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नव-मार्क्सवाद से आप क्या समझते हैं?

नव-मार्क्सवाद का परिचय/सिद्धान्त

नव मार्क्सवाद का विकास फ्रांस के प्रमुख संरचनावादी विचारक लुई आल्यूजर निको पॉलेन्जाम, मोरिस गोडेलियर, जीन पायगेट आदि ने किया। नव-मार्क्सवाद संरचनावाद का मिश्रित रूप है। परम्मरागत संरचनावाद सामाजिक जीवन की अमर्त एवं मूल संरचनाओं को जानने में रुचि रखता है, जबकि मार्क्सवाद पूँजीवाद में व्याप्त बुराइयों को प्रकट करता है। नव मार्क्सवाद का जन्म इन्हीं दोनों के संयोग से होता है। नव मार्क्सवाद में पूंजीवादी समाज की मूल संरचनाओं का अध्ययन लिया जाता है। यह मानसिक प्रक्रियाओं एवं उनसे पैदा होने वाली संरचनाओं को अध्ययन का केन्द्र मानकर मार्क्स के विचारों का विवेचन करता है।

कुछ विद्वानों के अनुसार, मार्क्सवाद को परमपरागत समाजशास्त्र की श्रेणी में रखने पर विचार-वैमनस्य उत्पन्न हो सता है, क्योंकि मार्क्स के अधिकांश विचार आन्दोलनकारी है और वे दुनिया भर के मजदूरों को संगठित होने का आह्वान करते है। स्वयं कार्ल मार्क्स के क्रिया-कलाप, गतिविधियाँ, विचार तथा उनका योगदान  भी परम्परागत नहीं है। इसके बाद  भी उनका सामाजिक-परिवर्तन  और वर्ग-संघर्ष का सिद्धान्त भी परम्परागत विचारों का ही एक अंग है। उनका निर्णयवादी सिद्धान्त भी बहुत कुछ परम्परागत है। अतः आमूल परिवर्तनवादी समाजशास्त्रीय ज्ञान के क्षितिज पर नव-मार्सवादी विचारधारा उदित होना स्वाभाविक था। इस नव-मार्क्सवाद के फलतः वर्तमान युग में नव-समाजशास्त्र का जन्म हुआ। नव-मार्क्सवाद को आमूल परिवर्तनवादी समाजशास्त्र के नाम से भी जाना जाता है।

नव-मार्क्सवाद की विशेषतायें

मार्क्सवाद की प्रमुख विशेषताये निम्नांकित हैं-

1. यह आर्थिक कारणों के साथ-साथ, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक कारकों को भी कारक भी अध्ययन में स्थान देता हैं, क्योंकि ये कारक भी सामाजिक संरचना में प्रमुख स्थान रखते हैं।

2. नव मार्क्सवाद द्वन्द्वात्मक एवं  ऐतिहासिक विश्लेषण करता है, जबकि संरचनावाद विश्लेषणात्मक एवं वर्णनात्मक विवेचन करता है | नव मार्क्सवाद इन दोनों विचारधाराओं का सम्मिश्रण है।

3. नव मार्क्सवाद ऐतिहासिक एवं आनुभाविक अध्ययन पद्धति के साथ-साथ अन्य अध्ययन को भी प्रयोग में लाता है।

4. नव मार्क्सवाद पूँजीवाद की वास्तविक संरचना  को जानने एवं समझने की कोशिश करता है। पूँजीवाद ने राज्य, विचारधारा एवं अर्थव्यवस्था तीन घटक होते हैं। मार्क्सवादी इन घटकों पर ध्यान नहीं देते हैं। नव मार्क्सवाद इन्हीं घटकों का अध्ययन करता है।

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नव-मार्क्सवाद के उदय के कारण

जार्ज रिटजर नव-मार्क्सवाद के जन्म का कारण निम्नांकित कारकों को बताते हैं-

(1) मार्क्सवादी आर्थिक निवारण को महत्त्वपूर्ण मानते हैं। वे अर्थव्यवस्था को मौलिक व्यवस्था मानते हैं, जिसमें परिवर्तन होने पर ही समस्त समाज में परिवर्तन आता है। यह उचित नहीं है क्योंकि सामाजिक परिवर्तन में जैविकीय, वैचारिक एवं अन्य कारक भी महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

(2) मार्क्सवाद पूँजीवादी व्यवस्था के पार्श्व की मूल संरचनाओं का अध्ययन नहीं करता है, जबकि वही वास्तविक संरचनायें हैं।

(3) मार्क्सवादी इतिहास पर अत्यधिक जोर देते हैं, इसके विपरीत संरचनावादी समाज के अध्ययन को महत्त्वपूर्ण मानते हैं। संरचनावादी वर्तमान अध्ययनों के द्वारा अतीत की जानकारी करना चाहते हैं।

नव-मार्क्सवाद के विकास में फ्रैन्कफर्ट स्कूल का योगदान/भूमिका

सन् 1923 में जर्मनी में फ्रैंकफर्ट शहर मेंफ्रैंकफुर्ट इंस्टीट्यूट फार सोशल रिसर्च‘ की स्थापना की गयी। यह संस्था फ्रैंकफुर्ट विश्वविद्यालय का ही एक विभाग थी। यहाँ पर मार्क्स की परम्परा में संघर्ष सिद्धान्तीकरण के संशोधन पर शोध किये गये। मैक्स होरखीमेर के यहां का निदेशक बनने के पश्चात् 1932 से 1941 की अवधि में यहां कि शोधकर्ताओं ने विवेचनात्मक सिद्धान्तीकरण को विकसित किया। किन्तु यह काल विवेचनात्मक सिद्धान्तीकरण के अनुकूल नहीं था। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद सभी जर्मनी फांसीवाद में उलझ गया तथा 1930 के दशक में रूप की क्रान्ति कमजोर पड़ने लगी। इससे विद्वानों को आभास हुआ कि यूरोपीय समाज का बेवर का विश्लेषण ठीक है, जिसके कारण सिद्धान्तीकरण का विकास कमजोर हो गया है। ये परिस्थितियां फ्रैन्कफर्ट स्कूल के समाज विज्ञानियों के लिए एक चुनौती थी। वे चाहते थे कि विवेचनात्मक सिद्धान्त शोषण और दमन का सामना करें, किन्तु तत्कालीन राजनैतिक एवं आर्थिक स्थितियों के कारण उन्होंने अपने आपको असहाय पाया।

विवेचनात्मक सिद्धान्तीकरण का विकास यूरोप एवं अमेरिका में दो चरणों में सन 1932 से 1941 की अवधि तथा सन् 1960 के बाद हुआ। इसके प्रथम चरण के व्याख्याकार लुकाक्स थे। तथा दूसरे चरण के होरखीमेर एवं ऐडोना थे। फ्रैंकफर्ट स्कूल ने हीगल एवं मार्क्स की परम्परा में ही आलोचनात्मक सिद्धान्त का विकास किया। इस सम्प्रदाय के व्याख्याकारों ने मार्क्स एवं इस स्कूल के व्याख्याकार सामाजिक आर्थिक व्यवस्था की भमिका को स्वीकार करते हैं एवं प्रत्यक्षवाद को अस्वीकार करते हैं तथा तथ्यों को मूल्यों से पृथक रखते है।

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रूथ वेलेस एवं एलिसन बोल्फ का कथन है कि इस सम्प्रदाय ने जिस आलोचनात्मक सिद्धान्त की व्याख्या की है कि लोगों के विचार समाज से पैदा तथा वे इसी समाज के सदस्य हैं। दूसरा तथ्य यह है कि बौद्धिको को कभी भी नहीं होना चाहिए। वे वस्तनिष्ट हो भी नहीं सकते है क्योंकि उनके विचारों का निर्माण समाज के द्वारा होता है। ऐसी दशा में वे जिस समाज का अध्ययन करते हैं उसके प्रति उन्हे आलोचनात्मक दृष्टि रखनी चाहिए। बद्धि जीवियों को स्वयं की गतिविधियों के प्रति भी आलोचनात्मक दृष्टि रखनी चाहिए। ज्ञान समाज द्वारा निर्मित होता है।

समाज का विश्लेषण ज्ञान द्वारा होना चाहिए। आलोचनात्मक सिद्धान्त के प्रवर्तक लुकाक्स है। यही वह व्यक्ति है जो एक छोर पर मार्क्स तथा दूसरे छोर पर होरखीमर एवं ऐडोनो को जोड़ते है। आलोचनात्मक सिद्धान्त में लुकाक्स के बाद हेमरमास का नाम आता है। लुकाक्स होंगल मार्क्स एवं बेवर को विवेचनात्मक सिद्धान्त से जोड़ने की कोशिश की। होरखीमेर एवं ऐडोनो ने अपनी कृतियों में लुकाक्स की पुस्तकों के विश्लेषण का कार्य किया। दोनों चरणों के विवेचनात्मक सिद्धान्तवेत्ताओं में हेबरमास का नाम प्रमुख है।

 

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