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मंगोल आक्रमण एवं उसके प्रभाव को स्पष्ट कीजिए

मंगोल आक्रमण एवं उसके प्रभाव को स्पष्ट कीजिए

मंगोल आक्रमण दिल्ली सुल्तानों के समक्ष भारत की उत्तरी-पश्चिमी सीमा की रक्षा का प्रश्न सदैव विद्यमान रहा। इस दिशा से भारत को मंगोल आक्रमणकरियों के आक्रमण का भय सदैव बना रहा । इस समस्या को सुलझाने में दिल्ली के सम्राटों को अपनी सेनाओं की शक्ति की बढ़ाना पड़ा और अपनी सीमा की सुरक्षा की ओर ध्यान देना पड़ा।

गुलाम वंश में मंगोल समस्या-

दिल्ली सल्तनत का शासन-काल गुलाम वंश के शासन-काल से प्रारम्भ होता है। दास वंश के शासक इल्तुतमिश के समय में मंगोल सरदार चंगेज खाँ ख्वारिज्म के शाह जलालुद्दीन का पीछा करते हुए भारत में घुस आया था। परन्तु सुल्तान इल्तुतमिश ने भारत को चंगेज खाँ के आक्रमण से बचा लिया था।

इसके उपरान्त चंगेज खाँ के पोते मंगू ने सुल्तान बहरामशाह के शासन-काल में आक्रमण किया। इस बार शाही सेना ने मंगोलों को हराकर भगा दिया । नासिरुद्दीन के शासन-काल में मंगोलों के आक्रमण हुए। बलबन के शासन-काल में मंगोलों के भीषण आक्रमण हुए थे। बलबन ने उत्तरी -पश्चिमी सीमा-प्रदेश की रक्षा का भार अपने पुत्रों को सौंप दिया था। एक दुर्ग-श्रृङ्खला का निर्माण किया और अनुभवी पठान-सैनिकों को उनकी रक्षा के लिए नियुक्त कर दिया। बलबन के शासन काल में यद्यपि मंगोलों ने अनेक आक्रमण किये परन्तु सदृढ़ व्यवस्था से उन्हें आगे बढ़ने में सफलता न मिली। वास्तव में दासवंश के शासकों को अपनी सारी शक्ति उन्हें रोकने में लगानी पड़ी।

खिलजी वंश में मंगोल समस्या-

खिलजी वंश के शासकों को भी मंगोलों के आक्रमण का सामना करना पड़ा। जलालुद्दीन खिलजी के शासन-काल में मंगोलों का केवल एक आक्रमण 1292 ई० में हुआ। सुल्तान ने स्वयं शत्रुओं का सामना किया और उन्हें परास्त करके पीछे हटा दिया। अलाउद्दीन के शासनकाल में मंगोलों ने दिल्ली को जीतने के बार-बार प्रयत्न किये पर हर बार उन्हें परास्त होकर वापस लौटना पड़ा। अलाउद्दीन ने बलबन की नीति का अनुसरण किया। फलतः मंगोलों से खिलजी साम्राज्य को कोई क्षति नहीं पहुंची।

तुगलक वंश में मंगोल समस्या-

अलाउद्दीन की मृत्यु के उपरान्त मंगोलों ने भारत को जीतने के दुर्लभ प्रयत्न किये। गयासुद्दीन तुगलक के समय में उनका आक्रमण हुआ किन्तु आक्रमणकारियों के नेता पराजित हुए और बन्दी बनाकर दिल्ली लाये गये। सबसे भयंकर मंगोल आक्रमण 1328-29 ई० में हुआ, जिसका नेता तासीरी बदायूँ तक पहुँच गया। आक्रमणकारियों ने मार्ग के प्रदेश को लूटा और नष्ट किया। मुहम्मद तुगलक ने उन्हें पराजित किया और गुरदासपुर जिले में स्थित कालानौर तक उनका पीछा किया। फिरोज तुगलक के शासन काल में सल्तनत मंगोल आक्रमणों से मुक्त रही। इस समय उखड़ रहे थे। मध्य एशिया में उसकी शक्ति क्षीण हो चुकी थी और पश्चिम पंजाब से भी उनके पैर तगलक वंश के बाद सैयद तथा लोदी वंश का शासन-काल आया। इस काल में सुल्तानों तथा अमीरों का पारस्परिक संघर्ष आरम्भ हुआ। 1516 ई० में काबुल के मुगल शासक बाबर ने भारत पर आक्रमण किया। सुल्तान इब्राहीम लोदी को परास्त करके उसने दिल्ली सल्तनत का अन्त कर दिया।

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मंगोल-आक्रमण के परिणाम

(1) सैनिक तैयारी– दिल्ली सल्तनत की आन्तरिक एवं बाह्य नीति पर मंगोलों के आक्रमण का गम्भीर प्रभाव पड़ा। जब तक यह संकट था तब तक सुल्तानों को अपनी सैनिक शक्ति बढ़ानी पड़ी।

(2) विजय अभियान में अवरोधमंगोल आक्रमण के कारण साधारण कोटि के सल्तानो के लिए विजय नीति का अनुसरण करना असंभव हो गया। इन परिस्थितिया म केवल अलाउद्दीन खिलजी ही देश की सरक्षा तथा स्वतंत्र देशी राज्यों को विजय करने की नीति का साथ-साथ अनुसरण कर सका।

(3) धन-जन की हानि– मंगोलों के आक्रमण से देश के धन और जन की अपार क्षति हुई। असंख्य सैनिक मारे गये और आक्रमणकारी देश से विपुल सम्पत्ति लूट कर अपने साथ ले गये।

(4) प्रजा में भय का प्रसार– मंगोल बहुत ही निर्दयी एवं क्रूर थे। इन्होंने भारत के लोगों का नृशंसतापूर्वक संहार किया। इसलिए भारत के लोग उन्हें घृणा और भय की दृष्टि से देखने लगे।

(5) सल्तनत पर कुप्रभाव– मंगोलों के आक्रमणों का दिल्ली सल्तनत पर बुरा प्रभाव पड़ा। शासकों का सारा ध्यान इसी ओर लगा रहता था, जिसके कारण आन्तरिक व्यवस्था भी पैदा हो जाया करती थी। बार-बार के आक्रमणों ने दिल्ली सल्तनत को कमजोर बना दिया।

दिल्ली सल्तनत के विघटन के क्या कारण थे?

दिल्ली सल्तनत के पतन के अनेक कारण थे, जिनमें से प्रमुख कारणों का विवरण निम्नलिखित है :

(1) निरंकुश शासन-

दिल्ली सुल्तानों का शासन पूर्णतया निरंकुश था । जो शासन तलवार के बल पर चलता है उसके लिए योग्य एवं शक्तिशाली शासक की आवश्यकता होती है। कुतुबद्दीन, इल्तुतमिश, बलबन, अलाउद्दीन और मुहम्मद तुगलक को छोड़कर सल्तनत के दीर्घकाल में योग्य और शक्तिशाली शासकों का अभाव रहा। डॉ० ईश्वरी प्रसाद के शब्दों में, “फिरोज के पश्चात् दिल्ली को कोई भी निपुण शासक नहीं मिला।” फलतः अमीरों और सामन्तों के विद्रोहों को रोकने में वे असफल रहे और सल्तनत का आधार कमजोर हो गया।

(2) दरबार की गुटबन्दी-

दिल्ली सल्तनत हमेशा दरबार की गुटबन्दी का शिकार रही। इसके कारण सल्तनत आन्तरिक कमजोरी से पीड़ित रही। अमीरों के षड़यन्त्र एवं विद्रोह राज्य के लिए घातक सिद्ध हुए।

(3) मुसलमानों के चरित्र की कमजोरी-

दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों और अमीरों का चरित्र पतित हो चुका था। धन की विपुलता ने उन्हें भ्रष्ट बना दिया था। वे सदैव भोग-विलास और विलासिता में डूबे रहते थे। इससे शासन कमजोर हो गया।

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(4) सैनिक संगठन की कमजोरी-

सैनिक संगठन की उत्तमता सुल्तान की शक्ति का आधार थी। परन्तु अलाउद्दीन खिलजी के पश्चात् सुल्तानों का सैनिक संगठन कमजोर हो गया। सेना इतनी शक्तिशाली नहीं रह गई थी कि वह जनता को नियन्त्रित करके उसे राजा के प्रति स्वामिभक्त बनाये रखती एवं विद्रोही अमीरों को अंकश में रखती।

(5) सरकार पुलिस सरकार थी-

दिल्ली के सुल्तानों का शासन पुलिस शासन कहा गया है। उसका प्रमुख काम व्यवस्था स्थापित करना एवं कर वसूल करना था। परन्त सरकार व्यवस्था कायम रखने में भी असफल रही।

(6) साम्राज्य की विशालता-

साम्राज्य की विशालता भी सल्तनत के पतन का एक महत्वपूर्ण कारण थी। दक्षिण सल्तनत का एक उपद्रवग्रस्त भाग था । कमजोर सुल्तानों के समय में अनेक विद्रोह हुए जिन्हें नियन्त्रण में करना उनके वश की बात न थी।

(7) तैमूर का आक्रमण-

तैमूर का आक्रमण दिल्ली सल्तनत के लिये प्राणघातक सिद्ध हुआ। उसने सल्तनत की कमर तोड़ दी। तैमूर के आक्रमण ने सल्तनत में अव्यवस्था फैला दी। अवसर से लाभ उठाकर अनेक प्रान्त स्वतन्त्र हो गये। डॉ० अवध बिहारी पांडेय के अनुसार, “इस आक्रमण से दिल्ली सल्तनत का एक प्रकार से विनाश ही हो गया।”

(8) तुगलक शासकों की दोषपूर्ण नीतियाँ-

मुहम्मद तुगलक और फिरोज तुगलक की दोषपूर्ण नीतियाँ भी सल्तनत के पतन में सहायक हुईं। मुहम्मद तुलगक की अविवेकपूर्ण नीतियों के कारण चारों ओर असंतोष फैल गया। फिरोज तुगलक की उदार नीति एवं ढिलाई के कारण शासन में भ्रष्टाचार व्याप्त हो गया। उसने सेना में जागीर प्रणाली शुरू करके सल्तनत के पतन की गति की ओर तेज बना दिया।

(9) सुल्तानों की कट्टर धार्मिक-नीति-

इस्लाम राज्य-धर्म था। सल्तनत इस्लाम का अनुयायी होता था। इस पूरे काल में कतिपय अपवादों को छोड़कर, हिन्दुओं के साथ मुसलमान शासकों ने बुरा व्यवहार किया।

(10) जागीर प्रथा-

डॉ० ईश्वरी प्रसाद का कहना है कि, “जागीर प्रथा सल्तनत के लिए बड़ी खतरनाक साबित हुई। इसने अनेक दुष्प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन दिया। फिरोज के समय में ऐसी ही स्थिति बन गयी थी।”

(11) उत्तराधिकार के नियम का अभाव-

उत्तराधिकार के किसी निश्चित नियम के न होने का परिणाम यह होता था कि एक शासक के मरते ही गद्दी के लिए संघर्ष शुरु  हो जाता था। इससे शासन में अव्यवस्था फैल जाती थी और प्रान्तीय शासक प्रायः स्वतन्त्र हो जाते थे।

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