sammelan kya hota hai aur sammelan ka arth evan paribhaashaen

सम्मेलन क्या है | सम्मेलन का अर्थ एवं परिभाषाएँ | सम्मेलन प्रविधि के सोपान | What is Conference in Hindi

सम्मेलन क्या है(What is Conference):

सम्मेलन क्या है अथवा संगोष्ठी शिक्षण की ऐसी प्रविधि है जिसमें छात्र निष्क्रिय श्रोता नहीं होता, अपितु सक्रिय सहभागी के रूप में अपने विचारों की अभिव्यक्ति कर ज्ञानार्जन करता है। दूसरे शब्दों में, इसमें छात्र मानसिक रूप से सक्रिय होकर अधिगम अनुभव प्राप्त करते हैं। सम्मेलनों का आयोजन भारतीय इतिहास में प्राचीन काल से होता आ रहा है। सुकरात जैसे महान् दार्शनिक भी अपने अनुयायियों के साथ विचार-विमर्श हेतु संगोष्ठी अथवा सम्मेलन आयोजित करते थे। गुरुकुलों तथा आश्रमों में भी गुरु तथा शिष्य कई बार तर्क-वितर्क के माध्यम से विचारों का आदान-प्रदान कर अपनी शंकाओं का समाधान करते थे जो सम्मेलन का ही एक स्वरूप था।

सम्मेलन का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definition of Conference)

सम्मेलन अपेक्षाकृत बड़े समूह में आयोजित किया जाता है जिसमें विशेषज्ञ तथा विद्वत् मण्डल ही किसी समस्या पर अपने विचार प्रस्तुत नहीं करते, अपितु सम्भागी भी अपने विचारों को प्रस्तुत करने की दृष्टि से बिल्कुल स्वतन्त्र होते हैं।

(1) योकम व सिम्पसन-“विचार-विमर्श वार्तालाप का एक विशिष्ट रूप है। इसमें सामान्य वार्तालाप की अपेक्षा अधिक विस्तृत एवं विवेकयुक्त विचारों का आदानप्रदान होता है। सामान्यतः विचार-विमर्श में महत्त्वपूर्ण विचारों एवं समस्याओं को सम्मिलित किया जाता है।”

(2) स्ट्रक-“सिद्धान्ततः संगोष्ठी-प्रविधि व्याख्यान-विधि की प्रक्रिया को उलट देती है। यहाँ दल के नेता का उद्देश्य संगोष्ठी के संभागियों की जानकारी प्राप्त करना है, न कि उन्हें जानकारी देना।”

सम्मेलनों का आयोजन क्षेत्रीय, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तरों पर सामाजिक, धार्मिक, दार्शनिक, राजनैतिक संगठनों द्वारा किया जाता है। इन संगठनों की अपनी कार्यकारिणी होती है, जो समय-समय पर उत्पन्न समस्याओं पर विचार-विमर्श करने हेतु विशेषज्ञों तथा जनसमूह को आमंत्रित करती है। शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं पर विचार-विमर्श करने हेतु यह सम्मेलन अन्तर्महाविद्यालयी व अन्तर्विश्वविद्यालयी स्तर पर आयोजित किये जाते हैं।

सम्मेलन प्रविधि के उद्देश्य :

1. सम्बन्धित विषय एवं समस्या के प्रति संवेदनशीलता का विकास करना।

2. छात्रों में सक्रियता द्वारा अधिगम तथा समूह चेतना का विकास करना।

3. तर्क तथा निरीक्षण की शक्ति के साथ आलोचनात्मक दृष्टिकोण का विकास करना ।

4. समस्याओं का विश्लेषण, संश्लेषण एवं मूल्यांकन करने की क्षमताओं का विकास करना।

5. किसी तथ्य, घटना अथवा समस्या को व्यापक रूप में बोधगम्य बनाना ।

6. अभिव्यक्ति कौशल का विकास करना एवं छात्रों को सीखने हेतु प्रेरित करना।

7. सहयोग की भावना तथा सहनशीलता जैसे गुणों का विकास करना।

सम्मेलन प्रविधि के सोपान :

सम्मेलनों को भली-भांति सम्पन्न करने हेतु मुख्य रूप से तीन सोपानों का अनुसरण किया जाता है :

(i) पूर्व तैयारी करना :

(क) विषय अथवा समस्या का चयन करना ।

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(ख) समस्या के विभिन्न पक्षों का विभाजन कर कक्षा के अलग-अलग समूह बनाकर उत्तरदायित्व सौंपना।

(ग) कार्यविधि तथा समय का निर्धारण करना।

(घ) सम्मेलन के पदाधिकारियों का चुनाव करना।

(ड) सम्मेलन स्थल का चयन कर आवश्यक उपकरणों, जैसे, श्यामपट्ट, फर्नीचर तथा अन्य अपेक्षित नवीनतम शैक्षिक उपकरणों दूरदर्शन, प्रोजैक्टर आदि की व्यवस्था करना।

(ii) कार्यान्वयन- सम्मेलन का प्रारम्भ अध्यक्ष द्वारा किया जाता है जो समस्या अथवा विषय का संक्षिप्त परिचय तथा विचारणीय पक्षों पर अपने विचार प्रस्तुत करता है। इसके बाद आश्यकतानुसार विभक्त छोटे समूहों को अलग-अलग कक्ष में संचालक के साथ दिये गये पक्ष पर चर्चा करने हेतु भेज दिया जाता है । इसके बाद अलग-अलग समूह अपना प्रतिवेदन तैयार करते हैं तथा अन्त में समस्त वर्ग पुनः एक स्थान पर एकत्रित होते हैं तथा अपने-अपने प्रतिवेदनों को प्रस्तुत करते हैं। उन समस्त प्रतिवेदनों के आधार पर एक प्रतिवेदन तैयार किया जाता है जिसे हम सम्मेलन की मुख्य उपलब्धि कह सकते हैं । इसे साइक्लोस्टाइल करवा कर सबको वितरित कर दिया जाता है तथा सम्मेलन के सम्भागियों के अतिरिक्त अन्य लोगों को भी इसकी जानकारी दी जाती है।

(iii) मूल्यांकन- सम्मेलन की सफलता ज्ञात करने हेतु छात्रों से प्रश्न किये जाते हैं। अभिवृत्ति एवं रुचियों का मापन क्रम निर्धारण मापनी (Rating Scale) द्वारा किया जाता है । इससे छात्रों को सम्मेलन के प्रति प्रतिक्रियाएँ ज्ञात हो जाती हैं। सम्भागियों से सुझाव आमंत्रित किये जाते हैं ताकि आगामी सम्मेलनों में उनका अनुकरण किया जा सके।

सम्मेलन की विशेषताएँ (Characteristics of Conference) :

1. इस प्रविधि का प्रमुख केन्द्र छात्र अथवा सम्भागी होते हैं।

2. इसमें लोकतन्त्रात्मक दृष्टिकोण का अनुसरण किया जाता है।

3. छात्रों में स्वाध्याय की आदत का विकास तथा स्वयं अधिगम का अभिप्रेरण होता है।

4. छात्रों में तर्क, निरीक्षण, विश्लेषण, संश्लेषण तथा मूल्यांकन करने की क्षमता का विकास होता है।

5. छात्रों में अभिव्यक्ति क्षमता का विकास होता है।

6. छात्रों में सामाजिक, सांस्कृतिक तथा नैतिक गुणों का विकास होता है।

सम्मेलन की सीमाएं (Limitations of Conference) :

1. यह प्रविधि अधिक समय-साध्य है क्योंकि इसके माध्यम से किसी विषय को पढ़ाने में बहुत अधिक समय लगता है।

2. महाविद्यालयों अथवा संस्थाओं में इसके आयोजन के लिए पर्याप्त साधनों का अभाव है।

3. कुछ लोगों के प्रभुत्व करने की आशंका बनी रहती है।

4. सम्मेलन की सफलता का मूल्यांकन करना एक जटिल कार्य है।

5. यह अधिक श्रम-साध्य व सभी विषयों के लिए उपयुक्त नहीं है।

6. यह कमजोर व पिछड़े छात्रों के लिए उपयोगी नहीं है क्योंकि प्रतिभावान छात्र इसमें अधिक सक्रिय हो जाते हैं।

7. कुशल व प्रशिक्षित शिक्षकों का अभाव है।

सुझाव (Suggestions):

1. सम्मेलन में की जाने वाली चर्चा रोचक, सरस व सुग्राह्य होनी चाहिए।

2. उद्देश्य स्पष्ट होने चाहिएं।

3. सभी संभागियों को विचारों की अभिव्यक्ति का समान अवसर दिया जाना चाहिए।

4. सम्मेलन में उच्चकोटि के विद्वानों को आमंत्रित करना चाहिए।

5. भाषण स्वाभाविक, स्पष्ट तथा सारगर्भित होने चाहिएँ।

6. श्रोतागण अथवा छात्रों की शंकाओं का समाधान अवश्य किया जाना चाहिए।

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प्रबोधन वर्ग क्या है(What is Tutorial)

शिक्षा प्राप्त करने वालों की निरन्तर होती हुई वृद्धि हमारे देश के लिए विशेष उपलब्धि है। यही हमारा कारण प्रमुख लक्ष्य है कि ‘सबके लिए शिक्षा’ उपलब्ध हो । किन्तु शिक्षा प्राप्त करने वालों की बढ़ती हुई संख्या के कारण एक ही कक्षा में 50 से 60 तक छात्र पाए जाते हैं। इतने बड़े समूह में शिक्षक अपने कालांशों में प्रत्येक छात्र पर अलग-अलग ध्यान नहीं दे सकते तथा उनकी व्यक्तिगत समस्याओं को समझ उसका समाधान नहीं कर सकते हैं। अत: इस सामूहिक शिक्षण की उक्त समस्या का निवारण करने के लिए सम्पूर्ण कक्षा के छात्रों को छोटे-छोटे समूहों में बाँट दिया जाता है। प्रत्येक छोटे समूह का एक-एक अध्यापक प्रभारी होता है जिनके साथ बैठकर छात्र अपनी सामूहिक कक्षा से सम्बन्धित अथवा अन्य प्रकार की समस्याओं का समाधान करते हैं।

प्रबोधन वर्ग के उद्देश्य-

1. शिक्षण में छात्र की व्यक्तिगत विभिन्नता का ध्यान रखना।

2. उनकी व्यक्तिगत कठिनाइयों का समाधान करना।

3. छात्रों को व्यक्तिगत तथा शैक्षिक निर्देशन देना।

4. छात्रों को निदानात्मक परीक्षण कर उपचारात्मक शिक्षण देना।

5. छात्र में आत्मविश्वास उत्पन्न करना।

प्रबोधन वर्ग के प्रकार –

1. पर्यवेक्षण प्रबोधन वर्ग (Supervised Tutorials)

2. सामूहिक प्रबोधन वर्ग (Group Tutorials)

3. प्रयोगात्मक प्रबोधन वर्ग (Practical Tutorials)

1. पर्यवेक्षण प्रबोधन वर्ग- इस प्रकार का प्रबोधन वर्ग प्रतिभाशाली छात्रों के लिए उपयुक्त होता है। इसमें छात्र शिक्षक से समय-समय पर मिलकर विचार-विमर्श करते हैं अपनी समस्याएं प्रस्तुत कर शिक्षक से समस्या का समाधान करवाते हैं। क्लिष्ट विषयों पर वाद-विवाद किया जाता है इससे विषय की सूक्ष्मता तक छात्रों को पहुँचने में सहायता मिलती है।

2. सामूहिक प्रबोधन वर्ग- इस प्रकार का प्रबोधन वर्ग सामान्य छात्रों के लिए उपयुक्त होता है। इस वर्ग के संचालक अथवा शिक्षक को समूह गतिशीलता तथा सामाजिक मनोविज्ञान का ज्ञान होना आवश्यक होता है। इसमें वर्गों के उपवर्ग बनाकर परस्पर क्रियाएँ प्रतिक्रियाएं करवाई जाती हैं। जिससे छात्रों की अभिव्यक्ति सशक्त होती है तथा आत्मविश्वास का विकास होता है।

3. प्रयोगात्यक प्रबोधन वर्ग- यह सीखने के क्रियात्मक पक्ष पर बल देता है। इसमें व्यक्तिगत तथा सामूहिक दोनों रूपों में क्रियाएं करवाई जा सकती हैं। यह शारीरिक कौशल पर अधिक बल देता है । इस प्रकार के प्रबोधन वर्ग प्रौढों के लिए अधिक उपयुक्त होते है ।

प्रबोधन वर्ग की विशेषताएं-

1. प्रबोधन वर्ग में व्यक्तिगत विभिन्नता का विशेष ध्यान रखा जाता है।

2. यह छात्रों का निदानात्मक परीक्षण करने तथा उपचारात्मक शिक्षण देने में सहायक होता है।

3. इसके द्वारा छात्रों की हीन भावना को दूर किया जा सकता है।

4. छात्रों की उपलब्धि का स्तर उन्नत करने में सहायक है।

प्रबोधन वर्ग की सीमाएँ-

1. प्रबोधन वर्गों का गठन करना एक जटिल कार्य है।

2 इन वर्गों में शिक्षकों का व्यवहार निष्पक्ष होना चाहिए।

3. शिक्षकों द्वारा छात्रों की विशिष्ट समस्याओं की उपेक्षा की जाती है।।

4. शिक्षक प्रायः प्रबोधन वर्ग में कार्य करवाते समय औपचारिकता मात्र पूरी करते हैं।

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