मौर्योत्तर काल
*रुद्रदामन (130-150 ई.) का जूनागढ अभिलेख गुजरात में गिरनार पर्वत पर प्राप्त हुआ है। ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण संस्कृत भाषा का यह विद्वान अभिलेख अब तक प्राप्त संस्कृत अभिलेखों में सर्वाधिक प्राचीन है। इस अभिलेख में संस्कृत काव्य शैली का प्राचीनतम नमूना प्राप्त होता है। इसमें रुद्रदामन की वंशावली, विजयों, शासन, व्यक्तित्व आदि पर सुंदर प्रकाश डाला गया है। इस अभिलेख का मुख्य उद्देश्य सुदर्शन झील के बांध के बनाया पुनर्निर्माण का विवरण सुरक्षित रखना था।
*कुजुल कडफिसेस (लगभग 45-85 ई.) ने भारत में सर्वप्रथम तक पश्चिमोत्तर प्रदेश पर अधिकार कर लिया। * इसने केवल ताबें के सिक्के उत्तर जारी किए। उसके सिक्कों पर ‘धर्मथिदस’ तथा ‘धर्मथित’ (धर्म में स्थित) तथा उत्कीर्ण हैं। *सर्वप्रथम विम कडफिसेस के काल में ही भारत में कुषाण सत्ता स्थापित हुई थी। विम कडफिसेस ने स्वर्ण एवं तांबे के सिक्के चलाए थे। शिव, त्रिशूल तथा नंदी की आकृति इसके सिक्कों पर मिलती हैं। इसने ‘महेश्वर’ नामक उपाधि धारण की थी।
*उत्तर-पश्चिम भारत में स्वर्ण सिक्कों का प्रचलन इंडी ग्रीक (हिंदयवन) राजाओं ने करवाया था। जबकि इन्हें नियमित एवं पूर्णरूप से प्रचलित सब करवाने का श्रेय कुषाण शासकों को जाता है। कुषाण शासकों ने स्वर्ण एवं ताम्र दोनों ही प्रकार के सिक्कों को व्यापक पैमाने पर प्रचलित किया था।
*कुषाण शासकों में विम कडफिसेस ने सर्वप्रथम सोने के सिक्के जारी क किए थे। कुषाण शासक कनिष्क के सिक्कों पर बुद्ध का अंकन मिलता है।
*यौधेयों का प्रमाण पुराण, अष्टाध्यायी तथा वृहत्संहिता इत्यादि ग्रंथों से प्राप्त होता है। इनका साम्राज्य दक्षिण-पूर्वी पंजाब तथा राजस्थान के बीच था। इनके सिक्कों पर कार्तिकेय का अंकन मिलता है।
*कनिष्क के सारनाथ बौद्ध अभिलेख की तिथि 81 ई. है। यह प्रतिमा मथुरा से लाकर कनिष्क के राज्यारोहण (78 ई.) के तीसरे वर्ष सारनाथ में स्थापित की गई थी। कनिष्क के रबतक अभिलेख में चार शहरों के नाम का उल्लेख मिलता है। ये हैं- साकेत, कौशाम्बी, पाटलिपुत्र तथा चम्पा।
*जैन ग्रंथों के अनुसार, विक्रमादित्य (57 ई.पू.) के उत्तराधिकारी को 135 विक्रम संवत में शकों ने पराजित कर इसके उपलक्ष्य में शक संवत् चलाया था। इस प्रकार इसकी प्रारंभिक तिथि 135-57 = 78 ई. आती है। अधिकांश इतिहासकारों ने कुषाण को इसका प्रवर्तक माना है।
*वर्तमान में तिथि एवं वर्ष के लिए ग्रैगेरियन कैलेंडर का प्रयाग किया जाता है, जो विश्वव्यापी है। वर्तमान कैलेंडर से 57 जोड देने पर विक्रम संवत्(प्रारंभ 57 ई.यू.) तथा 78 घटा देने पर शक संवत्(प्रारंभ 78 ई.) प्राप्त होता है। भारतीय राष्ट्रीय पंचांग का प्रथम माह होता है। विक्रम संवत् के दो अन्य नाम भी मिलते – कृच संवत् तथा मालव संवत् * भारत में राष्ट्रीय कैलेंडर के रूप में शक संवत् को अपनाया गया है।
*अश्वघोष कनिष्क के राजकवि थे। सौदरानंद, बुद्धचरित तथा सारिपुत्रप्रकरण उनकी प्रमुख रचनाए है। वसुमित्र भी कनिष्क के आश्रित विद्वान थे, इन्होंने चतुर्थ बौद्ध संगीति की अध्यक्षता भी की थी। अश्वघोष, नागार्जुन, पार्श्व तथा चरक ये चारो ही कनिष्क के दरबार से संबंधित थे। पतंजलि ने पाणिनी की अष्टाध्यायी पर महाभाष्य की रचना की थी। महर्षि पतंजलि शुंगकालीन विद्वान थे तथा इन्होंने ऐसे लोगों को शिष्य के बनाया था, जो बिना किसी अध्ययन के ही संस्कृत बोल लेते थे।
*कुषाण वंश के साम्राज्य की सीमाएं भारतीय उपमहादीप से बाहर थम तक फैली थीं। इस वंश का महान शासक कनिष्क था, जिसकी सीमाएँ उत्तर में चीन के तुरफान एवं कश्मीर से लेकर दक्षिण में विंध्य पर्वत तथा पश्चिम में उत्तरी अफगानिस्तान से लेकर पूर्व में पूर्वी उ.प्र. एवं बिहार तक विस्तृत थीं।
*पेरीप्लस ऑफ द एरीथ्रियन सी और अरिकामेडु में हुई खुदाई से ऐसे अनेक बंदरगाहों और व्यापारिक केंद्रों की उपस्थिति के साक्ष्रय मिले हैं, जिनसे यह स्पष्ट होता है कि कुषाणों का व्यापार पश्चिमी विश्व से फारस की खाड़ी और लाल सागर के जलमार्ग से होता था। इन चलित सभी साक्ष्यों में किसी में भी कुषाणों की सशक्त नौसेना की उपस्थिति का उल्लेख नहीं मिलता है।
* कुषाण शासक कनिष्क के काल में कला क्षेत्र में दो स्वतंत्र शैलियों का विकास हुआ-(1) गांधार शैली एवं (2) मथुरा शैली। भारतीय और यूनानी आकृति की सम्मिश्रण शैली गांधार शैली है। इस कला शैली के प्रमुख संरक्षक शक एवं कुषाण थे। इस कला का विषय मात्र बौद्ध होने स्थान के के कारण इसे ‘यूनानी-बौद्ध’ (Greeco-Buddhist), इंडो-ग्रीक (Indo Greek) या ग्रीको-रोमन (Greeco-Roman) भी कहा जाता है। गांधार कला में सदैव हरित स्तरित या शिस्ट चट्टान का प्रयोग ही मूर्तियां बनाने के परनाथ में लिए किया जाता था। अफगानिस्तान का बामियान, पहाड़ियों को काटकर बनवाई गई बुद्ध प्रतिमाओं के लिए प्रसिद्ध था लेकिन अफगानिस्तान में तालिबान शासन ने इन बुद्ध प्रतिमाओं को नष्ट करवा दिया।
* कुषाणकाल (प्रथम शती ई.) में बाल विवाह की प्रथा प्रारंभ हुई थी। स्त्रियों में उपनयन की समाप्ति तथा बाल विवाह के प्रचलन ने उसे समाज में अत्यंत निम्न स्थिति में ला दिया।
*भारत में बाह्य आक्रामकों के कालों का सही कालानुक्रम है-यूनानी (326 ई.प. सिकंदर महान) शक (प्रथम शताब्दी ई.पू.), कुषाण (पहली शताब्दी ई.)।
*ईरानी शासक डेरियस प्रथम (522-486 ई.पू.) ने सर्वप्रथम भारत के कुछ भाग को अपने अधीन किया था। हेरोडोटस के अनुसार, डेरियस प्रथम के साम्राज्य में संपूर्ण सिंध घाटी का प्रदेश शामिल था तथा पूर्व की ओर इसका विस्तार राजपूताना के रेगिस्तान तक था।
*मिनाण्डर तथा उसके पुत्र स्टैटो प्रथम के सिक्के मथुरा से मिले है। स्टैटो-।। ने सीसे के सिक्के जारी किए थे। इस हिंद-यवन शासक का शासन 25 ई.पू. से 10 ईस्वी तक माना जाता है।
*184 ई.पू. में पुष्यमित्र शुंग ने अंतिम मौर्य शासक वृहद्रथ की हत्या करके शंग राजवंश की स्थापना की। पुराणों के अनुसार, पुष्यमित्र ने 36 वर्षों तक शासन किया। महर्षि पाणिनी ने ‘शुग वंश’ को भारद्वाज गोत्र का ब्राह्मण’ बताया है। अयोध्या के लेख से ज्ञात होता है कि पुष्यमित्र ने दो अश्वमेध यज्ञ किए थे। पतंजलि पुष्यमित्र शुग के पुरोहित थे। शुंग वंश का 9वां शासक भागवत अथवा भागभद्र था। इसके शासनकाल में तक्षशिला के यवन नरेश एटियालकीड्स का राजदूत हेलियोडोरस उसके विदिशा राजदरबार में उपस्थित हआ था। *हेलियोडोरस ने भागवत धर्म ग्रहण किया तथा विदिशा (बेसनगर) में गरुड़-स्तंभ की स्थापना कर भागवत विष्णु की पूजा की। *शुंग वंश का अंतिम राजा देवभूति (देवभूमि) अपने आमात्य वासुदेव के षड्यंत्रों द्वारा मार डाला गया। वासुदेव ने जिस नवीन राजवंश की नींव डाली, वह ‘कण्व’ या ‘कण्वायन’ नाम से जाना जाता है।
*मौर्यों के बाद दक्षिण भारत में सबसे प्रभावशाली राज्य सातवाहनों का था। पुराणों में इस वंश के संस्थापक का नाम सिंधुक, सिमुक या शिप्रक दिया गया है, जिसने कण्व वंश के राजा सुशर्मा का वध करके अपना शासन स्थापिक किया था।
*पुराणों में कुल तीस या इकतीस सातवाहन राजाओं के नाम मिलते हैं, जिनमें से सबसे लंबी सूची मत्स्य पुराण में 29 राजाओं की मिलती है।
*सातवाहनों की वास्तविक राजधानी प्रतिष्ठान या पैठन में अवस्थित थी। पुराणों में इस राजवंश को आंध्रभृत्य या आंध्र जातीय कहा गया है। उनकी आरंभिक राजधानी अमरावती मानी जाती है। पुराणों के अनुसार, कृष्ण का पुत्र एवं उत्तराधिकारी शातकर्णि प्रथम सातवाहन वंश का शातकर्णि उपाधि धारण करने वाला प्रथम राजा था। इसके शासन के बारे में हमें नागनिका के नानाघाट अभिलेख से महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
*सातवाहन शासक गौतमीपुत्र शातकर्णि ने कहा है कि उसने विछिन्न होते चातुर्वर्ण्य (चार वर्णों वाली व्यवस्था) को फिर से स्थापित किया और वर्णसंकर (वर्गों और जातियों के सम्मिश्रण) को रोका। इसी कारण इसे वर्ण-व्यवस्था का रक्षक कहा जाता है। गौतमीपुत्र शातकर्णि को नासिक अभिलेख में अद्वितीय ब्राह्मण’ (एक ब्राह्मण) तथा ‘वेदों का आश्रय’ कहा गया है तथा ‘खतीय दप मनमदा’ अर्थात क्षत्रियों के दर्प का मर्दन करने वाला कहा गया है। वाशिष्ठीपुत्र पुलमावी को ‘दक्षिणापथेश्वर’ कहा गया है। दो पतवारों वाले जहाज का चित्र उसके कुछ सिक्कों पर बना हुआ है। इस वंश का अंतिम शक्तिशाली शासक यज्ञश्री शातकर्णि था।
*कलिंग के चेदि वंश का संस्थापक महामेघवाहन था। कलिंग चेदिवंशीय शासक खारवेल प्राचीन भारतीय इतिहास के महानतम सम्राट में से एक था। उड़ीसा (ओडिशा) प्रांत के भुवनेश्वर से तीन मील की दूरी पर स्थित उदयगिरि पहाड़ी की ‘हाथीगुम्फा’ से उसका एक बिना तिथि अभिलेख प्राप्त हुआ है। इसमें खारवेल के बचपन, शिक्षा, राज्याभिषेक तथा राजा होने के बाद से तेरह वर्षों तक के शासनकाल की घटनाओं का क्रमबद्ध विवरण दिया हुआ है। यह अभिलेख खारवेल का इतिहास जानने का एकमात्र स्रोत है। इस अभिलेख से पता चलता है कि खारवेल ने दक्षिण के तीन राज्यों चोल, चेर एवं पाण्ड्यों को पराजित किया था। पाण्ड्य शासक के उसने गधे से हल चलवाया था। इसका जैन धर्म के प्रति भारी झकाव था।
*पूर्वी रोमन शासक जस्टिनियन को सर्वाधिक प्रसिद्धि उसके न्याय संबंधी सुधारों से मिली। जस्टिनियन रोमन कानून के संपूर्ण संशोधन के लिए उत्तरदायी था।
महत्तवपूर्ण पश्न(FAQ)-
प्रश्न 1. कनिष्क के काल में कला क्षेत्र में किन दो स्वतंत्र शैलियों का विकास हुआ?
उत्तर – कनिष्क के काल में कला क्षेत्र में दो स्वतंत्र शैलियों का विकास हुआ-(1) गांधार शैली एवं (2) मथुरा शैली।
प्रश्न 2. उत्तर-पश्चिम भारत में स्वर्ण सिक्कों का प्रचलन किसने करवाया था?
उत्तर – उत्तर-पश्चिम भारत में स्वर्ण सिक्कों का प्रचलन इंडी ग्रीक (हिंदयवन) राजाओं ने करवाया था।
प्रश्न 3. भारत में राष्ट्रीय कैलेंडर के रूप में किस संवत् को अपनाया गया है?
उत्तर – भारत में राष्ट्रीय कैलेंडर के रूप में शक संवत् को अपनाया गया है।
प्रश्न 4. रुद्रदामन (130-150 ई.) का जूनागढ अभिलेख कहाँ पर प्राप्त हुआ है?
उत्तर -रुद्रदामन (130-150 ई.) का जूनागढ अभिलेख गुजरात में गिरनार पर्वत पर प्राप्त हुआ है।
प्रश्न 5. कुषाण शासक कनिष्क के सिक्कों पर किसका अंकन मिलता है?
उत्तर – कुषाण शासक कनिष्क के सिक्कों पर बुद्ध का अंकन मिलता है।
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