शैक्षिक तकनीकी का इतिहास एवं विकास | Educational Technology In Hindi

शैक्षिक तकनीकी का इतिहास एवं विकास | Educational Technology In Hindi

 शैक्षिक तकनीकी का इतिहास एवं विकास

(History & Development of Educational Technology)

 

औद्योगिक क्रान्तिकाल- शैक्षिक तकनीकी का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में जब औद्योगिक क्रान्ति हुई और मशीनों का आविष्कार हुआ, तब भी शिक्षा के क्षेत्र में अधिक परिवर्तन नहीं हुआ। इस प्रकार शैक्षिक तकनीकी का विकास 19वीं शताब्दी में अपनी शैशवावस्था में था, किन्तु इसका प्रयोग स्पष्ट रूप से 1926 ई. में अमरीका के ओहियो विश्वविद्यालय में एक शिक्षण की मशीन द्वारा सिडनी प्रेसी नामक व्यक्ति द्वारा किया गया। इसके पश्चात् 1930-40 ई. के लगभग लुम्सडेन तथा ग्लेजर आदि तकनीकी वेत्ताओं ने विशेष प्रकार की पुस्तकों, कार्डों तथा बोर्डों को प्रस्तुत करके शिक्षण को यन्त्रवत् बनाने का प्रयास किया।

शैक्षिक तकनीकी शब्द का इंग्लैण्ड में सर्वप्रथम प्रयोग ब्राइनमर (Brynmor) प्रतिवेदन में प्रयुक्त किया गया। बी.एफ. स्किनर जैसे सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक ने लगभग 1954 में जानवरों पर अनेक परीक्षण किये, उनके परीक्षणों का उपयोग शिक्षा के क्षेत्र में सीखने के लिए किया गया। इस प्रकार अभिक्रमित अधिगम (Programmed Learning) पद्धति का विकास हुआ, जिसे शिक्षा तकनीकी का महत्त्वपूर्ण पक्ष माना जाता है। सन् 1960 से पूर्व शैक्षिक तकनीकी विषय सामान्यतः दृश्य-श्रव्य उपकरणों से सम्बद्ध था। जो शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए कक्षा के अन्तर्गत शिक्षक द्वारा प्रयुक्त किये जाते थे।

अमेरिका तथा रूस की औद्योगिक क्रान्ति के कारण अन्य देशों में भी शिक्षा तकनीकी के क्षेत्र में विशेष उन्नति हुई। स्टेनले एडवर्ड नेअभिक्रमिक अध्ययन के अन्तर्गत सजनात्मक रुचि पैदाकर शिक्षण तकनाका का प्रसार किया। स्किनर व एडवर्ड के संयुक्त प्रयास से ‘अभिक्रमित अध्ययन’ की व्यावहारिक योग्यता शिक्षा के क्षेत्र में स्वीकार की गई है। धीरे-धीरे शैक्षिक तकनीकी के लिए अनुदेशन (Instruction) तकनीकी, शिक्षण तकनीकी, अनुदेशन विज्ञान एवं अनुदेशन मनोविज्ञान आदि सभी नाम प्रयोग में लाये जाने लगे। 1960 में अनेक शोधकार्य इस क्षेत्र में होने लगे तथा इसका क्षेत्र शिक्षा तक ही सीमित न रहकर शिक्षा के विभिन्न विषयों के पाठ्यक्रम संशाधन तक पहुँचा। तदुपरान्त शिक्षा की तकनीकियों हेतु अनेक वैज्ञानिक शोधकार्य भी होने लगे। इस प्रकार मशीनी काल का आगमन हुआ।

मशीनी काल (Automation Period)- विकासशील देशों में 1950-60 ई. के बीच तकनीकी क्षेत्र में हुई क्रान्ति के फलस्वरूप शिक्षा के क्षेत्र में भी हर प्रकार की मशीनें बन चुकी थीं। ऐसा प्रतीत होने लगा जैसे इंसान को कोई काम हाथ से करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, इसे पूर्ण ‘ऑटोमेशन काल’ कहा गया। इन्हीं दिनों अमरीकी सरकार ने शिक्षा के विकास में धन खर्च करने का भी निर्णय किया। इन सबके कारण अमरीकी शिक्षा के क्षेत्र में बहुत तेजी से परिवर्तन लाये गये। अमेरिका में तीन प्रकार के तकनीकी प्रभाव शिक्षा के क्षेत्र में देखने को मिले। J.D. Finn ने अपने शोध-पत्र Technology and the Instructional Process’ में इन तीन तरीकों को स्पष्ट किया :-

(अ) तकनीशियनों का विकास,

(ब) तकनीकी की सामान्य शिक्षा, तथा

(स) तकनीकी का अनुदेशन प्रक्रिया में प्रयोग।

जब इन देशों के विकास हेतु अधिक योग्य एवं कुशल वैज्ञानिक इंजिनियरों एवं तकनीशियनों की आवश्यकता पड़ी, तब शिक्षा के समक्ष यह समस्या उत्पन्न हुई कि इन्हें कैसे प्रशिक्षित किया जाये? सामान्य शिक्षा की व्यवस्था किस प्रकार की जाए? तथा भिन्न आधुनिकतम आविष्कारों का प्रयोग कैसे किया जाये? इन प्रश्नों के उत्तर खोजने हेत शिक्षा। के क्षेत्र में नवीन चिन्तन प्रारम्भ हुआ जिसे ‘शिक्षा तकनीकी’ की संज्ञा दी गई। इस काल के आते-आते शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति के चरण उस बिन्दु पर पहुँच गये, जहाँ शिक्षाशास्त्री शिक्षा के प्रत्येक व्यवहार को मशीनी क्रिया की भाँति नियन्त्रित करने पर गम्भीरता से विचार करने लगे, अत: शिक्षा में तकनीकी की प्रधानता हो गई।

सन् 1964 में अमेरिका में एक राष्ट्रीय संगठन ‘एसोसियेशन फॉर सुपरविजन एण्ड करीकलम डेवलेपमेंट’ (ASCD) की स्थापना हुई और शिक्षण तकनीकी पर पाठ्यक्रम निर्माण के सम्बन्ध में विचार किया गया। सन् 1964 में इसी संगठन पर एक आयोग नियुक्त हुआ जिसको पाठ्यक्रम निर्माण के संदर्भ में शिक्षण सिद्धान्तों एवं शिक्षण तकनीकी पर विचार करने तथा अपने सुझाव देने को कहा गया। 1967 तक इस आयोग ने कार्य किया तथा अनुदेशन सिद्धान्त के सम्बन्ध में अमूल्य सुझाव दिये। सन् 1966 में अमेरिका के विश्वविद्यालयों में शिक्षा मनोविज्ञान एवं विज्ञान विभागों द्वारा शिक्षा तकनीकी की एक राष्ट्रीय परिषद (N.C.E.T.) की स्थापना की गई।

एन.सी.ई.टी. ने विभिन्न कार्य करते हए 1969 में शिक्षा तकनीकी की विस्तार से व्याख्या की। इसके अनुसार, ‘मानव अधिगम की प्रक्रिया, विनियोग प्रणाली के मूल्यांकन’ प्रविधियों एवं सहायक सामग्रियों के माध्यम से विकसित करना ही शैक्षिक तकनीकी है। उन्होंने शिक्षण में कम्प्यूटर के महत्त्व को दर्शाया। 1969 में उनका एक Working Paper ‘शिक्षा के लिए कम्प्यूटर’ को प्रकाशित किया गया, जिसमें ‘कम्प्यूटर आधारित अधिगम’ पर जोर दिया गया।

इस प्रकार सन् 1969 तक अभिक्रमित अनुदेशन, छात्र-अध्यापक अन्त क्रिया, शैक्षिक संचार साधन, शैक्षिक तकनीकी तथा अनुदेशन तकनीकी का बहुत हद तक विकास हुआ तथा इन क्षेत्रों में शोधकार्य प्रारम्भ हुआ जिसके परिणामस्वरूप मनोवैज्ञानिक शैक्षिक अभिकल्यों का निर्माण किया गया तथा बन्द सर्किट दूरदर्शन (CCTV), वीडियो टेप, वीडियो कैसेट्स, ऑडियो टेप, वीडियो डिस्क, वीडियो डैक तथा संगणक (Computer) आदि दृश्य-श्रव्य साधनों का प्रयोग शिक्षा के क्षेत्र में अधिकाधिक किया जाने लगा।

आजकल उपर्युक्त कठोर उपागमों के साथ-साथ कोमल उपागमों के प्रयोग में भी काफी विकास हुआ है। इसके परिणामस्वरूप प्रणाली विश्लेषण, अन्तःक्रिया विश्लेषण, व्यवहार तकनीकी, अनुदेशन की रूपरेखा, शिक्षक प्रतिमान इत्यादि का प्रयोग विदेशों में बहत प्रचलित है।

माध्यमिक शिक्षा आयोग, 1952-53 ने सर्वप्रथम भारत में विदेशों की भाँति दृश्य-श्रव्य उपकरणों का शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग करने पर बल दिया। भारतवर्ष में विज्ञान एवं तकनीकी का उपयोग पहली बार सेना व सुरक्षा के कार्यों के लिए किया गया। सन् 1965 में एक भारतीय अभिक्रमित अनुदेशन संगठन (IAPL) की स्थापना की गयी जिसके माध्यम से शिक्षा तकनीकी के विकास के प्रयास विभिन्न शिक्षण संस्थाओं में किये गये। 1970 के लगभग तकनीकी के माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र में विशेष रूप से प्रयत्न किये गये और राष्ट्रीय अनुसन्धान तथा प्रशिक्षण परिषद् (NCERT) तथा उच्च शिक्षा संस्थान, बडौदा सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों व शिक्षा विभागों ने इस क्षेत्र में शोध-कार्यों को बढ़ावा दिया।

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एन.सी.ई.आर.टी. के अन्तर्गत एक शिक्षा-तकनीकी केन्द्र स्थापित किया गया। इस केन्द्र का कार्य शिक्षण-तकनीकी के ज्ञान का प्रसार करना तथा शोधकार्यों द्वारा शिक्षण प्रक्रिया का विकास करना है । शिक्षा मंत्रालय ने चतुर्थ योजना के तहत शैक्षिक तकनीकी कार्यक्रम केन्द्रीय स्तर पर 1972 में प्रारम्भ किया। इसका उद्देश्य शैक्षिक तकनीकियों को लागू कर शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक सुधार लाना, शिक्षा का अधिकाधिक विकास करना और देश के विभिन्न प्रान्तों में शिक्षा के क्षेत्रों में जो असमानताएँ विद्यमान थीं उनको दूर करना था। यह योजना दूरदर्शन की सुविधाएँ व सैटेलाइट के प्रयोग की सम्भावनाओं के आधार पर बनाई गई थी, ताकि नवीन शिक्षण माध्यमों का लाभ शिक्षा के क्षेत्र में केन्द्र तथा राज्य स्तर पर उपलब्ध हो सके।

सन् 1973 में सेन्टर फॉर एज्यूकेशनल टैक्नोलॉजी (CET) स्थापित किया गया। एन.सी.ई.आरटी. का यह प्रभाग विभिन्न महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में कार्य कर रहा है, जो निम्नलिखित हैः

(1) शिक्षा तकनीकी में स्थूल वस्तु माध्यम (Hardware Approach) तथा कोमल वस्तु माध्यम (Software Approach) का प्रयोग किस प्रकार किया जाये इस विषय में शोध करना।

(2) एक अच्छी शिक्षण प्रणाली का निर्माण एवं विकास करना।

(3)राक्षिक तकनीकी के क्षेत्र में प्रयक्त सामग्री पर्व योजनाओं का मूल्यांकन करना।

(4) शेक्षिक तकनीकी के क्षेत्र में विभिन्न प्रशिक्षणों द्वारा उपयक्त योग्यताओं एवं क्षमताओं का विकास प्रशिक्षकों एवं छात्राध्यापकों में करना।

(5) विभिन्न स्थूल एवं सूक्ष्म शिक्षण सामग्रियों का संकलन कर विभिन्न महाविद्यालयों में वितरित करना।

(6) विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं प्रशिक्षण महाविद्यालयों में तकनीकी चेतना का विकास करना।

धीरे-धीरे महाराष्ट्र, राजस्थान, उडीसा, आन्ध्रप्रदेश, बिहार, कर्नाटक, पंजाब, गुजरात, तमिलनाडु तथा उत्तरप्रदेश में भी शैक्षिक तकनीकी प्रकोष्ठों की स्थापना की गई जिनका कार्य राज्यों में शाक्षिक तकनीकी का विकास करना था। सन् 1972-73 में शैक्षिक तकनीकी परियोजना में राज्य व केन्द्र सरकार के सहयोग से भारत में आकाशवाणी, दरदर्शन, चलचित्र, ऑडियो, वीडियो, रिकार्डस तथा अभिक्रमित अधिगम आदि का प्रयोग शिक्षा में गुणात्मक सुधार लाने हेतु किया गया। इस परियोजना में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्य (United Nations Development Project), यूनेस्को (United Nations Educational Scientific and Cultural Organization), शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद् (NCERT), राज्य शिक्षा विभाग,राज्यीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, दूरदर्शन एवं फिल्म संस्थान, पूना; भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (ISRO) तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) तथा विभिन्न विश्वविद्यालयों के शिक्षा विभाग भी सहयोगी थे।

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने 1980 में एक कार्यदल इन्सैट व शैक्षिक प्रौद्योगिकी केन्द्र ने 1974-75 के मध्य उपग्रह शैक्षणिक दूरदर्शन प्रयोग (Satellite Instructional Television Experiment) प्रारम्भ किया। इसके अन्तर्गत विभिन्न प्रान्तों जैसे बिहार, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, कर्नाटक, राजस्थान तथा मध्यप्रदेश के लगभग 2400 गाँवों में शैक्षिक और विकासात्मक उद्देश्यों की पर्ति के लिए दूरदर्शन का उपयोग किया गया। SITE के द्वारा अनेक महत्त्वपर्ण कार्य किये गये जैसे- प्राथमिक विद्यालय के अध्यापकों के लिए सेवाकालीन प्रशिक्षण हेत विभिन्न माध्यमों में कार्यक्रम शुरू किये गये जिनमें दूरदर्शन तथा आकाशवाणी प्रसारण, स्वाध्याय तथा स्वशैक्षणिक वाली मुद्रित पाठय-सामग्री तथा ट्यूटोरियल व्यवस्था पर कार्यशाला का आयोजन करना आदि कार्य सम्मिलित थे। SITE कार्यक्रमों के मूल्यांकन हेतु भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन (ISRO) को CET ने सहयोग दिया तथा ये संस्थाएँ इस बात पर बल टेती थीं कि ग्रामीण विकास हेत ‘उपग्रह दूरदर्शन प्रसारण अधिक प्रभावशाली हो तथा विकासशील देशों में उपग्रह तकनीकी प्रसारण की क्षमता में वृद्धि हो।

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने 1980 में एक कार्यदल इन्सैट व दूरदर्शन की शिक्षा के क्षेत्र में उपयोगिता के लिए स्थापित किया। कार्यदल इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि कार्यक्रमों को सुसंगत सार्थक व प्रभावशाली बनाने हेतु यह आवश्यक है कि कार्यक्रमों का विकेन्द्रीकरण कर शैक्षणिक संस्थाएं स्वयं अपने कार्यक्रम प्रसारित करें इसलिए शिक्षा मंत्रालय ने यह निर्णय लिया कि शैक्षणिक दूरदर्शन कार्यक्रम का उत्तरदायित्व दूरदर्शन से हटाकर शैक्षिक प्राधिकारियों को सौप दिया जाये।

उपयुक्त निर्णय को ध्यान में रखते हुए शिक्षा मंत्रालय ने मई ,1980 सीट शिक्षा में उपयोगी कौन-कौन से तत्वों को लिया जा सकता है, इस विषय पर चिंतन करने हेतु एक अध्ययन दल का गठन किया। अध्ययन दल द्वारा प्रस्तावित सुक्षावों में से केवल चार प्रस्तावों को कार्यान्वित करने के लिए शिक्षा मंत्रालय ने अपनी संस्तुति दी-

(1) शैक्षिक तकनीकी की केन्द्रीय संस्था (CIET) की स्थापना की जायें जो इन्ससैट राज्यों में शैक्षिक दूरदर्शन कार्यक्रमों के प्रसारण को प्रोत्साहित व संयोजित कर सकें।

(2) शैक्षिक तकनीकी की राज्य संस्था 6 इन्सैट राज्यों में स्थापित की जाये, जिसमें शैक्षिक दूरदर्शन (ETV) का स्थानीय प्रसारण सम्भव हो सके।

(3) इन्सैट कार्यक्रमों का उपयोग अन्य राज्यों को भी मिल सके इस दृष्टि से विस्तृत शैक्षिक तकनीकी कार्यक्रम शेष राज्यों में भी शुरू किया जाना चाहिए।

(4) विस्तृत शैक्षिक तकनीकी कार्यक्रम त्रिपुरा एवं नौ केन्द्र शासित प्रदेशों में भी लागू किया जाना चाहिए।

शिक्षा मंत्रालय ने सन् 1980 में एक राष्ट्रीय कार्यशाला शैक्षिक प्रसारण से सम्बन्धित आयोजित की, जिसमें आकाशवाणी, दूरदर्शन, एन.सी.ई.आर.टी. और अन्य संगठनों को भी साथ में लिया गया। इस कार्यशाला की मुख्य उपलब्धि यह रही कि इसमें शैक्षिक प्रसारण से सम्बन्धित प्रारूप की रूपरेखा तैयार की गई। शिक्षा मंत्रालय ने एक अध्ययन दल गठित किया जिसका उद्देश्य शिक्षा के क्षेत्र में आकाशवाणी का उपयोग किस प्रकार किया जाये; यह ज्ञात करना था। इसके प्रतिवेदन के आधार पर एक विस्तृत प्रायोजना शैक्षिक आकाशवाणी प्रसारण से सम्बन्धित ली गई जिसे N.C.E.R.T. के तहत संचालित चार क्षेत्रीय शिक्षा महाविद्यालयों जैसे अजमेर, भोपाल, भुवनेश्वर एवं मैसूर में प्रस्तावित किया गया ताकि वे राज्य के शिक्षा विभागों और आकाशवाणी को सम्बद्ध कर सकें।

इस तरह भारतवर्ष में। शैक्षिक तकनीकी के विविध कार्यकलापों में एन.सी.ई.आर.टी. बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है जिसने औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा को ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँचाने के लिए कई प्रायोजनाएँ प्रारम्भ की हैं । रेडियो तथा दूरदर्शन के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले 5 से 12 साल तक के बच्चों के लिए आवश्यकता आधारित पाठ्यक्रम (Need Based Curriculum) तथा विभिन्न निर्देशों तथा सुझावों सहित पाठ्य सामाग्री भी की है। वह शिक्षा तकनीकी के स्थल उपागम (Hardware Approach) तथा सूक्ष्म उपागम (Software Approach) दोनों रूपों का भी प्रयोग सुन्दर दंग से कर रही है।

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इसके अतिरिक्त नेशनल इन्स्टीटयट ऑफ बैंक मैनेजमेंट, मुम्बई व जीवन बीमा निगम जैसे दोनों संगठन भी शैक्षिक तकनीकी का प्रभावशाली उपयोग विभिन्न प्रशिक्षण देने में कर रहे हैं। ‘ण्डियन एसोसिएशन फार प्रोग्राम एण्ड लाना एण्य एज्यूकसनल इनोवेशन्स’ अपने वार्षिक सम्मेलन एवं प्रकाशन के माध्यम से पाठ्य सामग्री का संकल्पना एवं सूचनाओं का प्रसारण करती है तथा शैक्षिक तकनीकी का शिक्षा और प्रशिक्षण में कैसे प्रयोग किया जाए; इस विषय पर विचार करती है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 ने भारत के शैक्षिक इतिहास में पहली बार इस विषय पर विशेष बल दिया कि शैक्षिक तकनीकी का प्रयोग शिक्षा में गणात्मक एवं परिमाणात्मक सुधार लाने हेतु कैसे किया जाये? राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में स्पष्ट रूप से बताया गया कि ‘शैक्षिक तकनीकी उपयोगी सूचनाओं के प्रसार, अध्यापकों के प्रशिक्षण तथा पुनः प्रशिक्षण, औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा में गणात्मक सुधार, कला एवं संस्कृति के प्रति सजगता, जीवन मूल्यों के प्रति आस्था उत्पन्न करने में सहायक होगी।’

प्रोग्राम ऑफ एक्शन (POA), 1986 में पृष्ठ 180 पर बताया गया कि शैक्षिक तकनीकी के माध्यम से राज्य एवं केन्द्र स्तर पर दृश्य-श्रव्य चलचित्र, फिल्म पुस्तकालय (Film Library) आदि इस उद्देश्य से स्थापित किये गये कि उनके माध्यम से शैक्षिक चलचित्रों, प्रक्षेपी तथा अप्रक्षेपी शिक्षण सहायक सामग्रियों के प्रयोग को प्रोत्साहन मिलेगा। यह देखने में आया है कि आकाशवाणी व दूरदर्शन ने चाहे कितना भी विकास किया है, लेकिन यह सुनिश्चित रूप से कहा जा सकता है कि ये अभी भी शैक्षणिक संस्थाओं में अपनी अहम भूमिका नहीं निभा पा रहे हैं।

अनेक राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों में ‘स्टेट इन्स्टीट्यूट्स ऑफ एजूकेशनल टेक्नोलॉजीज’ (SIET’s) और राष्ट्रीय स्तर पर ‘सेन्ट्रल इन्स्टीट्यूट ऑफ एजूकेशनल टेक्नोलॉजी’ (CIET) जैसी संस्थाएँ शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाने हेतु आकाशवाणी व दूरदर्शन के द्वारा प्रसारित किये जाने वाले कार्यक्रमों का निर्माण कर रहे हैं। ‘ऑडियो विजुअल सेन्टर्स’ (AVRCES) एवं ‘एजूकेशतल मीडिया रिसर्च सेन्टर’ (EMRC’s) भी विश्वविद्यालय तथा महाविद्यालय के छात्रों के लिए शैक्षिक दूरदर्शन कार्यक्रमों का निर्माण कर रहे हैं। ‘टेक्निकल टीचर ट्रेनिंग इन्स्टीट्यूशन्स’ (TTTI’s) भी दूरदर्शन एवं अन्य माध्यमों के कार्यक्रमों के विकास के लिए सुविधाएँ प्रदान कर रहे हैं। आई.आई.टी. (IIT) जैसी उच्च तकनीकी संस्थाओं में शोधकार्य हेतु, बी. टैक (B. Tech) एवं एम.टैक (M. Tech) में कम्प्यूटर्स का प्रयोग किया जा रहा है। इसके अलावा अनेक विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों एवं विद्यालयों में भी कम्प्यूटर के प्रयोग पर बल दिया जा रहा है। प्रोग्राम ऑफ एक्शन (POA), 1986 ने इस बात पर जोर दिया कि चार्ट्स, स्लाइड्स एवं ट्रांसपेरेन्सीज आदि का प्रयोग शिक्षण में किया जाये।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति. 1986 को प्रभावशाली रूप से कार्यान्वित करने हेतु सातवीं पंचवर्षीय योजना में निम्नलिखित प्रावधानों को प्राथमिकता दी गई, जिनको कि आठवीं योजना में और अधिक प्रभावशाली बनाना था:

(1) दरदर्शन और आकाशवाणी के कार्यक्रमों के प्रसारण का विस्तारः

(अ) सन् 1990 तक न्यूनतम लक्ष्यों की पूर्ति हेतु शैक्षिक दूरदर्शन (ETV) तथा आकाशवाणी के कार्यक्रम विविध मुख्य भाषायी क्षेत्रों में प्रसारित किये जाएँ।

(ब) सातवीं योजना के तहत विश्वविद्यालय तथा महाविद्यालय में शिक्षण हेतुआकाशवाणी केन्द्रों की स्थापना की जाए।

(स) 1991-92 तक शैक्षिक दरदर्शन चैनल प्रदान किया जाये।

(2) 1990 तक मख्य भारतीय भाषाओं में कार्यक्रमों के निर्माण की सुविधा प्रदान की जाए एवं अन्य भाषाओं के लिा आठवीं योजना में सुविधाएँ दी जाएँ।

(3) सन् 1905 तक समस्त प्राथमिक विद्यालयों में दूरदर्शन की सुविधा एवं सातवीं योजना के तहत रेडियो रिसीवर्स की सुविधा प्रदान की जाए।

(4) विद्यमान कार्यक्रमों का विस्तार कर नवीन कम्प्यूटर कार्यक्रमों का विकास सातवीं योजना में कर वांछनीय स्तर तक 1998 तक पहुँचाये जाएँ।

(5) प्रथम उपाधि स्तर  (First Degree Level) तक कम्प्यूटर शिक्षा का प्रयोग व्यावसायिक एवं सामान्य शिक्षा के पाठ्यक्रम में किया जा सके। इसके लिए प्रयत्न सातवा योजना में प्रारम्भ किये जाएँ ताकि 1995 तक इन्हें पूर्णतः प्राप्त किया जा सके।

(6) 1991 तक उच्च माध्यमिक स्तर में ‘इलेक्टिव करप्यूटर साइन्स कोर्स’ का प्रारम्भ किया जाए, माध्यमिक स्तर पर 100% तक तथा प्राथमिक स्तर पर इसे लागू करने हेतु धीरे-धीरे प्रयत्न किए जायें।

(7)1991 तक संगणक साक्षरता कार्यक्रमों’ (Computer Literacy Programs) का विस्तार सभी उच्च प्राथमिक विद्यालयों में किया जाए, माध्यमिक विद्यालयों में 1995 तक तथा प्राथमिक विद्यालयों में समय के साथ साथ लागू किया जाये।

(8) 1990 तक दूरस्थ क्षेत्रो में स्थित विद्यालयों में विद्युत पूर्ति की जाये, जिससे शैक्षिक तकनीकी के नवीनतम उपकरणों का लाभ विद्यालयों को मिल सके।

आज भी INSAT-IB की सहायता से अनेक शैक्षिक कार्यक्रम तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा ली गयी ETV परियोजना के अन्तर्गत उच्च शिक्षा सम्बन्धी विभिन्न कार्यक्रम दूरदर्शन पर प्रसारित किये जाते हैं। प्राथमिक तथा माध्यमिक स्तर का सी.आई.ई.टी द्वारा कार्यक्रम, तरंग प्रातः 10.30 से दूरदर्शन केन्द्र द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। इसके अतिरिक्त प्रौढ़ शिक्षा सम्बन्धी कल्याणी कार्यक्रम जयपुर दूरदर्शन से व पर्यावरण सम्बन्धी भूमि जैसे शिक्षाप्रद कार्यक्रम भी बीच बीच में दरदर्शन के डी.डी. बन चैनल पर प्रसारित किये जाते हैं। भाषा चैनल द्वारा प्रसारित संस्कृत शिक्षण के कार्यक्रम भी बहुपयोगी हैं तथा इन कार्यक्रमों के स्तर में भी निरन्तर वृद्धि की जा रही है।

 

 

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