टी-समूह प्रशिक्षण(T-GROUP TRAINING)
टी-समूह प्रशिक्षण भी शिक्षकों के व्यवहार में परिमार्जन तथा परिवर्तन लाने की एक प्रविधि है जिसका आधार भी पृष्ठपोषण प्रक्रिया है। इस प्रविधि का विकास सन् 1947 में बैथेल तथा माइन (Bathel and Mine) ने किया था। यह एक नेताविहीन समूह है जो बिना किसी एजेन्डा (Agenda) या बिना सुनिश्चित कार्यक्रम के कहीं भी बैठकर मिलता है और बिना किसी पूर्व निर्धारित समस्या पर विचार-विमर्श तथा चर्चा करता है। यह मीटिंग 2 या 3 घण्टे तक चल सकती है।
इस मीटिंग में छात्राध्यापक अपनी किसी समस्या पर वार्तालाप करते हैं और समस्या के समाधान तक पहुँचने का प्रयास करते हैं। यह समस्या उनकी व्यक्तिगत भी हो सकती है और सामूहिक भी। यह उनकी पढ़ाई से सम्बन्धित, कक्षा-शिक्षण से सम्बन्धित या उनकी होस्टल व्यवस्था से सम्बन्धित हो सकती है।
टी-समूह प्रशिक्षण प्रविधि में क्योंकि कोई नेता नहीं होता अतः हर मीटिंग में छात्र मिलकर अपना नेता अर्थात चेयरमेन (Chairman) तथा संयोजक (Convenor) चुन लेते हैं। दो छात्र इसमें रिकार्डर (Recorder) का कार्य करते हैं। चेयरमैन पूरे समूह के साथ मिलकर चर्चा करके पहले किसी समस्या को चुनते हैं, फिर उसे समस्या पर समूह के प्रत्येक सदस्य को अपनी बात कहने का पूरा अवसर प्रदान करते हैं कि उनका इस समस्या के प्रति रुख क्या है, उन्हें इससे क्या-क्या दिक्कतें आ रही हैं। और इस वार्ता के माध्यम से वे समस्या का विश्लेषण कर इसे समग्र रूप में पूरे समूह के समक्ष, समह के सदस्यों के द्वारा ही प्रस्तुत करवा देते हैं। रिकॉर्डर प्रत्येक सदस्य की बात बिन्दुवार ब्लैक बोर्ड पर या रोल अप बोर्ड पर या किसी पेपर पर लिखते चलते जाते हैं। चेयरमैन प्रत्येक छात्राध्यापक को कई बार मौका देता है कि यदि कोई बिन्दु समस्या से सम्बन्धित छूट गया है तो उसे भी प्रकाश में लाया जाये।
समस्या स्पष्टीकरण के पश्चात रिकोर्डर एक-एक कर बताता है कि किस सदस्य ने समस्या के किस बिन्दु पर क्या कहा और क्या दिक्कतें महसूस की। फिर चेयरमैन समस्या के प्रत्येक जिल्ट को एक-एक कर उठाता है और उनका समाधान (सीमाओं के अन्तर्गत रहकर) खोजने का प्रयास करता है।
इस प्रकार समस्या के प्रत्येक बिन्दु पर, उसके समाधान पर ज्वलन्त चर्चा के बाद एक प्लान बनाया जाता है कि कौन-कौन से सदस्य इस समस्या के किस बिन्दु के समाधान में सहायक सिद्ध होंगे।
समस्या के सही एवं वैज्ञानिक समाधान के लिए सदस्यों को विभिन्न उत्तरदायित्व दिये जाते है कि उन्हें किससे मिलना है, कैसे बात करनी है- कैसे समाधान तक पहुँचना है।
अगली मीटिंग में (यदि आवश्यक है तो) इसका Follow up work भी कराया जा सकता है।
टी-समूह प्रशिक्षण में एक समूह में 8 से 12 तक सदस्य हो सकते हैं। यदि लोग इस प्रविधि की प्रक्रिया में भाग ले तो वे अपने अन्दर चातुर्य, सूझबूझ, अवबोध आदि गुणों का विकास कर सकते हैं।
डा० शर्मा ने टी-समूह प्रशिक्षण प्रविधि पर चर्चा करते हुये लिखा है-
“T-Group Training is used as a mechanism of feedback device for the modification of teacher behavior. During teaching practice program, T-Group meeting should be organized by the subject teachers. It should meet twice in a week or at least once in a week. The subject teaching groups should meet informally to discuss the problems of teaching practice. This unplanned group discussion emerges real problems and solutions of classroom teaching practices. It may provide deep insight into the problems of teaching. The trainer provides the feedback to group. The pupil-teachers realize their own mistakes and try to improve them. This device is helpful for developing social skills.”
टी-समूह प्रशिक्षण की विशेषतायें(CHARACTERISTICS OF T-GROUP TRAINING)
1. इस प्रविधि में छात्राध्यापक अनौपचारिक रूप से समूह बनाते हैं।
2. इसका कोई पूर्व निर्धारित कार्यक्रम अथवा Agenda नहीं होता।
3. इसमें नेताविहीन समूह होता है।
4. इस विधि में 8-12 तक समूह में सदस्य होते हैं अतः अन्तःक्रिया (Interaction) आसानी से हो जाता है।
5. इसकी मीटिंग की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है।।
6. इसमें समूह के प्रत्येक सदस्य को अवसर दिया जाता है कि सभी सदस्य समान रूप से सामूहिक चर्चा में भाग लें।
7. इसमें चर्चा के बाद प्राप्त अपनी कमियों को सुधारने का प्रयास करते हैं और अपने शैक्षिक व्यवहार को मान्यता के अनुरूप स्तरीय बनाने की चेष्टा की जाती है।
8. यह प्रविधि समूह के सदस्यों में सहयोग, सहनशीलता तथा संवेदनशीलता का विकास करती है।
9. समूह के सदस्यों के व्यवहार में आवश्यक नमनीयता या लचीलापन (Flexibility) लाने में यह प्रविधि अच्छी सिद्ध हुयी है।
10. इस प्रविधि द्वारा प्रशिक्षण मिलता है कि कैसे समस्याओं का निदान कर उनका उपचार किया किया जा सकता है।
शिक्षक के व्यवहार को परिमार्जित करने के लिये माइक्रो टीचिंग (Micro Teaching), अन्तःक्रिया विश्लेषण (Interaction Analysis Technique) तथा अभिक्रमित अध्ययन (Programmed Learning) आदि पृष्ठपोषण युक्त प्रविधियाँ बहुत सफल प्रविधियाँ सिद्ध हुयी हैं।
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