ट्यूटोरियल विधि या अनुवर्ग के प्रकार,

ट्यूटोरियल विधि या अनुवर्ग के प्रकार, विशेषताएँ, सीमाएँ | Tutorial Strategies in Hindi

ट्यूटोरियल विधि या अनुवर्ग(TUTORIAL STRATEGIES)

ट्यूटोरियल विधि या अनुवर्ग एक ऐसी शिक्षण विधि है जिसका प्रयोग व्यक्तिगत तथा सामूहिक दोनों ही प्रकार से (आवश्यकतानुसार) किया जा सकता है। इसको परिभाषित करते हुए लारेंस उडेंग (Laurances Urdang) ने लिखा है-

“A session of intensive instruction by a tutor. It is a system of education in which instructions are given by tutor (teacher) who also acts as general advisor.”

“एक ट्यूटर द्वारा गहन निर्देश का सत्र है। यह शिक्षा की एक प्रणाली है जिसमें ट्यूटर (शिक्षक) द्वारा निर्देश दिए जाते हैं जो सामान्य सलाहकार के रूप में भी कार्य करता है

इस शिक्षण-विधि में कक्षा को छोटे-छोटे समहों में बाँट लेते हैं और छोटे-छोटे समूहों में शिक्षक पहुँच कर, उस समूह की समस्याओं तथा मुश्किलों की खोज करता है और छात्रों को उनके सही हला तक पहुंचने में मदद करता है। ट्यूटोरियल में छात्रों की व्यक्तिगत समस्याओं के साथ-साथ पढाई सम्बन्धी जटिलताओं पर भी आवश्यक ध्यान दिया जाता है। इसीलिए इसको ‘गहन शिक्षण का माध्यम’ (Intensive Instruction) भी कहा जाता है। ट्यूटोरियल के द्वारा ज्ञानात्मक तथा भावात्मक पक्षों से उच्च स्तरों के उद्देश्यों को प्राप्त किया जाता है। यह छोटे बच्चों तथा प्रौढ़ों की पढ़ाई के लिए अधिक उपयुक्त है।

 

ट्यूटोरियल्स विधि के प्रकार

ट्यूटोरियल्स विधि अधिकतर तीन प्रकार के होते हैं-

1. निरीक्षण युक्त ट्यूटोरियल

2. सामूहिक ट्यूटोरियल

3. प्रयोगात्मक ट्यूटोरियल

 

 

ट्यूटोरियल्स विधि के प्रकार

 

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निरीक्षण युक्त (Supervised) ट्यूटोरियल में शिक्षक के साथ छात्र व्यक्तिगत रूप से विचार-विमर्श तथा वार्तालाप करता है। सामूहिक (Group) ट्यूटोरियल में साधारण स्तर के छात्रों को विशिष्ट शिक्षण दिया जाता है और प्रयोगात्मक (Practical) ट्यूटोरियल में शारीरिक कौशल, प्रयोगशाला कार्य आदि मनोगत्यात्मक प्रक्रियाओं का अध्ययन तथा उनका समाधान किया जाता है। मूल्य विकसित करने के लिए (For the development of values) यह शिक्षण-विधि पिछड़े तथा प्रतिभाशाली दोनों प्रकार के छात्रों के लिए उपयोगी है।

 

ट्यूटोरियल विधि की विशेषताएँ

(1) यह शिक्षण के सुधारात्मक (Remedial) पक्ष पर ध्यान देती है।

(2) छात्र के पूर्व-ज्ञान के आधार पर उनकी समस्याओं को सुलझाया जाता है।

(3) ज्ञानात्मक तथा भावात्मक पक्षों के उच्च उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक है।

(4) छात्रों की उपलब्धियाँ (Achievement) बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं।

(5) यह वैयक्तिक तथा सामूहिक दोनों रूपों में आवश्यकतानुसार प्रयोग की जाती है।

 

यह ठीक ही कहा गया है कि-

“Tutorial strategy is best suited for the development of application, evaluation, synthesis, expression, communication, interests and attitudes. It involves simple to complex tasks or abilities (in a problem solving situation closed as well as open ended) involving new unfamiliar areas.”

इस प्रक्रिया में कार्य पूरा करने के लिए प्रारम्भ में छोटे-छोटे संकेत (Hints or clues) छात्रों को दिये जाते हैं, जिन्हें बाद की समस्या सुलझाते समय धीरे-धीरे (Withdraw) करते जाना चाहिये।

ट्यूटोरियल विधि की सीमाएँ

(1) एक शिक्षक केवल अपने विषय से सम्बन्धित समस्याओं का समाधान भली-भांति कर सकता है। दूसरे विषयों में वे ज्यादा रुचि नहीं लेते।

(2) शिक्षक कभी-कभी कुछ विशेष छात्रों पर ही अपना ध्यान केन्द्रित कर देते हैं जबकि ट्यूटोरियल उस समूह के प्रत्येक छात्र के लिए होता है।

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(3) कुछ छात्र, दूसरे छात्रों को बोलने के बहत कम अवसर देते है।

(4) छात्रों के विभिन्न वर्गों में स्पर्धा का विकास होता है।

(5) शिक्षक को छात्रों के मनोविज्ञान का ज्ञान होना चाहिये।

 

ट्यूटोरियल विधि के लिए सुझाव (Suggestions)-

इस विधि के प्रयोग के समय-

(1) शिक्षक को निष्पक्ष रहकर समह के सभी छात्रों पर ध्यान देना चाहिये।।

(2) शिक्षका के अनुभवों, रुचियों तथा विशिष्टीकरण के आधार पर ही उन्हें छात्रों की ट्यूटोरियल कक्षाएँ देनी चाहिये।

(3) छात्रों की समस्याओं का समाधान प्रमुख उद्देश्य होना चाहिये।

(4) सभी छात्रों को अपनी बातें तथा कठिनाइयाँ सामने रखने के समान अवसर दिये जाने चाहिये।

(5) जहाँ तक हो सके समूह निर्माण की प्रक्रिया का आधार मनोवैज्ञानिक होना चाहिये।

(6) सुधारात्मक शिक्षण के साथ-साथ इसका उद्देश्य सामान्य समस्या समाधान कौशल (Routine Problem Solving Skills) विकसित करने का भी होना चाहिये।

(7) विभिन्न समूहों में जाग्रत स्पर्द्धा तथा ईर्ष्या पर ध्यान दिया जाना चाहिये।

 

 

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