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वार्षिक योजना किसे कहते हैं, विशेषतायें, सोपान | दैनिक पाठ-योजना का प्रारूप

वार्षिक योजना किसे कहते हैं, वार्षिक योजना क्या है ?, वार्षिक योजना की विशेषतायें, वार्षिक योजना की सोपान, दैनिक पाठ-योजना का प्रारूप, वार्षिक योजना का महत्त्व, वार्षिक-योजना प्रारूप आदि को जानने का प्रयास करेगें।

वार्षिक योजना क्या है ?

(Yearly Plan)

यह शिक्षण की ऐसी दीर्घकालीन योजना है जो विद्यालय में पूरे एक सत्र के लिए बनाई जाती है। वार्षिक योजना में शिक्षक सम्पूर्ण सत्र की विभिन्न गतिविधियों का ब्यौरा रखता है। इसमें कब क्या कार्य करने हैं तथा किन कार्यों को किस समय सीमा में समाप्त करना है, इन बातों का विवरण होता है। वार्षिक योजना अध्यापक को निर्देशन तथा मार्गदर्शन देती है। विद्यालय की विभिन्न कक्षाओं के लिए उनके स्तर-पाठ्यक्रम तथा छात्रों की व्यक्तिगत भिन्नताओं को ध्यान में रखने हुए पृथक्-पृथक वार्षिक योजनायें बनाई जाती हैं।

 

वार्षिक योजना का महत्त्व :

(1) वार्षिक योजना से सत्रभर के शिक्षण कार्य को एक निश्चित दिशा मिलती है।

(2) शिक्षक के आत्म-मूल्यांकन में सहायक है।

(3) छात्रों के उपचारात्मक शिक्षण में सहायक है क्योंकि इसमें प्रत्येक इकाई के पूर्ण होने पर इकाई मूल्यांकन तथा सुधारात्मक अध्यापन की व्यवस्था होती है। विद्यालय की समस्त शैक्षिक एवं सहशैक्षिक गतिविधियाँ सुनियोजित ढंग से चलती हैं।

(4) शिक्षक विषय की समुचित तैयारी कर सकता है।

(5) छात्रों को सत्र की समस्त गतिविधियों का प्रतिबिम्ब सत्र के प्रारम्भ में ही मिल जाता है।

 

वार्षिक योजना की विशेषतायें :

(1) यह लचीली, व्यापक तथा समस्त कक्षाओं से सम्बन्धित होती है।

(2) यह विद्यालय के साधनों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है।

(3) इसमें छात्रों की शारीरिक व मानसिक योग्यता तथा अध्यापक की योग्यता का ध्यान रखा जाता है।

(4) इसमें समस्त शिक्षकों की सत्र के लिए बनाई गई सभी योजनाओं में समन्वय रहता है।

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वार्षिक योजना निर्माण हेतु ध्यातव्य बिन्दु :

(1) योजना में लचीलापन हो ताकि विशेष परिस्थितियों में परिवर्तन किये जा सकें।

(2) योजना वास्तविक तथा व्यावहारिक हो।

(3) इसमें शिक्षक तथा छात्रों की योग्यता व रुचि को ध्यान में रखा जाये।

(4) प्रत्येक गतिविधि को समुचित समय प्रदान किया जाये।

(5) गत वर्ष की वार्षिक योजना को आधार बनाकर वर्तमान सत्र की योजना बनाई जाये।

(6) छात्र व शिक्षकों की सम्भागिता से योजना बनाई जाये

(7) विभाग के नियमों व अवकाशों की सूची के आधार पर योजना बनानी चाहिये।

(8) योजना को महीनों में विभाजित कर लेना चाहिये।

 

वार्षिक योजना निर्माण के सोपान

(1) पाठ्यवस्तु का विश्लेषण तथा विभाजन,

(2) कार्य दिवसों तथा कालांशों की गणना,

(3) प्रति इकाई कालांशों का निर्धारण,

(4) अपेक्षित उद्देश्यों का निर्धारण,

(5) उप-सत्र-योजना (जुलाई से सितम्बर, अक्टूबर से दिसम्बर, जनवरी से अप्रैल),

(6) शिक्षण सामग्री का उपयोग।

इसका एक संक्षिप्त प्रारूप यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है :

वार्षिक-योजना

विषय……………………

 

वार्षिक-योजना

 

 

दैनिक पाठ-योजना

विद्यालय का नाम………..

दिनांक……………..

कक्षा ……….

कालांश…………….

विषय : हिन्दी (पद्य)

प्रकरण ‘कर्मवीर’

कर्मवीर

देखकर बाधा विविध, बहुविघ्न घबराते नहीं।

रह भरोसे भाग्य के, दु:ख भोग पछताते नहीं।।

काम कितना ही कठिन हो, किन्तु उकताते नहीं।

भीड़ में चंचल बनें, जो वीरा दिखलाते नहीं।।

हो गये एक आन में, उनके बुरे दिन भी भूले।

सब जगह सब काल में, वे ही मिले फुले फले।।

चिलचिलाती धूप को, जो चाँदनी देवें बना।

काम पड़ने पर करें जो, शेर का भी सामना ।।

जो कि हँस-हँस के चबा लेते हैं लोहे का चना।

है ठीक कुछ भी नहीं, जिनके है जी में यह ठना ।।

कोस कितने ही चले, पर वे कभी थकते नहीं।

कौनसी है गाँठ जिसको. वे खोल सकते नहीं।।

 

शिक्षण उद्देश्य :

1. ज्ञानात्मक:

(अ) भाषा तत्त्वों का ज्ञान कराना-पद्यांश में आये हुए कठिन शब्दों के उच्चारण, वर्तनी व अर्थों से परिचित कराना जैसे-विघ्न, उकताना, आन, लोहे के चने चबाना आदि।

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(ब) विषयवस्तु का ज्ञान कराना-प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से छात्रों को धैर्य साहस व परिश्रम की महत्ता से परिचित कराना।

 

2. कौशलात्मक :

(I) अध्यापक के द्वारा किये गये आदर्श वाचन के माध्यम से सम्यक रूप से पढ़ने की क्षमता उत्पन्न करना।

(II) कक्षा में समुचित वातावरण बनाये रखकर ध्यानपूर्वक सुनने का कौशल उत्पन्न करना। 

(III) प्रश्नोत्तर के माध्यम से भाषण की क्षमता उत्पन्न करना।

(IV) कक्षा-कार्य, गह-कार्य, श्यामपट्ट आदि पर लिखवाकर छात्रों में लेखन कौशल उत्पन्न करना।

 

3. अभिवृत्यात्मक :

छात्रों में श्रम के प्रति सकारात्मक अभिवृत्ति उत्पन्न करना।

 

दैनिक पाठ-योजना

दैनिक पाठ-योजना

दैनिक पाठ-योजना

 

 

 

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