सरस्वती यात्राएँ/शैक्षिक पर्यटन/भ्रमण विधि के उद्देश्य

 सरस्वती यात्राएँ/शैक्षिक पर्यटन/भ्रमण विधि के उद्देश्य, विशेषताएँ, लाभ, सीमाएँ | Educational Excursions in Hindi

सरस्वती यात्राएँ/शैक्षिक पर्यटन/भ्रमण विधि(EDUCATIONAL EXCURSIONS)

सच्चे शिक्षण का एक अति ही सम्पन्न साधन ‘सरस्वती-यात्रा’ अथवा शैक्षिक पर्यटन है। सरस्वती यात्रा से केवल छात्रों को शैक्षणिक ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती वरन उन्हें वास्तविक ज्ञान का प्रयोग करन का भी अवसर प्राप्त होता है। उनकी निरीक्षण शक्ति का विकास होता है। इसकी महत्ता के सम्बन्धम कहा भी गया है

“Field trips (excursions) when properly conducted, satisfy two main concepts of . educational theory, the motivation of the desire to learn and the actual learning.”

 

 

सरस्वती यात्राएँ/शैक्षिक पर्यटन के उद्देश्य

1) सरस्वती यात्रा का उद्देश्य छात्रों को वास्तविक प्रत्यक्ष अनुभव (First hand observation and experiences) प्रदान करना है। इसके द्वारा उन सभी वस्तुओं के विषय में छात्रों को ज्ञान दिया जा सकता है, जो कक्षा में सरलता से प्रदर्शित नहीं की जा सकती।

(2) बालकों में विभिन्न विषयों के प्रति रुचि विकसित करना।

(3) प्राकृतिक वातावरण में अपनाये गये अभ्यासों को देखकर निष्कर्ष पर पहुँचना।

(4) सैद्धान्तिक ज्ञान का सम्बन्ध प्रयोगात्मक अथवा व्यावहारिक ज्ञान से प्रदर्शित करना।

(5) छात्रों में उत्तरदायित्व समझने व उसे निभाने की भावना का विकास करना।

(6) छात्रों की निरीक्षण शक्ति का विकास करना।

(7) छात्रों को अवकाश का सदुपयोग करना सिखाना।

 

सरस्वती यात्राएँ/शैक्षिक पर्यटन से लाभ

(1) छात्रों को प्रकृति की गोद में वास्तविक रूप से प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त होता है।

(2) इससे छात्रों को समान रूप से अनुभव प्रापत होते हैं, जिनका उपयोग वे नये ज्ञान के सीखने में कर सकते हैं।

(3) छात्रों को निरीक्षण करने, प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त करने तथा वर्णन करने के अनुभव मिलते हैं।

(4) छात्रों में पारस्परिक सहयोग की भावना विकसित होती है।

(5) छात्रों को बहत-सी ऐसी चीजों का ज्ञान मिलता है जिनके विषय में उनके दृष्टिकोण में परिवर्तन सम्भव है।

(6) शैक्षणिक यात्राएँ छात्र तथा समदाय के विषय में भली-भाँति ज्ञान प्रदान करती हैं तथा सीखने की प्रकिया का क्षेत्र विकसित करती हैं।

(7) छात्रों में उन्नतशील विधियों के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण अपनाने में सहायता प्रदान करती है।

(8) छात्रों का सैद्धान्तिक ज्ञान के अन्र्तगत सभी प्रायोगिक कार्य करने के लिए स्ववन्न देती है।

(9) छात्रों को खाली समय का सदुपयोग करना सिखाती है।

(10) छात्रों को समुदाय की आवश्यकताओं तथा समस्याओं से परिचित कराती है तथा उनके हल तक पहुँचने में सहायता देती है।

 

सरस्वती यात्राएँ/शैक्षिक पर्यटन की सीमाएँ

(1) इनके आयोजन के लिए कम से कम एक दिन अवश्य होना चाहिए, केवल एक या दो घण्टों में यह सम्भव नहीं है।

(2) इसकी सफलता के लिए छात्रों व प्राध्यापकों में सहयोग होना आवश्यक है।

(3) शैक्षणिक यात्राओं में दुर्घटनाएँ (Injury) हो सकती हैं। उन पर ध्यान देना चाहिये तथा आवश्यक सावधानियाँ बरतनी चाहिये।

(4) सरस्वती यात्राओं के लिए उचित मात्रा में धन होना आवश्यक है।

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सरस्वती यात्राओं का आयोजन

सरस्वती यात्राओं का आयोजन करना स्वयं में एक उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य है। सभी कामों – वितरण समान रूप से सदभावना पूर्ण वातावरण में किया जाना चाहिए। छात्रों को यात्रा से पूर्व ही सभी आवश्यक जानकारी प्रदान की जानी चाहिए। यदि पहले से ही यात्रा-पथ या प्रदर्शक-चार्ट तैयार कर लिया जाये तो अति उत्तम रहता है।

 

 

प्राध्यापक का योग

(1) प्राध्यापक को सर्वप्रथम अपने छात्रों के विषय में ज्ञान प्राप्त करना चाहिए कि उनकी अनुमानित आयु, पूर्व ज्ञान एवं पूर्व अनुभव तथा योग्यताएँ किस प्रकार की हैं- उनके लिए कहाँ तथा किस प्रकार के अनुभव उचित होंगे। समस्यात्मक बालकों के द्वारा व्यवहार सम्बन्धी समस्याएँ किस प्रकार से नियन्त्रित की जायेंगी आदि सभी विषयों पर पहले से ही विचार कर लेना चाहिए।

(2) प्राध्यापक को अपने विद्यालय के अध्यक्ष से यात्रा के लिए अनुमति लेनी चाहिए। फिर पहले से ही उस स्थान के अध्यक्ष से जहाँ यात्रा के लिए जाना है, अनुमति लेकर सभी बातें निश्चित कर लेनी चाहिए। विशेष रूप से निम्नांकित बातों का पूर्व निर्धारण अच्छा रहता है।

(क) यात्रा-स्थान पर पहुँचने का समय।

(ख) यात्रा के लिये एकत्रित होने का स्थान (The meeting place)।

(ग) पूर्ण यात्रा (Visit) के लिए कार्यक्रम।

(घ) छात्रों द्वारा अध्ययनार्थ तथा निरीक्षणार्थ वस्तुओं की सूची।

(ङ) छात्रों के प्रश्नों व शंकाओं का समाधान।

(च) आवश्यक सुविधाओं की सूची।

(3) आवश्यक बातों तथा आकस्मिक घटनाओं पर पूर्ण विचार कर लेना चाहिये। अपेक्षित सहयोग प्राप्त हो सके।

(4) सभी को सरस्वती यात्रा के प्रमुख उद्देश्यों से पूर्णतः परिचित करा देना चाहिये ताकि उससे अपेक्षित सहयोग प्राप्त हो सके।

(5) प्राध्यापक को इस बात की भी योजना बना लेनी चाहिये कि प्रश्नों का जबाव वह किस तरह से देगा? क्या प्रश्नों का उत्तर शंका के समय ही पूछने पर देगा या सभी प्रश्नों को छात्रों से लिखित रूप में एकत्रित कर उत्तर प्रदान करेगा। किस प्रकार के प्रश्नों का उत्तर वह स्वयं देगा तथा किस प्रकार के प्रश्नों का उत्तर विशेषज्ञ के द्वारा दिया जायेगा। क्या यात्रा स्थान पर प्रश्नोत्तर तथा वार्तालाप के लिए समय निर्धारित किया जायेगा? इन सभी बातों का निर्धारण प्राध्यापक अथवा यात्रा संयोजक को पहले से ही कर लेना चाहिये-

(6) यात्रा के पश्चात् यात्रा के विषय में यात्रा स्थान पर अथवा कक्षा में वार्तालाप के लिए समय निर्धारित कर लेना चाहिये।

(7) छात्रों को यात्रा के पूर्व निम्नांकित के विषय में ज्ञान प्रदान करना चाहिए-

(क) यात्रा की प्रकृति, उद्देश्य, सीमा तथा खर्चे का ज्ञान।

(ख) यात्रा सम्बन्धी विवरण, पहनने के वस्त्र, विशेष सामग्री तथा विशेष सावधानियाँ

(ग) यात्रा के पूर्व यात्रा सम्बन्धी अध्ययन के लिए निर्देश।

(घ) यात्रा के पश्चात् किये जाने वाले वार्तालाप का एक प्रारूप।

(8) यात्रा के लिए एकत्रित छात्रों को यात्रा के विषय में निम्न प्रकार का विशेष ज्ञान शिक्षक द्वारा-

(क) यात्रा का प्रमुख ध्येय,

(ख) यात्रा में निरीक्षण हेतु वस्तुओं का ज्ञान,

(ग) सुरक्षा सम्बन्धी नियम।

 

रस्वती यात्रा के मध्य- शिक्षक यात्रा-स्थान के अध्यक्ष का परिचय छात्रों को देता है तथा यात्रा का आयोजन इस प्रकार से करता है कि प्रत्येक छात्र को भली-भाँति सभी वस्तुओं का निरीक्षण, सभा क्रियाओं का प्रदर्शन दिखाई दे तथा आवश्यक निर्देश सुनाई दे। शिक्षक स्वयं सतर्कतापूर्वक छात्रा का निरीक्षण करने में सहायक सिद्ध होता है तथा छात्रों की सुरक्षा सम्बन्धी समस्त सावधानियाँ रखता है। उसे यात्रा स्थान के अध्यक्ष के प्रति अन्त में उसके द्वारा दी गयी सविधाओं आदि के लिए आभार प्रदर्शित करना चाहिए।

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सरस्वती यात्रा के पश्चात्- शिक्षक को चाहिये कि वह यात्रा सम्बन्धी वार्तालाप प्रारम्भ करे तथा छात्रों के प्रश्नों एवं शंकाओं का उचित समाधान करे। उसे यात्रा के प्रमुख पहलुओं पर प्रकाश डालकर छात्रों को यात्रा का विवरण लिखने के लिए प्रेरित करना चाहिए। अपनी नोट बुक में से उसे आवश्यक एवं नई देखी हुई चीजों को लिखने के लिए निर्देश प्रदान करना चाहिए।

सरस्वती यात्रा में छात्रों का उत्तरदायित्व- छात्रों को यात्रा के पूर्व यात्रा के उद्देश्यों तथा यात्रा के विषय में पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। उन्हें बताई गई सावधानियों के विषय में पूर्ण सतर्कता बरतनी चाहिए। उन्हें अपना व्यवहार मर्यादा पूर्ण रखना चाहिए। आवश्यक निरीक्षण के पश्चात् अपनी समस्याओं तथा शंकाओं को लिखकर प्रश्नोत्तर एवं वार्तालाप के समय उसे पूछकर उनका समाधान करना चाहिए। आवश्यकतानुसार यात्रा के मध्य उत्तरदायी व्यक्ति अथवा शिक्षक से वस्तु को स्पष्ट करा लेना चाहिए। सरस्वती यात्रा के आयोजन को ज्ञान प्राप्ति के साधन के रूप में समझना चाहिए तथा आवश्यक बातों को लिखते रहना चाहिए। यात्रा के पश्चात् भी आवश्यक अध्ययन करते रहना छात्रों के लिए आवश्यक है।

 

 

सरस्वती यात्रा में प्रमुख सावधानियाँ

  1. यात्रा स्थान के विषय में शिक्षक/आयोजक को उस स्थान के विषय में पूर्ण रूप से पता लगाना चाहिए। यदि सम्भव हो सके तो यात्रा के पूर्व स्वयं जाकर यात्रा स्थान की सुविधाएँ तथा कठिनाइयों का पता लगा लेना चाहिए। इनके अनुकूल ही उसे आवश्यक प्रबन्ध तथा निर्देश तैयार करने चाहिए।
  2. यात्रा के लिए उचित एवं सस्ता वाहन प्रयोग करना चाहिए। वाहन में प्राथमिक सहायता (First Aid) का सारा सामान ले चलना चाहिए।
  3. यदि पथ-प्रदर्शक की आवश्यकता हो तो ले लेना चाहिए।
  4. छात्रों को टार्च, मैगाफोन, टेपरिकॉर्डर तथा कैमरा आदि लेने के विषय में उचित निर्देश प्रदान करने चाहिए।
  5. समस्यात्मक बालकों का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए।
  6. छात्रों को उनके वस्त्रों, बिस्तर, लेखपात्रों आदि सामग्री के साथ ले जाने के विषय में सभी आवश्यक निर्देश दे देने चाहिए।

 

सरस्वती यात्रा का मूल्यांकन

  1. छात्रों द्वारा की गयी यात्रा की सफलता के विषय में जानने के लिए चैक लिस्ट (Check List) बनाकर प्रयोग करनी चाहिए।
  2. छात्रों को यात्रा के विषय में प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के लिए कहा जाये।
  3. यात्रा के उद्देश्यों एवं उनकी प्राप्ति के विषय में छात्रों के द्वारा वार्तालाप के माध्यम से यात्रा का मूल्यांकन किया जा सकता है।

 

 

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