन्ध करना अत्यन्त सरल हो गया है। सामान्य रूप से शिक्षक से दूर रहकर किसी भी छात्र को अन्य साधनों से प्राप्त होने वाली शिक्षा ही ‘दूरस्थ शिक्षा’ है।

मुरे (1975) ने दूरस्थ शिक्षा को ‘टेलीमेथिक टीचिंग’ बताया है। शैक्षिक कार्य के लिए मुरे Telemathic Teaching के लिए दो चीजों को आवश्यक माना (1) दूरी (2) स्वायत्तता। डेलिंग (1976) ने ‘डिस्टेंस स्टेडी’, सिम्स (1977) ने ‘पत्राचार पाठ्यक्रम’ तथा होमबर्ग (1977) ने इसे ‘दूरस्थ शिक्षा’ कहा है। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में दूरस्थ शिक्षा को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है जैसे-स्वतन्त्र या गृह अध्ययन, खुला अधिगम, डाक द्वारा शिक्षा, विद्यालय परिसर से बाहर अध्ययन, विस्तार उपाधि योजना, बाह्य अध्ययन अथवा अनौपचारिक शिक्षा।

 

बोर्ग होमबर्ग के अनुसार-“दूरस्थ शिक्षा का अर्थ कुछ अपवादों को छोड़कर ऐसी शिक्षा से है, जिसमें छात्र और अध्यापक भौतिक रूप से अलग-अलग स्थान पर रहते हैं और जिसमें शिक्षण कार्य मुद्रित सामग्री तथा यान्त्रिक प्रविधियों एवं विभिन्न विद्युत यन्त्रों के माध्यम से किया जाता है।”

See also  आदर्श शिक्षण में शिक्षक एवं छात्रों का योगदान | आदर्श शिक्षक का क्या गुण है?

फिलिप, कोम्बस तथा मंजूर अहमद ने दूरस्थ शिक्षा का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा है- “निर्धारित औपचारिक ढाँचे से बाहर चलने वाली सुव्यवस्थित शिक्षा की विधि को दरस्थ शिक्षा कहा जा सकता है। शिक्षार्थियों के निश्चित समुदायों को एक स्वतन्त्र शिक्षा प्रणाली के रूप में अथवा किसी बड़ी प्रणाली के अंश के रूप में दूरस्थ शिक्षा निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति में सहायता प्रदान करती है।”

 

दूरस्थ शिक्षा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर

विश्व के अधिकांश विकासशील देशों में दूरस्थ शिक्षा उसके उच्च स्तर पर अत्यधिक विकसित हुई है। अमेरिका में जो मिलीटरी में सैन्य बल है उसमें पत्राचार के माध्यम से प्रतिवर्ष लगभग 20 लाख से भी अधिक छात्रों को शिक्षा दी जाती है और इसी तरह से औद्योगिक क्षेत्रों में भी उनके कर्मचारियों को इस पद्धति से शिक्षा दी जा रही है। करीब 75 प्रतिशत विद्यार्थी व्यवसाय से सम्बन्धित पाठ्यक्रम पढ़ने के लिए ‘प्राईवेट होम स्टेडीज स्कूल’ में अपना नामांकन करवाते हैं।

अधिगम संविदा (Learning Contract) प्रणाली दिन प्रतिदिन प्रसिद्धि प्राप्त कर रही है जिसमें छात्र केन्द्रित व अनुभव केन्द्रित नवाचार विद्यमान हैं। जिसमें माध्यमिक स्तर के बाद व्यवसायिक तथा अव्यवसायिक पाठ्यक्रम पढ़ाए जाते हैं रूस में भी पत्राचार के माध्यम से शिक्षा को कार्य आधारित (Work Oriented) बनाकर यह सुनिश्चित किया जाता है कि इस विधि से शिक्षा प्राप्त करने वाले राष्ट्रीय बचत में सहयोग देने के साथ व्यवसाय में विशिष्ट ज्ञान भी प्राप्त करेंगे।

मास्को व लेनिनग्राद में पत्राचार पाठ्यक्रम के माध्यम से तकनीकी व अभियांत्रिकी की विभिन्न शाखाओं में विशिष्ट शिक्षा दी जाती है वहाँ पर ऑफ कैम्पस स्टेडी सेन्टर’ एवं परामर्श केन्द्र कार्यरत हैं जो पत्राचार पाठ्यक्रम वाली संस्थाओं के विद्यार्थियों के लिए व्यक्तिगत सम्पर्क कार्यक्रम और प्रयोगात्मक कार्य में सहायता देती हैं। ब्रिटिश खुला विश्वविद्यालय भी विभिन्न पाठयक्रम प्रसारण माध्यमों से जैसे अध्ययन सामग्री, पत्राचार पाठ्यक्रम, ग्रीष्म विद्यालय, श्रव्य-दृश्य सामग्री आदि से अध्ययन करवाते हैं। बिटिश के अनुभव को ध्यान में रखते हुये, इजरायल व पाकिस्तान में भी ‘खुले विश्वविद्यालय’ दूरस्थ शिक्षा के प्रयोग में लाये गये।

जापान ने भी पत्राचार पाठयक्रम माध्यम से शिक्षा जन-जन तक पहुंचायी है। निप्पो होसो क्योंहाई, जापानी प्रसारण निगम ने 1953 में रेडियो तथा 1960 में दूरदर्शन पर अपने प्रसारण हाई स्कूल पत्राचार छात्रों के लिये प्रारम्भ किये। जापान ने 1940 में पत्राचार पाठ्यक्रम उच्च शिक्षा के क्षेत्र में प्रसारण के माध्यम से प्रारम्भ किये। केन्या में पत्राचार पाठ्यक्रम यूनिट नैरोवी विश्वविद्यालय में 1966 में स्थापित की गई, जिसमें प्राथमिक शिक्षा में कार्यरत शिक्षकों के लिये नौकरी में रहते हुये शिक्षण का प्रावधान रखा गया। पौलेण्ड में 1960 में दूरदर्शन कृषि प्रसारण हाई स्कूल में प्रसारण के मात की गई, जिस हाई स्कूल की स्थापना की गई जो कषि से सम्बन्धित सलाह, कृषि के लिये यांत्रीकरण, पौध उगाने आदि के बारे में जानकारी प्रदान करता है ।

अन्तर्राष्ट्रीय परिषद पत्राचार पाठ्यक्रम शिक्षा के लिये सन् 1938 में जे. डब्ल्यू गिब्सन द्वारा स्थापित की गई। बाद में इसका नाम 1982 में अन्तर्राष्ट्रीय परिषद् दूरस्थ शिक्षा के लिये रखा गया। इस संस्था के तहत करीब सात सौ पचास दूरस्थ शिक्षा संस्था विश्व के विभिन्न देशों में स्थापित हैं जिनमें 22 लाख से अधिक लोग दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। दूरस्थ शिक्षा संस्थाओं की संख्या सबसे अधिक पाश्चात्य यूरोप व उत्तर अमेरिका में है।

See also  अभिप्रेरणा और शिक्षा- शिक्षा में अभिप्रेरणा का महत्व | Motivation in Education in Hindi

21वीं सदी में प्रवेश करते हुए इस विश्व में संचार साधनों के बढ़ते प्रयोग के कारण ‘अब दूरस्थ शिक्षा संस्थाओं में निरन्तर वृद्धि हो रही है।’

 

दूरस्थ शिक्षा की आवश्यकता :

1. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हो रहे तीव्रगामी वैज्ञानिक, तकनीकी व यांत्रिकी तथा अन्य क्षेत्रों में विकास के लिए समरूप शिक्षा प्रदान करने हेतु।

2. राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेकता में एकता लाने हेत।

3. छात्रों व व्यक्तियों को वांछित योग्यता व ज्ञान प्रदान करने हेतु।

4. दूरदराज के क्षेत्रों में जहाँ शिक्षा की पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं है वहाँ तक शिक्षा पहुँचाने हेतु।

5. कार्यरत व्यक्तियों व महिलाओं के लिए सुविधाजनक समय में शिक्षा उपलब्ध करवाने में तथा उनके कौशल वर्धन में सहायता प्रदान करने हेतु।

6. अध्यापक व छात्र के मध्य की दूरी भी आधुनिक संचार माध्यमों से दूर की जा सकती।

7. भारत एक प्रजातान्त्रिक तथा घनी आबादी का देश है अत: इसकी सफलता के लिए दरस्थ शिक्षा ही एक विकल्प है।

8. यह शिक्षा अत्यन्त मितव्ययी व गुणात्मक दृष्टि से भी स्वीकार्य है।

9. आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के लिए भी उपयोगी है।

10. सीमित साधनों व सीमित योग्य शिक्षकों के कारण आज दरस्थ शिक्षा आवश्यक हो गई।

11. यूनेस्को कमीशन 1972 के अनुसार शिक्षा की उम्र और भवन की आवश्यकता आदि पूर्वधारणाओं से परे दूरस्थ शिक्षा आधुनिक शिक्षा का एक अच्छा तरीका है।

12. इसमें विद्यार्थी अपनी योग्यता तथा इच्छानुसार शिक्षा व ज्ञान में प्रगति कर सकता है।

13. विद्यार्थी कठिनाई आने पर अध्यापकों से व्यक्तिगत सम्पर्क भी कर सकता है।

14. यह पद्धति निजी अध्यापन पर आधारित है क्योंकि छात्र संस्था के रूप में अध्ययन नहीं करते।

15. इस शिक्षा से घरेलू महिलायें, श्रमिक, किसान, पहाडी इलाकों में रहने वाले वनवासी, दूरस्थ निवास करने वाले, देहाती लोग, नेत्रहीन, विकलांग, प्रौढ़ व्यक्ति, ऐसे व्यक्ति जिन्होंने पूर्व में अपनी शिक्षा पारिवारिक आवश्यकताओं वश छोड़ दी है लाभ उठा सकते है।

 

 

दूरस्थ शिक्षा का स्वरूप :

भारत में दूरस्थ शिक्षा के अनेकानेक माध्यम हैं किन्तु इन्हें मुख्य रूप से तीन भागों में बाँटा जा सकता है –

1. पत्राचार शिक्षा

2. मुक्त विद्यालय/खुला विश्वविद्यालय

3. दूर संचार के माध्यम।

 

 

Disclaimer -- Hindiguider.com does not own this book, PDF Materials, Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet or created by HindiGuider.com. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: [email protected]

Leave a Reply