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फिरोजशाह तुगलक की शासन प्रबन्ध नीति की विवेचना

फिरोजशाह तुलगक का शासन प्रबन्ध

फिरोजशाह तुगलक गयासुद्दीन के छोटे भाई रज्जब का पुत्र था। उसका जन्म 1309 ई० में हुआ था, मुहम्मद तुगलक पुत्रहीन था, अतः उसने फिरोज को ही अपना उत्तराधिकारी बनाया। पहले फिरोज साम्राज्य का भार उठाने के लिए तैयार नहीं हुआ परन्तु अमीरों के दबाव डालने के कारण उसने राज्य की बागडोर ग्रहण करना स्वीकार कर लिया। वह 1351 ई० में गद्दी पर बैठा। फिरोज के प्रमुख कार्यों का वर्णन निम्नलिखित प्रकार है:-

(1) राजनीतिक आदर्श में परिवर्तन-

चूँकि वह अमीरों एवं उलेमा के कारण सिंहासनारूढ़ हुआ था और वह स्वयं भी धार्मिक रुचि का व्यक्ति था, अतः अक्षरशः कुरान का अनुसरण करता था और राजनीतिक विषयों पर मौलवियों और मुफ्तियों से परामर्श लेता तथा उनकी सलाह को स्वीकार करता था। इस प्रकार उसने धर्म और राजनीति को मिला दिया।

(2) उदार कर नीति-

फिरोजशाह तुगलक ने अपनी राजस्व-व्यवस्था की ओर विशेष ध्यान दिया। उसने कुरान द्वारा स्वीकृत केवल चार कर लगाये-खराज, खम्स, जजिया और जकात । खराज भूमि कर था। खम्स युद्ध में प्राप्त लूट के धन के पाँचवें भाग को कहते थे। गैर मुसलमानों पर लगने वाला कर जजिया कहलाता था । जकात 2-प्रतिशत की दर से मुसलमानों से वसूल किया जाता था और उसको धार्मिक कार्यों में व्यय किया जाता था। फिरोज ने भूमि की अनुमानित आय का विवरण तैयार कराया। यद्यपि वह विवरण भूमि को उपज अथवा नाप के आधार पर तैयार किया था, फिर भी उसके शासनकाल में भूमि-कर की व्यवस्था एक महान सफलता थी। फिरोजशाह तुगलक ने व्यापार की उन्नति की ओर भी ध्यान दिया। सुल्तान ने व्यापार को उन सब करों से मुक्त कर दिया जिनके कारण वस्तुओं को एक जगह से दूसरी जगह लाना, ले जाना सम्भव नहीं हो पाता था। इस नीति से व्यापार की बड़ी उन्नति हुई। फिरोज के इन सुधारों के परिणामस्वरूप देश की आर्थिक दशा सुधर गई।

(3)जागीर प्रथा-

फिरोजशाह तुगलक ने जागीर-प्रथा का पुनः प्रचलन किया। अलाउद्दीन तथा महम्मद तुगलक के विपरीत फिरोज ने सैनिकों, सेनापतियों और असैनिक पदाधिकारियों को वेतन के बदले में जागीर देने का नियम बना दिया। इससे सुल्तान की लोकप्रियता में वृद्धि हुई, परन्तु यह प्रथा तुगलक वंश के पतन का एक कारण थी।

(4) सिंचाई का प्रबन्ध-

फिरोजशाह तुगलक ने कृषि की उन्नति के लिए प्रशंसनीय कार्य किये। उसने सिंचाई एवं यात्रियों की सुविधा के लिए 150 कुँए तथा अनेक नहरें खुदवाई। उसने पाँच नहरों का निर्माण करयाया, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण नहर वह थी जो यमुना का पानी हिसार तक पहुँचाती थी। उसकी लम्बाई 150 मील थी। इन किसानों से सिंचाई कर लिया जाता था।

(5) सार्वजनिक निर्माण के कार्य-

निर्माण कार्यों में सल्तान की गहरी अभिरुचि थी। उसने फिरोजाबाद, फतेहाबाद, हिसार, जौनपुर, फिरोजपुर आदि महत्वपूर्ण नगरों की स्थापना की। वह अशोक के दो स्तम्भ अम्बाला तथा मेरठ जिले से दिल्ली ले आया, उसने अनेक मस्जिदों, सरायों, जलाशयों, अस्पतालों, स्नानागारों, पुलों आदि का निर्माण कराया, उपवन एवं बाटिकाएँ लगवाईं। दिल्ली के पास फिरोज ने 1200 बाग लगवाये ।

(6) जनहितकारी कार्य-

जनता की भलाई के लिए सुल्तान ने अनेक उदारतापूर्ण कार्य किये। बेकारी दूर करने के लिए रोजगार दफ्तर स्थापित किया। उसने विधवाओं तथा मुसलमान लड़कियों के विवाह के लिए आर्थिक सहायता देने के लिए दानशाला खुलवाई जिसे दीवान-ए-खैरात कहा जाता था। सुल्तान ने रोगियों की देखभाल के लिए दार-उल-शफा नामक एक खैराती औषधालय खुलवाया।

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(7) विद्या की वृद्धि-

फिरोजशाह तुगलक ने शिक्षा प्रसार के लिए अनेक मकतबों तथा मदरसों की स्थापना कराई। उसने विद्वानों को आश्रय दिया एवं उन्हें जीवन-निर्वाह के लिए आर्थिक सहायता भी दी। उसके शासन काल में प्रसिद्ध इतिहासकार हए, जियाउद्दीन बर्नी तथा शम्से सिराज अफीफ। सुल्तान ने स्वयं फतूहास-इ-फिरोजशाही नाम से अपनी आत्मकथा लिखी। उसने अनेक संस्कृत ग्रन्थों का अनुवाद फारसी भाषा में कराया।

(8) दास-प्रथा-

फिरोजशाह तुगलक को दासों का बड़ा शौक था। गुलामों को भेजने के लिए एक अलग अफसर नियुक्त किया गया। इन गुलामों की संख्या एक लाख अस्सी हजार हो गई थी। इनकी शिक्षा एवं रोजगार का फिरोज ने अच्छा प्रबन्ध किया, परन्तु यह प्रथा सल्तनत के लिए हानिकारक सिद्ध हुई।

(9) धार्मिक नीति-

फिरोज एक कट्टर मुसलमान था। वह इस्लाम का पोषण तथा हिन्दू धर्म का दमन और मूर्ति-पूजा का नाश करना अपना पवित्र कर्त्तव्य समझता था। उसने हिन्दुओं को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए अनेक प्रकार से प्रोत्साहित किया।

(10) न्याय व्यवस्था-

फिरोज का दण्ड विधान मुहम्मद तुगलक की तरह कठोर न था। उसकी न्याय-व्यवस्था इस्लाम के नियमों पर आधारित थी। न्याय विभाग में एक बार फिर उलेमा एवं मौलवियों का प्रभुत्व स्थापित हो गया। इस्लाम अमानुषिक दण्ड देने की इजाजत नहीं देता, इसलिए मृत्यु-दण्ड तथा अंग-भंग के दण्ड बन्द कर दिये गये।

(11) सिक्कों में सुधार-

फिरोज ने कई सिक्के चलाये और पुराने सिक्कों में सुधार किया। उसने जनता की सुविधा के लिए पीतल के कम मूल्य के छोटे-छोटे सिक्के भी चलाये।

(12) सेना-

सेना का संगठन जागीर प्रथा के आधार पर किया। स्थायी सैनिकों को वेतन के बदले जागीर दी जाती थी और स्थायी सैनिकों को राजकोष से नकद वेतन दिया जाता था। फिरोज ने एक नया नियम यह बनाया कि सैनिकों के बूढ़े हो जाने पर उनका पुत्र, दामाद या गुलाम उनके स्थान पर रख लिये जायँ । इस नियम से सैनिक सेवा वंशानुगत हो गई। सेना की क्षमता के लिए यह प्रथा हानिकारक सिद्ध हुई। फिरोज की वैदेशिक नीति फिरोज वीर सैनिक नहीं था उसमें सैनिक प्रतिभा का अभाव था। अतः उसकी वैदेशिक नीति दुर्बल एवं असफल रही। उसने अपने खोये हुए प्रान्तों को पुनः जीतने का प्रयत्न तक नहीं किया।

बंगाल पर आक्रमण-

हाजी इलियास ने 1352 ई० में अपने को बंगाल का स्वतन्त्र शासक घोषित कर दिया। अतः फिरोज ने 1352 ई० में बंगाल पर चढ़ाई कर दी।  इलियास भाग गया और उसने इकदला के दुर्ग में शरण ली। फलतः इकदला का किला घेर लिया गया, परन्तु सुल्तान ने स्त्रियों का क्रन्दन सुनकर लड़ाई बन्द कर दी और दिल्ली लौट आया।

जाजनगर (उड़ीसा) पर आक्रमण-

बंगाल से लौटते समय रास्ते में फिरोज ने जाजनगर के हिन्दू शासक पर चढ़ाई कर दी। यह चढ़ाई धार्मिक उद्देश्य से की गई थी। जाजनगर का शासक भाग गया। सुल्तान ने पुरी के जगन्नाथ मन्दिर को अन्धाधुन्ध लूटा वार्मिक और उसे नष्ट- भ्रष्ट करवा दिया। वहाँ के शासक ने सुल्तान की अधीनता स्वीकार कर ली।

नगरकोट पर आक्रमण-

1360 ई० में फिरोज ने पंजाब में स्थित नगरकोट पर । सन् आक्रमण किया। छ: महीने के घेरे के बाद वहाँ के शासक ने आत्म-समर्पण कर दिया। फिरोज ने यहाँ के प्रसिद्ध ज्वालामुखी मन्दिर को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया।

सिन्ध पर आक्रमण-

मुहम्मद के समय में सिन्ध स्वतन्त्र हो गया था। अतः 1363 ई० में फिरोज ने सिन्ध पर आक्रमण किया। वहाँ के राजा ने कर देना स्वीकार कर लिया और फिरोज दिल्ली लौट आया।

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मंगोल आक्रमण-

फिरोज का शासन काल मंगोल आक्रमण से मुक्त रहा। मंगोलों के केवल दो साधारण धावे उसके शासनकाल में हुए परन्तु मंगोल पीछे खदेड़ दिये गये। भारत फिरोज का चरित्र फिरोज दयालु और उदार शासक था। उसके पहले दिल्ली के किसी भी सुल्तान ने प्रजा के कल्याणार्थ उतना प्रयास नहीं किया था, जितना कि फिरोज ने किया।  इतिहासकारों ने फिरोज के इन गुणों की भूरि-भूरि प्रशंसा की है।

फिरोज अपने धर्म का कट्टर अनुयायी था। उसमें औरंगजेब की धर्मान्धता थी, परन्तु उसमें उसके अन्य गुणों का अभाव था। फिरोज की कट्टर एवं पक्षपातपूर्ण धार्मिक नीति सल्तनत के लिए घातक सिद्ध हुई। फिरोज न तो वीर सैनिक ही था और न ही योग्य रों ओर सेनापति । वह युद्ध से दूर भागता था। उसकी उदार नीति भी साम्राज्य के लिए हितकर सबेदार नहीं सिद्ध हुई। उसके सुधारों का सल्तनत पर बुरा प्रभाव पड़ा। डॉ० त्रिपाठी के शब्दों में “सुल्तान अपने वंश के पतन का कारण बना और उसने अपने सुधारों से राज्य सत्ता को अत्यन्त कमजोर कर दिया।”

सल्तनत कालीन शासन व्यवस्था एक केन्द्रीयकृत शासन व्यवस्था के रूप में विकसित हुयी थी। शासकों ने इस समय एक सुदृढ़ केन्द्रीय सरकार की स्थापना की। अनेक राज्य में सर्वोच्च स्थान ‘शरियत’ (मुस्लिम कानून) का था। शासन में उलेमा वर्ग को में विद्रोह प्रमुख स्थान प्राप्त था।

सल्तनत कालीन शासन व्यवस्था

 

सल्तनत कालीन शासन व्यवस्था निम्नवत थी-

(1) केन्द्रीय शासन-

सल्तनत की सर्वोपरि शक्ति सुल्तान में निहित थी। वह निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी होता था। सेना, न्याय तथा कार्यपालिका की समस्त शक्तियाँ इसा में समाहित थी। तलवार ही उत्तराधिकार का निर्णायक थी।

(2) मंत्रि परिषद-

सल्तनत स्वेच्छा से मंत्रिपरिषद का निर्माण करता था जिसकाया किन्त प्रधान प्रधानमंत्री या वजीर होता था। इसके अतिरिक्त अन्य मंत्री भी होते थे जो अलगअलग कार्य करते थे। सुल्तान इन मंत्रियों की सलाह मानने को बाध्य ही था।

(3) प्रान्तीय शासन-

सल्तनत कई प्रान्तों में विभक्त था। प्रान्त इक्ता या सूबा कहलाते थे। प्रान्त का शासक सूबेदार कहलाता था। आवश्यकता पड़ने पर केन्द्र की आर्थिक एवं सैनिक सहायता करते थे।

(4) स्थानीय शासन-

शासन की सुविधा की दृष्टि से प्रान्तों को कई ‘शिकों’ में बाँटा गया था, जिसका प्रधान शिकदार होता था। शिकों को परगनों और परगनों को गाँवों में विभाजित किया गया था। परगने का अधिकारी कानूनगो तथा गाँवों का अधिकारी मुकद्दम कहलाता था। ग्राम पंचायतें ग्राम्य शासन संचालित करती थीं। नगरो की शांति-सुव्यवस्था के लिए सिपाही थे

(5) न्याय व्यवस्था-

न्याय का सर्वोच्च अधिकारी सुल्तान होता था । न्याय विभाग का अध्यक्ष काजी-उल-कुवात कहलाता था । वह प्रान्तीय काजियों की नियुक्ति करता था। कानून की व्याख्या मुफ्ती करते थे। सुल्तानों का दण्ड विधान कठोर था।

(6) सैनिक व्यवस्था-

सुल्तान की सर्वोच्च शक्ति सैनिक बल पर निर्भर थी। सेना का सर्वोच्च सेनापति सुल्तान होता था। सेना में घुड़सवार, पैदल, हाथी तथा ऊँटों की पृथक्-पृथक् टुकड़ियाँ होती थीं। सैनिकों को नगद वेतन तथा जागीर देने की प्रथा थी। सेना की व्यवस्था के लिए दीवान-ए-अर्ज नामक विभाग था, जिसका अध्यक्ष आरिज-एमुनातिक कहलाता था। सल्तनत कालीन शासकों ने शासन के व्यवस्थित संचालन के लिए भूमिकर, जजिया, जकात, खम्स, खिराज, व्यापार कर, सिंचाई, चराई व चुंगी कर आदि के द्वारा धन प्राप्त किया।

 

 

 

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