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फ्लैण्डर की अन्तः क्रिया विश्लेषण प्रणाली | Flanders Ten Interaction Analysis Category System

इस पोस्ट में, फ्लैण्डर की अन्तः क्रिया विश्लेषण प्रणाली, फ्लैण्डर्स के शिक्षण प्रतिमान के दस पद,फ्लैण्डर्स का अन्तः प्रक्रिया शिक्षण प्रतिमान,Flender’s An Interaction Model of Teaching, फ्लैण्डर्स दस वर्ग अन्त: क्रिया विश्लेषण प्रणाली, फ्लैण्डर्स अन्त: क्रिया विश्लेषण की प्रक्रिया,अन्तःप्रक्रिया शिक्षण प्रतिमान की सीमाएँ, अन्तःप्रक्रिया शिक्षण प्रतिमान की विशेषताएँ, आदि का अध्ययन करेगें।

 

फ्लैण्डर्स का अन्तः प्रक्रिया शिक्षण प्रतिमान (Flender’s An Interaction Model of Teaching)

अन्तःक्रिया विश्लेषण विधि का प्रारम्भ 1930 से हुआ। एण्डरसन (1939), हेलन  (1945), मैरी फ्रांसिस (1946), लिपिट एवं हाइट (1943), विदहॉल (1949), रॉबर्ट बेल्स (1950) एवं नेड ए. फ्लेण्डर्स (1951) ने कक्षागत व्यवहारों का विश्लेषण करने में विशेष योगदान दिया। नेड ए. फ्लेण्डर (1960) ने अन्तःक्रियाओं के आधार पर एक शिक्षण प्रतिमान दिया जिसे अन्त प्रक्रिया शिक्षण प्रतिमान अथवा सामाजिक अन्त प्रक्रिया प्रतिमान भी कहते हैं। फ्लैण्डर ने शिक्षण प्रकिया को एक अन्त प्रक्रिया माना है। इस प्रतिमान में शिक्षण प्रक्रिया को अध्यापक व छात्र के बीच किसी विषय के सम्बन्ध में एक विशेष सामाजिक वातावरण में होने वाली अन्तक्रिया माना गया है। इस प्रविधि की सहायता से तीन सैकण्ड अथवा इससे भी कम समय में होने वाली घटना का निरीक्षण क्रमबद्ध रूप से किया जाता है। यह एक वस्तुनिष्ठ एवं वैज्ञानिक निरीक्षण विधि है। इसके द्वारा कक्षा के व्यवहार को दो भागों में बांटा गया है, जिसे निम्न रूप में प्रदर्शित किया जा रहा है ।

 

 उपर्युक्त रेखाचित्र से स्पष्ट होता है कि कक्षा में शाब्दिक तथा अशाब्दिक दोनों व्यवहार होते हैं, किन्तु शाब्दिक व्यवहार की अधिकता रहती है।

(अ) अशाब्दिक व्यवहार- यह वह व्यवहार है जिसमें कार तथा शिक्षक के मध्य बोलकर विचारों का आदान प्रदान नहीं होता, बल्कि शिक्षक अपने हाव-भाव द्वारा छात्रों को कोई काम करने अथवा न करने के लिए कहता है, यथा,सिर हिलाना अथवा क्रोध में देखना।

(ब) शाब्दिक व्यवहार- यह वह व्यवहार है जिसमें शिक्षक और छात्र किसी विषय पर बोलकर अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। शिक्षक कक्षा में छात्रों को किस मात्रा में स्वतंत्रता प्रदान करते हैं, इस आधार पर शिक्षक का शाब्दिक व्यवहार भी दो भागों में विभाजित किया जा सकता है: 

(I) अप्रत्यक्ष शाब्दिक व्यवहार- अप्रत्यक्ष शाब्दिक व्यवहार तब होता है जब शिक्षक द्वारा छात्रों की प्रशंसा की जाती है एवं उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है। फ्लैण्डर्स ने इस प्रकार के व्यवहार वाले शिक्षक को अप्रत्यक्ष शिक्षक कहा है। एण्डरसन ने इसे ‘सम्यक् शिक्षक’, लिपिट तथा हाइट ने इसे ‘प्रजातान्त्रिक शिक्षक’ और विदहॉल ने इसे छात्र केन्द्रित शिक्षक’ की संज्ञा दी है। इस व्यवहार में शिक्षक छात्रों को अधिकाधिक बोलने का अवसर प्रदान करते हैं। परीक्षणों द्वारा ज्ञात हुआ है कि अप्रत्यक्ष शिक्षक प्रसन्नचित्त, वीर, विश्वस्त व सलाह देने वाले होते हैं तथा इस तरह का व्यवहार छात्रों के ज्ञानार्जन एवं चरित्र के विकास में अधिक सहायक होता है।

(II) प्रत्यक्ष शाब्दिक व्यवहार–  प्रत्यक्ष शाब्दिक व्यवहार तब होता है, जब शिक्षक छात्रों को बोलने का अवसर नहीं देते तथा स्वयं कक्षा में प्रभुत्व बनाये रखते हैं। फ्लेण्डर्स ने इस प्रकार के व्यवहार वाले शिक्षक को ‘प्रत्यक्ष शिक्षक’ लिपिट और हाइट ने इन्हें ‘अप्रजातान्त्रिक शिक्षक’ तथा विदहाल ने ‘शिक्षण केन्द्रित शिक्षक’ की संज्ञा दी है।4

प्रत्यक्ष व्यवहार वाले शिक्षक अभिमानी, चिडचिडे तथा अविश्वस्त होते हैं और उनका व्यवहार छात्रों के ज्ञानार्जन एवं चरित्र के विकास में बाधक होता है।

फ्लैण्डर ने इन कक्षा व्यवहारों को दस वर्गों में बांटा है, उनकी ‘दस वर्ग प्रविधि’ की निम्नलिखित आधारभूत धारणायें हैं :

1 छात्रों पर शिक्षक का प्रभाव अधिक होता है। छात्र व्यवहार, शिक्षक व्यवहार से प्रभावित होता है।

2. विशेषतः शिक्षक का कक्षागत व्यवहार छात्रों को अधिक प्रभावित करता है।

3. सामान्यत: कक्षा शिक्षण में शाब्दिक व्यवहार की प्रधानता होती है।

4. कक्षा शिक्षण में शाब्दिक व्यवहार की अपेक्षा अशाब्दिक व्यवहार भी होता है, परन्तु शाब्दिक व्यवहार का विश्वसनीयता के साथ निरीक्षण किया जा सकता है तथा यह कक्षा के सम्पूर्ण व्यवहार का शुद्ध प्रतिनिधित्व करता है।

6. शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक तथा छात्र के मध्य सम्बन्ध एक महत्त्वपूर्ण तत्व होता है।

7. शिक्षक के प्रजातान्त्रिक दृष्टिकोण को छात्र अधिक पसन्द करते हैं।

8. कक्षा का प्रजातान्त्रिक वातावरण छात्रों की उच्चस्तरीय निष्पत्तियों को प्रोत्साहित करता

9. इसके द्वारा शिक्षक व्यवहार के सुधार और परिवर्तन में पष्ठपोषण किया जा सकता है।

10. शिक्षक के कक्षागत शाब्दिक व्यवहार का निरीक्षण वस्तुनिष्ठ रूप में किया जा सकता है।

फ्लैण्डर्स दस वर्ग अन्त: क्रिया विश्लेषण प्रणाली (Flanders Ten Interaction Analysis Category System)

Flanders Ten Interaction Analysis Category System

Flanders Ten Interaction Analysis Category System

फ्लैण्डर्स अन्त: क्रिया विश्लेषण की प्रक्रिया(procedure of Flenders Interaction)

इस अन्तःप्रक्रिया में दो प्रमुख प्रक्रियायें की जाती हैं :

1. अंकन प्रक्रिया- इस प्रक्रिया में निरीक्षण प्रपत्र पर अंकित दसों श्रेणियों का ज्ञान निरीक्षक को भली-भाँति होना चाहिए। इसके लिए अनुभवी निरीक्षक का निर्देशन तथा पर्यवेक्षण भी आवश्यक होता है । इसमें निरीक्षक के अन्दर अभ्यास के साथ-साथ सुझाव देने की क्षमता भी होनी चाहिए। कक्षा में 3 सैकण्ड तक की घटनाओं का अंकन किया जाना आवश्यक है। इसमें निरीक्षक सभी क्रियाओं तथा घटनाओं को अंकित करने में क्रियाशील रहता है । इस प्रविधि में अंकन की शुद्धता पर बल दिया जाता है । पाठ का निरीक्षण कम से कम 20 मिनट तक हो एवं एक निरीक्षण में 400 आवृत्तियों का अंकन किया जाये यह आवश्यक होता है। निरीक्षण आव्यूह का एक नमूना यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है:

See also  शिक्षण सूत्र का अर्थ और शिक्षण सूत्र के प्रकार- Maxims of Teaching

Procedure of Flenders Interaction Analysis

 उपर्युक्त प्रपत्र में श्रेणियों की आवृत्ति को भरकर उसका प्रतिशत ज्ञात किया जाता है। अंकन के समय निम्नलिखित बिन्दुओं का ध्यान रखा जाता है।

1. निरीक्षक को पूर्वाग्रह से प्रसित नहीं होना चाहिए।

2. निरीक्षण करते समय शब्दों की अपेक्षा परिस्थितियों पर अधिक ध्यान देना चाहिए। 

3. तीन सेकण्ड में यदि एक से अधिक पटनायें घट रहीं हैं, तो उन सभी का अंकन करना चाहिए, जैसे, प्रशंसा करना, प्रश्न पूछना, उत्तर देना आदि।

4. आठवे तथा नवे वर्ग में प्रम होने पर नवें वर्ग में ही अंकन किया जाना चाहिए।

5. मौन की स्थिति 3 सेकण्ड से अधिक होने पर दसवें वर्ग में अंकित करना चाहिए।

6. जब किसी कथन या घटना का दो या दो से अधिक वर्गों में से यह निश्चय न किया जा सके कि उसे किसमें रखा जाये, तब इस कथन विशेष को पांचवें वर्ग से, जो सबसे अधिक दर का वर्ग हो (दसवें वर्ग को छोड़कर) उसमें रखा जाना चाहिए। इसका कारण यह है कि शिक्षकगण प्रायः पाँचवें वर्ग से दूर के वर्गों का प्रयोग बहुत कम करते हैं।

अत: निरीक्षक दसवें वर्ग को छोडकर शेष वर्गों में से किसी भी वर्ग को चुनता है, तो वह अधिक लाभकारी होता है।

7. यदि प्रारम्भ से ही शिक्षक का व्यवहार लगातार प्रत्यक्ष स्वोपक्रम अथवा अप्रत्यक्ष प्रतिक्रियाओं के प्रकार का स्पष्ट दिखाई दे रहा हो, तब विपरीत दिशा में अर्थात् प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष के वर्ग में अंकित नहीं किया जाना चाहिए, जब तक कि शिक्षक में इस प्रकार का स्पष्ट व्यवहार परिलक्षित न हो।

8. निरीक्षक को कक्षा में उस स्थान पर बैठना चाहिए जहाँ से वह कक्षा में घटित होने वाली प्रत्येक घटना को भली प्रकार देख सके और उसे वर्गों की दृष्टि से पारिभाषित करके विशिष्ट वर्ग में अंकित कर सके।

निरीक्षण आव्यूह द्वारा कक्षा में शिक्षक द्वारा किये जाने वाले व्यवहार की निम्नलिखित सूचनाएँ ज्ञात होती हैं:

1. कक्षा अध्ययन के सम्पूर्ण समय में से कितने समय तक छात्रों को बोलने का अवसर प्रदान किया गया?

2. सम्पूर्ण कालांश में से कितने समय तक शिक्षक कथन हुआ अथवा प्रत्यक्ष व्यवहार हुआ?

3. शिक्षक विषयवस्तु का विकास करने में छात्रों का सहयोग कितना प्राप्त करता है और कितना सहयोग स्वयं देता है?

4. कितने समय तक कक्षा में मौन, विराम एवं संभ्रान्ति की स्थिति रही?

5. क्या आव्यह के द्वारा कक्षा-कक्ष के विभिन्न व्यवहारों के अनपातों का पता लगाया जाता है?

6. शिक्षक के समन्वयक व्यवहार तथा तानाशाही व्यवहार के मध्य अनुपात क्या है?

 

2. अंकन अर्थापन प्रक्रिया अथवा व्याख्या प्रक्रिया- अंकन प्रक्रिया से प्राप्त आँकड़ों का विश्लेषण कर व्याख्या की जाती है, जिसके द्वारा शिक्षक के व्यवहार का विश्लेषण होता है। इसके लिए मुख्यत: व्याख्या दो रूपों में की जाती है-परिमाणात्मक तथा गुणात्मक।

(अ) परिमाणात्मक व्याख्या- परिमाणात्मक व्याख्या करने हेतु वर्ग अनुपात, व्यवहार अनुपात तथा अन्त:क्रिया चर का अनुसरण किया जाता है, इसके लिए विभिन्न सूत्रों का सहारा लिया जाता है। यहाँ पर दस श्रेणियों की संख्या के संदर्भ में सूत्र प्रस्तुत किये जा रहे हैं :

 

        

उपर्युक्त सूत्रों के आधार पर परिणामों की व्याख्या की जाती है।

(ब) गुणात्मक व्याख्या- कक्षागत व्यवहार का विश्लेषण तथा उसकी व्याख्या परिमाणात्मक के साथ-साथ गणात्मक रूप में भी की जाती है। इसके लिए घड़ी के अनुसार प्रवाह-चार्ट, प्रवाह रेखाचित्र तथा अन्त क्रिया प्रतिमान का अनुसरण किया जाता है। जिनका संक्षेप में वर्णन यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है :

1. घड़ी के अनुसार प्रवाह चार्ट- परिमाणात्मक व्याख्या से प्राप्त आँकड़ों को घड़ी के अनुरूप चार्ट में अंकित किया जाता है । सर्वप्रथम आव्यूह में अधिकतम आवृत्ति वाली कक्षिका का पता लगाया जाता है । इस कक्षिका की आवृत्ति के चारों ओर एक गोला बना दिया। जाता है । यही कक्षिका प्रवाह का प्रारम्भिक बिन्दु होती है। प्रारम्भिक बिन्दु को निर्धारित करने के बाद घटित होने वाली घटना का पता लगाया जाता है और उस पर गोला बना दिया जाता है। तत्पश्चात् प्रथम गोले से तीर का बिन्दु बनाकर दूसरे गोले से मिला दिया जाता है। अब इस कक्षिका की दूसरी संख्या की पंक्ति में अधिकतम आवृत्ति वाली कक्षिका को देखा जाता है और उस पर वृत्त बनाकर दूसरी कक्षा के वृत्त से तीर द्वारा मिला दिया जाता है।

इस प्रकार से लगभग उन सभी कक्षिकाओं को, जिनमें आवत्तियाँ अधिक हैं: गोला बनाकर प्रवाह में सम्मिलित कर लिया जाता है। इस प्रक्रिया में सामान्यतया यह निश्चित कर लेते हैं कि निम्नतम आवृत्ति क्या हो? यह चक्र तब तक चलता रहता है जब तक कि निश्चित आवृत्तियाँ उस प्रवाह-चक्र के अन्तर्गत सम्मिलित न हो जायें।

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2. मंजूषा रेखाचित्र- घड़ी के अनुसार प्रवाह चार्ट से शिक्षक के व्यवहार को समझने में कठिनाई होती है, इसलिए मंजूषा प्रवाह चार्ट द्वारा कक्षागत व्यवहार को पृथक्पृथक् अंकित किया जाता है। इसमें वर्ग तथा संकेत छोटे-बड़े, मोटे-पतले बनाये जाते हैं, जैसे, (-> -> ->) छात्र और शिक्षक की परस्पर अनुगामी क्रियाओं को स्पष्ट रूप में अंकित किया जाता है। इसकी रचना में शिक्षक तथा छात्र की स्थिर अवस्था कक्षिकाओं को अलग-अलग दिखाया जाता है- एक को शिक्षक कथन तथा दूसरे को छात्र कथन। प्रत्येक स्थिर अवस्था कक्षिका का वर्ग उसकी आवत्ति को ध्यान में रखकर छोटा या बड़ा बनाया जाता है। इसमें स्थिर अवस्था की कक्षिकाओं की आवृत्तियों की सीमा निर्धारित कर लेनी चाहिये। उससे अधिक की आवृत्ति वाली कक्षिकाओं को प्रवाह चार्ट में सम्मिलित करना चाहिये।

3. अन्तःक्रिया प्रतिमान- फ्लैण्डर्स ने शिक्षण व्यवहार की गुणात्मक व्याख्या के लिए अन्तःक्रिया प्रतिमान विकसित किया। इसमें शिक्षण व्यवहार की व्याख्या निष्पत्ति के संदर्भ में की जाती है। निर्धारित क्रमानुसार शिक्षण अनुक्रियाओं को प्रवाह सिद्धान्त के अनुरूप आव्यूह (कुल आवृत्तियों) की सहायता से बाह्य शाब्दिक व्यवहार को व्यक्त किया जाता है। अन्त:क्रिया विश्लेषण प्रतिमान अन्तःक्रिया विश्लेषण की वस्तुनिष्ठ प्रविधि है। इसमें तीन सैकण्ड तक की घटनाओं का अंकन एवं विश्लेषण किया जाताहै। इसमें शिक्षण स्वरूप तथा शिक्षक व्यवहार के विशुद्ध प्रतिनिधित्व के किया जाता है। रूप में अभिव्यक्ति होती है। अन्तःक्रिया प्रतिमान को मुख्यत: दो भागों में विभाजित फ्लैण्डर्स ने अन्त:क्रिया सम्बन्धी शिक्षण प्रतिमान विकसित किये हैं जो शिक्षण स्वरूप को प्रस्तुत करते हैं, किन्तु अशाब्दिक अन्त:क्रिया पर बहत बल नहीं देते, जबकि अशाब्दिक अन्त:क्रिया भी शिक्षण में शाब्दिक अन्तःक्रिया के समान ही महत्त्वपूर्ण है।

चार्ल्स एम. ग्लोवे (1960) ने अशाब्दिक अन्त:क्रिया का प्रयोग किया तथा इसके मापन हेतु फ्लैण्डर्स प्रविधि की सहायता से वर्ग प्रणाली का विकास किया। कक्षा अन्त:क्रिया को दो मुख्य भागों में बाँटा :

(1) शाब्दिक अन्त:क्रिया, (2) अशाब्दिक अन्त:क्रिया।

इन्हें पुनः क्रमश: दो-दो भागों में विभक्त किया- अप्रत्यक्ष [Indirect(I)], प्रत्यक्ष, [Direct (D)], प्रोत्साहन [Encourage (E)] तथा हतोत्साहन [Restricting (R)]| इस प्रकार इस प्रणाली को आई.डी.ई.आर. प्रणाली भी कहते हैं।

फ्लैण्डर्स की दस वर्ग प्रणाली की सीमाओं को ध्यान में रखते हुए लोगों ने अनेक प्रयत्न किये। उन प्रयत्न में से एक महत्त्वपूर्ण प्रयत्न है-ओबर की पारस्परिक वर्ग प्रणाली (Reciprocal Category System) ओबर ने निरीक्षण प्रणाली के वर्गों में सुधार किया, किन अर्थापन प्रक्रिया का अधिक विकास नहीं किया तथापि इस क्षेत्र में नवीन शोधकार्य जारी है।

फ्लैण्डर्स ने इन कक्षा व्यवहारों को दस वर्गों में बाँटा है, जिनमें से सात शिक्षक की बातों से सम्बन्धित, दो छात्रों की बातों से सम्बन्धित तथा एक मौन, भ्रम या शोर से सम्बन्धित हैं। शिक्षक की बातों से सम्बन्धित श्रेणी को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दो वर्गों में विभाजित किया गया है। श्रेणी एक से चार अप्रत्यक्ष व्यवहार तथा पाँच से सात प्रत्यक्ष व्यवहार से सम्बन्धित हैं। इनका संक्षेप में वर्णन निम्नलिखित तालिका में प्रस्तुत किया जा रहा है :

अन्तःक्रिया प्रतिमान (Interaction Model)

अन्तःप्रक्रिया प्रतिमान में निम्नलिखित तत्त्व होते हैं ।

(i) उद्देश्य- इसमें शिक्षक तथा छात्रों के मध्य अन्त:प्रक्रिया के स्वरूप का निर्धारण किया जाता है।

(ii) पूर्व व्यवहार- इसमें विद्यार्थियों की भावनाओं, विचारों तथा वर्तमान सूचनाओं को शामिल किया जाता है।

(iii) प्रस्तुतिकरण-शिक्षक तथा छात्रों में शाब्दिक अन्त:प्रक्रिया होती है, जिसका विस्तार अप्रत्यक्ष प्रभाव तक होता है।

(iv) मूल्यांकन- इसमें निष्पत्तियों का मूल्यांकन परीक्षा द्वारा किया जाता है तथा अन्त प्रक्रिया की प्रभावशीलता के सम्बन्ध में निर्णय लिया जाता है।

 

अन्तःप्रक्रिया शिक्षण प्रतिमान की विशेषताएँ :

(i) इसमें शिक्षण प्रवाह सिद्धान्त के अनुरूप होता है।

(ii) इस शिक्षण प्रतिमान में बाह्य शाब्दिक व्यवहार को स्पष्ट किया जा सकता है।

(ii) निश्चित शैक्षिक निष्पत्तियों से शिक्षण व्यवहार सम्बन्धित होता है।

(iv) शिक्षण की अनुक्रियाओं में एक निश्चित क्रम का अनुसरण किया जाता है ।

(v) विशिष्ट शिक्षण व्यवहार को व्यूह की सहायता से प्रदर्शित कर सकते हैं।

 

अन्तःप्रक्रिया शिक्षण प्रतिमान की सीमाएँ :

(i) इस प्रतिमान में पाठ्यवस्तु के सम्बन्ध में कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता।

(ii) इसमें अशाब्दिक अन्त प्रक्रिया का विश्लेषण तथा निरीक्षण नहीं हो पाता।

(iii) दस श्रेणियों में शिक्षण के व्यवहार को विभाजित करके शिक्षण की प्रकृति को संकुचित किया जाता है।

(iv) इसमें शिक्षण व्यवहार तथा छात्र व्यवहार को दो वर्गों में विभाजित कर असन्तुलन की स्थिति भी देखी जाती है।

(v) इसमें अन्त प्रक्रिया का अंकन कर पाना कठिन है।

इस प्रकार अन्त प्रक्रिया शिक्षण प्रतिमान में शिक्षक अन्त क्रियाओं का विश्लेषण करके अपने व्यवहार अथवा शिक्षण का प्रभाव कक्षा पर कैसा पड़ रहा है, इस बात का पता लगा सकते हैं।

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