अधिगम का मापन

अधिगम का मापन, मापन का अर्थ, विशेषताएँ एवं सीमाएँ | Measuring Learning in Hindi

अधिगम का मापन(MEASURING LEARNING)

आधुनिक युग मापन का युग कहा जाता है। “अधिगम प्रणाली में मूल्यांकन की अपेक्षा मापन का विशेष महत्व है। ‘अधिगम का मापन’ की प्रशासनिक उपयोगिता ज्यादा है। मूल्यांकन की तुलना में मापन अधिक शुद्ध तथा विशिष्ट होता है।”

 

 

मापन का अर्थ (Meaning or Measurement)

मापन जैसे निरपेक्ष शब्द की व्याख्या करना एक कठिन प्रश्न है। प्रायः मापन से अभिप्राय यह लगाया जाता है कि यह प्रदत्तों का अंकों के रूप में वर्णन करता है। मापन किसी भी वस्तु का शद्ध एवं वस्तुनिष्ठ रूप से वर्णन करता है। एस० एस० स्टेवेन्स (S.S.Stevens 1951) लिखते हैं कि विस्तृत अर्थ में, “मापन किन्ही निश्चित स्वीकृत नियमों के अनुसार वस्तओं को अंक प्रदान करने की प्रक्रिया है।”

(Measurement is the process of assigning numbers to objects according to certain agreed rules.)

किसी विशेष परिस्थिति में किन नियमों का प्रयोग किया जायेगा, यह वस्तुओं को अंक प्रदान करने वाले तुलना के प्रकार पर निर्भर करता है। हैल्मस्टेडर (Helmstadter) के शब्दों में, “मापन को एक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसमें कि किसी व्यक्ति या पदार्थ में निहित विशेषताओं का आंकिक वर्णन होता है।”

(Measurement has been defined as the process of obtaining a numerical description of the extent to which a person or thing possesses some characteristics.)

साधारण शब्दों में, मापन क्रिया विभिन्न निरीक्षणों, वस्तुओं अथवा घटनाओं को कुछ विशिष्ट नियमों के अनुसार सार्थक एवं संगत रूप से संकेत चिन्ह अथवा आंकिक संकेत प्रदान करने की प्रक्रिया है।

(Measurement is the process of assigning symbols or numerals to observations, objects or events in some meaningful or consistent manner according to rules.)

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अर्थात् हम मापन के अन्तर्गत विभिन्न निरीक्षणों, वस्तुओं एवं घटनाओं का मात्रात्मक रूप से वर्णन करते है। इसमें अंक प्रदान करने के लिये मापन के विभिन्न स्तरों के अनुकूल विशिष्ट नियम एवं सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया जाता है।

अतएव, उपयुक्त विवरण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मापन के मुख्य रूप से तीन कार्य हैं-

(i) यह वस्तुओं की श्रेणी को व्यक्त करता है,

(ii) यह संख्याओं की श्रेणी को व्यक्त करता है, तथा

(iii) यह वस्तुओं को अंक प्रदान करने वाले नियमों को व्यक्त करता है।

 

मनोवैज्ञानिक मापन में हम विभिन्न व्यवहार परिवर्त्यों- जैविक शीलगुणों, मनोवैज्ञानिक शीलगुणों योग्यताओं, अभिक्षमताओं कौशल, उपलब्धियों, प्रेरकों, अभिवृत्तियों, रुचियों, मूल्यों, स्वभाव के शीलगुणों आदि का मापन करते हैं। इस प्रकार मापन के द्वारा मनोवैज्ञानिक सम्पूर्ण व्यक्ति का अध्ययन कर सकता।

 

मापन प्रक्रिया के कार्य (Functions of Measurement)

मापन प्रक्रिया के तीन प्रमुख कार्य होते हैं-

(1) साफल्य (Prognosis)-साफल्य का प्रयोग छात्रों के वर्गीकरण, स्तरीकरण, चयन, प्रगति तथा पूर्वकथनों के लिए किया जाता है।

(2) निदान (Diagnosis)- निदान से छात्रों की कमजोरियों ज्ञात करके उपचारात्मक अनुदेशन व शिक्षण की व्यवस्था की जाती है।

(3) शोध (Research)-मापन शोध कार्यों में महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान करता है।

 

 

 

मापन की सीमाएँ (Limitations of Measurement)

युग में मापन का अत्यन्त व्यापकता से प्रयोग किया जा रहा है, फिर भी कुछ कमियों के कारण मापन एक आलोचना का विषय रहा है। इसकी सर्वप्रथम सीमा, इसक सकुचित का होना है। एक समय में हम व्यक्ति के केवल एक या कुछ ही पहलुओं का अध्ययन कर सकता द्वारा सम्पूर्ण व्यवहार या व्यक्तित्व का अध्ययन कदापि सम्भव नहीं होता। दूसरे, मापन का रूप व्यक हाताह अतएव इसका प्रक्रिया भी जटिल है। इसमें मानकीकृत परीक्षणों की आवश्यकता होता है तथा अच्छे विश्वसनीय एवं वैध परीक्षणों का समस्त क्षेत्रों में उपलब्ध होना प्रायः असम्भव ही है। इसके अतिरिक्त तीसरी सीमा मापन के द्वारा हमें किसी व्यक्ति या प्रक्रिया के विषय में केवल सूचनाएँ मिलती है, यह कोई निर्णय नहीं प्रदान करता है। यह केवल किसी पहल पर अंकों को प्रदर्शित करता है तथा उन अंको हमारा क्या तात्पर्य है यह इंगित नहीं करता। अतएव अपनी इन सीमाओं के कारण भी मापन क्रिया का व्यावहारिक जीवन में महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रयोग किया जा रहा है जिसके फलस्वरूप आज का युग ‘मापन के युग’ से जाना जाता है।

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मापन की विशेषताएँ (Characteristics of Measurement)

आधुनिक युग मापन का युग कहा जाता है। यद्यपि मापन की कुछ अपनी सीमाएँ हैं, फिर भी इसका महत्व कई दृष्टिकोणों से स्वीकार किया जाता है। सर्वप्रथम, यह किसी भी वस्तु का आंशिक वर्णन बिल्कुल शुद्ध रूप से करता है। यह इस बात को स्पष्ट इंगित करता है कि कोई बालक औसत बुद्धि-लब्धि से कितना अधिक उच्च या निम्न है। मापन का दूसरा लाभ यह है कि इसके द्वारा हम अधिक आसानी से परिणामों को दूसरों को संचारित कर सकते हैं क्योंकि इसमें आत्मनिष्ठ निर्णयों का कोई स्थान नहीं होता। उदाहरणार्थ, यदि हम यह कहें कि एक अमुक छात्र की वृद्धि उसकी आयु समूहों के छात्रों की बुद्धि से 99 प्रतिशत अधिक है, इस निष्कर्ष को आसानी से अन्य व्यक्तियों के समक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं।

मापन का अन्य लाभ व्यक्ति के मूल्यांकन में सहायक होना है, यदि मानकीकत मापकों द्वारा किसी व्यक्ति की व्यावहारिक विशेषताओं का मापन किया जाये तो परिणाम वैध होंगे। अन्त में यह भी कहा जा सकता है कि आत्मनिष्ठ मूल्यांकनों की अपेक्षा मापन का प्रयोग अधिक मितव्ययी है। आत्मनिष्ठ साधनों की अपेक्षाकृत मानसिक परीक्षण अधिक वस्तुनिष्ठ, उपयोगी, मितव्ययी, सरल, व्यापक, विश्वसनीय, वैध तथा अधिक शुद्ध निष्कर्ष प्रदान करने वाले होते हैं।

 

 

 

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