फ्रेडरिक हेगल की जीवनी, कृतियाँ, विज्ञानवाद

फ्रेडरिक हेगल की जीवनी, कृतियाँ, विज्ञानवाद | Friedrich Hegel Biography in Hindi

जॉर्ज विल्हम फ्रेडरिक हेगल (George Wilhelm Friedrich Hegel)[ सन् १७७0 ई. से सन् १८३१ ई.]

फ्रेडरिक हेगल का जन्म जर्मनी के स्टटगार्ड नगर में सन् १७७0 में हुआ था। जन्म के समय हेगल के पिता स्टटगार्ड में एक सरकारी कर्मचारी थे। हेगल की शिक्षा जिमनासियम नामक शहर में प्रारम्भ हुई। कुछ दिनों बाद ट्यूबिंगेन विश्वविद्यालय ये धर्म विज्ञान का अध्ययन करने लगे। अपने प्रारम्भिक जीवन में हेगल कोई प्रतिभाशाली विद्यार्थी नहीं समझे जाते थे। वे सर्वसाधारण विद्यार्थी थे। वे अपनी अभिरुचि के प्रतिकूल कक्षा में प्रायः अनुपस्थित भी रहा करते थे। शरीर से वे स्वस्थ थे परन्तु उनकी मौलिकता से उनके शिक्षक प्रभावित नहीं थे। अतः विद्यार्थी जीवन में वे किसी का ध्यान न आकर्षित कर सके। ट्यूबिंगेन विश्वविद्यालय से बीस वर्ष की अवस्था में इन्होंने डॉक्टर ऑफ फिलासफी की उपाधि प्राप्त की। इसी समय से  इनकी प्रतभिा का परिचय प्रारम्भ हो गया। तीन वर्ष पश्चात इन्हें धर्मशास्त्र में एक उपाधि मिली।

ट्यूबिंगेन के बाद हेगल स्विट्जरलैण्ड गये। वहाँ ये शिक्षक का कार्य करने लगे। यहीं पर हेगल महोदय ने काण्ट के दर्शन का गम्भीर अध्ययन प्रारम्भ किया। सर्वप्रथम इन्होंने काण्ट के (Critique of Pure Reason) का खण्डन किया। इस समय हेगल शेलिंग के दर्शन से बड़े प्रभावित थे तथा फिक्टे के दर्शन पर भी यदा-कदा विचार करते थे। सन् १८०१ में हेगल जेना (Jena) विश्वविद्यालय में अध्यापक नियुक्त हुए। हेगल को जेना में अध्यापक बनाने में शेलिंग का बहुत बड़ा हाथ था। इसी समय हेगल महोदय ने शेलिंग तथा फिक्टे के विचारों पर Difference Between the Systems of Shelling and Fichte पुस्तक लिखी। इसके दो वर्ष बाद जेना में ही इन्होंने एक दार्शनिक पत्रिक (Critical Journal) का सम्पादन प्रारम्भ किया तथा इस कार्य को वे जेना छोडने के बाद भी करते रहे।

सन् १८०५ ई. में ये जेना में दर्शन के प्रोफेसर पद पर नियुक्त हुए तथा इनकी ख्याति दिनानुदिन बढ़न लगी। सन् १८०७ ई. में इनकी प्रसिद्ध कृति ‘Phenomenology of Spirit’ प्रकाशित हुई परन्तु इन्हीं दिनों नेपोलियन का आक्रमण प्रारम्भ हो गया जिसके कारण इन्हें जेना छोड़ना पड़ा। जेना छोड़कर हेगल बैम्बर्ग (Bamberg) गये। बम्बर्ग में ये एक समाचार पत्र का सम्पादन किया करते थे। बाद में न्यूरेम्बर्ग (Neuremberg) में प्रधानाध्यापक नियुक्त हुए। यहाँ पर हेगल ने विवाह किया तथा इन्हें दो पुत्र भी यहीं उत्पन्न हुए

न्यूरेम्बर्ग में ही इनका Science of Logic नामक ग्रन्थ प्रकाशित हुआ। इस पुस्तक के प्रकाशन से हेगल महोदय को महान् यश प्राप्त हुआ। हाइडेलबर्ग (Heidelberg) में ये पुनः दर्शन के प्रोफेसर बने। सन् १८१८ में ये फिक्टे के स्थान पर प्रोफेसर नियुक्त हुए। इस स्थान पर अन्त तक ये सेवा करते रहे। यहीं पर सन् १८३१ में जर्मनी में सबसे बड़ा हैजा का प्रकोप हुआ तथा इसी भीषण बीमारी हेगल काल-कवलित हुए।

 

फ्रेडरिक हेगल की प्रमुख कृतियाँ

1. Encyclopaedia of Philosophic Sciences,

2. The Philosophy of Right,

3. The Phenomenology of Spirit and

4. Science of Logic..

१८२३ से १८२७ के बीच फ्रेडरिक हेगल महोदय ने अनेक दार्शनिक व्याख्यान दिये जिनका संकलन बाद में प्रकाशित हुआ। जिनमें कुछ प्रमुख नाम निम्नलिखित हैं-

  1. Aesthetics, 2. Philosophy of History, 3. History of Philosophy and 4. Philosophy of Religion.

हेगल की सभी कृतियों में साइन्स ऑफ लॉजिक (Science of Logic) सबसे कठिन माना जाता है। इसके विषय में सायेनहावर (Schopenhauer) का प्रसिद्ध कथन है कि वे साइन्स ऑफ लॉजिक को कभी समाप्त ही नहीं कर पाये। हेगल की प्रतिभा बहुमुखी थी। दर्शन शास्त्र के जिस किसी अंग को हेगल ने स्पर्श किया उस पर अपनी स्पष्ट छाप छोड़ी। उनके समय से दर्शन की दिशा बदल गयी। इसी कारण हेगल को पथिकृत दार्शनिक माना जाता है| हेगल ने अपने पूर्ववर्ती सभी दार्शनिकों का गम्भीर अध्ययन किया था तथा सबमें कुछ न कुछ सत्य पाया था। अपने दर्शन में उन्होंने सबको सारगर्भित किया है। अतः हेगल के पूर्ववर्ती, हेगल के सामने तुतलाने वाला हेगल (Lisping Hegel) प्रतीत होते हैं। तात्पर्य यह है कि प्रायः जिन विचारों का श्रीगणेश उनके पूर्ववर्ती दार्शनिकों ने किया है, हेगल ने उन्हें शीर्ष बिन्दु तक पहुँचाने का प्रयास किया है।

 

फ्रेडरिक हेगल के दार्शनिक सिद्धान्त

हेगल के दर्शन के मुख्य तीन विभाग हैं-

१. तर्कशास्त्र (Logic)

२. प्रकृति विज्ञान (Philosophy of Nature) एवं

३. आत्म विज्ञान (Philosophy of Spirit)|

वस्तुतः ये तीन विभाग, फ्रेडरिक हेगल के अनुसार, एक ही विज्ञान या प्रत्यय के विविध रूप हैं। फ्रेडरिक  हेगल के अनुसार प्रत्यय ही परम तत्व है। यह प्रत्यय या विज्ञान निरपेक्ष (Absolute) है, अतः हेगल को निरपेक्ष प्रत्ययवादी या विज्ञानवादी (Abeature idealist) माना गया है। उनका परम तत्व प्रत्यय या विज्ञान वस्तु से पृथक नहीं अमर्त होकर भी मूर्त से सम्बद्ध है। एक होकर भी अनेक में समावृत्त है। फ्रेडरिक हेगल ने अपने सम्पर्ण दर्शन में एक ही तत्व का परम तत्व माना है, परन्तु एक से अनेक का सम्बन्ध भी बतलाया है। उनका एक तत्व सर्व समावेशी है।

उनका परमतत्व प्रत्यय या विज्ञान सर्वप्रथम निरपेक्ष विज्ञान के रूप में प्रकट होता है। यह विज्ञानपक्षरूप (Thesis) है। इसे विज्ञान का तर्क शास्त्र (Logic) में निरूपण किया गया है। पुनः विज्ञान अपने को बाह्य प्रकृति के रूप में प्रकट करता है। यह प्रकृति विज्ञान (Philosophy of Nature) का विषय है। यह विज्ञान का प्रतिपक्ष (Anti-thesis) है। परम तत्व विज्ञान का तीसरा स्वरूप पूर्वोक्त दोनों का सामञ्जस्य है। यह विज्ञान का समन्वय रूप (Synthesis) है। यह आत्म तत्व है। हेगल के अनुसार इस आत्न विज्ञान में परम विज्ञान के आन्तरिक तथा बाह्य रूप का समन्वय हो जाता है।

 

 फ्रेडरिक हेगल का निरपेक्ष प्रत्ययवाद या विज्ञानवाद

परम तत्व सर्वोच्च तत्व है, इससे बड़ा कोई अन्य तत्व नहीं। इसे ही निरपेक्ष तत्व कहते हैं। इसे अपनी सत्ता के लिये किसी अन्य तत्व की आवश्यकता नहीं, परन्तु अन्य तत्वों की सत्ता के लिये यह (परम) तत्व परमावश्यक होता है। निरपेक्ष होने के कारण ही परम तत्व परम स्वतन्त्र कहलाता है। क्योंकि अपनी सत्ता तथा उपलब्धि के लिये यह किसी पर आश्रित नहीं। सभी परम तत्व पर ही आश्रित होने से परम तत्व सर्वाधार तत्व कहलाता है।

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प्रश्न यह है कि फ्रेडरिक हेगल के अनुसार निरपेक्ष, स्वतन्त्र, सर्वाधार तत्व क्या है? परम तत्व भौतिक और अभौतिक दो प्रकार का हो सकता है भौतिक परम तत्व भौतिक (अचेतन) जड वस्तु हो सकता है औक अभौतिक परम तत्व अजड चेतन विचार या प्रत्यय हो सकता है। हेगल प्रत्यय को हो तत्व मानते हैं, अतः वे प्रत्ययवादी (Idealist) है। पुनः वे प्रत्यय को निरपक्ष परम तत्त्व मानते है, अतः वे निरपेक्ष प्रत्ययवादी (Absolute idealist) कहलाते है। प्रश्न यह है कि उनका तत्व प्रत्यय रूप कैसे है तथा प्रत्यय निरपेक्ष कैसे? संक्षेप में हेगल का कहना है कि कोई भी वस्तु विश्लेषण करने पर अभौतिक विचार रूप हो जाता है।

उदाहरण के लिये यदि मेज का विश्लेषण करने पर अभौतिक विचार रूप हो जाती है। उदाहरण के लिये यदि मेज का विश्लेषण करें तो मेज काठपन, भूरेपन, ठोसपन आदि विचारों का संघात होगा। ये विचार ही प्रत्यय कहलाते हैं। अतः पदार्थ प्रत्यय रूप हैं। इन प्रत्ययों को सामान्य (Universal) भी कहते हैं, क्योंकि भूरापन, काठपन, ठोसपन आदि सामान्य हैं, क्योंकि ये सभी भरे, काठ तथा ठोस पदार्थों के धर्म हैं। इससे सिद्ध होता है कि वस्तु विचार रूप है, पदार्थ प्रत्यय रूप है, विशेष सामान्य रूप है। यदि वस्तु विचार या प्रत्यय रूप है तो सारा संसार ही प्रत्ययात्मक है। इन प्रत्ययों में जो आदि या प्रथम प्रत्यय होगा वही परम प्रत्यय या परम तत्व होगा। दूसरी ओर इनमें जो सर्वोच्च प्रत्यय होगा वही परम प्रत्यय परम तत्व हो आदि प्रत्यय तथा सर्वोच्च प्रत्यय दोनों एक ही होगा; क्योंकि एक से अधिक प्रत्यय मानने पर परम तत्व की निरपेक्षता ही समाप्त हो जायेगी।

हेगल के अनुसार सर्वोच्च प्रत्यय या विज्ञान शुद्ध अस्तित्व या भाव (Pure being) है| इस भाव का ज्ञान हम अमूर्तीकरण (Abstraction) द्वारा प्राप्त करते है। उदाहरण के लिये किसी मूर्त वस्तु (Concrete object) को लें। जैसे; हमारे सामने एक भूरे रंग का मेज है। हम मेज से काठपन, भूरेपन आदि गुणों को निकाल लें तो अन्त में मेंज की शुद्ध सत्ता है ही शेष रहेगा। यही मेज का भाव है। यह भाव नित्य है। मेज टूट कर नष्ट हो सकता है, परन्तु मेज का अस्तित्व नष्ट नहीं होगा तात्पर्य यह है कि किसी वस्तु का विनाश हो सकता है, परन्तु वस्तु के भाव का नहीं। अतः भाव नित्य तत्व है। एक आवश्यक प्रश्न है कि इस शुद्ध भाव की हमें उपलब्धि कैसे होती है? हेगल के अनुसार प्रत्यय या विज्ञान का ज्ञान हमें इन्द्रियों द्वारा नहीं हो सकता है। हम बुद्धि के द्वारा ही इसका ज्ञान प्राप्त करते हैं। शुद्ध विज्ञान या भाव बुद्धिगम्य है। हमारे बुद्धि अमूर्तीकरण द्वारा इसे उपलब्ध करती है। हेगल अपने तर्कशास्त्र (Logic) में सिद्ध करते हैं कि सभी सांसारिक वस्तुओं की यथार्थ सत्ता केवल भाव है। यह भाव ही प्रथम तत्व (First Category) है, जिससे सभी वस्तुओं की उत्पत्ति होती है। हेगल के तर्कशास्त्र में हम परम तत्व विज्ञान पर विचार करते है।

शुद्ध भाव को फ्रेडरिक हेगल सर्वोच्च सामान्य (Highest universal) कहते है। उनके अनुसार कोई भी वस्तु या पदार्थ केवल सामान्य या प्रत्यय का समुदाय है। उदाहरणार्थ हम एक लाल रंग के मेज को देखते हैं। यह मेज लालपन, काठपन आदि सामान्यों का समुदाय है। ये विभिन्न सामान्य जाति सूचक प्रत्यय हैं। लालपन एक सामान्य है, जो विभिन्न लाल वस्तुओं में विद्यमान है। इसी प्रकार मेज लकड़ी का बना है। यह काठपन एक सामान्य है। मेज, कुर्सी आदि बहुत सी चीजें लकड़ी की हो सकती हैं। परन्तु इनमें सबसे बड़ा सामान्य तो मेज का भाव या अस्तित्व है। अस्तित्व या सत्ता के बिना हम किसी भौतिक या अभौतिक वस्तु की कल्पना ही नहीं कर सकते। दूसरे शब्दों में भाव तो सभी वस्तुओं की पूर्वापिक्षा है। अतः भाव या अस्तित्व सर्वोच्च सामान्य है।

हमने प्लेटो के दर्शन में भी सर्वोच्च सामान्य के सम्बन्ध में विचार किया है। प्लेटो का सर्वोच्च सामान्य शुभ प्रत्यय (Idea of Good) है। अन्य सभी सामान्य शुभ-सामान्य के अन्तर्गत हैं। फ्रेडरिक हेगल सर्वोच्च सामान्य को तो स्वीकार करते हैं, परन्तु शुभ प्रत्यय को सर्वोच्च सामान्य नहीं मानते। सर्वोच्च सामान्य तो वह है जिसकी अपेक्षा सभी सामान्यों को हो। परन्तु यह पता नहीं चलता कि गुण-प्रत्यय या परिणाम-प्रत्यय शुभ प्रत्यय की अपेक्षा क्यों और कैसे करते हैं। अतः सर्वोच्च सामान्य केवल भाव या अस्तित्व है। गुण और परिमाण भी बिना अस्तित्व या भाव के नहीं रह सकते। ये प्रत्यय हैं का अर्थ है कि इनका अस्तित्व है। अतः अस्तित्व या भाव सर्वोच्च सामान्य है।

 

 

फ्रेडरिक हेगल परम तत्व और उपलब्धि

परम तत्त्व तो शुद्ध भाव है| भाव सर्वोच्च प्रत्यय या विज्ञान है। इसे हम कैसे जानते हैं? फ्रेडरिक हेगल का कहना है कि भाव तो विज्ञान है तथा विज्ञान होने से यह दिगम्य है: इन्द्रियगम्य नहीं। इन्द्रियों से हमें वस्तु विशेषों का ज्ञान होता है। सामान्यों या विज्ञानों का नहीं। हम गाय को अपनी आँखों से देख सकते हैं, परन्तु गोत्व सामान्य को नहीं| गोत्व तो सामान्य जाति है जो बुद्धिगम्य है। विज्ञान या सामान्य बुद्धि के विषय हैं। विज्ञान को ही हेगल सत् (Real) मानते हैं तथा स्वीकार करते हैं। सत् केवल बुद्धिगम्य है (Real is rational)। इसका तात्पर्य है कि सत्ता और बोध में तादात्म्य सम्बन्ध है| बोध ही सत्ता है, सत्ता ही बोध है। हमारे ज्ञान के विषय तो सत् विषय हैं। ये सत् विषय कोई वस्तु नहीं, विज्ञान हैं।

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विज्ञान तो बौटिका है, अतः सत्ता भी बौद्धिक है। सत्ता और बोध में हेगल अन्तर नहीं मानते। सत्ता तो केवल विज्ञानों या प्रत्ययों की है। मेज तो विभिन्न विज्ञानों का संघात है। ये विज्ञान ता बुद्धि के विषय या बौद्धिक है। बुद्धि के बिना इनका पता नहीं चल सकता। अतः ये बोध रूप ही हैं। सबसे बड़ा सत्ता तो शुद्ध भाव या शुद्ध अस्तित्व (Pure existence or pure being) है। यह भाव केवल बौद्धिक है, क्योंकि इसकी उपलब्धि बुद्धि से होती है। हम इन्द्रियों से किसी भाव पदार्थ को देख सकते हैं। शुद्ध भाव तो बुद्धि ग्राह्य है। यह बोध स्वरूप है| भाव सर्वोच्च बौद्धिक या तार्किक प्रत्यय है। हम बुद्धि से किसी वस्तु का विश्लेषण करते हैं। वस्तु के सभी गुणों को वस्तु से निकाल देते हैं। अन्त में केवल वस्तु की सत्ता या भाव रह जाता है। यह भाव तो बौद्धिक प्रत्यय या सामान्य है।

अन्त में हेगल का परम तत्त्व एक है| अनेक सामान्यों में एक सर्वोच्च सामान्य है जिसे शुद्ध भाव कहते हैं, परन्तु यह वस्तु से भिन्न नहीं। यह वस्तु की शुद्ध सत्ता है। यह एक होते हुए भी अनेकों से सम्बद्ध है, अनेकता में एकता है। फ्रेडरिक हेगल इसे सर्व समावेशी मूर्त सामान्य (Concrete universal) कहते हैं। इसकी विशद व्याख्या हम तर्कशास्त्र में देखेंगे। यह आवश्यक प्रश्न यह है कि परम तत्त्व से विभिन्न वस्तुओं की उत्पत्ति कैसे होती है। इसके लिये त्रिक विकास क्रम की आवश्यकता है। हमने पहल विचार किया है कि परम तत्त्व शद्ध सत्ता या भाव (Pure being) है। परन्तु इस भाव को हम नहीं बतला सकते कि यह (भाव) क्या है? हमे यही मालूम है कि किसी वस्तु का विश्लेषण करने पर अन्त में केवल वस्तु की शुद्ध सत्ता ही शेष रह जाती है।

हम मेज से लालपन, भारीपन, काठपन आदि सभी गुणों को निकाल ले तो अन्त में मेज है अर्थात् मेज का भाव ही शेष रहेगा। परन्तु यह भाव  द्रव्य है और न गुण। इसे हम किसी पदार्थ या वस्तु की संज्ञा नहीं है। केवल यही कह सकते हैं कि मेज विभिन्न सामान्यों जैसे काठपन, भारीपन आदि का संघात है। परन्तु इन सभी सामान्यों में सर्वोच्च सामान्य भाव के यह सबकी तार्किक पूर्वापेक्षा (Logical Pre-supposition) है। तर्क की ही पहले मेज की सत्ता मान लेते है तब उसे लाल या भारी या चौपाया मानते है मेज का अस्तित्व या भाव ही नहीं तो लाल, भारी, चौपाया मानते हैं।

यदि मेल अस्तित्व या भाव तो सबकी लाल, भारी, चौपाया होने का प्रश्न ही नहीं। अतः अस्तित्व या भाव तो सबकी पूर्वापेक्षा है। यह भाव है और नहीं है। दोनों है। विशेष की दृष्टि से यह कोई वस्तु नहीं, कोई पदार्थ नहीं। हम नहीं कह सकते है। यह ‘भाव’ मेज है या कुर्सी है आदि। यह तो शून्य के समान है, परन्तु इस शुद्ध भाव  के बिना किसी का भाव नहीं अर्थात् सबका अभाव (Non being) है।

इस शुद्ध भाव को हम कुछ नहीं कह सकते हैं, केवल इसे सबका अभाव मान सकते हैं। उदाहरणार्थ, मेज का शुद्ध भाव (Pure being) क्या है? यह लालपन, काठपन आदि सभी प्रत्ययों या सामान्यों का अभाव (Non being) है। अतः शुद्ध भाव अभाव (Being = Non being) है। यह भाव ही अभाव में परिवर्तित हो जाता है। भाव का अभाव में परिवर्तन या सञ्चरण सम्भवन (Becoming) कहलाता है। भाव का अभाव में सञ्चरण के लिये गति (Movement) की आवश्यकता है, क्योंकि परिवर्तन गति के बिना सम्भव नहीं।

भाव अंपनी मौलिक स्थिति का त्याग कर अभाव की ओर (गति के कारण) सञ्चरण करता है। यही विश्व का द्वन्द्वात्मक विकास है। इसका क्रम है-भाव, (Being), अभाव (Non-being) और सम्भवन (Becoming)| इसी को हेगल विकास का त्रिकप (Triadic) बतलाते हैं। भाव तो सभी वस्तुओं की पूर्वापेक्षा है अर्थात् भाव सबसे बड़ी जाति या सामान्य (Genus) है| इस भाव या सर्वोच्च सामान्य से ही अन्य सभी सामान्य निकलते हैं। सभी सामान्यों में जो निकटतम होगा, वह सबसे पहले निकलेगा अतः निकटतम सामान्य को उपजाति (Species) कहा।

यह निकटतम उपजाति में ही रहती है। परन्तु जाति से उपजाति का निर्गमन विभेदक गुण (Differentia) के कारण होगा। यह विभेदक गुण जाति में ही विद्यमान रहता है। इसे जाति का निषेधात्मक लक्षण कहते हैं। यह अभाव का सूचक है। इस प्रकार प्रत्येक भाव में उसका अभाव अन्तर्निहित है जो सञ्चरण के द्वारा (गति के कारण) सम्भवन हो जाता है। इस प्रकार जाति (Genus), उपजाति (Species) और विभेदक गुण (Differentia) यही त्रिक रूप विकास का अन्तर्निहित सिद्धान्त है।

जाति (Genus) = भाव (Being)-पक्ष (Thesis)|

विभेदक (Differentia) = अभाव (Non being)-प्रतिपक्ष (Anti-thesis)|

उपजाति (Species) = सम्भवन (Becoming)-सम्पक्ष (Synthesis)|

 इस प्रकार जाति-विभेदक उपजाति भाव-अभाव-सम्भवन। यही विश्व के सभी पदार्थों की उत्पत्ति का क्रम है। सभी वस्तु या पदार्थ विशुद्ध भाव के ही परिणाम हैं। अतः विशुद्ध भाव ही परम तत्व है।

तकशास्त्र (Logic) – तर्कशास्त्र में परम तत्व के तार्किक स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है। यह परम तत्व का निरपेक्ष रूप है। यह निरपेक्ष रूप अमूर्त्त विज्ञान (Abstract idea) है। इसे हम विज्ञान शुद्ध (Pure) स्वरूप कह सकते हैं। फ्रेडरिक हेगल तर्कशास्त्र में इसी परम तत्व को सिद्ध करते हैं। उनके अनुसार परम तत्व शुद्ध भाव या सत्ता है जो तर्क या बुद्धिगम्य है।

 

 

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