संरचनाकरण(Structuration) क्या है।
संरचनाकरण एक सामाजिक एवं सत्ता-मीमांसक सिद्धान्त है, जो विश्व में विद्दमान वस्तुओं के स्वरूपों की व्याख्या करता है। यह सिद्धान्त विकास के नियमों अथवा वास्तविक रूप में क्या होता है? इसके विषय में न तो कोई चर्चा करता है तथा न ही कोई प्राक्कल्पनायें ही प्रस्तुत करता है। समाजशास्त्रीय सिद्धान्त के क्षेत्र में संरचनाकरण संरचनाकरण की अवधारणा ब्रिटिश समाजशास्त्री एंथोनी गिडिन्स(1981) की है। उन्होंने प्रकार्यवादी तथा उद्विकासीय सिद्धान्त की आलोचना की है, जिन्हें वह बन्द व्यवस्थाएँ मानते हुए कहता है कि घटनाएँ सदैव ही आकस्मिक तथा मुक्त स्वरूप की होती है। उसका विचार है कि सामाजिक संरचनाएँ सामाजिक कर्ताओं के बाहर की वस्तु नहीं है, बल्कि ये तो नियम और संसाधन है, जो कि कर्ताओं द्वारा अपने व्यवहारों के दौरान निर्मित तथा पुनः निर्मित किए गए हैं। संरचनाओं का चरित्र दोहरा होता है। यानी वे माध्यम तथा व्यवहार दोनों की निष्पत्ति है, जिससे सामाजिक प्रणाली निर्मित होती है।
गिडेन्स के संरचनाकरण की अवधारणा
एन्थोनी गिडेन्स ब्रिटेन के समाजशास्त्री हैं। आपकी विशेष रूचि पूंजीवाद सिद्धान्त, सामाजिक वर्ग तथा स्तरीकरण एवं सामाजिक परिवर्तन में रही है। आपका सबसे बड़ा योगदान संरचनाकरण का सिद्धान्त, है जिसने इन्हें समाजशास्त्र में ख्याति दिलाई। गिडेन्स संरचनाओं को दुर्थीम की तरह बाध्यता या दबाव की तरह न देखकर, बाध्यात्मकता के साथ-साथ सहायतामूलक के रूप में देखते हैं। इस दृष्टिकोण से आपने साधन तथा संरचना को द्वन्द्वात्मकता के रूप में देखने की कोशिश की है।
संरचनाकरण का सिद्धान्त
गिडेन्स ने अपने संरचनाकरण सिद्धान्त की पृष्ठभूमि मे ब्रिटिश और अमेरिकी दर्शन के कर्म सिद्धान्त में विद्दमान असंगति के प्रति ध्यान आकर्षित किया है। गिडेन्स के अनुसार, सामाजिक क्रियायें समय और स्थान में घटित होती हैं। उसने अपने संरचनाकरण के सिद्धान्त को अप्रकार्यवादी घोषणापत्र कहा है। उसका विचार है कि मानवीय इच्छाओं से मानव इतिहास का पलायन और इस पलायन के परिणामों की मानव क्रिया पर कारणात्मक प्रभावों के रूप में वापसी सामाजिक जीवन की मुख्य विशेषता है। किन्तु प्रकार्यवाद इस वापसी की समीक्षा पुनरुत्पादित सामाजिक तत्त्वों के अस्थित्व के लिए समाज के तर्क के रूप में करता है। गिडेन्स के इस सिद्धान्त की मान्यतानुसार सामाजिक व्यवस्थाओं का उद्देश्य कारण या आवश्यकता नहीं है। केवल व्यक्ति ही संरचनाकरण(Structuration) करता है।
आपने ‘विवेचनात्मक समाजशास्त्र’ के अन्तर्गत अनेक नयी प्रवृत्तियों का प्रतिपादन किया है। इनके विचारों में समीक्षात्मक दृष्टिकोण है एवं विश्लेषण, अभिव्यक्ति को तर्कपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने की अनोखी प्रतिभा है। उनका कथन है कि सामाजिक क्रियायें समय एवं स्थान में घटित होती है। ये अपने “संरचनाकरण सिद्धान्त” को ‘अप्रकार्यवादी’ घोषणा पत्र कहते हैं। इनका विचार है कि मानव इच्छाओं से मानव इतिहास का पलायन तथा उस पलायन के परिणामों की मानत किया पर कारणात्मक प्रभावों के रूप में वापसी सामाजिक जीवन की मुख्य विशेषता है। लेकिन प्रकार्यवाद ने उस वापसी की समीक्षा पुनः उत्पादित सामाजिक तत्वों के अस्तित्व हेतु ‘समाज के तर्क के रूप में ही सिद्धान्त की मान्यता है कि सामाजिक व्यवस्थाओं का उद्देश्य कारण या आवश्यकता नहीं होती है। केवल व्यक्ति ही संरचना का निर्माण करते हैं। संरचना सम्बन्धी विचारों में गिडेन्स ने काल, इतिहास तथा समकालीन ऐतिहासिक विकासशील विभाजनों पर प्रकार्यवादी चिन्तन की अपेक्षा, अधिक जोर दिया है।
क्रिया या अभिकरण – गिडेन्स क्रिया अथवा अभिकरण को विच्छित्र कार्यों का ‘आचरण का निरन्तर प्रवाह’ मानते हैं। आप समस्त सामाजिक कार्यों को सामयिकता तथा स्थानीयता के अनुसार घटित होना मानते है। इन तीनों में स्थित व्यवहार के पश्चात से निष्कर्ष देते हैं कि क्रिया की व्याख्याकर्त्ता या अभिकरण कार्यरत स्व के सन्दर्भ में ही की जा सकती है। इनके अनुसार जहां-जहां कार्य है वहां-वहां काम की दूसरी विशेषता यह है कि किसी भी बताये गये काल बिन्दु कर्ता या अभिकरण की अन्य दूसरी क्रिया सकारात्मक या नकारात्मक हो सकती है। इसी वजह से गिडेन्स क्रिया की अवधारणा में ऐतिहासिक दृष्टि से स्थित-क्रिया-स्वरूप शब्द का प्रयोग किया है।
गिडेन्स का संरचनात्मक परिप्रेक्ष्य
गिडेन्स का विचार है कि “प्रत्येक सामाजिक कर्ता समाज के, जिसका वह सदस्य, पुनरुत्पादन की दशों के बारे में बहुत अधिक जानकारी रखता है।” उनका यह भी कथन है, कि समस्त सामाजिककर्ता जिस सामाजिक व्यवस्था को निर्मित करते हैं या पुनरुत्पादन उन्हें उस सामाजिक व्यवस्था का पूरा ज्ञान होता है। यह संरचना की द्वैत अवधारणा की एक आवश्यक विशेषता है। इस सन्दर्भ में कर्ता व्यावहारिक चेतना से सामाजिक क्रिया की रचना की विवेचना करता है। गिडेन्स ने कर्ताओं में पाये जाने वाले विमर्शात्मक या तर्कमूलक अन्तःप्रवेश की प्रकृति एवं विषय क्षेत्र को महत्त्वपूर्ण माना है। उनके अनुसार यही “सामूहिकता से नियंत्रण” का द्वन्द्व है।
गिडेन्स के संरचनाकरण का सिद्धान्त की मान्यतायें
गिडेन्स के संरचनाकरण का सिद्धान्त की मान्यतायें निम्नलिखित हैं –
(1) संरचनावादी सिद्धान्त भाषा और समाज दोनों की संरचना में पार्थक्य द्वारा अन्तराल को प्रमुख स्थान देता है।
(2) यह सिद्धान्त सामाजिक पुनरुत्पादन के सिद्धान्त पर बल देता है।
(3) संरचनाकरण का सिद्धान्त कालिक आयाम को अपने विश्लेषण के केन्द्र में रखने का प्रयास करता है।
(4) संरचनावाद प्रकार्यवाद की अपेक्षा सामाजिक संपूर्णता या समग्रता की अधिक उपयुक्त एवं सन्तोषप्रद ढंग से व्याख्या करता है। गिडेन्स का कहना है कि इस बिन्दु को समझने के लिए संरचना एवं व्याख्या में अन्तर किया जाना आवश्यक होगा, क्योंकि इसका संरचनावादी एवं प्रकार्यवादी चिन्तन में अभाव है।
(5) इस सिद्धान्त का अनुसार स्व-विमर्श को दो दृष्टिकोणों से संरचित किया जाना चाहिए –
(क) समाज के उन सदस्यों के सन्दर्भ में जिनके आचरणों का अध्ययन करना है।
(ख) मानव प्रयास कम में स्वयं समाज विज्ञान के सन्दर्भ में।
(6) संरचनावादी सिद्धान्त वस्तु एवं विषय का का अतिक्रमण करने का प्रयास करता है।
(7) यह सिद्धान्त सांस्कृतिक वस्तुओं क उत्पादन के विश्लेषण में स्थायी योगदान देता है।
इन्हें भी देखें-
- समाजशास्त्रीय सिद्धांत के प्रकार को समझाइए
- सिद्धांत निर्माण की प्रक्रिया को समझाइए
- समाजशास्त्र की प्रकृति और समाजशास्त्र मुख्य विशेषताएं
- प्रकार्यवाद का अर्थ तथा अवधारणा क्या है
- मर्टन के प्रकार्य तथा प्रकार्यवाद
- संरचनावाद और उत्तर-संरचनावाद का सिद्धांत
- धर्म के अर्थ, परिभाषा,लक्षण एवं विशेषता
- लेवी स्ट्रास का संरचनावाद | सामाजिक विनिमय सिद्धान्त
- मर्टन का सन्दर्भ-समूह सिद्धांत-Reference group
- कार्ल मार्क्स के वर्ग-संघर्ष सिद्धांत की विवेचना
- लुईस अल्थुसर और मार्क्सवाद की परम्पराएं
- हैबरमास का सिद्धांत और फ्रैन्कफर्ट स्कूल
- घटना-क्रिया-विज्ञान के सिद्धांत का उल्लेख
- पीटर बर्जर और थॉमस लकमैन-सोशल कंस्ट्रक्शन ऑफ रिएलिटी
- ब्लूमर के प्रतीकात्मक अन्तःक्रियावादके सिद्धान्त | Symbolic interactionism of Blumer
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