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मूल्यांकन प्रक्रिया के सोपान, प्रविधियाँ, उपयोगिता एवं महत्त्व | Steps of Evaluation Process in Hindi

Table of Contents

मूल्यांकन प्रक्रिया के सोपान(STEPS OF EVALUATION PROCESS)

(1) उद्देश्यों का निर्धारण एवं परिभाषीकरण (Identifying and Defining Objectives)-

उद्देश्यों को निर्धारित करने से पूर्व बालक समाज, विषय-वस्तु की प्रकृति तथा शैक्षिक स्तर पर पूर्ण ध्यान दिया जाना या इन सभी तथ्यों को देखते हुए मूल्यांकन के उद्देश्यों को भली-भाँति स्पष्ट रूप से व्यवहार परिवर्तन में निर्धारित करने का प्रयत्न करना चाहिये। यह मूल्यांकनकर्ता के मस्तिष्क में बिल्कुल स्पष्ट होना चाहिए कि वह किस प्रकार के परिवर्तन किस सीमा तक लाना चाहता है। इन परिवर्तनों के आने पर बालक के व्यवहार में किस तरह के परिवर्तन की आशा है। अतः उद्देश्यों के निर्धारण एवं परिभाषा करते समय उनके निर्धारण एवं  परिभाषित करने की विधि का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के बाद ही मूल्यांकन की ओर बढ़ना चाहिये। उद्देश्यों की परिभाषा करने में व्यवहार परिवर्तन तथा विषय-वस्तु दोनों महत्त्वपूर्ण मानना आवश्यक है।

 

 

(2) अधिगम-अनुभव की योजना बनाना (Planning Learning Experiences)-

जब उद्देश्यों, निर्धारण हो जाता है तब अधिगम अनुभवों पर ध्यान दिया जाना चाहिये। अधिगम अनुभव से तात्पर्य ऐसी परिस्थिति के निर्माण से है जिसके अन्तर्गत बालक वांछित प्रतिक्रिया व्यक्त कर स मूल्यांकनकर्ता को अधिगम अनुभव निर्धारित उद्देश्यों के आधार पर बनाने चाहिये और उसी पर अनुभवों का चुनाव एवं निर्माण करना चाहिये।

एक उद्देश्य की पूर्ति के लिये अनेक अनुभवों की योजना बनानी पड़ती है। योजना बनाने बालक का स्तर, आयु, लिंग, परिवेश, पृष्ठभूमि आदि कारकों को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त शिक्षण, शिक्षण विधि एवं साधनों के माध्यम से अनुभवों की व्यवस्था की जाती है।

 

 

(3) विभिन्न उपकरणों के माध्यम से साक्षियाँ प्रदान करना (Providing Evidence Various Tools of Evaluation)-

मूल्यांकनकर्ता उद्देश्य एवं अधिगम अनुभव की योजना बनाने के पश्चात उपर् युक्त उपकरणों के चयन अथवा विकास में लग जाता है और इन उपकरणों को प्रयोग करते हुए वह साक्षियाँ एकत्रित करता है जिनके आधार पर प्रत्याशित-व्यवहार परिवर्तन का मूल्यांकन करने में समर्थ होता है। (यदि तैयार मूल्यांकन उपकरण उपलब्ध नहीं हैं तो वह उनकी रचना कर साक्षियाँ एकत्रित करने की योजना बनाता है।)

 

(4) मूल्यांकन तकनीकियों की रचना (Construct the Evaluation Devices)-

मूल्यांकन की तकनीकियों/उपकरणों की रचना के पूर्व मूल्यांकनकर्ता निम्नांकित प्रश्न स्वयं से पूछता है-

(a) शिक्षण के उद्देश्यों के सन्दर्भ में, मैं इस उपकरण से किन चीजों का मूल्यांकन करूँगा।

(b) मैं जिन चीजों का मूल्यांकन करने जा रहा हूँ- क्या मेरा उपकरण सही ढंग से उन चीजों के मूल्यांकन करने में समर्थ है।

(c) क्या इस उपकरण का दो अलग-अलग लोग, उपयोग करके एक समान परिणाम पर ही पहुँचेंगे; तथा

(d) क्या ये उपकरण प्रयोग करने में सरल हैं ?

 

 

(5) उपकरण का प्रयोग तथा वास्तविक साक्षियों का एकत्रीकरण (Apply the Device and Record and the Evidence)-

जब मूल्यांकन के लिये छात्रों पर मूल्यांकन उपकरण का प्रयोग किया जाता है तो यह आवश्यक हो जाता है आवश्यक साक्षियों को एकत्रित किया जाये। लिखित परीक्षाओं में तो छात्र स्वय ही साक्षियाँ लिखकर देते हैं। किन्तु निरीक्षण तथा मौखिक परीक्षणों में शिक्षक को छात्रों की अनुक्रियाओं का रिकार्ड तैयार करना चाहिये। जिससे आवश्यकता पड़ने पर इस रिकॉर्ड का सत्यापन अन्य विधियों से किया जा सके।

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(6) लिखित साक्षियों (आँकड़ों) की व्याख्या (Interpret the Evidences Recorded)

यदि मूल्याकंन उपकरण के प्रयोग के पश्चात् साक्षियाँ एकत्रित की गयी हैं और उनका समुचित रिकार्ड रखा गया है तो उनका सावधानी के साथ विश्लेषण करके शिक्षक को व्याख्या करनी चाहिये कि छात्रों में किस प्रकारक परिवर्तन आये एवं किस शिक्षण उद्देश्य को किस सीमा तक प्राप्त किया गया। व्याख्या के समय यदि आवश्यकता हो और यदि अन्य मापदण्ड उपलब्ध हों तो शिक्षक छात्रों की उपलब्धि की तुलना, Norms के आधार पर, अथवा प्रगति के किसी अन्य सम्बन्धित स्तर पर कर सकता है।

“Again, it would be useful to summaries results in a way which describes more fully the degree of attainment of each objective. The results must be stated in such a way that Strengths and weaknesses in the pupil could be diagnosed.”

 

हिन्दी में सुनें-

 

मूल्यांकन परिवर्तन के क्षेत्र (AREAS OF CHANGES DUE TO EVALUATION)

 

मूल्यांकन  के माध्यम से व्यवहार में परिवर्तन आते हैं। ये परिवर्तन बालक के बोलने, पढ़ने-लिखने, सोचने-समझने आदि क्षेत्रों में आते हैं। व्यवहार परिवर्तन के सभी क्षेत्रों को प्रमुख रूप से तीन पक्षों में विभाजित किया जाता है.

 

(अ) ज्ञानात्मक पक्ष (Cognitive Aspect)-

यह पक्ष ज्ञान के उद्देश्य पर सर्वाधिक महत्व प्रदान करता है। Prof. Bloom ने ज्ञानात्मक पक्ष की विवेचना करते हुए निम्न प्रकार का ज्ञान इस पक्ष में सम्मिलित किया है-

1. विशिष्ट तथ्यों का ज्ञान,

2. विशिष्ट तथ्यों को प्राप्त करने की विधियों का ज्ञान,

३. परम्पराओं एवं मान्यताओं का ज्ञान,

4. घटनाओं का ज्ञान,

5. मापदण्डों का ज्ञान,

6. विधियों एवं प्रणालियों का ज्ञान,

7. सिद्धान्तों एवं सामान्यीकरण का ज्ञान।

 

ज्ञानात्मक पक्ष के 6 स्तर होते है- प्रत्यास्मरण तथा अभिज्ञान, बोध, प्रयोग विश्लेषण, संश्लेषण तथा मूल्यांकन।

 

(ब) भावात्मक पक्ष (Affective Aspect)-

यह पक्ष बालक की रुचियों, संवेगों एवं मनोवृत्तियों से सम्बन्धित होता है। इस पक्ष के भी निम्नांकित 6 स्तर होते हैं-

1. आग्रहण,

2. प्रतिक्रिया,

3. अनुमूल्यन,

4. विचारण,

5. व्यवस्थापन,

6. चरित्रीकरण।

 

 

(स) क्रियात्मक पक्ष (Conative Aspect)-

क्रियात्मक पक्ष माँसपेशियों एवं आंगिक गतियों की आवश्यकता से सम्बन्धित होता है। शिक्षण प्रक्रिया की दृष्टि से इस पक्ष को भी 6 स्तरों में बाँटा गया है

1. उत्तेजन,

2. कार्यवाही,

3. नियन्त्रण,

4. समायोजन,

5. स्वाभावीकरण,

6. आदत या कौशल।

व्यवहार के ज्ञानात्मक भावात्मक तथा क्रियात्मक तीनों पक्षों में परस्पर समन्वय रहता है। बालको के व्यवहार में परिवर्तन का मूल्यांकन इन तीनों क्षेत्रों में पृथक रूप तथा समन्वित रूप, दोनों प्रकार से ही किया जा सकता है।

 

 

 

मूल्यांकन के उपकरण एवं प्रविधियाँ (TOOLS & TECHNIQUES OF EVALUATION)

मूल्यांकन अनेक उद्देश्यों से किया जाता है। उद्देश्यों के अनुसार उपकरण भी बदलते रहते हैं। मूल्यांकन के अनेक उपकरण हैं। सुविधा के अनुसार उन्हें निम्नाकित चार भागों में विभाजित किया जा सकता है-

1. परीक्षण उपकरण (Testing Procedures),

2 स्वयं-आलेख उपकरण (Self-report Techniques),

3. निरीक्षणात्मक उपकरण (Observational Techniques), 

4. प्रेक्षपी उपकरण (Projective Techniques),

 

(1) परीक्षण उपकरण

ये उपकरण परीक्षणों के रूप में होते हैं। परीक्षण व्यक्ति के एक निश्चित समय के व्यवहार का अध्ययन करता है (A test is merely a series of tasks which are used to measure a sample of a person’s behavior at a given time)। ये परीक्षण व्यक्ति की रुचि, अभिरुचि, अभिवृत्ति उपलब्धि एवं व्यक्तित्व आदि के मूल्यांकन हेतु प्रयोग किये जाते हैं। ये परीक्षण मौखिक, प्रयोगात्मक अथवा लिखित रूप में हो सकते हैं। ये वस्तुनिष्ठ या निबन्धात्मक, शिक्षक निर्मित, साधारण या प्रमाणीकृत हो सकते हैं। ये सभी परीक्षण निम्न प्रकार से दिये जा सकते हैं

1. लिखित परीक्षा के माध्यम से।

2. मौखिक परीक्षा के माध्यम से।

3. प्रयोगात्मक परीक्षा के माध्यम से।

4. निष्पादन परीक्षा के माध्यम से।

5. व्यक्ति के द्वारा निर्मित कृतियों के माध्यम से।

 

(2) स्वयं आलेख उपकरण –

प्रत्येक व्यक्ति अपने बारे में काफी सूचनाएँ रखता है। वह अपने बारे में क्या सोचता है ? कैसे सोचता है ? कब खुश होता है। कौन-सी चीजें उसे पीड़ा देती हैं ? आदि पहलुओं पर व्यक्ति से मूल्यांकन के लिये प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से सूचना ली जा सकती है। यह सूचना निम्न प्रकार के उपकरणों के प्रयोग द्वारा एकत्रित की जा सकती है-

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1. प्रश्नावली (Questionnaire),

2. आत्मकथा (Autobiography),

3. व्यक्तिगत डायरी (Personal Diary),

4. वार्ता (Discussion),

5. प्रत्यक्ष प्रश्न (Direct Question),

6. साक्षात्कार (Interview)।

 

(3) निरीक्षणात्मक उपकरण

व्यक्ति के बारे में अपने निरीक्षण एवं अनुभवों के आधार पर सूचना एकत्रित की जा सकती है। यह निरीक्षण एवं अनुभवों का संकलन वैज्ञानिक विधियों पर आधारित होना चाहिये। निरीक्षण के लिये विभिन्न प्रकार के उपकरण कार्य में लाये जाते हैं। इन सब उपकरणों के प्रयोग करने में तथा उनकी व्याख्या करने में काफी सावधानी की आवश्यकता होती है। इन उपकरणों में निम्नांकित उपकरण प्रमुख हैं-

1. एकल तथ्य लेखा (Anecdotal Records),

2. चैक सूची (Checklists),

3. रेटिंग स्केल (Rating Scales),

4. समाजमिति तकनीक (Sociometric Technique),

5. गैस हू टैकनिक (Guess who Technique)

 

 

(4) प्रक्षेपी उपकरण

इन उपकरणों के माध्यम से व्यक्ति के व्यक्तिगत-सामाजिक समायोजन से सम्बन्धित पक्षों का मूल्यांकन किया जाता है। इनमें व्यक्ति अपनी भावनाओं का प्रक्षेपण करता है और उन प्रक्षेपणों का मुल्यांकन निश्चित सिद्धान्तों एवं नियमों के माध्यम से किया जाता है। प्रक्षेपी उपकरण प्रमुख रूप से तीन प्रकार के होते हैं-

1.पूर्ण प्रक्षेपी,

2. अर्ध प्रक्षेपी,

3.अपूर्ण/मुक्त प्रक्षेपी उपकरण।

 

निम्नांकित उपकरण आजकल काफी प्रयोग में लाये जा रहे है-

1. स्याही के धब्बों का प्रत्यक्षीकरण (Perceptions of Ink blots)।

2 वाक्य-पूति (Sentence-completion),

3. गुड़िया-खेल (Doll Play).

4. चित्रों की व्याख्या (Interpretation of Pictures)।

आवश्यकतानुसार इनमें से कोई एक या एक से अधिक उपकरण एवं तकनीकियाँ मूल्यांकन प्रक्रिया में प्रयोग की जा सकती हैं।

 

 

मूल्यांकन की उपयोगिता (UTILITY OF EVALUATION)

मूल्याकंन, मनोविज्ञान एवं शिक्षा के क्षेत्र में एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। मूल्यांकन से यह मालूम होता है कि व्यक्ति कितना, किस विषय में जानता है? शिक्षक को अपनी कक्षा में कितनी सफलता मिला है? शिक्षक को किन शिक्षण विधियों का प्रयोग करना चाहिये? अपने शिक्षण को किसी प्रकार से छात्रों के स्तर पर समायोजित किया जाना चाहिये? इस प्रकार के प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करके शिक्षक अपने शिक्षण को अधिक प्रभावोत्पादक बना सकता है ?

छात्रों को यदि अपनी कमियों और अच्छाइयों का पता चल जाये तो वे अपनी कमियों को दूर करने का प्रयत्न कर सकते है। इस प्रकार से मूल्यांकन छात्रों को अच्छा बनने के लिये प्रेरित करता है।

मूल्यांकन के माध्यम से शिक्षक कक्षा के सभी छात्रों की प्रगति के बारे में जान कर उनके अभिभावको को छात्रों के विषय में सही तथ्य तथा राय दे सकता है। अभिभावक भी अपने बालक की प्रगति के बारे में जानकारी रख सकते हैं।

मूल्यांकन से प्राप्त निष्कर्षों से यह भी पता चल जाता है कि छात्र किस विषय में कमजोर हैं? उनकी समस्याएँ किस प्रकार की है? कौन-सी चीज उनकी प्रगति में बाधक है और वह कैसे दूर की जा सकती है? किस प्रकार एकत्रित तथ्यों के माध्यम से निर्देशनकर्ता (Guidance Counselor) छात्रों की अधिक सहायता कर सकता है।

विद्यालय की गतिविधियों में सुधार लाने के लिये भी मूल्यांकन काफी उपयोगी सिद्ध हुआ है। पाठ्यक्रम निर्माण, उपयुक्त परीक्षा प्रणाली, व्यक्तिगत निर्देशन तथा सहगामी क्रियाओं आदि को उपयुक्त योजना बनाने में मूल्यांकन सुदृढ़ पृष्ठ-भूमि प्रदान करे, उनमें अपेक्षित सुधार लाने के लिये प्रेरणा प्रदान करता है।

 

 

 

मूल्यांकन का महत्व(IMPORTANCE OF EVALUATION)

 

1. मूल्यांकन उद्देश्यों की प्राप्ति की सीमा बताता है कि किस सीमा तक उद्देश्यों की पूर्ति हुई है। दूसरे शब्दों में यह उद्देश्यों के स्पष्टीकरण में सहायक होता है।

2 मुल्यांकन से यह निश्चित किया जाता है कि किन विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति नहीं हो सकी है। ताकि Remedial Instruction दिया जा सके।

3. छात्रों के वर्गीकरण एवं स्तरीकरण (Ranking) करने में सहायक है।

4. इससे शिक्षण विधियों, प्रविधियों आदि की उपयोगिता, विशेषता तथा कमजोरी ज्ञात की जाती है।

5. शिक्षण व्यूह रचना में सुधार किया जाता है और उन्हें विकसित किया जाता है।

6. यह शिक्षक और छात्र दोनों के लिए पुनर्बलन (Reinforcement) का कार्य करता है।

7. इससे अधिगम में गुणवत्ता बढ़ती है।

8. मूल्यांकन के आधार पर छात्रों को आवश्यकतानुसार समुचित निर्देशन प्रदान किया जाता है।

9. मूल्यांकन के आधार पर पाठ्यक्रम में भी परिवर्तन लाये जाते हैं।

10. मूल्यांकन, पूर्ण शिक्षण में सुधार लाने की एक समर्थ तथा सक्षम विधि है।

 

 

हिन्दी में सुनें-

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