पत्राचार शिक्षा से क्या समझते हैं?

पत्राचार शिक्षा से क्या समझते हैं?,आवश्यकता, सीमाएँ तथा समस्याएं | Correspondence Education in Hindi

पत्राचार शिक्षा (Correspondence education)

शिक्षा का उद्देश्य बालक का सर्वांगीण विकास करना तथा सबको शिक्षित करना है, किन्तु भारत जैसे विशाल देश में इस उद्देश्य की पूर्ति कर पाना बहुत ही जटिल कार्य है। सन् 1950 में हमारे देश में जहाँ 27 विश्वविद्यालय, 750 महाविद्यालय, 12,000 अध्यापक, 250,000 छात्र थे वहीं 1996 में इनकी संख्या इस प्रकार हो गई- 250 विश्वविद्यालय, 9,000 महाविद्यालय, 3,00,000 अध्यापक तथा 60 लाख छात्र। इस संख्या की बढ़ोत्तरी का क्रम निरन्तर जारी है। इसके बावजूद भी प्रतिवर्ष हम 17 वर्ष से 22 वर्ष की उम्र के 10 प्रतिशत लोगों के लिए भी उच्च शिक्षा उपलब्ध नहीं करवा पा रहे हैं। इसका प्रमुख कारण हमारे वित्तीय व भौतिक साधनों की सीमितता है। यही कारण है कि भारत में 1962 में पत्राचार शिक्षा पाठ्यक्रम आरम्भ किया गया ताकि अधिकाधिक छात्रों को शिक्षा सलभ हो सके। आज देश में लगभग 40 विश्वविद्यालय पत्राचार पाठयक्रम पद्धति के माध्यम से उच्च शिक्षा का प्रसार कर रहे हैं। 10 केन्द्रीय संस्थानों और कई निजी शिक्षण संस्थाओं द्वारा पत्राचार शिक्षा के पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं।

 

1964 ई. में भारत सरकार ने कोठारी आयोग अथवा भारतीय शिक्षा आयोग का गठन किया। इस आयोग ने पत्राचार शिक्षा की सिफारिश करते हुए ये विचार व्यक्त किए-

“एक ऐसी प्रणाली चाहिए जो आवश्यक रूप से शिक्षा को ऐसे लोगों तक पहुँचाए, जो अपने निजी प्रयास से, अपनी सुविधानुसार और अपने द्वारा चुने गए समय पर अध्ययन करना चाहते हैं। हम इस बात को स्वीकार करते हैं कि पत्राचार शिक्षा अथवा शिक्षा की गृह अध्ययन विधि, इस स्थिति का ठीक-ठीक उत्तर देती है। ऐसा कोई कारण नहीं, जिससे हम आशंकित हों कि पत्राचार के माध्यम द्वारा प्रदान की जाने वाली शिक्षा, विद्यालयीय अथवा महाविद्यालयीय शिक्षा से किसी बात में कम होगी। यह तथ्य भारतवर्ष और विदेशों में किए गए शोध कार्यों से सिद्ध हो चुका है।”

आयोग की सिफारिशों के कारण पत्राचार पाठ्यक्रम अपनाने की विश्वविद्यालयों में प्रतिस्पर्धा होने लगी और कुछ ही वर्षों में पत्राचार शिक्षा राजस्थान, पंजाब, बम्बई, मदुरै, मेरठ, मैसूर विश्वविद्यालयों तक जा पहँची। यह शिक्षा न केवल उच्च स्तर तक ही सीमित है अपितु यह विद्यालयी स्तर पर भी लाग की गई है। विद्यालयी स्तर पर पत्राचार पद्धति अजमेर, इलाहाबाद, भोपाल, कटक, दिल्ली आदि स्थानों पर चल रही है।

See also  शिक्षा में सम्प्रेषण के विविध माध्यम: परिचय एवं विकास

इसके साथ ही कछ निजी संगठनों के द्वारा भी पत्राचार पाठ्यक्रम चलाए जा रहे। है जो कार्यरत व्यक्तियों की व्यावसायिक दक्षता बढ़ाने में सहयोग देते हैं तथा सामान्य जनता के लिए आगे शिक्षा प्रदान करते हैं।

पत्राचार पाठ्यक्रमों द्वारा सेवाकालीन शिक्षक प्रशिक्षण तथा पूर्व सेवा शिक्षण प्रशिक्षण भी प्रदान किए जाते हैं। बी.एड. की उपाधि हेतु इस समय अन्नामलाई, भोपाल, जम्मू-कश्मीर, मदुरै, उत्कल आदि विश्वविद्यालयों के साथ-साथ कोटा खुला विश्वविद्यालय, इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय आदि भी कार्यरत हैं। जो पत्राचार के माध्यम से शिक्षण कला कौशल, नवीनतम शिक्षण विधियों व दृश्य-श्रव्य उपकरणों का अधिकाधिक समुचित प्रयोग करना भावी शिक्षकों तथा कार्यरत शिक्षकों को सिखाते हैं।

 

 

पत्राचार शिक्षा की आवश्यकता –

1 शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र में विस्तार को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है, कि सभी व्यक्तियों को शिक्षा दी जाए।

2. जो नियमित रूप से विद्यालय में उपस्थित होने में असमर्थ हैं। वे आगे शिक्षा प्राप्त कर सकें।

3. व्यवसायरत व्यक्तियों के लिए अपेक्षित योग्यता वर्धन में सहायक है।

4. वे छात्र जो पारिवारिक परिस्थितियों के कारण शिक्षा से वंचित रह गए अथवा बीच में ही उन्हें अध्ययन छोड़ना पड़ा वे पुनः अपनी शिक्षा जारी रख सकते हैं।

5. इस व्यवस्था में व्यक्ति घर पर तथा अंशकालिक रूप से अपनी सुविधानुसार पढ़ सकता है।

 

 

पत्राचार पाठ्यक्रम में प्रयुक्त की जाने वाली सामग्री :

इस पाठ्यक्रम में मुख्यतः दो तरह की सामग्री प्रयोग में लाई जाती है-

(1) मद्रित सामग्री

(2) अमुद्रित सामग्री

 

मुद्रित सामग्री में आती हैं- पत्राचार पाठ्यपुस्तकें, अभिक्रमित सामग्री चित्र चार्ट रेखाचित्र तथा अन्य दृश्य सामग्री, अन्य पुस्तकें, संदर्भ सामग्री जो शैक्षिक संगठन द्वारा विद्यार्थियों को दी जाती हैं, इसके अतिरिक्त संस्थाओं द्वारा दिए जाने वाले गृहकार्य, स्वयं किए गए गृह कार्य तथा अमुद्रित सामग्री से सम्बन्धित दिए गए निर्देश भी मद्रित सामग्री के अन्तर्गत आते हैं।

अमुद्रित सामग्री की श्रेणी में- स्लाइड्स, फिल्मस्ट्रिप्स, फिल्म, फिल्मलूप्स, ओडियो टेप्स, वीडियो टेप्स, वीडियो डिस्क, टेपस्लाइड्स सिन्चरोनाइगेशन, रिकॉर्डस तथा आकाशवाणी व दूरदर्शन द्वारा प्रसारित किए जाने वाले कार्यक्रम टेली टीचिंग तथ टेलीकॉन्फेन्सिग आते हैं।

सामग्री निर्माण करते समय अधिगमकर्ता की आयु उसके पूर्व अनुभव, शैक्षिक योग्यता, रुचि तथा भाषायी दक्षता आदि का ध्यान पत्राचार सामग्री निर्माता द्वारा रखा जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त पत्राचार सामग्री लिखते समय निम्नलिखित बिन्दुओं का ध्यान रखना चाहिए ।

See also  वस्तुनिष्ठ परीक्षण क्या है?,विशेषताएँ एवं सीमाएँ | Objective Type Test in Hindi

(क) पाठ्यक्रम के उद्दश्यों के निर्धारण में।

(ख) प्रथम प्रारूप के लेखन की समय सीमा तथा उसका पुनरावलोकन।

(ग) प्रारूप में संशोधन।

(घ) न्यादर्श पर प्रारूप का ट्राई ऑउट करना।

(ड) प्रारूप को प्रेस के लिए तैयार करना।

 

मुद्रित प्रारूप में निम्नलिखित बातें अपेक्षित हैं- उद्देश्य, अधिगम कर्ता के द्वारा पाठय सामग्री को पढ़ा जाना, प्रश्न, उदाहरण एवं अन्य क्रियाएं जैसे-चित्र प्रदर्शन, प्रयोग का विवरण, सारांश, प्रश्नों के उत्तर, पठनीय पुस्तकों का संदर्भ,चर्चा के बिन्दु, फीड बैक शिड्यूल आदि होने चाहिए।

 

 

 पत्राचार पाठ्यक्रम की सीमाएँ तथा समस्याएं:

1. शिक्षक को पत्राचार पाठयक्रम पढाने में वह संतुष्टि नहीं मिलती जो उसे औपचारिक विद्यालयों व महाविद्यालयों में मिलती है।

2. इस पद्धति से छात्र शिक्षक के व्यक्तित्व व चारित्रिक गुणों से परिचित नहीं हो पाते।

3. यह व्यवस्था छात्रों को समूह अधिगम, सामाजीकरण, उत्सवों में सम्भागिता, पर्वो, नेतृत्व सम्बन्धी क्रियाओं से वंचित रखती है।

4. इसमें प्रयोग की जाने वाली भाषा तथा विचार भी कभी-कभी छात्रों तक नहीं पहुँच पाते।

5. पत्राचार पाठ्यक्रम से छात्रों में दक्षता का पूर्ण विकास नहीं हो पाता है।

6. इसमें छात्रों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं का ध्यान रख पाना एक चुनौती है।

7. इस पाठ्यक्रम की मान्यता भी सभी शैक्षणिक संस्थानों द्वारा औपचारिक शिक्षा के तुल्य नहीं है।

8. इसमें सम्भागी को अकेलेपन की अनुभूति होती है।

9. संदर्भित अध्ययन सामग्री उपलब्ध नहीं हो पाती।

10. पत्राचार सामग्री कई बार निम्न स्तर की होती है।

11. समय-समय पर अपेक्षित अभिप्रेरणा से छात्र वंचित रहते हैं।

12. सम्भागियों को एक ही समय पर पाठ्य सामग्री उपलब्ध नहीं हो पाती।

13. छात्रों की समय-समय पर उत्पन्न होने वाली शंकाओं के निवारणार्थ व्यक्तिगत सम्पर्क की सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हो पाती।

14. जो सामग्री वितरित की जाती है, उसकी कीमत कई बार अधिक होने से गरीब छात्र इससे वंचित रह जाते हैं एवं कीमत कम करने से इसकी गुणवत्ता में कमी आ जाती है।

Disclaimer -- Hindiguider.com does not own this book, PDF Materials, Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet or created by HindiGuider.com. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: [email protected]

Leave a Reply