अनुकरणीय सामाजिक कौशल प्रशिक्षण

शिक्षक व्यवहार में सुधार- अनुकरणीय सामाजिक कौशल प्रशिक्षण

शिक्षक व्यवहार में सुधार (MODIFICATIONS IN TEACHER BEHAVIOR)

विद्यालय में कई प्रकार के शिक्षक मिलते हैं। कुछ बहुत प्रभावशाली तो कुछ बहुत कम प्रभाव वाले शिक्षक की प्रभावशीलता उसके सामान्य तथा कक्षागत क्रिया-कलापों पर आधारित होती है। ये क्रिया-कलाप शिक्षक के व्यवहारों की ओर संकेत देते हैं। पूरी शिक्षक-तकनीकी, शिक्षक के व्यवहारों में सुधार लाने, परिमार्जन करने तथा उनमें वांछित परिवर्तन लाने की प्रक्रिया पर विशेष बल देती है।

डी० जी० रायन (D.G.Ryan), एल्बर्ट (Albert), डेवीज (Davies) आदि अनेक विद्वान विश्वास करते है कि शिक्षक व्यवहार परिवर्तनीय है, उसमें सुधार तथा परिमार्जन किया जा सकता है।

शिक्षण-तकनीकी के क्षेत्र में शिक्षक के व्यवहार में परिवर्तन या परिमार्जन अथवा सुधार लाने के लिये अनेक विधियों का विकास किया गया है। इनमें से प्रमुख हैं-

1. अनुकरणीय सामाजिक कौशल प्रशिक्षण (Simulated Social Skill Training, SSST)

2. टी-समूह प्रशिक्षण (T-Group Training)

3. सूक्ष्म शिक्षण (Micro Teaching)

4. अन्तःक्रिया विश्लेषण (Interaction Analysis)

5. अभिक्रमित अनुदेशन (Programmed Instruction)

 

इस पोस्ट में हम प्रथम दो विधियों का वर्णन करेंगे। शेष तीन विधियों के विषय में इसी ब्लाँग पर उबलब्ध है।

 

 

अनुकरणीय सामाजिक कौशल प्रशिक्षण(SIMULATED SOCIAL SKILL TRAINING)

अधिकतर देखा जाता है कि बी० एड० प्रशिक्षण में छात्रों के समक्ष शिक्षक-प्रशिक्षक हर विषय में  2-3 पाठों का प्रदर्शन करते हैं और उसके बाद छात्रों को सीधे विद्यालयों में बिना किसी पूर्व-अभ्यास के शिक्षण हेतु भेज दिया जाता है। देखा जाता है कि ये छात्र या छात्राध्यापक, शिक्षक द्वारा “प्रदर्शन पाठ’ से प्रभावित होकर पाठ-प्रदर्शन के अनुरूप अनुकरण करने का पूरा प्रयास करते है। फलस्वरूप वे कक्षा में सामाजिक व्यवहारों को समझ नहीं पाते और अपेक्षित शिक्षण का प्रदर्शन करने में असमर्थ रहते हैं।

शिक्षण व्यवसाय में शिक्षण कुशलता/प्रभावशीलता प्राप्त करने के लिये शिक्षण का पूर्वाभ्यास छात्रों के लिये अति आवश्यक है। इस अभ्यास में छात्र को शिक्षक की भूमिका का निर्वाह करना पड़ता है, कक्षागत-व्यवस्था तथा सामाजिक कौशल प्राप्त करने के लिये प्रयास करने पड़ते हैं। छात्र ये प्रशिक्षण अनुकरणीय (SSST) विधि से प्राप्त करते हैं; जो छात्रों में आत्मविश्वास जाग्रत करता है तथा उन्हें प्रभावशाली शिक्षक बनाने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

अनुकरणीय सामाजिक कौशल प्रशिक्षण विधि (SSST) का विकास क्रुक शैन्क (Cruick-Shank) ने 1968 में शिक्षक प्रशिक्षण के लिये किया था। इस विधि के अनेक नाम हैं जैसे- भूमिका निर्वाह विधि (Role Play), कृत्रिम शिक्षण (Artificial Teaching), पायलट प्रशिक्षण (Pilot Training), प्रयोगशाला विधि (Laboratory Technique), नैदानिक विधि (Clinical Method) तथा आगमन वैज्ञानिक विधि (Inductive Scientific Method) आदि।

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अनुकरणीय सामाजिक कौशल प्रशिक्षण विधि का अर्थ (Meaning of SSST)

इस विधि के द्वारा कृत्रिम परिस्थितियों में कुछ निश्चित व्यवहारों का प्रशिक्षण दिया जाता है। छात्रों को कक्षागत कृत्रिम वातावरण में शिक्षक-प्रशिक्षण हेतु अनेक प्रकार की भूमिका का निर्वाह करना होता है। जैसे-शिक्षक, छात्र या पर्यवेक्षक की भूमिका।

सीमुलेशन (Simulation) शिक्षण के विभिन्न चरों पर नियन्त्रण रखता है। सबसे बड़ी बात है कि सीमुलेशन के द्वारा छात्र शिक्षण-कौशलों को बिना किसी तनाव के, सरलता तथा सुगमता के साथ सीख लेता है।

“Simulation means role playing or rehearsal in which the process of teaching is carried out artificially. It is based on socio-drama.”

सीमुलेशन (अनुकरण) वास्तव में एक ऐसी पृष्ठपोषण (Feedback) प्रविधि है जो भूमिका निर्वाह (रिहर्सल) के द्वारा छात्रों में, शिक्षकों के कुछ निश्चित वांछित सामाजिक कौशलों का कक्षागत कृत्रिम परिस्थितियों में, उनके अपने समूह में विकास किया जाता है।

“It is a mechanism of feedback device to induce certain desirable behavior among pupil teachers by role playing of the teacher in their own group as an artificial situation of classroom teaching.”

 

 

अनुकरणीय सामाजिक कौशल प्रशिक्षण की मान्यतायें (Assumptions of SSST)

इस प्रशिक्षण प्रविधि की निम्नांकित मान्यतायें हैं-

1. पृष्ठपोषण प्रणाली के प्रयोग से शिक्षक-व्यवहार में परिवर्तन लाया जा सकता है।

2. एक प्रभावशाली शिक्षक के लिये कुछ निश्चित सामाजिक कौशल होते हैं, जो शिक्षक व्यवहार की प्रभावशीलता पर प्रभाव डालते हैं।

3. इन सामाजिक कौशल-व्यवहारों को पहचाना जा सकता है। उन्हें Observe किया जा सकता है और उनका मापन भी किया जा सकता है तथा इनको पृष्ठपोषण विधियों के प्रयोग से परिमार्जित किया जा सकता है।

4. शिक्षण व्यवहार का अपना ‘वर्गीकरण-विज्ञान’ (Taxonomy) होता है। अनुकरणीय प्रविधि का प्रयोग करके वर्गीकरण विज्ञान (Taxonomy) विकसित किया जा सकता है।

5. सामाजिक कौशलों का विकास अनुकरण तथा अभ्यास के द्वारा कृत्रिम शिक्षण परिस्थितियों में किया जा सकता है।

6. जिस समूह को इस प्रविधि द्वारा प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है, उस समूह के सभी सदस्यों (छात्रों) को अवसर मिलता है, जिससे वे शिक्षण व्यवहार को नियन्त्रित कर, अपने शिक्षण-व्यवहार को उन्नत तथा प्रभावशाली बना सकते हैं।

 

कार्ल ओपन शॉ (Karl Open Shaw) ने शिक्षक व्यवहार के चार प्रमुख आयामों का निरूपण कर शिक्षक के सामाजिक व्यवहार की अपनी ‘टैक्सोनोमी’ (Taxonomy) विकसित की है, इसमें विकसित चारों आयाम प्रेक्षणीय (Observable), गणनीय (Quantifiable), तथा परिवर्तनीय (Modifiable) हैं।

 

 

 

SSST से लाभ (Advantages of SSST)

Cruick Sunk ने SSST के निम्नांकित लाभों का उल्लेख किया है-

1. इस विधि से छात्राध्यापकों में आत्म-विश्वास बढ़ता है।

2. यह शिक्षण के सिद्धान्तों को व्यावहारिक शिक्षण अभ्यास से जोड़ने का प्रयास करती है।

3. छात्राध्यापकों को एक प्रकार से कक्षा की व्यावहारिक समस्याओं का ज्ञान हो जाता है और उनमें सूझबूझ एवं अवबोध विकसित हो जाता है कि कस उन समस्याओं का समाधान किया जा सके।

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4. यह विधि इस बात के अवसर प्रदान करती है कि समस्याओं का कैसे अध्ययन किया जाये और उन्हें सुलझाने के लिये कैसे आलोचनात्मक विश्लेषण किया जाये।

5. यह विधि छात्राध्यापकों को उनके व्यवहारों में सुधार कैसे लाया जाये इसके लिये पष्ठपोषण प्रदान करती है।

6. इस विधि से छात्राध्यापकों में सामाजिक कौशलों का विकास किया जाता है।

7. वास्तविक कक्षा में जाने से पूर्व यह विधि उन्हें इस बात के लिये भली-भाँति तैयार कर देती है कि वास्तविक कक्षा में पढ़ाते समय किन बातों का और कैसे ध्यान रखा जाये।

8. यह भूमिका निर्वाह (Role Play) के माध्यम से छात्राध्यापकों में आलोचनात्मक चिन्तन का विकास करती है।

9. यह स्व-नियन्त्रित अनुकरणीय क्रिया है तथा छात्रों के व्यवहारों में वांछित परिवर्तन लाने में समर्थ है।

 

 

SSST प्रविधि की उपयोगिता(UTILITY OF SSST)

यह विधि शिक्षण व्यवहार में परिवर्तन तथा परिमार्जन लाने में निम्न प्रकार से उपयोगी है-

1. छात्राध्यापकों की प्रश्न पूछने की क्षमता का विकास करती है।

2. यह मूर्त से अमूर्त तथा सरल से कठिन की ओर जैसे शिक्षण सूत्रों का प्रयोग कर तथ्यों को आगे बढ़ाती है।

3. कक्षा शिक्षण में सामान्य व्यवहार के विकास में उपयोगी है।

4. छात्रों में क्रमबद्धता तथा योजना बनाकर कार्य करने की क्षमता बढ़ती है।

5. समस्या समाधान के लिये तर्कपूर्ण ढंग से तथा व्यवस्थित रूप से इस विधि के सोपानों को अनुकरण करने की क्षमता बढ़ाने में यह अच्छी विधि है।

6. यह शिक्षक-प्रशिक्षण के क्षेत्र में अधिक उपयोगी है।

7. प्रभावशाली पृष्ठपोषण प्राप्त कर इस प्रविधि से छात्र अपने शिक्षण की प्रभावशीलता बढ़ाने में समर्थ हो जाते हैं।

8. यह अनुसंधान के लिये महत्त्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करता है।

 

 

SSST की सीमायें (LIMITATIONS OF SSST)

इस प्रविधि की मुख्य सीमायें इस प्रकार हैं-

1. इस प्रविधि में जान लाने के लिये यदि शिक्षक भी पर्यवेक्षक के रूप में उपस्थित रहे तो प्रविधि की गरिमा बनी रहती है।

2. एक ही विषय के छात्राध्यापकों के लिये एक साथ इस प्रविधि का प्रयोग किया जाये तो अच्छा रहता है।

3. इस प्रविधि को शिक्षण के अन्त में यदि सामूहिक चर्चा करायी जाये तो छात्रों में उत्साह जगाता है और उसे सही पृष्ठपोषण मिलता है।

4. इसमें विषय-वस्तु पर ध्यान नहीं दिया जाता, जो कभी-कभी खतरनाक हो जाता है।

5. भूमिका निर्वाह क्योंकि कृत्रिम परिवेश में किया जाता है- जो अमनोवैज्ञानिक तथा अव्यावहारिक है।

6. कृत्रिम परिवेश कई बार शिक्षण की गम्भीरता कम कर देता है।

7. इसमें शिक्षक के सामाजिक व्यवहारों पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है, शिक्षण कौशल पर उतना नहीं।

8. पर्यवेक्षक यदि पर्यवेक्षण की गरिमा नहीं समझ सके तो इसकी उपयोगिता बहुत कम हो जाती है।

 

 

 

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