samajik-parivartan-ke-vibhin-swaroop

 सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न स्वरूप क्या है? | Forms of social change in hindi

सामाजिक परिवर्तन की अवधारणा

 

किसी समाज के सामाजिक संगठन, उसकी किन्हीं सामजिक संस्थाओं या सामाजिक भूमिकाओं के प्रतिमानों में अथवा सामाजिक प्रक्रियाओं  में होने वाले किसी भी तरह के रूपान्तरण, बदलाव, परिष्करण की प्रक्रिया को सामाजिक परिवर्तन कहा जाता है। सामान्यतः सामाजिक पिरवर्तन किन्हीं लघु समूहों में होने वालेे छोटे-मोटे परिवर्तनों की अपेक्षा वृहत् सामाजिक प्रणाली अथवा सम्पूर्ण सामाजिक सम्बन्धों के ताने-बाने में होने वाले मह्त्वपूर्ण परिवर्तनों को ही इंगित करता है। कुछ विद्वानों ने सामाजिक संरचना में होने वाले परिवर्तनों को और कुछ ने सामाजिक सम्बन्धों में होने वाले परिवर्तनों को ही सामाजिक परिवर्तन माना है।

सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न स्वरूपों

 

परिवर्तन प्रकृति का एक शाश्वत एवं अटल नियम है। अतः मानव समाज भी प्रकति का एक अंग होने के कारण परिवतनशील है। कुछ विद्वानों ने समाज को परिवर्तनशील और गत्यात्मक माना है। ग्रीक विज्ञान हेरेक्लिटिस ने कहा था, “सभी वस्तुएँ परिवर्तन के बहाव में है। कुछ विद्वानों ने सामाजिक संरचना में होने वाले परिवर्तनों को, तो कुछ ने सामाजिक सम्बन्धों में होने वाले परिवर्तनों को और कुछ ने सम्पूर्ण समाज या उसके किसी भी पक्ष में होने वाले परिवर्तनों को सामाजिक परिवर्तन कहा है। मैकाइवर एवं पेज के अनुसार, “समाजशास्त्री होने के नाते हमारी विशेष रुचि प्रत्यक्ष रूप से सामाजिक बन्धों में है। केवल इन सामाजिक सम्बन्धों में होने वाले परिवर्तनों को ही हम सामाजिक परिवर्तन कहते हैं।

किंग्स्ले डेविस के अनुसार, “सामाजिक परिवर्तन से हम केवल उन्हीं परिवर्तनों को समझते हैं, जो कि सामाजिक संगठन यानी समाज की संरचना और प्रकार्यों में घटित होते हैं

गिन्सबर्ग ने लिखा है कि, “सामाजिक परिवर्तन से मेरा अभिप्राय सामाजिक ढाँचे में परिवर्तन से है। उदाहरण के रूप में समाज के आकार, उसके विभिन्न अंगों की बनावट या सन्तुलन या उसके संगठन के प्रकारों में होने वाले परिवर्तन से है।

स्पष्ट है कि सामाजिक परिवर्तन से तात्पर्य उन परिवर्तनों से होता है, जो कि मानवीय सम्बन्धों, व्यवहारों, संस्थाओं, प्रस्थितियों, कार्यविधियों, प्रथाओं, मल्यों, सामाजिक संरचनाओं तथा प्रकार्यों के होते हैं। हैरी एम0 जॉनसन के अनुसार, “मूल अर्थों में सामाजिक परिवर्तन का अर्थ संरचनात्मक परिवर्तन ही है।”

सामाजिक परिवर्तन के मुख्य स्वरूप (Forms) निम्नलिखित हैं –

 

1. परिवर्तन –

वर्तमान स्थिति में किसी भी प्रकार का बदलाव परिवर्तन कहा जाता है। जिसका गुणवत्ता से कोई सम्बन्ध नहीं होता। परिवर्तन अच्छे परिणाम दे सकता है और बुरे भी। इसी प्रकार परिवर्तन के क्षेत्र, दिशा एवं उसकी गति में भी विभिन्नता हो सकती है।

See also  नृजातीयता क्या है? नृजातीयता की समस्याएँ | Ethnicity Problem in Hindi

 

2.विवृद्धि(Growth)

विवृद्धि (Growth) एक विशेष परिवर्तन है, जिसकी एक निश्चित दिशा होती है। इस अर्थ में परिवर्तन की दिशा को विवृद्धि कहा जाता है तथा यह आकार एवं गुणवत्ता पर आधारित होती है। इसकी गति मन्द या तीव्र कोई भी हो सकती है। इसी आधार पर विवृद्धि की गति को दर्शाया जा सकता है।

 

3.उद्विकास(Evolution) –

उद्विकास (Evolution) का सर्वप्रथम उपयोग करने वाले जीवशास्त्री चार्ल्स डार्विन के अनुसार, उद्विकास प्रक्रिया में जीव की संरचना सरलता से जटिलता की ओर अग्रसर होती है। यह प्रक्रिया ‘प्राकृतिक प्रवरण/चयन’ के सिद्धान्त पर आधारित है। कालान्तर में स्पेन्सर ने जैविक परिवर्तन के समान ही सामाजिक परिवर्तन को भी कुछ आन्तरिक शक्तियों के कारण सम्भव माना है।।

 

4.प्रगति (Progress)-

अच्छाई की दिशा में होने वाले परिवर्तन को ‘प्रगति’ (Progress) कहते है, जो सामाजिक परिवर्तन की एक निश्चित दिशा को स्पष्ट करता है। प्रगति में समाज के हित और सामूहिक कल्याण की भावना निहित होती है। प्रगति वास्तव में अच्छाई हेतु निर्मित परिवर्तन है, यानी इच्छित परिवर्तन है।

 

5. सामाजिक आन्दोलन –

कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता है कि सामाजिक आन्दोलन एवं औपचारिक संगठन एक ही है, किन्तु दोनों सर्वथा भिन्न हैं। सामाजिक आन्दोलन में नौकरशाही व्यवस्था जैसे नियम नहीं होते । भारत में पिछड़ा वर्ग आन्दोलन को सामाजिक आन्दोलन माना जा सकता है, न कि औरचारिक व्यवस्था।

 

6. विकास –

शास्त्रीय समाजशास्त्री कॉम्टे, स्पेन्सर और हॉबहाउस ने सामाजिक उद्विकास, प्रगति एवं सामाजिक विकास को एक हो अर्थ में प्रयुक्त किया था, किन्तु आधुनिक काल में इनका प्रयोग कुछ विशिष्ट अर्थों में होता है। वर्तमान समय में इनका प्रयोग मुख्यतः औद्योगिक एवं आधुनिकीकरण के चलते विकसित और विकासशील देशों के साथ अन्तर को स्पष्ट करने में होता है।

 

7. रूपान्तरण –

परिवर्तन की यह स्थिति ‘सांस्कृतिक रूपान्तरण’ कहलाती है। उत्तर-आधुनिक संस्कृति बहुव्यापी संचार माध्यमों से युक्त व्यक्तिगत-पसन्दगी पर आधारित एक नई घटना है, जो वैश्वीकरण से उत्पन्न हुई है। यह ‘वस्तुकरण’ से जुड़ी है।।

 

8. क्रान्ति –

यह वर्तमान समय में सामाजिक परिवर्तन का सर्वाधिक सशक्त माध्यम है। विश्व में अधिकांश क्रान्तियाँ मौलिक सामाजिक पुनर्निर्माण के लिए ही हुई हैं। क्रांति हिंसक या अहिंसक कोई भी हो सकती है, किन्तु इसमें समाज की प्रगति और विकास का उद्देश्य निहित होता है।

 

नियोजित सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता तथा महत्व

 आधुनिक समाज में सर्वत्र नियोजन की महत्ता को स्वीकार किया जाता है। सोच-विचार कर और योजना बनाकर, उसी के अनुसार ही सम्पूर्ण समाज अथवा उसके किसी पहलू को बदलना ही सामाजिक परिवर्तन कहलाता है। नियोजित परिवर्तन की प्रक्रिया को स्वाभाविक रूप में क्रियाशील होने की छूट नहीं दी जाती। नियोजित परिवर्तन सामाजिक नीति और सामाजिक नियोजन दोनों से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध है। सामाजिक नीति परिवर्तन की दिशा तय करती है, जबकि नियोजन उस परिवर्तन के लिए आवश्यक साधन एकात्रत करने की बात सोचता है। स्पष्ट है कि आधनिक समाज में नियोजित परिवर्तन का अत्यन्त आवश्यक उपयोगिता है। इसके निम्नलिखित कारण है –

See also  आर्थिक विकास की बदलती अवधारणाएँ | Changing Conceptions of Development in Hindi

1. नियोजित परिवर्तन ही श्रेष्ठ है, क्योंकि यह पूर्ण योजनाबद्ध होता है। पहले से सोच-विचार कर योजना बनाकर परिवर्तन लाने से कई लाभ मिलते हैं।

2. नियोजित परिवर्तन से मानव-शक्ति की आवश्यक बर्बादी नहीं होती है।

3. देश में उपलब्ध संसाधनों से अधिकतम लाभ मिलने की सम्भावना अधिक होती है।

4. नियोजित परिवर्तन से दिशाहीन तथा असंगठित परिवर्तन नहीं होता। इसमें सामाजिक लक्ष्यों को पहले से ही निर्धारित कर लिया जाता है तथा उसी के अनुसार ही सोचे-समझे गये तरीके से एक निश्चित दिशा की ओर परिवर्तन की प्रक्रिया को शुरू किया जाता है।

5. नियोजित परिवर्तन सर्वथा संतुलित परिवर्तन होता है। कल्याणकारी राज्य में सरकार द्वारा जनता के लिए जो कल्याणकारी योजनायें एवं कार्यक्रम बनाये जाते हैं, उसमें किसी विशेष जाति, वर्ग, समूह का नहीं, बल्कि आम जनता के सर्वांगीण हित और विकास की भावना छिपी होती है।

6. नियोजित परिवर्तन सामाजिक कुरीतियों को अच्छी दिशा की ओर मोड़ने की दृष्टि से भी लाभदायक होते हैं। योजना बनाकर धीरे-धीरे लोगों के विचारों, भावनाओं तथा मतों को परिवर्तित किया जाता है। लोगों को एक निश्चित ढंग से शिक्षित किया जाता है, ताकि वे पुरानी एवं व्यर्थ की दशाओं, परम्पराओं, अन्ध-विश्वासों की जंजीरों से स्वयं को छुडा सकें। बाल विवाह, परदा प्रथा, बहुविवाह, जाति-पाति का भेद-भाव, विधवा विवाह पर रोक, अस्पृश्यता, आदि सामाजिक बुराइयों में आज जो भी परिवर्तन दृष्टिगोचर हो रहा है, वह वस्तुतः नियोजित सामाजिक परिवर्तन का ही प्रभाव है।

 

 

 

इन्हें भी देखें-

 

 

 

 

 

 

 

 

Disclaimer -- Hindiguider.com does not own this book, PDF Materials, Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet or created by HindiGuider.com. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: [email protected]

Leave a Reply