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उत्तर-आधुनिकता क्या है | What is Post-modernism in Hindi

आधुनिकता का अर्थ

उत्तर-आधुनिकता (Post-Modernity) शब्द दो अर्थों में प्रयुक्त होता है  प्रथम – यह एक उपागम (सिद्धान्त) है, जो अध्ययन हेतु एक विशेष परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत करता है। द्वितीय – उत्तर-आधुनिकता वैकल्पिक समाज की सामाजिक व्यवस्था की रूपरेखा प्रस्तुत करता है। इसमें इसी व्यवस्था के आदर्श प्रारूपों को निर्मित करने का अमूर्त प्रयास किया गया है।

उत्तर-आधुनिकता का सम्बन्ध पूँजीवादी जीवन से है। इसका उद्देश्य आधुनिकता के तथ्यों एवं सिद्धान्तों को नष्ट करना है। कुछ समाज विज्ञानियों का मत है कि उत्तर-आधुनिकता एक प्रकार की अराजकता है जो समाज के औद्योगिक उत्पादन से जुड़ी हई है। यह विचारधारा मानवीय मूल्यों एवं मानकों को अस्वीकार करती है तथा इसके मार्ग में जो भी आता है उसे वह रौंद कर आगे बढ़ जाती है। उत्तर-आधुनिकता के आलोचकों का मत है कि यह कोई सिद्धान्त नहीं, मात्र एक विचारधारा है। नवीन संदर्भो में समाज विज्ञानों की प्रत्येक शाखा उत्तर-आधुनिकता को फैशन के रूप में स्वीकार कर रही है। अर्थात यह समाज विज्ञानों में फैशन के रूप में लोकप्रिय हो रहा है।

उत्तर-आधुनिकता शब्द का प्रयोग ही व्यक्ति को आधुनिकतम बना देता है। उत्तर-आधुनिकता वह रंग है जिसे किसी भी वस्तु पर लगाया जा सकता है। इसका रंग घटिया से घटिया वस्तु में भी निखार ला देता है। सच्चाई यह है कि उत्तर-आधुनिकता जहां एक फैशन की तरह है, वहीं दूसरी ओर एक श्रमजाल है जिसमें फंसकर व्यक्ति कहीं का नहीं रहता। उत्तर-आधुनिकता की विचारधारा आधुनिकता से सम्बद्ध समस्त सामाजिक स्वरूपों को ध्वस्त करती है। उत्तर-आधुनिकता का कुल आशय यही है कि यह आधुनिकता को अस्वीकार करती है।

 

उत्तर-आधुनिकता की अवधारणा

मदन स्वरूप उत्तर-आधुनिकता की अवधारणा को इस प्रकार प्रकट करते हैं –

(1) कला दैनिक जीवन से अलग नहीं होती है। कला न तो कोई काल्पनिक संसार है और न केवल कला के लिए है। कला तथा समाज विज्ञान व्यक्ति के दैनिक जीवन के सम्बद्ध है।

(2) उत्तर-आधुनिकता जीवन के सभी क्षेत्रों में व्याप्त है। समाज का कोई भी कोना इससे अछूता नहीं है।

(3) उत्तर-आधुनिकता उन समस्त परम्परागत सिद्धान्तों का खंडन करती है, जो भव्य एवं विशाल कहे जाते हैं।

(4) उत्तर-आधुनिकता सोपानिक विचारधारा का खंडन करती है। इसका मत है कि संस्कृति संस्कृति है, इसका वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है। इसके दृष्टिकोण से अभिजात या मध्यम वर्ग की संस्कृति अभिव्यक्ति की संस्कृति के समकक्ष है।

(5) उत्तर-आधुनिक के सम्बन्ध में ल्योटाई तथा उनके समर्थकों का कथन है कि यह वैचारिक आधुनिकता को अस्वीकार करती है।

उत्तर-आधुनिकता के सम्बन्ध में विचारकों का मत 

विचारकों के मतानुसार उत्तर-आधुनिकता एक संश्लेषणात्मक सिद्धान्त है, जिसको समाजशास्त्र में प्रतिपादन किया गया है। कुछ वर्षों से लगभग सभी विषयों में उत्तर-आधुनिकता का अध्ययन किया जा रहा है। अनेक विचारकों एवं समाजशास्त्रियों ने इसकी व्याख्या करने का प्रयत्न किया है। इनमें केलनर, हार्वे, ल्योटार्ड, बोगार्ड्स, जीन बोरदियू, देरिदा, जेमसन एवं फोकू आदि प्रमुख हैं। उत्तर-आधुनिकता के सम्बन्ध निम्नांकित विचारकों के मत उल्लेखनीय हैं-

1. केलनर का कथन है कि ‘उत्तर-आधुनिकता का कोई एकीकत सिद्धान्त ऐसा नहीं है फिर भी इसमें उत्तर आधुनिकता के एकाधिक विभिन्न सिद्धान्तों का समावेश है।

2. केलीनिक्स का मत है कि “उत्तर-आधुनिकता सिद्धान्त उत्तर आधुनिक समाज के विकास से सम्बन्ध रखता है। अधिकांश विचारक इस बात से सन्तुष्ट नहीं है कि उत्तर आधुनिक समाज को निर्मित करने वाले तत्व कौन-कौन से हैं? ऐसी अवस्था में जब उत्तर आधुनिक समाज के निर्माण में सहमति नहीं है तब भला ऐसे समाज के  निर्माण का सिद्धान्त किस प्रकार बनाया या निर्मित किया जा सकता है। उत्तर-आधुनिकता की परिभाषा के सम्बन्ध में मतभेद होने पर भी इतना तो निश्चित ही है कि उत्तर आधुनिक समाज की छवि आधुनिक समाज से अलग है। उत्तर आधुनिकता को निष्कर्ष रूप से यही कहा जा सकता है कि यह आधुनिकता का परिणाम है।

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आधुनिकता एवं उत्तर-आधुनिकता में अन्तःसम्बन्ध

आधुनिकता का जन्म एवं विकास सत्रहवीं एवं अठारहवीं शताब्दी में यरोप में हुआ। इस युग को यूरोप का पुनर्जागरण काल कहा जाता है। इस समय यूरोप के सभी क्षेत्रों जैसे, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं राजनैतिक क्षेत्रों में क्रान्तिकारी परिवर्तन हए। भाप के इंजन का आविष्कार तथा मशीनों के द्वारा उत्पादन इसी युग की देन है। इसके कारण औद्योगीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ। इसके परिणाम सामने आये तथा विशाल पैमाने पर उत्पादन का सूत्रपात हुआ।

नये-नये स्थानों को खोजा गया जिससे व्यापार एवं वाणिज्य का विकास हुआ। बैंक, साख, तथा मुद्रा का प्रचलन शुरू हुआ। यातायात एवं संचार के क्षेत्र में तीव्र परिवर्तन हुए। दर्शन, शिक्षा तथा बौद्धिक क्षेत्र भी इससे अप्रभावित नहीं रहे। इनमें तर्क की प्रवृत्ति बढ़ी। शासन में लोकतंत्र एवं उसके मूल्यों को महत्त्व दिया जाने लगा। आधुनिकता की व्याख्या परम्परा के संदर्भ में की गयी। आधुनिकता को पुनर्जागरण के संदर्भ में देखा गया। आधुनिकता को कुछ विचारकों ने एक प्रक्रिया के दृष्टिकोण से देखा तो कुछ ने प्रतिफल के रूप में इसका दर्शन किया। इसी आधुनिकता ने पूँजीवाद का श्रीगणेश किया। पूँजीवाद के कारण असमानता एवं शोषण को शुरूआत हुई।

असमान वितरण की समस्या के फलस्वरूप अन्याय बढ़ने लगे जिससे समाज में भ्रष्टाचार, अपराध, आर्थिक विषमता, वर्ग-संघर्ष, नैतिक मूल्यों में गिरावट, भोगवाद, सामाजिक विघटन, व्यक्तिवादिता स्वार्थपरता, प्रतिस्पर्धा, आत्महत्या, अनिश्वरवादिता, आत्महत्या एवं पर्यावरण प्रदूषण जैसी बुराइयां अस्तित्व में आ गयीं। इन्हीं बुराइयों के कारण अमेरिका फ्रांस एवं ब्रिटेन के समाजशास्त्रियों ने आधुनिकता की कटु आलोचना की। इन विद्वानों ने समाज को इन बुराइयों से मुक्त करने के लिए एक नये समाज की कल्पना की।

उत्तर-आधुनिकता को आधुनिकता की अगली कड़ी के रूप में देखा जा सकता है। कुछ समाजशास्त्रियों का कहना है कि उत्तर-आधुनिकता का जन्म आधुनिकतावादी विचारधारा की प्रतिक्रिया के कारण हुआ है जो 1950 और 1960 के दशक में उत्पन्न हुई नवीन सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था को स्वयं में समाहित करना चाहती है। उत्तर-आधुनिकतावादी विद्वान स्वयं को उत्तर-संरचनावादी विचारक कहते हैं। उत्तर-आधुनिकता आधुनिक सामाजिक व्यवस्था को अस्वीकार करके उसे ध्वस्त करना चाहती है। इसके अतिरिक्त जीवन में आनन्द करो मौजमस्ती करो खाओ-पीओ और मस्त रहो के मंत्र का समर्थन करते हैं। कुल निष्कर्ष यही है कि उत्तर-आधुनिकता भौतिकता को प्रश्रय देती है। उत्तर आधुनिकता की विशेषतायें आधुनिकता के विपरीत है। यह भी कह सकते हैं कि आधुनिकता के दोषों ने ही उत्तर-आधुनिकता को जन्म दिया है।

उत्तर-आधुनिकतावाद के लक्षण

(1) उत्तर-आधुनिकता आधुनिक समाज व्यवस्था को ध्वस्त करता है-

उत्तर-आधुनिकता का जन्म आधुनिकता के प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप हुआ है। इसके समर्थक विभिन्न सामाजिक विज्ञानों, कला, साहित्य दर्शन आदि को विशेषताओं में कैद करने का विरोध करते हैं। उत्तर-आधुनिकतावादी संश्लेषणात्मक संदर्भ को स्वीकार करने की वकालत करते हैं। यह मार्क्सवाद, नारी आन्दोलन तथा परम्परागत सिद्धान्तों को नये रूप में प्रस्तुत करते हैं। उत्तर-आधुनिकतावाद एक ऐसे सिद्धान्त 5को जन्म देना चाहता है। जो हमारी वर्तमान राजनीतिक समस्याओं को नवीन विचारों से आप्लावित कर सके।।

(2) ज्ञान का रूपान्तरण –

उत्तर-आधुनिकतावादियों के अनुसार भाषा एक ऐसा माध्यम है जो विचारों को अभिव्यक्ति प्रदान करता है। अतः भाषा का अध्ययन वैज्ञानिक पद्धति अर्थात् भाषा विज्ञान द्वारा होना चाहिए। इसके समर्थक अपना स्वार्थ भाषा सम्बन्धी सिद्धान्तों से रखते हैं। इसके बाद वे संचार से सम्बद्ध समस्याओं पर विचार करते हैं। आज के समय में भाषा का अधिकतम सम्बन्ध में कम्प्यूटर से है जो कि आधुनिकतम  तकनीक है। वे संचार से जुड़ी सूचनाओं को इकट्ठा करते हैं। कम्प्यूटर ने ज्ञान को बहुत प्रभावित किया है। आधुनिक युग में कम्प्यूटर के कारण ज्ञान प्राप्त करने का ढंग एवं ज्ञान का वर्गीकरण मशीनों से होने लगा है। ज्ञान के रूपान्तर यह एक क्रान्तिकारी परिवर्तन माना जा सकता है।

(3) यह विभिन्न ज्ञान शाखाओं के परम्परागत सिद्धान्तों को नकारता है-

उत्तर-आधुनिकतावाद समाजशास्त्र एवं राजनैतिकशास्त्र आदि विभिन्न सामाजिक विज्ञानों के परम्परागत सिद्धान्तों को नकारता है। इसके समर्थकों का विचार है कि इन सामाजिक विद्वानों के सिद्धान्त मात्र शब्दों का मायाजाल फैलाते हैं तथा रूढ़िवादियों के वर्चस्व को बनाये रखना चाहते हैं। जार्ज रिट्जर सैद्धान्तिक तौर पर उत्तर-आधुनिकता के चार प्रकार के संश्लेषणों का उल्लेख करते हैं-

(अ) उत्तर-आधुनिकतावाद विशाल एवं भव्य सिद्धान्तों को नहीं मानता है।

(ब) उत्तर-आधुनिकतावाद विभिन्न प्रकार का ज्ञान शाखाओं के सिद्धान्तों का अतिक्रमण करता है तथा एक नवीन विचारधारा को जन्म देता है। यह विचारधारा विभिन्न ज्ञान शाखाओं से प्राप्त विचारों को नये संश्लेषण के रूप में प्रस्तुत करती है।

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(स) उत्तर-आधुनिकता स्थानीय स्तर पर छोटे-छोटे विचारों का संश्लेषण करने का प्रयास करती है।

(द) उत्तर-आधुनिकतावाद समाजशास्त्र के प्रचलित सिद्धान्तों की जगह नवीन संश्लेषणात्मक सिद्धान्त को प्रस्तुत करता है। उत्तर-आधुनिकता तीव्र गति से होने वाला परिवर्तन है। इसकी यह धारणा है कि परम्परागत सिद्धान्तों को तोड़कर नये सिद्धान्तों की रचना की जानी चाहिए। उत्तर-आधुनिकतावाद का ध्येय समाज के लिए और अधिक अच्छे विचार की रचना करना है।

(4) उत्तर-आधुनिकतावाद मार्क्सवाद तथा प्रकार्यवाद को अस्वीकार करता है-

ल्योटार्ड का कथन है कि उत्तरवादियों के युग में श्रमिकों को शोषण से मुक्त कराना, वर्गहीन समाज की कल्पना आदि विचार गुजरे जमाने की बात बन चुके हैं। मार्क्स के सामने ही पारसन्स, मर्टन एवं होमन्स के सिद्धान्त भी आज मात्र भव्य वृतान्त ही रह गये हैं। उत्तर-आधुनिकता के समर्थक मार्क्स एवं प्रकार्यवादियों के विचारों को रूढ़िवादी करार देते हैं। इनका कथन है कि आधुनिक समाज में न तो मार्क्स द्वारा प्रतिपादित वर्गहीन समाज स्थापित हो सकता है तथा न ही पारसन्स द्वारा अपेक्षित सर्वसम्मति ही आ सकती है। ल्योटार्ड तथा अन्य उत्तर-आधुनिकतावादी विद्वानों का विश्वास है कि वर्तमान समाज की प्रकृति व्यक्तिवादी एवं खंडित है तथा आने वाले समय में भी यह ऐसा ही रहेगा।

(5) यह वृतान्त ज्ञान का विरोधी है –

उत्तर-आधुनिकतावादियों का भव्य या महान कहे जाने वाले वृतान्तों को कूड़े दान में डाल देना चाहिए उत्तर-आधुनिकतावादियों को नापसन्द है। वृत्तान्त ज्ञान कथाओं मिथकों कहानियों से भरा रहता है जो कि समाज की रूढ़ियों परम्पराओं एवं बुराइयों को सशक्त्ता प्रदान करते हैं। अतः उत्तर-आधुनिकतावादी इन वृत्तान्तों को अस्वीकार  करते हैं तथा चुनौती देते हैं।

(6) वाणिज्य ज्ञान की प्रधानता है –

उत्तर-आधुनिकतावाद के पक्ष में  हए इसके समर्थकों का कहना है कि वर्तमान समय में विज्ञान का उद्देश्य सत्य खोज करना नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य निवेश की तुलना में समीकरण को स्थापित करना है। इनका कहना है कि तकनीकी एवं वैज्ञानिकों को ज्ञान के लिए नहीं खरीदा जाता है बल्कि इनकी खरीद के पीछे अत्यधिक उत्पादन का लक्ष्य होता है, जिससे कि औद्योगिक प्रतिष्ठानों के स्वामी अधिकाधिक लाभ अर्जित कर सके। आज के युग में नये आविष्कारों का उससे प्राप्त लाभों के आधार पर आंका जाता है।

(7) आधुनिक कला के प्रति अस्वीकृति का भाव रखता है –

कला के विभिन्न  नृत्यकला, संगीतकला, चित्रकला एवं साहित्य आदि हैं। ल्योटार्ड ने संपूर्ण कलाओं और चित्रकला, नृत्यकला आदि का आधुनिक संदों में अवलोकन किया। कला का एक स्वरूप धार्मिक होता है, जिसे हम अजन्ता, एलोरा की गुफाओं या मन्दिर में देखते हैं। इन कलाओं का सम्बन्ध धर्म से है। कला का दूसरा स्वरूप दरबारी है, जिसका सम्बन्ध राजाओं महाराजाओं के दरबार में होने वाले संगीत आदि से है। कला का तीसरा स्वरूप बुर्जआ कला का है। जिसका सम्बन्ध पूंजीवादी बुर्जुआ कारखाने के मालिकों तथा शक्तिशाली वर्ग से होता है। सांसारिक तथा दरबारी कला है जिसमें कलाकार का कोई सामजिक महत्त्व नहीं होता है। इस कला का जीवन की व्यावहारिकता से कोई सरोकार नहीं होता है। यह मात्र सौन्दर्योपासना है। जीवन के वास्तविक संदर्भो से इसका कोई सम्बन्ध न होने के कारण उत्तर-आधुनिकतावादी इसे अस्वीकार करते हैं।

(8) वैज्ञानिक ज्ञान से असहमति है –

उत्तर-आधुनिकता के समर्थक ज्ञान के प्रति असहमति जताते हैं। इनका कथन है कि वैज्ञानिक ज्ञान संपूर्ण ज्ञान का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। वैज्ञानिक ज्ञान प्राधिकार की तरह सरकार को वैधता देता है। ये कहते हैं कि वर्तमान समय में वैज्ञानिक ज्ञान की बाजारों में बिक्री के लिए भेज दिया गया है। आधुनिक समय में तकनीकी के बिना विज्ञान को प्रयोगशाला तक सीमित ज्ञान कहा जाता है। यही कारण है कि उत्तर-आधुनिकतावादी वैज्ञानिक ज्ञान के विरोधी हैं।

 

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