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लुईस अल्थुसर और मार्क्सवाद की परम्पराएं

लुईस अल्थुसर/अल्थुसेर और मार्क्सवाद की परम्पराएं

फ्रांसीसी समाजशास्त्री लुईस अल्थुसर ने नव-मार्क्सवाद के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किये हैं। अल्थुसर फ्रांस की साम्यवादी पार्टी के सक्रिय सदस्य एवं आलोचक रहे है। वह मार्क्स के आर्थिक विचारों के आदर्श से हटकर बात करते हैं ।अल्थुसर के अनुसार, मार्क्स की रचनाओं में कोई तारतम्य नहीं है। प्रारम्भ में मार्क्स एक मानवीय दष्टिकोण और मनोविज्ञान का समर्थक था, किन्तु बाद में वह एक महत्वपूर्ण समाज वैज्ञानिक के रूप में जाने गये।

नव-मार्क्स विचारक के रूप में अल्थुसर मार्क्स को एक संरचनावादी तथा निर्धारणवादी मानता है। मार्क्स को एक संरचनावादी मानने वाले मार्क्सवादियों ने अपना ध्यनान उनकी पुस्तक ‘दास कैपिटल’ पर केन्द्रित किया। जो लोग उसे एक मानवतावादी विचारक मानते है, उन्होंने उसकी इस पुस्तक के साथ-साथ ‘दी इकोनॉमिक फिलॉसफिक मैन्यू स्किप्ट्स’ पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। आर्थिक निधारणवादी विचारक के रूप में मार्क्स ने लिखा है, उत्पादन की प्रणाली ही सम्पूर्ण समाज व्यवस्था, संस्कृति,कला, रीति-रिवाज, धर्म, दर्शन, शिक्षा, आदि को निश्चित करती है। मार्क्स को द्वन्द्वात्मक विचारक मानने वाले विद्वानों ने उसकी आर्थिक व्याख्या को स्वीकार किया है।

अल्थुसर उन विद्वानों में से एक है, जो मार्क्स को एक संरचनावादी तथा निर्धारणवादी विचारका के रूप में देखते है। अल्थुसर ने सन् 1844 से पूर्व तथा 1844 ई0 के बाद की अलग-अलग व्याख्या की है। वह सन् 1844 से पहले के मार्क्स को ‘परम्परावादी’ मानते हैं, जबकि 1844 ई0 के बाद वाले मार्क्स को एक मानवतावादी विचारक के रूप में देखते हैं। उन्होंने लिखा है कि, “यदि हम मार्क्स को इतिहास की द्वन्द्वात्मक व्याख्या करने वाले विचारक के रूप में देखते हैं, तो इसका अभिप्राय यह है कि व्यक्ति इतिहास का निर्माण नहीं करता, बल्कि वर्ग संघर्ष के कारण ही इतिहास का निर्माण होता है।”

अल्थुसर मार्क्स की रचनाओं के आधार पर उसे मानवतावादी दार्शनिक के रूप में स्वीकार करते हैं, जिसने मानव इतिहास तथा राजनीति को एक नवीन रूप प्रदान किया है। सन 1844 के बाद वाले मार्क्स को अल्थुसर संरचनात्मक निर्धारणवादी विचारक के रूप में स्वीकार करते हैं तथा इसी आधार पर ही उन्होंने पूँजीवादी समाज का संरचनात्मक विश्लेषण किया है। अल्थुसर पूँजीवादी समाज की अधिसंरचना की आधार के साथ-साथ तुलनात्मक रूप से स्व-संचालित संरचना के रूप में भी देखता है।

अल्थुसर के विचारानुसार सामाजिक निर्माण की प्रक्रिया के अन्तर्गत तीन मौलिक तत्त्व आते हैं –

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1. अर्थव्यवस्था,

2. राजनीतिक व्यवस्था और

3. वैचारिकी।

इन तीनों तत्त्वों में परस्पर अन्तर्क्रिया होती रहती है, जिससे समाज निर्मित होता है तथा उसका उद्विकास होता रहता है। अल्थुसर कहता है कि सभी समाजों का उद्विकास समान रूप से नहीं, अपितु असमान रूप से होता है। अतः समाजों के उद्विकासों की व्याख्या किसी एक निर्धारित कारक के आधार पर नहीं की जा सकती है। यही कारण है कि अल्थुसर ने परम्परागत मार्क्सवाद के आर्थिक निर्धारणवाद की धारणा की आलोचना की है। अल्थुसर आर्थिक निर्धारण के साथ ही, राजनीतिक व्यवस्था तथा वैचारिकी के महत्व को भी मानता है। वह सामाजिक संरचना के निर्माण में द्वन्द्ववाद को भी सम्मिलित करता है।

अल्थुसर के मतानुसार, मार्क्स का ऐतिहासिक भौतिकवाद एक संरचना सिद्धान्त है तथा इसकी विषय-वस्तु सामाजिक विरचना है। सामाजिक विरचना के दो पक्ष हैं – उत्पादन प्रणाली, जिसके अन्तर्गत श्रम, श्रम-कौशल, उत्पादन सम्बन्ध, उत्पादन का अनुभव, उत्पादन के उपकरण आते हैं, जिन्हें मार्क्स ने ‘अधो-संरचना’ (sub-structure) कहा है। वह कहता है कि जब उत्पादन प्रणाली या अधो संरचना में परिवर्तन आता है, तो समाज की सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक संरचनाओं, विश्वास, साहित्य, कला, प्रथायें, जिन्हें वह समाज की ‘अधि-संरचना’ (Super-structure) कहता है, में भी परिवर्तन होता है। क्योक् समाज की उत्पादन प्रणाली पर ही समाज की अधि-संरचना टिकी हुई होती है। समाज की उत्पादन प्रणाली, जिस प्रकार की होगी, समाज की अधि-संरचना भी उसी कार का होगी। जब उत्पादन की प्रणाली में परिवर्तन होता है तो समाज की अधि संरचना और उसकी संस्थायें भी परिवर्तित होती हैं तथा समाज में परिवर्तन घटित होता है। मार्क्स ने इस प्रक्रिया को स्पष्ट करने के लिये अनेक उदाहरण भी प्रस्तुत किये है।

 

अल्थुसर की सामाजिक विरचना की संकल्पना में भी अर्थतन्त्र सिद्धान्त एवं राजनीति, आदि सम्मिलित है। मार्क्स की सामाजिक विरचना में, तथ्य दिखाई देते हैं। अल्थुसर भी अपनी सामाजिक विरचना का अवधारणा में मार्क्स द्वारा उल्लिखित अधिकसंरचना तथा अधोसंरचना दोनों को सम्मिलित करता है। अल्थुसर का  विचार है कि समाज एवं संस्था के परिवर्तन में उत्पादन प्रणाली के तत्त्व तो वहीं रहेंगे, किन्तु केवल सम्बन्ध परिवर्तित हो जायेंगे। उदाहरणार्थ, सामन्तवादी उत्पादन में श्रम आधीन रहता है तथा गैर-आर्थिक दबाव में होता है, किन्तु पूजीवादी व्यवस्था मुक्त रहता है तथा मजदुरी देने वाले के हाथों श्रमिक अपना श्रम बेचने अथवा न बेचने के लिए स्वतंत्र रहता है। सामन्तवाद की भाँति कोई श्रमिक को उजाड़ नहीं सकता, खेत वापस नहीं ले सकता और दबाव नहीं डाल सकता है।

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अल्थुसर के अनुसार, सम्बन्धों के बदलने को हम उत्पादन प्रणाली का परिवर्तन भी कह सकते हैं। इसमें इतिहास के नियमों को कोई योगदान अथवा भूमिका नहीं होती, जैसा कि मार्क्स ने माना है। सम्बन्ध परिवर्तित होने पर एक सामाजिक विरचना परिवर्तित होकर दूसरी सामाजिक विरचना हो जाती है। स्पष्ट है कि अल्थुसर के संरचनावाद अवधारणा में वैयक्तिक अथवा मानवतावादी तत्त्वों की गुंजाइश नहीं है। इसमें अध्ययन की इकाई व्यक्ति नहीं, वरन् सामाजिक विरचना ही है। अल्थुसर के मतानुसार, “इतिहास सरचना का विकास एवं रूपान्तरण मात्र है। इसी कारण ऐतिहासिक भौतिकवाद वास्तव में, संरचनावादी सिद्धान्त है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि उपरोक्त विचार ही अल्थुसर का संरचनावाद को योगदान है, जो कार्ल मार्क्स के विचारों से पृथक् है।

लुई आल्थूजर को संरचनावादी मार्क्सवाद का एक मुख्य स्तम्भ माना जाता है। उन्होंने संरचनावाद मार्क्सवाद के आविर्भाव के कारण भी स्पष्ट किये हैं –

1. मार्क्सवाद की आनुभविक तथ्य सामग्री की कमियों का विरोध,

2. मन्त्रवादी मार्क्सवाद की ऐतिहासिक पद्धति का विरोध,

3. इतिहास के आर्थिक निर्धारणवाद की आलोचना ।

अल्थुसर के अनुसार संरचनात्मक मार्क्सवाद के मुख्य लक्षण हैं

1. संरचनात्मक मार्क्सवाद पूँजीवाद की वास्तविक संरचना को समझना चाहता है।

2. परम्परागत मार्क्सवाद आर्थिक निर्धारणवाद  का एकपक्षीय विश्लेषण करता है।

3. मात्र ऐतिहासिक तथा आनुभविक अध्ययन पद्धतियाँ पर्याप्त नहीं होती हैं।

4. संरचनात्मक मार्क्सवाद की विधि पृथक है।

 

 

 

इन्हें भी देखें-

 

 

 

 

 

 

 

 

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