शिक्षण का अर्थ,परिभाषा और प्रकृति

शिक्षण का अर्थ,परिभाषा और प्रकृति | Definition of Teaching in Hindi

 

प्रत्येक राष्ट्र का अपना जीवन दर्शन होता है, एक राष्ट्रीय आदर्श होता है, उसके अनुरूप ही उसका शिक्षा दर्शन भी होता है। इस शिक्षा दर्शन पर आधारित जब उस राष्ट्र की शिक्षा प्रणाली होती है, तब ही उसके अनुरूप नागरिकों का निर्माण होता है। अब प्रश्न यह उठता है कि 21वीं शताब्दी में वैज्ञानिक सुख-सुविधाओं व आज की आवश्यकताओं के अनुरूप अपेक्षित शिक्षा प्रणाली को कैसे कार्यान्वित करें? जहाँ तक सीखने का सम्बन्ध है, सीखना एक जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है तथा मानव अपने अनुभवों से क्षणप्रतिक्षण कुछ न कुछ सीखता रहता है, किन्तु अध्यापक उसमें सीखने की रुचि उत्पन्न करता है। समय-समय पर मार्गदर्शन करता है जिससे छात्र में विषय ग्रहण करने का कौशल विकसित हो सके। इससे स्पष्ट होता है कि शिक्षा जगत् में शिक्षा के साथ-साथ शिक्षण का महत्त्व भी जुड़ा है। ‘शिक्षण’ का सामान्यत: अर्थ बालक को शिक्षक के द्वारा विभिन्न विषयों का ज्ञान प्रदान करना ही समझा जाता है, किन्तु ‘शिक्षण’ मात्र यहाँ तक ही सीमित नहीं है, ‘शिक्षण’ के अनेक अर्थ हैं, जिन्हें हम क्रमश: निम्नवत् समझ सकते हैं :

शिक्षण का संकुचित अर्थ (Narrower Meaning of Teaching) :

औपचारिक शिक्षा प्रणाली के रूप को शिक्षण के संकचित अर्थ में लिया जा सकता है। जिसमें निश्चित समय, निश्चित विधियों, निश्चित स्थान पर पूर्वनियोजित ढंग से शिक्षण दिया जाता है। इस प्रक्रिया में शिक्षक का स्थान प्रमुख तथा बालक का स्थान गौण हो जाता है।

शिक्षण की द्विमुखी प्रक्रिया(Teaching – A Bi-Polar Process):

एडम्स महोदय ने शिक्षा को एक द्विमुखी प्रक्रिया माना है, जिसमें शिक्षक और शिक्षार्थी दो व्यक्तित्व सम्मिलित हैं। उन्होंने कहा, “शिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें एक व्यक्तित्व दूसरे पर, एक-दूसरे के विकास में परिवर्तन के लिए कार्य करता है। यह क्रिया चेतन-युक्त और सप्रयोजन होती है।”

शिक्षण की त्रिमुखी प्रक्रिया (Teaching – A Tri-Polar Process):

जॉन डीवी के अनुसार, शिक्षा की प्रक्रिया त्रिमुखी है। रायबर्न ने इसी प्रकार शिक्षण की प्रक्रिया को त्रिमुखी बताया है। रायबर्न के अनुसार, “शिक्षा में तीन केन्द्र बिन्दु हैंशिक्षक, शिक्षार्थी और विषय।’शिक्षण’ इन तीनों में स्थापित किया जाने वाला सम्बन्ध है।” शिक्षण के मध्य शिक्षक और शिक्षार्थी के बीच अन्त:क्रिया होती है, यह अन्तःक्रिया किसी न किसी विषय पर आधारित होती है। अत: शिक्षण प्रक्रिया के तीन अंग महत्त्वपूर्ण होते। हैं-शिक्षक, समाज अथवा पाठ्यक्रम तथा शिक्षार्थी।

शिक्षण का व्यापक अर्थ (Wider Meaning of Teaching):

शिक्षण के व्यापक अर्थ में औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों साधनों का प्रयोग सम्मिलित है। पाठक एवं त्यागी के अनुसार, “शिक्षण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यक्ति को अपने परिवार, विद्यालय, मित्रता, मनोरंजन और व्यवसाय से अपने वातावरण से अनुकूलन करने के लिए आजीवन शिक्षण प्राप्त होता है।”

शासन व्यवस्थानुसार शिक्षण का अर्थ :

शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया है। यह प्रत्येक देश में उसकी शासन प्रणाली से। प्रभावित होती है और उसके अनुसार ही इसका अर्थ भी अलग-अलग देशों की शासन व्यवस्थाओं के अनुसार बदल जाता है।

(अ) एकतन्त्रात्मक शासन व्यवस्था में शिक्षण का अर्थ-

एकतन्त्रात्मक शासन व्यवस्था में मुखिया की इच्छाओं को महत्त्व दिया जाता है तथा प्रजा की इच्छाओं का दमन किया जाता है। इसी प्रकार एकतन्त्र शासन में शिक्षण प्रक्रिया के अन्तर्गत शिक्षक का स्थान मुख्य तथा विद्यार्थी का गौण होता है। इसमें विद्यार्थियों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं, रुचियों, आवश्यकताओं, योग्यताओं, अभियोग्यताओं आदि की ओर लेशमात्र भी ध्यान दिये बिना शिक्षक विषय को जबरदस्ती छात्रों पर थोपने का प्रयत्न करता है। यह शिक्षण के परम्परागत सिद्धान्त पर आधारित होता है। इसकी धारणा यह है कि यह सदस्यों में कार्य करने की क्षमता तथा आदेशों के पालन की क्षमता को ही मानता है।

यह उनकी मौलिक क्षमता को विकसित नहीं होने देता और न ही किसी प्रकार की आलोचना में उन्हें भाग लेने देता है। केनेडी के द्वारा प्राचीन और मध्यकाल की शिक्षण कला के विषय में कहा गया है, “प्राचीन समय में बालकों को बहुधा केवल ज्ञान ग्रहण करने के पात्र समझा जाता था। उन्हें ज्ञान प्राप्त करने के लिए बाध्य किया जाता था और ऐसा न करने पर प्रायः दण्ड दिया जाता था। इससे उनकी उन स्वाभाविक प्रवृत्तियों का दमन हो जाता था, जो प्रकृति उनको अपने विकास के लिए देती है।”

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शिक्षण का यही रूप हमें एकतन्त्र शासन व्यवस्था में देखने को मिलता है।

(ब) प्रजातन्त्रात्मक शासन व्यवस्था में शिक्षण का अर्थ-

इस शासन व्यवस्था में प्रजा की इच्छाओं को महत्त्व दिया जाता है तथा इसकी यह धारणा होती है कि प्रत्येक व्यक्ति की अपनी रुचि, अभिरुचि, योग्यता, अभियोग्यता व मौलिकता होती है, अत: उसको विकसित करना हमारा परम कर्त्तव्य है। इसमें शिक्षार्थी का स्थान प्रमुख तथा शिक्षक का गौण होता है। यह मानवीय सम्बन्धों पर बल देता है तथा शिक्षण में शिक्षक और शिक्षार्थी  के मध्य अन्त:क्रिया को महत्त्वपूर्ण मानता है। इसमें शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं ।

एन.एल. गेज ने दोनों के पारस्परिक सम्बन्धों को महत्त्वपूर्ण माना है। उनके अनुसार, “शिक्षण एक प्रकार से पारस्परिक अन्त:क्रिया है जिसमें एक-दूसरे की व्यावहारिक क्षमताओं के विकास करने का लक्ष्य प्रमुख रूप से होता है।” इस अवस्था में शिक्षक छात्रों का पथ-प्रदर्शक होता है। इसमें स्वतन्त्र अनुशासन पर अधिक बल दिया। जाता है। छात्र शिक्षक से प्रश्न पूछ सकते हैं तथा शिक्षक के उत्तरों की समीक्षा भी कर सकते हैं।

एडमण्ड एमीडन (1967) ने प्रजातान्त्रिक दृष्टिकोण से शिक्षण की परिभाषा देते हुए कहा, “शिक्षण को अन्त:क्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसके अन्तर्गत कक्षा कथन को सम्मिलित किया जाता है, जो शिक्षक तथा छात्र के मध्य परिचालित होते हैं। कक्षा कथन का सम्बन्ध अपेक्षित क्रियाओं से होता है।”

(स) हस्तक्षेपरहित शासन-

व्यवस्था में शिक्षण का अर्थ-यह शिक्षण के आधुनिकतम अर्थ को स्वीकार करती है, इसमें शिक्षक का स्थान मित्रवत् होता है। यह विद्यार्थियों के लिए ऐसी परिस्थितियों का निर्माण करता है जो अपूर्ण होती हैं अथवा उनमें बाधायें होती हैं। विद्यार्थी उनको पूरा करके बाधाओं पर विजय प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। इससे छात्रों को सृजनात्मकता के विकास में सहायता मिलती है। इसके अनुसार शिक्षण बाल केन्द्रित होता है। रूसो ने भी कहा है, “बालक एक ऐसी पुस्तक है, जिसे शिक्षक को प्रारम्भ से अन्त तक पढ़ना पड़ता है।” इस व्यवस्था में बर्टन द्वारा दी गई परिभाषा अनुकूल होती है, “शिक्षण सीखने के लिए प्रेरणा, पथ-प्रदर्शक, पथ-निर्देशन और प्रोत्साहन है।”

शिक्षण की परिभाषा (Definition of Teaching) :

शिक्षण एक क्रमिक एवं व्यवस्थित प्रक्रिया है। विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षण की भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ दी हैं, जिनमें शिक्षण के अलग-अलग पक्षों पर बल प्रदान किया गया है। कतिपय शिक्षाशास्त्रियों द्वारा दी गई परिभाषाएँ यहाँ प्रस्तुत की जा रही हैं:

1. योकम तथा सिम्सन-“शिक्षण का तात्पर्य उस प्रक्रिया से है, जिसके द्वारा समूह के लोग अपने अपरिपक्व सदस्यों को जीवन से सामञ्जस्य स्थापित करना बताते हैं।”

2. बी.ओ. स्मिथ-“शिक्षण क्रियाओं की एक विधि है जो सीखने की उत्सुकता जागृत करती है।

3. एच.सी.मौरीसन-“शिक्षण एक अधिक परिपक्व व्यक्तित्व और कम परिपक्व व्यक्तित्व के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध है जिसका प्रारूप पिछले व्यक्ति (अपरिपक्व व्यक्ति) को शिक्षित करने के लिए बनाया जाता है।

4. जॉन बेकर-“शिक्षण उन परिस्थितियों की व्यवस्था एवं संचालन है जिसमें अन्तराल तथा बाधायें होती हैं, जिन्हें व्यक्ति दूर करने के प्रयासों के फलस्वरूप अधिगम करता है।”

5. Hand Book of Research Teaching-“शिक्षण एक प्रकार का अन्तर्व्यक्ति प्रभाव है जो दूसरे व्यक्ति के व्यवहार को परिवर्तित करने के उद्देश्य से किया जाता है।

6. क्लार्क-“शिक्षण वह प्रक्रिया है जिसके प्रारूप तथा परिचालन की व्यवस्था इसलिए की जाती है, जिससे छात्रों के व्यवहार में परिवर्तन लाया जा सके।”

उपर्युक्त परिभाषाओं के विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि शिक्षण एक जटिल, सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक क्रिया है, जिसका सम्बन्ध शिक्षक तथा शिक्षार्थी दोनों से है तथा इसमें दोनों ही एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। इस प्रक्रिया में मुख्यत: चार बिन्दु सम्मिलित होते हैं- शिक्षक, शिक्षण, सीखना तथा शिक्षार्थी।

 

शिक्षण की प्रकृति अथवा स्वरूप (Nature of Teaching) :

शिक्षण को कला तथा विज्ञान दोनों रूपों में स्वीकार किया गया है। पेन्टन ने शिक्षण को कला कहा है। “Teaching has been referred to as an art” शिक्षण को कला के रूप में स्वीकार करने की झलक हमें प्राचीन दृष्टिकोण में मिलती है। आधुनिक दृष्टिकोण में शिक्षण को विज्ञान माना गया है, क्योंकि विज्ञान की तरह इसका व्यवस्थित रूप से अध्ययन किया जा सकता है। इसमें कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित किये जा सकते हैं। शिक्षण की क्रियाओं तथा शिक्षक व्यवहार का वस्तुनिष्ठ विश्लेषण किया जा सकता है। नवीनतम शिक्षण तकनीकों के विकास से छात्रों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाया जा सकता है।

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शिक्षण की प्रकृति में निम्नलिखित बिन्दु सम्मिलित हैं:

1. शिक्षण सीखना व सिखाना है।

2. शिक्षण का कार्य ज्ञान में अभिवृद्धि एवं विकास करना है।

3. शिक्षण सम्बन्ध स्थापित करता है:

(क) छात्र से (ख) स्वयं के ज्ञान से

(ग) विषय से (घ) शिक्षण विधि से

(ङ) जीवन दर्शन से (च) परिणाम से।

4. शिक्षण सूचना देना है।

5. शिक्षण- वातावरण में समायोजित होने की योग्यता उत्पन्न करना ।

6.शिक्षण पथ-प्रदर्शन है।

7. शिक्षण कला तथा विज्ञान दोनों है।

8. शिक्षण शिक्षार्थी में सृजनात्मकता का विकास करता है।

9. शिक्षण संवेगों का प्रशिक्षण है।

10. शिक्षण क्रियाशीलता के लिए अवसर प्रदान करता है।

11. शिक्षण प्रेरणा है, क्योंकि यह :

(क) एक प्रक्रिया है,

(ख) इसका सम्बन्ध शिक्षार्थी के व्यवहार में परिवर्तन से है,

(ग) इसके द्वारा वांछित परिवर्तन सम्भव है।

(घ) ये परिवर्तन लाये जाते हैं, स्वयं सम्भव नहीं हैं।

12. शिक्षण एक सामाजिक, मनोवैज्ञानिक तथा प्रतिक्रियात्मक प्रक्रिया है।

13. बालकों में अपेक्षित परिवर्तन लाने के कारण शिक्षण एक विकासात्मक तथा उपचारात्मक प्रक्रिया है।

14. यह औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों प्रकार की विधियों से सम्भव है।

15. शिक्षण एक अन्तः प्रक्रिया है।

16. शिक्षण में भाषा विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम होती है।

17. यह एक तार्किक क्रिया है।

18. प्रशिक्षण से लेकर अनुदेशन तक शिक्षण एक सतत प्रक्रिया है।।

19. शिक्षण का मापन किया जाता है।

 

अच्छे शिक्षण की विशेषताएँ (Characteristics of Good Teaching) :

1. यह संवेगात्मक स्थिरता प्रदान करता है।

2. यह सुनियोजित होता है।

3. इसमें जनतन्त्रात्मक दृष्टिकोण अपनाया जाता है।

4. छात्रों में सृजनात्मक क्षमताओं का विकास करता है।

5. अध्यापक का कक्षा व्यवहार प्रत्यक्ष की अपेक्षा अप्रत्यक्ष अधिक होता है।

6. यह छात्रों को प्रोत्साहन प्रदान करता है।

7. इससे सीखने के प्रति रोचकता तथा प्रभावोत्पादकता उत्पन्न होती है।

8. छात्रों को वांछित सूचनाएँ प्रदान करता है।

9. यह शिक्षण निदानात्मक तथा उपचारात्मक होता है।

10. यह सोद्देश्य होता है।

11. छात्रों के पूर्वज्ञान पर आधारित होता है।

12. इसमें छात्र की क्रियाओं को समुचित पुनलित किया जाता है।

13. यह कान तथा अध्यापक के मध्य स्वस्थ एवं मधुर सम्बन्ध स्थापित करता है।

14. जीवनोपयोगी ज्ञान प्रदान करने में सहायक होता है।

15. यह छात्रों को अधिकाधिक क्रियाशील बनाता है।

16. छात्रों के सर्वांगीण विकास पर बल देता है।

17. इसमें समस्त विषयों का शिक्षण मूल्य आधारित होता है।

18. यह सुझावात्मक होता है।

19. इसमें शिक्षक तथा छात्र दोनों के विचारों को मान्यता प्रदान की जाती है।

20. यह छात्रों में आत्मविश्वास उत्पन्न करता है।

21. छात्र तथा शिक्षक दोनों में से एक अनिर्वचनीय आनन्दानुभूति करवाता है।

22. यह ज्ञान का मूल्यांकन करता है।

23. यह मूल प्रवृत्तियों का विकास करता है।

24.यह छात्र के व्यवहारगत विकास के सभी पक्षों को प्रभावित करता है।

 

अच्छे शिक्षण की व्यवस्था :

 

शिक्षण के सोपान

शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting of Teaching) :

1. पारिवारिक एवं सामाजिक वातावरण।

2. संस्था का वातावरण।

3. कक्षा में संवेगात्मक स्थिति।

4. छात्रों का मानसिक एवं शारीरिक स्तर।

5. व्यक्तिगत विभिन्नताएँ।

6. अध्यापक का व्यक्तित्व।

7. उपलब्ध भौतिक साधन।

8. पाठ्यक्रम।

9. छात्रों तथा शिक्षकों को मूल्यांकन द्वारा अपनी उपलब्धियों का ज्ञान ।

10. शिक्षण क्रिया का नियोजन ।

11. शिक्षण के उद्देश्य।

स्मिथ ने शिक्षण को प्रभावित करने वाले चरों तथा उनकी क्रियाओं को निम्नलिखित रूप में बताया है :

 

चर का वर्गीकरण

 

अच्छे शिक्षक के गुण: 

1. अच्छे शिक्षक को कार्य के प्रति उत्साही होना चाहिए व अपने ज्ञान को विकसित करते रहना चाहिए।

2. अच्छे शिक्षक में धैर्य व सहनशीलता होनी चाहिये ।

3. उसकी वेशभूषा सादा तथा स्वच्छ होनी चाहिये।

4. उसकी भाषा कोमल, शिष्ट, सरल व प्रभावकारी होनी चाहिये।

5. उसमें आत्मविश्वास व स्वाभिमानी जैसे गुण विद्यमान होने चाहिएँ।

6. शिक्षक उत्तम चरित्र वाला होना चाहिये।

7. शिक्षक को किसी प्रकार का पक्षपात व वैमनस्यता नहीं करना चाहिये।

8. शिक्षक में प्रेम व सहानुभूति होनी चाहिये।

9. शिक्षक को अपने विषय में पारंगत होना चाहिये।

10. अच्छे शिक्षक को अपने देश, समाज व राष्ट्र की सांस्कृतिक तथा सामाजिक परम्पराओं से परिचित होना चाहिए।

11. अच्छे शिक्षक को शिक्षण के सिद्धान्तों का ज्ञान होना चाहिये व उन्हें व्यवहार में लाने का कौशल भी होना चाहिये।

12. अच्छे शिक्षक में नेतृत्व के गुण होने चाहिये।

13. अच्छे शिक्षक में कक्षा को नियंत्रण में रखने की क्षमता होनी चाहिये ।

14. अच्छे शिक्षक का व्यक्तित्व गंभीर व दूरदर्शी होना चाहिये।

15. अच्छे शिक्षक को प्रत्युत्पन्नमति होना चाहिये ।

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