शिक्षण अधिगम का अग्रसरण(Leading the Teaching Learning)
शिक्षण-अधिगम का तीसरा महत्त्वपूर्ण सोपान है-शिक्षण का अग्रसरण। शिक्षण-अधिगम के पहले दो चरण कितने भी प्रभावशाली क्यों न हों जब तक शिक्षक छात्रों को भली-भाँति प्रेरणा देकर आगे नहीं बढ़ता, वह शिक्षण-अधिगम के उद्देश्यों को पूर्ण रूप से प्राप्त करने में असफल ही रहेगा। अतः शिक्षक के लिये अति आवश्यक है कि वह अभिप्रेरणाओं के विषय में आवश्यक ज्ञान प्राप्त करे और समुचित अभिप्रेरणाओं की प्रविधि से परिचित हो सके। डेविस (Davis) के अनुसार “शिक्षण अग्रसरण में शिक्षक का कार्य है कि वह छात्रों को उत्प्रेरित करे, प्रोत्साहित करे तथा निर्देशित करे और इस प्रकार से शिक्षण-अधिगम के पूर्व निर्धारित उद्देश्यों को सफलतापूर्वक प्राप्त कर सके।
(In teaching, leading is the work, a teacher does to motivate, encourage and inspire his students, so that they will readily realize the agreed learning objectives).
अग्रसरण (Leading) का कार्य है छात्रों में सीखने तथा व्यवहार परिवर्तन के प्रति प्रोत्साहन उत्पन्न करना। अभिप्रेरणा तथा पुनर्बलन की समुचित प्रविधियों का प्रयोग करके शिक्षक अपने छात्रों के व्यवहार में वांछित परिवर्तन प्रभावी ढंग से ला सकता है। शिक्षण की अग्रसरण प्रक्रिया के अन्तर्गत एक शिक्षक को निम्नांकित दो प्रमुख कार्य करने पड़ते हैं-
(i) छात्रों में अभिप्रेरणा उत्पन्न करना (Harnessing Students Motivation)।
(1) ज्ञानात्मक प्रभावात्मक तथा मनोगत्यात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सभी आयु वाले लोगों के लिए उपयुक्त अभिप्रेरणा विधियों का चयन करना (Selecting appropriate motivational strategies)।
इस दृष्टि से शिक्षक, शिक्षण प्रक्रिया में संगठन का कार्य करता है। वह नेता (Leader) तो होता ही है। वह संगठनकर्ता भी होता है। उसे अपनी संवेदनशीलता (Sensitivity) तथा शैली (Style) पर। हना पड़ता है। उसे छात्रों की आवश्यकता के साथ सन्तुलन बनाये रखना पड़ता है।
छात्रों में अभिप्रेरणा उत्पन्न करना
(HARNESSING STUDENT’S MOTIVATION)
इससे पूर्व हम यह देखें कि अभिप्रेरणा कैसे उत्पन्न और प्रयोग की जाती है-हमें अभिप्रेरणा का अर्थ समझ लेना चाहिए।
अभिप्रेरणा का अर्थ क्या है?(Meaning of Motivation)
मेहरान के० टामसन ने कहा है- “छात्र की मानसिक क्रिया के बिना विद्यालय में अधिगम बहुत कम होता है। सबसे अधिक प्रभावशाली अधिगम उस समय होता है जब मानसिक क्रिया सर्वाधिक होती है। अधिकतम मानसिक क्रिया प्रबल अभिप्रेरण के फलस्वरूप होती है।”
“अभिप्रेरणा एक आन्तरिक शक्ति होती है जो छात्रों की अनुक्रिया करने की गति प्रारम्भ करती है, जारी रखती है तथा तीव्र करती है।” अभिप्रेरणा के बिना व्यक्ति कोई भी क्रिया, अनुक्रिया या व्यवहार प्रदर्शित नहीं करता। अतः अभिप्रेरणा छात्रों के लिये एक अति महत्वपूर्ण तथा आवश्यक क्रिया है।
अभिप्रेरणा कार्य करने के लिये निरन्तर प्रेरित करती है। विद्यालय में जो भी ज्ञान दिया जाता है या क्रिया सिखाई जाती है उसके विकास का परा दायित्व अभिप्रेरणा पर है। इसलिए अभिप्रेरणा का महत्त्व अनेक विद्वानों ने स्वीकार किया है।
मैकडोनेल ने कहा है-“जीव को अधिगम के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।”
मेल्टन के अनुसार-“यदि अभिप्रेरणा दी जाय तो अधिगम सर्वोत्तम होगा।”
हैरिस ने कहा है-“अभिप्रेरणा की समस्या शिक्षा मनोविज्ञान और कक्षा-भवन की प्रक्रिया दोनों के लिए केन्द्रीय महत्व की है।”
गेट्स ने इसे स्वतन्त्र समाज में एक अच्छे कार्यक्रम की केन्द्रवर्ती समस्या के रूप में स्वीकार किया है। अधिगम के लिए अभिप्रेरणा अनिवार्य है। यह मूल व्यवहार और उसके विभिन्न स्वरूपों की पूर्ववर्ती सक्रिय पृष्ठभूमि का प्रतिनिधित्व करता है।
केली ने इसे अधिगम– प्रक्रिया की कुशल और सुचारु व्यवस्था में केन्द्रीय कारक के रूप में स्वीकार किया है। सभी अधिगमों में किसी न किसी प्रकार का अभिप्रेरण आवश्यक है।
यह कहा जा चुका है कि अभिप्रेरणा अधिगम का आवश्यक नहीं, सहायक अंग हैं। इसके द्वारा किसी क्रिया को सीखने के लिए उत्साह उत्पन्न किया जा सकता है। विद्यार्थी परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए परीक्षा के समय रात-रात भर पढ़ते हैं। परीक्षा में उत्तीर्ण होने का मोह इतना अधिक होता है कि वे ‘येन-केन प्रकारेण’ अनुचित साधनों का उपयोग भी करते हैं और बहुत अधिक जोखिम उठाते हैं। दर्शकों से प्रेरणा पाकर खिलाड़ी मैच में कुशलता का प्रदर्शन करते हैं।
अध्यापक का कार्य भी नवीन ज्ञान तथा क्रिया को छात्रों को बताना है। अध्यापक के समक्ष सदैव यह प्रश्न रहा है कि किस प्रकार उस ज्ञान से छात्र का परिचय कराये? इन सभी प्रश्नों का उत्तर अभिप्रेरणा से मिलता है। अध्यापक के समक्ष दो प्रश्न नवीन ज्ञान देते समय सदैव विद्यमान रहते हैं। पहला प्रश्न है-छात्र किसी कार्य को क्यों करते हैं ? दूसरा प्रश्न है-छात्रों को क्या सिखाया जाये? अध्यापक यदि इन दो प्रश्नों का हल अपनी कार्य-प्रणाली द्वारा प्रस्तुत नहीं कर सकता तो इसका अर्थ यह है कि वह शिक्षण में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। शिक्षण की सफलता के लिए आवश्यक है कि अध्यापक छात्रों को नवीन ज्ञान के प्रति प्रेरित करें और प्रेरित हो जाने के पश्चात वह ज्ञान दे। इसलिये-“अभिप्रेरणा प्राणी की वह आन्तरिक स्थिति है जो प्राणी में क्रियाशीलता उत्पन्न करती है और लक्ष्य प्राप्ति तक चलती रहती है।”
अभिप्रेरणा की परिभाषाएँ
यद्यपि अभिप्रेरणा अधिगम का आधार नहीं है, फिर भी यह अधिगम की क्रिया को गति प्रदान करती है। प्रयोगात्मक अध्ययनों ने इस मत की पुष्टि कर दी है कि अधिगम तथा अभिप्रेरणा में सीधा सम्बन्ध नहीं है। केवल एक बाधा का सामना अभी तक मनोवैज्ञानिक कर रहे हैं, वह है अधिगम तथा सम्प्राप्ति (Performance) का सम्बन्ध अभिप्रेरणा के कारण होता है। इसका समाधान वे नहीं कर पाये हैं। अतः अभिप्रेरणा की अनेक परिभाषाएँ विद्वानों ने दी हैं। जो इस प्रकार हैं-
(1) बर्नार्ड (Bernard)-“अभिप्रेरणा द्वारा उन विधियों का विकास किया जाता है जो व्यवहार के पहलुओं को प्रभावित करती हैं।”
(2) जॉनसन-“अभिप्रेरणा सामान्य क्रियाकलापों का प्रभाव है जो मानव के व्यवहार को उचित मार्ग पर ले जाती है।”
“Motivation is the influence of general pattern of activities indicating and directing the behavior of the organism.”
(3) मैगोच– “अभिप्रेरणा शरीर की वह दशा है, जो दिये गये कार्य के अभ्यास की ओर संकेत करती है और उसके संतोषजनक समापन को परिभाषित करती है।”
“Motive is any condition of the organism which points it towards the practice of a given task and defines the satisfactory completion of that task.”
(4) वुडवर्थ– “अभिप्रेरणा व्यक्तियों की दशा का वह समह है, जो किसी निश्चित उद्देश्य की प्रति के लिये निश्चित व्यवहार को स्पष्ट करती है।”
“A Motive is a state of the individual which disposes him for certain behavior and for seeking goals.”
(5) शेफर तथा अन्य- “अभिप्रेरणा क्रिया की एक ऐसी प्रवत्ति है जो कि प्रणोदन (Drives) द्वारा उत्पन्न होती है एवं समायोजन (Adjustment) द्वारा समाप्त होती है।”
“A motive may now be defined as a tendency to activity initiated by derive and concluded by the adjustment.”
(6) मैक्डूगल-“अभिप्रेरणा वे शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक दशाएँ हैं जो किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करती है।”
“Motives are conditions physiological and psychological within the organism that disposes it to act in certain ways.”
(7) एम० के० थॉमसन-“अभिप्रेरणा आरम्भ से लेकर अन्त तक मानव व्यवहार के प्रत्येक कारक को प्रभावित करती है; जैसे-अभिवृत्ति, आधार, इच्छा, रुचि, प्रणोदन, तीव्र इच्छा आदि जो उद्देश्यों से सम्बन्धित होती है।
“Motivation covers any and every factor of the springs of human action from the beginning to the end attitudes. bias, urges, impulse, drive, craving incentives, desires, wish, interest, will, intention, bonging and aims.”
(8) गिलफोर्ड- “अभिप्रेरणा एक कोई भी विशेष आन्तरिक कारक अथवा दशा है जो क्रिया को आरम्भ करने अथवा बनाये रखने को प्रवृत्त होती है।”
“A motive is any particular internal factor or condition, that tends to initiate and to sustain activity.” -General Psychology
इन परिभाषाओं का यदि हम विश्लेषण करें तो ये आधार प्रकट होंगे-
1. अभिप्रेरणा साध्य नहीं साधन है। वह साध्य तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त करती है।
2. अभिप्रेरणा अधिगम का मुख्य नहीं, सहायक अंग है।
3. अभिप्रेरणा व्यक्ति के व्यवहार को स्पष्ट करती है।
4. अभिप्रेरणा से क्रियाशीलता प्रकट होती है।
5. अभिप्रेरणा पर शारीरिक तथा मानसिक, बाह्म एवं आन्तरिक परिस्थिति का प्रभाव पड़ता है।
अभिप्रेरणा के विभिन्न मत (Motivation : Various Point of Views)
मनुष्य अपनी आवश्यकता एवं रुचि के अनुसार किसी कार्य को करता है। किसी भी कार्य को करने बार में मानव अनेक विचारों से प्रभावित होता रहता है। किसी भी कार्य को करने के लिये अभिप्रेरणा किसी न किसी रूप में विद्यमान रहती है। अभिप्रेरणा के विषय में अनेक मत तथा धारणाएँ समाज में प्रचलित हैं। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
(1) भाग्यवादी (Pawan of Fate) मत-मनुष्य किसी भी कार्य को इसलिये करता है कि वह उसके भाग्य में है। यह मत दैवी शक्तियों और उनके प्रभाव पर आधारित है। यह मत इस बात पर बल देता है- मानव दैवी शक्तियों के हाथ की कठपुतली और अभिप्रेरणा व्यक्ति की बाह्य शक्ति है।
“Man is the pups-t in hands of God and motivation is outside the person.”
यह मत भाग्य में लिखे पर ही बल देता है।
(2) मानव तर्क युक्त (Rational) है- मानव में समय के विकास के साथ-साथ यह विचार भी विकसित हुआ कि मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं निर्माता है। वह किसी भी कार्य के औचित्य को तर्क द्वारा निर्धारित कर सकता है। इस मत का आधार मानव मस्तिष्क है। मनुष्य का व्यवहार उसके मस्तिष्क की क्रियाशीलता पर निर्भर करता है।
(3) मानव एक यन्त्र (Machine) है- वैज्ञानिकों ने मनुष्य को एक यन्त्र माना है। इस यन्त्र का संचालन उद्दीपनों से क्रियाशील होता है।
(4) मानव पश (Animal) है- इस मत का प्रतिपादन डार्विन ने किया था। उसके अनुसार पशओं और मनुष्य की क्रियाओं में कोई भेद नहीं है। मानव का विकास पशुओं से ही हुआ है। डार्विन शक्तिशाली की विजय (Survival of the Fittest) में विश्वास करता था। डार्विन के सिद्धान्त के अनुसार तीन बातें प्रमुख हैं-
(1) शारीरिक प्रणोदन (Biological Drives) जो व्यक्ति क्रियाशील बनाते हैं। भूख, प्यास, भय आदि इसी प्रणोदन से दूर होते हैं।
(2) अर्जित प्रणोदन (Acquired Drives) जो शारीरिक प्रणोदन से ही उत्पन्न होते हैं।
(3) पशु और मनुष्य की मूल प्रवृत्तियाँ एक-सी हैं।
(5) मानव सामाजिक (Social) प्राणी है- मनुष्य का जन्म समाज में होता है और समाज में ही वह उसकी मान्यताओं के अनुसार अपना विकास करता है। सामाजिक नियमों के अनुसार स्वयं को समायोजित करता है। मनुष्य जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सामाजिक प्रभावों से कार्य करने के लिये अभिप्रेरित होता है।
(6) अचेतन (Unconscious) का मत– फ्रायड (Frued) ने इस मत का प्रतिपादन किया था। मानव की क्रियाशीलता का एकमात्र कारण उसकी अचेतन अभिप्रेरणा है। प्रायः देखा जाता है कि मनुष्य कई कार्य ऐसे करता है जिनके कारणों का उसे स्वयं पता नहीं होता। उसे व्यवहार की अचेतन शक्तियाँ नियन्त्रित करती हैं। इस मत के अनुसार अपनी अभिप्रेरणा का स्रोत व्यक्ति स्वयं ही होता है।
ये सभी मत अभिप्रेरणा को शारीरिक एवं सामाजिक प्रभावयुक्त मानते हैं।
अभिप्रेरणा से सम्बन्धित शब्द (Motivation : Related Terms)
अभिप्रेरणा के विवेचन में कई शब्द बार-बार आते हैं। इन शब्दों की व्याख्या एवं जानकारी आवश्यक है। ये शब्द इस प्रकार हैं-
(1) मानसिक स्थिति (Mental Set)- इस शब्द का अर्थ है, व्यक्ति का मानसिक रूप से स्वस्थ होना। मनुष्य जब तक मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं होगा तब तक वह किसी भी कार्य को करने के लिये अभिप्रेरित नहीं होगा।
(2) प्रोत्साहन (Incentive)- प्रोत्साहन (Incentives) अभिप्रेरकों (Motives) को विकसित करने में बहुत सहयोग देते हैं। प्रोत्साहन का सम्बन्ध कार्य या वस्तुओं से होता है। व्यक्ति उनको प्राप्त करने में पूरी रुचि दिखाता है। प्रोत्साहन का सम्बन्ध बाह्य परिस्थितियों से होता है।
(3) प्रणोदन (Drives)- प्राणी की आवश्यकताओं से प्रणोदन की उत्पत्ति होती है। पानी की आवश्यकता से प्यास, भोजन की आवश्यकता से भूख की उत्पत्ति होती है।
प्रणोदन के बारे में विद्वानों ने कहा है-
1. शैफर, गिबनर एवं सेहोन के अनुसार- “प्रणोदन वह शक्तिशाली उद्दीपन है जो माँग एवं उसकी अनुक्रिया उपस्थित करता है।”
“A drive is a strong persistent stimulus that demands an adjunctive response.”
2. बोरिंग, लैगफील्ड एवं वील्ड के अनुसार- “प्रणोदन आन्तरिक शारीरिक क्रिया या दशा है जो उद्दीपन के द्वारा विशेष प्रकार का व्यवहार उत्पन्न करती है।”
“A drive is an intra-organic activity or condition of tissue supplying stimulation for a particular type of behavior.”
प्रणोदन, शारीरिक आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिये प्रेरित करते हैं। यदि प्रणोदन न हो तो व्यक्ति संज्ञाहीन हो जाये।
3. डैशिल के अनुसार- “मानव-जीवन में प्रणोदन शक्ति का मल स्रोत है जो कि जीवन को किसी क्रिया को करने क लिए प्रेरित करता है।”
“A drive is an original source of energy that activates the organism.”
(1) साइमाॅण्ड (Symonds) द्वारा किया गया वर्गीकरण
(1) सामूहिकता (Gregariousness), (Curiosity),
(2) अवधान केन्द्रिकता (Attention getting),
(3) सुरक्षा (Safety),
(4) प्रेम (Love),
(5) उत्सुकता।
(2) कैरोल (Carroll) द्वारा किया गया वर्गीकरण-
1. संवेगात्मक सुरक्षा (Emotional security),
2. शारीरिक सन्तोष (Physical satisfaction)
3. ज्ञान प्राप्ति (To gain knowledge),
4. समाज में स्थान प्राप्त करना (Position in the society),
(3) थ्रोप (Throp) द्वारा किया गया वर्गीकरण-
(1) शारीरिक क्रियाएँ (Physical activity),
(2) जावन, का उद्देश्य एव काय (Aims and Functions of life),
(3) कार्य में स्वतन्त्रता (Freedom in activity)।
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