इस पोस्ट में हम लोग प्रदूषण क्या है?, प्रदूषण की अवधारण, प्रदूषण का क्या अर्थ होता है। पर्यावरण प्रदूषण के विभिन्न प्रकार का वर्णन करेेंगे। मुझे आशा है कि आप लोगों को ये पोस्ट जरूर पसंद आयेगा। नीचे दिये गये कमेंट बाक्स में मुझे कमेंट करके जरूर अपना विचार साक्षा करें।
प्रदूषण की अवधारणा
वर्तमान युग में पर्यावरण पर दबाव निरन्तर बढ़ता जा रहा है। बीसवीं शताब्दी में पर्यावरण के साथ मानव ने बड़ी छेड़छाड़ की है। बढ़ती हुई आबादी के कारण मनुष्य प्रकृति से दर होता जा रहा है। औद्योगीकरण एवं नगरीकरण आदि कारणों से प्राकृतिक संसाधनों में अन्धाधुन्ध दोहन प्राकृतिक वातावरण को असन्तुलित कर रहा है। विकास की तीव्र गति से यद्यपि अनेक लाभ हुए हैं, तो कई नुकसान भी। प्रकृति का सन्तुलन डगमगाने लगा है। उसकी पवित्रता एवं सादगी नष्ट होती जा रही है, जंगलों तथा वृक्षों का सफाया होता जा रहा है। भवन निर्माण, खेती करने, ईधन प्राप्त करने, नई-नई सड़कें बनाने, गगनचुम्बी इमारतें बनाने, मिल-कारखाने बनाने की प्रक्रिया में एक ओर प्राकृतिक साधनों का अविवेकपूर्ण दोहन किया जा रहा है, दूसरी ओर हानिकारक रसायनों, गैसों व अन्य चीजों का इस्तेमाल होने से पर्यावरण की प्राकतिकता नष्ट हो रही है और प्रदूषण (Pollution) बढ़ रहा है।
पर्यावरण प्रदूषण का अर्थ
हजारों वर्षों से मानव जीवन पर्यावरण के सन्तुलन के अनुसार चल रहा है। पर्यावरण में स्वतः सन्तुलन होता है तथा प्रकृति नियन्त्रक का कार्य करती है, किन्तु इस सन्तुलन की एक सीमा होती है और इस सीमा के बाद पर्यावरण स्वतः प्रदूषित होने लगता है। जब पर्यावरण में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है, तथा निर्भरता नष्ट हो जाती है, तो यह स्थिति प्रदूषण कहलाती है। इस प्रकार प्रकृति की मूल संरचना में मिलावट एवं हस्तक्षेप का विष ही प्रदूषण के नाम से जाना जाता है। पर्यावरण के विभिन्न घटकों यानी वायु, जल, भूमि, ऊर्जा के विभिन्न रूप, आदि के भौतिक, रासायनिक अथवा जैविक लक्षणों का वह अवांछनीय परिवर्तन, जो कि मनुष्य तथा उसके लिए लाभदायक दूसरे जीवों, औद्योगिक प्रक्रमों, जैविक दशाओं, सांस्कृतिक विरासतों और कच्चे माल के साधनों को हानि पहुँचाता है, पर्यावरण प्रदूषण (Environmental Pollution) कहलाता है। स्पष्ट है कि “पर्यावरण में होने वाले किसी ऐसे परिवर्तन को, जो मनुष्य तथा उसके लाभप्रद सजीवों एवं निर्जीवों को हानि पहुँचाता हो, पर्यावरण प्रदूषण कहा जाता है।”
पर्यावरण प्रदूषण केवल वातावरण में कुछ हानिप्रद पदार्थों के आने से ही नहीं होता, वरन् पर्यावरण के किसी घटक के घट/कम हो जाने से भी होता है। प्रदूषण से अभिप्राय केवल मिलावट से ही नहीं, बल्कि पर्यावरण की प्राकृतिक गुणवत्ता में प्रतिकूल परिवर्तन से भी है। जिन पदार्थों की कमी अथवा अधिकता के कारण प्रदूषण पैदा होता है, यानी पर्यावरण की प्राकृतिक गुणवत्ता में ह्रास होता है, उन्हें प्रदूषक (Pollutant) कहते हैं, यथा – धुआँ, धूल, रसायन, आदि पर्यावरण में घुल-मिलकर मनुष्य तथा उसके क्रियाकलापों पर बुरा प्रभाव डालते है, अतः इन्हें प्रदूषक कहा जाता है। सल्फर डाई आक्साइड, मल, डी0 डी0 टी0. प्लास्टिक, आदि मुख्य प्रदूषक हैं। कुछ प्रदूषक स्थानीय और महाद्वीपीय होते हैं। कुछ का प्रभाव बहुत कम समय तक और कुछ का प्रभाव लम्बे समय तक चलता रहता है।
पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार
पर्यावरण प्रदूषण के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं –
1. वायु प्रदूषण (Air Pollution)-
वायु प्रदूषण का तात्पर्य, वायु के भौतिक, रासायनिक अथवा जैविक घटकों के उस परिवर्तन से है, जो मनुष्य तथा उसके लिए लाभप्रद जीवों एवं वस्तुओं पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। वायु में प्रकृति द्वारा ऑक्सीजन, नाइटोजन व कार्बन डाई ऑक्साइड का सन्तुलन स्थापित रहता है, लेकिन घरों, सवारी गाडियों, कल-कारखानों से निकलने वाला धुआँ, अत्यधिक शोर-गुल, दुर्गन्ध, विभिन्न पदार्थ के सूक्ष्म कण, अर्द्ध या बिना जली हुई हाइड्रोकार्बनिक गैसें, संश्लेषी पदार्थ, आदि वातावरण में मिलकर वायु के संघटन को लगातार अव्यवस्थित करते है, जिसमें मनुष्यों, जीव-जन्तओं, वनस्पतियों, इमारतों तथा अन्य वस्तुओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वायु के अवयवों के अलावा, जो वांछनीय पदार्थ वायु को प्रदूषित करते हैं, उन्हें ‘वायु प्रदूषक’ कहा जाता है। प्रत्येक मनुष्य दिन में लगभग 22 हजार बार सांस लेता है, जिसमें 16 किलो वायु का प्रयोग होता है। औद्योगिक क्रान्ति के बाद वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ता गया। वर्तमान समय में बडे-बडे नगरों/महानगरों, घनी एवं गंदी बस्तियो, कल-कारखाना के समीप रहने वालों को वायु में ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा नहीं प्राप्त होती है। वायु प्रदूषण विभिन्न शारीरिक-मानसिक बीमारियों/रोगों को जन्म देता है।
2. जल प्रदूषण (Water Pollution)-
मानव शरीर में लगभग 60 प्रतिशत भार/वजन जल का ही है। जल को जीवन कहा गया है, जिसके बिना न किसी जीव की, न किसी वनस्पति की कल्पना की जा सकती है। संसार के कुल जल का लंगभग 96 प्रतिशत समुद्रों में और शेष 4 प्रतिशत पृथ्वी पर है। पृथ्वी पर जितना जल पाया जाता है। उसका भी मात्र 0.3 प्रतिशत भाग ही स्वच्छ एवं शद्ध जल है, जिस पर सम्पूर्ण जीव निर्भर है। विश्व की जनसंख्या जैसे-जैसे बढ़ रही है, जल का व्यय भी बढ़ रहा है। विश्व के कछ स्थानों पर अभी से जल संकट उत्पन्न हो गया है। औद्योगिक देशों में विकासशील देशों की अपेक्षा लगभग 20 गुना जल व्यय किया जाता है। नगरीय परिवारों द्वारा खेतिहर परिवारों की अपेक्षा दोगुना जल व्यय होता है।
जल एक ओर जीवन की रक्षा करता है, किन्तु जब प्रदूषित हो जाता है, तो रोगों तथा मौत का कारण बन जाता है। विकासशील देशों में पाँच में से चार बच्चों की मृत्यु जल प्रदूषण से उत्पन्न हुई बीमारियों से होती है। भारतवर्ष में जल की प्राप्ति मुख्यतः नदियों, झरनों, तालाबों, कुओं से होती है। लगभग 90 प्रतिशत जल नदियों से मिलता है, जो प्रदूषित हो रही हैं।
बिना मुंडेर तथा जाली वाले कुओं का जल प्रदूषित हो जाता है। तालाबों का जल नहाने, कपड़े धोने, पशुओं के सम्पर्क में आने से दूषित होता रहता है। धार्मिक अन्धविश्वास, स्नान, शव एवं अस्थि विसर्जन, मलयुक्त जल की नदियों में निकासी, औद्योगिक अवशिष्ट, कृषि पदार्थों का जल में मिलना, डिटरजेण्ट्स व साबुन का उपयोग, ईंधन जलने से उत्पन्न गैसें, नाभिकीय ऊर्जा, सूक्ष्म जीव, आदि कारणों से जल प्रदूषित हो जाता है। प्रदूषित जल के उपयोग से पोलियो, हैजा, पक्षाघात, पीलिया, टायफाइड, टी0 बी0, पेचिश, कुष्ठ, कैंसर आदि रोग होने की सम्भावना बनी रहती है।
4. मृदा प्रदूषण (Soil Pollution)-
आबादी बढ़ने के साथ-साथ पृथ्वी पर भी बोझ बढ़ रहा है। व्यक्तियों को बसाने, उद्योगों के लिए मिल-कारखाने बनाने, खेती का विस्तार करने के लिए जंगलों को बड़ी तेजी से काटा जा रहा है। पहाड़ वीरान एवं उजड़ने लगे हैं। स्थान-स्थान पर मिट्टी का कटाव और जल भराव की स्थितियाँ उत्पन्न हो गई हैं। तेजी से बढ़ती आबादी के पोषण के लिए/हरित क्रांति हुई, परम्परागत खाद के स्थान पर रासायनिक खादों का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। इससे उपज तो अवश्य बढ़ी, किन्तु मिट्टी की स्वाभाविक शक्ति को क्षति पहुँची तथा उसकी उर्वरा शक्ति भी कम हुई। कीटनाशक दवाइयों के कारण अनाज की रक्षा तो हुई, किन्तु विष का प्रभाव मिट्टी और अनाज दोनों पर पड़ा । रोगनाशक और कीटनाशक दवाइयों के प्रयोग से मृदा (मिट्टी) प्रदूषण उत्पन्न ही कारण है कि विभिन्न देशों ने डी0 डी0 टी0 जैसे पदार्थों का उपयोग बन्द कर दिया है।
खानों की खुदाई और निर्माण कार्यों हेतु भूमि की खुदाई भी मृदा प्रदूषण का कारण, पेड़ों के कटने से भी मृदा प्रदूषण बढ़ता है। इसी प्रकार प्रदूषित जल एवं वायु, कीटनाशक दवाइयों, कूड़ा-करकट, रासायनिक खाद, मिट्टी में घुलकर उसे प्रदूषित कर देते हैं। मृदा प्रदूषण के फलस्वरूप फसलों की वृद्धि कम होती है। फसलों के लिए विषाक्त पदार्थ जब जडो तथा पेड़ों तथा फसलों से मनुष्यों व पशुओं में पहुंचते हैं, तो उन्हें हानि पहुँचाते हैं। कीटनाशक दवाइयों में रसायनों के कारण भी मिट्टी की उर्वरा शक्ति में ह्रास होता है।। मदा प्रदूषण की रोकथाम हेतु कीटनाशक दवाइयों का नियंत्रित और कम प्रयोग, मृत पशओं, कडा-करकट को बस्ती से दूर गड्डों में दबाना, घरों से निष्कासित गन्दे जल एवं मल को नालियों द्वारा बस्ती से काफी दूर ले-जाकर गिराने से मृदा प्रदूषण दूर हो सकता है।
4.ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution)-
तीखी या कानफोडू आवाज/ध्वनि (Sound) को शोर (Noise) कहा जाता है । ध्वनि की तीव्रता को नापने वाली इकाई ‘डेसिबल’ (Decible या dB) है, जिसका मान प्रायः 0 से 120 तक होता है। डेसिबल पैमाने पर शून्य (0) ध्वनि की तीव्रता का वह स्तर है, जहाँ से हमें ध्वनि सुनाई देना शुरू होती है। 85 से 95 डेसीबल शोर सहन योग्य और 120 डेसीबल या उससे अधिक शोर असहनीय होता। है। अध्ययनों से पता चलता है कि नगरों में शोर की गति प्रति वर्ष एक डेसीबल की गति से बढ़ रही है। बम्बई देश का सबसे अधिक शोर/ध्वनि प्रदूषण वाला स्थान है। जहाँ पर शोर का स्तर 75 से 100 डेसीबल तक है। महानगरों में शोरगुल दस वर्षों में दो गुना हो जाता है।
ध्वनि प्रदूषण के मुख्य कारण हैं – उद्योग धन्धे व मशीनें, मोटर गाड़ियाँ, रेलगाड़ी, बस, वायुयान, जेट, रॉकेट, टेलीविजन, रेडियो, उत्सवों पर पटाखे छुड़ाना, चुनाव एवं हड़ताल, पॉप म्यूजिक, मेले-ठेले, तोड़-फोड़ आदि। ध्वनि प्रदूषण से श्रवण यन्त्रों पर बुरा प्रभाव पड़ता है, स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, कार्यक्षमता में गिरावट आती है, बहरापन, हृदय रोग, घबराहट, अनिद्रा, गर्भपात, आदि की सम्भावना बढ़ जाती है। इसी कारण अधिकांश देशों ने शोर की अधिकतम सीमा 78 से 85 डेसीबल निर्धारित की है।
5.रेडियोधर्मी प्रदूषण (Radioactive Pollution) –
द्वितीय विश्व युद्ध के समय अमेरिका ने जापान के नागासाकी तथा हिरोशिमा नामक दो प्रमुख नगरों पर परमाणु बमों के धमाके कर उन्हें क्षण भर में नष्ट कर डाला था। फलस्वरूप नगरों के कई किलोमीटर के घेरे की वनस्पतियाँ एवं जीव-जन्तु नष्ट हो गए। परमाणु बम के विस्फोट के बाद निकलने वाले विकिरणों से भविष्य में आने वाली सन्तानों में जन्मजात विकृतियाँ प्रकट होने लगी। आज भी वहाँ पर लूली-लंगड़ी, अन्धी-बहरी सन्तानों का जन्म होता है। प्रदूषण श्रृंखला में रेडियोधर्मी प्रदूषण सबसे घातक है। परमाणु रिएक्टरों में आण्विक प्रक्रमों से बचे हए कचरे को नष्ट करना अथवा उसकी उचित व्यवस्था करना एक बड़ी गंभीर समस्या है। रेडियो-सक्रिय विकिरणों का नियन्त्रण एक कठिन कार्य है। एटम बमों के परीक्षणों, विस्फोटों तथा परमाणु रिएक्टरों की प्रक्रियाओं के फलस्वरूप वायुमण्डल में रेडियो-एक्टिव तत्वों की मात्रा निरन्तर बढ़ती ही जा रही है।
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