जाॅन बर्कले का विज्ञानवाद

जाॅन बर्कले का विज्ञानवाद | John Berkeley’s Scientism Hindi

विज्ञानवाद (Scientism)

बर्कले विज्ञानवादी हैं; क्योंकि उनके अनुसार ज्ञान का विषय विज्ञान है; वस्तु नहीं। ये विज्ञान मनुष्य की आत्मा पर निर्भर हैं या आत्मगत हैं। अतः बर्कले आत्मनिष्ठ विज्ञानवादी (Subjective idealist) कहे जाते हैं। हम पहले विचार कर आये है कि नदी, पर्वत, गृह आदि जिसे हम बाह्य वस्तु कहते है; वस्तुतः ये आन्तरिक विज्ञान हैं। बर्कले का कहना है कि सभी मनुष्यों में एक विचित्र विचार समाया हुआ है कि घर, पर्वत, नदी आदि की बाह्य सत्ता है तथा वस्तुओं की संवेदनाओं के कारण विचार उत्पन्न होते हैं। यह मत यद्यपि सर्वमान्य समझा जाता है; तथापि जो व्यक्ति अपना सर्वेक्षण करेगा उसे स्पष्टतः प्रतीत होगा कि हमारा ज्ञान इन्द्रियजन्य संवेदनाओं पर निर्भर है।

ये संवेदनाएँ विज्ञानजन्य होती हैं, कर नहीं। अतः सभी बाह्य वस्तुओं के रूप में हम मनः प्रसूत विज्ञानों की ही उपलगि करते हैं। कभी-कभी हम कहते है कि वस्तु के बिना विज्ञान कहाँ से। स्वयं बर्क इसका उत्तर देते हुए कहते हैं कि स्वप्न, मूर्छा आदि की स्थिति में हमारे मन में विचार या प्रत्यय तो रहते हैं, परन्तु वस्तु नहीं। अतः बाह्य वस्तु के बिना भी विचार मन में रह सकता है। इस प्रकार बकले वस्तु का निषेध कर विज्ञान का प्रतिपादन करते हैं।

प्रश्न यह है कि विज्ञान क्या है, तथा इनकी उत्पत्ति कसे होती है? इसका उत्तर है कि विज्ञान हमारे ज्ञान के प्रत्यक्ष विषय हैं अथवा हमारे मन के प्रत्यक्षगम्य  ज्ञेय (विषय) ही विज्ञान या प्रत्यय हैं। इन प्रत्ययों या विज्ञानों की उत्पत्ति हमारे मन  में ही होती है, अर्थात् मन या आत्मा ही विज्ञान का अधिष्ठान है। विज्ञान ही हमारे ज्ञान का विषय है, क्योंकि विज्ञान के अतिरिक्त हमें किसी वस्तु का ज्ञान नहीं होता। विज्ञान के अतिरिक्त किसी वस्तु की चर्चा करना तो निरर्थक है।

जाॅन बर्कले इसके लिए एक उदाहरण देते हैं मैं मेज पर लिख रहा हूँ। यह मेज क्या है? मेरे सामने एक भूरे रंग का बिस्तर है, एक विशिष्ट चौकोर आकृति है, देखता हूँ उसके चार पैर हैं। इन विभिन्न प्रत्ययों को ही मैं मेज के रूप में जानता हूँ| अतः जिसे हम वस्तु कहते हैं, बर्कले उसे प्रत्ययों का समूह (Collection) कहते हैं। हम प्रत्ययों के समूह या विज्ञान-संघात को ही वस्तु की संज्ञा प्रदान कर देते हैं। वस्तुतः वह वस्तु नहीं विज्ञान है। इन विज्ञानों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में बर्कले का कहना है कि ये विज्ञान मानसिक होने के कारण मनाश्रित ही हैं। तात्पर्य यह है कि इन विज्ञानों या प्रत्ययों के कारण भौतिक वस्तु नहीं हो सकती।

बर्कले यहाँ एक तर्क भी उपस्थित करते हैं। उनका कहना है कि कारण और कार्य की प्रकृति समान होती है। विज्ञान या प्रत्यय तो मानसिक हैं। अतः मानसिक का कारण मन ही होना चाहिए। यदि विज्ञान का कारण हमारा मन न हो तो अन्य मन है, यदि अन्य मन नहीं तो ईश्वर का मन ही इसका कारण है। किसी भी विचार-विज्ञान का कारण वस्तु नहीं, मन ही है; अर्थात् विज्ञान आत्मनिष्ठ है। बर्कले ने अपने ग्रन्थ हिलाज तथा फिलानस का संवाद में बतलाया है। कि केवल मूर्ख ही वस्तु की सत्ता में विश्वास करता है, दार्शनिक तो इन्हें केवल प्रत्यय या विज्ञान रूप मानता है।

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि बर्कले वस्तु के स्थान पर विज्ञान या प्रत्यय शब्द का प्रयोग करते है। तात्पर्य यह है कि विज्ञान ही ज्ञेय हैं, अर्थात् ज्ञान के विषय हैं। जब हम विज्ञान को ही ज्ञेय मानते है तो स्पष्ट है कि विज्ञान या प्रत्यय का सम्बन्ध हमारे मन से है। उदाहरणार्थ, मेज एक जड़ वस्तु है। बर्कले के अनुसार मेज तो कुछ प्रत्ययों या विज्ञानों का समुदाय मात्र है। अतः मेज के प्रत्यक्ष करने का अर्थ है कि हम कुछ प्रत्ययों के संघात का प्रत्यक्ष कर रहे हैं। प्रत्यक्ष के समुदाय तो मानसिक ही हो सकते हैं, बाह्य नहीं। यहाँ लॉक और बर्कले में भेद स्पष्ट है। लाॅक के अनुसार ये विज्ञान या प्रत्यय बाह्य वस्तु जन्य है। अतः इनसे हने बाह्य वस्तु का संकेत प्राप्त होता है।

वस्तुतः बाह्य वस्तु अज्ञेय है। हम उनके गुणों का प्रत्यक्ष करते है और गुणों के अधिष्ठान रूप में बाह्य वस्तु का अनुमान कर लेते हैं। बर्कले का कहना है कि यदि हमारा ज्ञान केवल गुणों तक ही सीमित है और गुण केवल प्रत्यय या विज्ञान हैं, तो इनके अतिरिक्त हमें बाह्य वस्तु की सत्ता किसी रूप में स्वीकार करने की आवश्यकता ही क्या है? अत: लॉक के अनुसार बर्कले स्वीकार करते हैं कि प्रत्यय या विज्ञान ही हमारे ज्ञान के प्रत्यक्ष विषय हैं, परन्तु विज्ञान की स्थिति मन में होती है। लॉक विज्ञान या प्रत्यय को वस्तु का संकेत मानते हैं। इस प्रकार बर्कले वस्तु भाषा (Thing language) के स्थान पर प्रत्यय-भाषा (Though language) का प्रयोग करते हैं।

 

 

विज्ञानवाद की समीक्षा

१. बर्कले बाह्य वस्तु की सत्ता के स्थान पर मानसिक विज्ञान का अस्तित्व बतलाते हैं। यहाँ एक स्वाभाविक प्रश्न उत्पन्न होता है कि यदि बाह्य पदार्थ केवल मानसिक विज्ञान ही हैं तो हम रोटी के स्थान पर विज्ञान ही खाते हैं तथा जल के स्थान पर विज्ञान ही पाते हैं। बर्कले को ऐसे आक्षेपों की पूर्ण शंका थी। अतः वे उत्तर देते हुए कहते हैं कि रोटी और कपड़े आदि को विज्ञान कहना उचित नहीं। नदी, पवत, मकान, तारे, चन्द्रमा आदि काल्पनिक भ्रान्ति नहीं हैं। ये अवश्य यथार्थ है। क्योंकि ईश्वर इनके प्रत्यय हमारे मन में उत्पन्न करता है।

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इसी प्रकार भौतिक पदार्थ भी सत् है, क्योंकि इनके आकार, विस्तार, भार आदि गुणों का हमें प्रत्यक्ष होता है। इन वस्तुओं को विज्ञान कहने का तात्पर्य यही है कि ये मनाश्रित है, अर्थात् मन के बिना इसका अस्तित्व नहीं। बर्कले का स्पष्ट कथन है कि में वस्तु को विज्ञान नही बनाता, वरन् विज्ञान को वस्तु बनाता हूँ। तात्पर्य यह है कि उपरोक्त सभी वस्तुओं का सवेदनाएँ या प्रत्यय ही हमारी प्रतीति के विषय हैं। अतः यह सत्य है कि विज्ञान वस्तु है।

2. विज्ञान को वस्तु मानने के कारण बर्कले अहंवादी (Solipsistic) प्रतीत होते है। बर्कले के अनुसार मानव ज्ञान तो केवल प्रत्ययों तक ही सीमित है और प्रत्ययों की सत्ता मन पर आश्रित है। बर्कले स्पष्ट शब्दों में कहते हैं कि होने का अर्थ प्रत्यक्ष होना है। संक्षेप में सत्ता अनुभवमूलक है। मेरे अनुभव विज्ञान हैं तथा विज्ञानों का अनुभव करने वाला मैं हूँ। अतः मैं और मेरे विज्ञा अतिरिक्त कुछ नहीं। यहाँ अहंकार स्पष्ट है। परन्तु बर्कले के कहने का तात नहीं है कि ज्ञान के विषय विज्ञान होकर कवल हम पर ही (व्यक्तिगत आत्मा ही) आश्रित हैं।

जैसा हम पहले कह आये हैं कि हमारे कमरे में ‘मेज है’ का अर्थ कि हम इसके प्रत्ययों का प्रत्यक्ष कर रहे हा अतः इसका अस्तित्व हमारे प्रत्यक्षा करने पर निर्भर है। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि यदि मैं न होता तो इसका अस्तित्व ही नहीं रहता। बर्कले का स्पष्ट कहना है कि यदि मैं न होऊँ तो कोई दूसरा इसका प्रत्यक्ष करता, यदि कोई नहीं तो ईश्वर इसका प्रत्यक्ष करता। इस प्रकार बर्कले अहंवादी नहीं।

३. सत्ता को अनुभवमूलक मानने के कारण बर्कले को दृष्टि सृष्टिवादी (Subjective idealist) कहा गया है। बर्कले के अनुसार दृष्टि ही सृष्टि है, अर्थात् अस्तित्व तो अनुभव पर आश्रित है। इस सिद्धान्त के अनुसार अनुभव इन्द्रियप्रत्यक्ष तक ही सीमित है। उसी का अस्तित्व मान्य है, जिसका हम वस्तुतः प्रत्यक्ष कर रहे हैं। अतः अदृष्ट वस्तु की सत्ता स्वीकार्य नहीं। इस मत के अनुसार हम कह सकते हैं कि सम्पूर्ण जगत् जीव की सृष्टि है तथा जब तक प्रतीति विद्यमान है तब तक संसार का अस्तित्व है। परन्तु बर्कल के विज्ञानवाद की दृष्टि-सृष्टिवादी व्याख्या ठीक नहीं।

बर्कले समस्त ज्ञान को इन्द्रियों तक ही सीमित नहीं मानते। इन्द्रिय-प्रत्यक्ष के द्वारा हमें जगत् के पदार्थों का अस्तित्व तथा जागतिक घटनाओं का ही ज्ञान होता है। बुद्धि के द्वारा हमें कार्य-कारण सम्बन्ध, आत्मा का अस्तित्व तथा वैज्ञानिक नियमो का ज्ञान होता है। इसके अतिरिक्त बर्कले व्यक्तिगत जीव के प्रत्यय तक ही सत्ता को सीमित नहीं मानते। उनका कहना है कि मनुष्य के न जानने पर भी वस्तुओं की सत्ता है, क्योंकि उन्हें ईश्वर जानता है।

४. बर्कले का कहना है कि आकार, विस्तार आदि वस्तु के गुण केवल मन का प्रत्यय हैं। इससे सिद्ध होता है कि मन भी आकृतिमय तथा विस्तारमय है। इसका उत्तर देते हुए बर्कले कहते हैं कि यह आलोचना ठीक नहीं। मन में रंग का प्रत्यय विद्यमान है, इसका अर्थ यह नहीं है कि मन रंगीन है।

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि बर्कले के दर्शन में विज्ञान का एक विशेष अर्थ है। बर्कले के आलोचकों का मुख्य तर्क यह है कि बर्कले के अनुसार वस्तु की सत्ता व्यक्ति के प्रत्यक्ष या अनुभव पर आश्रित है। अतः सत्ता या अस्तित्व केवल मानसिक हैं। वस्तुतः बर्कले के अनुसार यह सत्य है कि अस्तित्व विज्ञानरूप होने से मन के बाहर नहीं। परन्तु इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि अस्तित्व या सत्ता केवल व्यक्तिगत मन पर आश्रित है। किसी अस्तित्व का अनुभव हम नहीं करते तो दूसरा करता है, दूसरा भी नहीं तो ईश्वर करता है। अतः सभी वस्तुओं की सत्ता ईश्वर पर आश्रित है।

 

 

आत्मा (Spirit)

पहले हम विचार कर चुके हैं कि हमारे ज्ञान के विषय केवल विज्ञान या प्रत्यय हैं। दूसरे शब्दों में विज्ञान ही ज्ञेय हैं। ज्ञेय ज्ञाता के बिना सम्भव नहीं, अर्थात् ज्ञान का विषय ही ज्ञाता का अस्तित्व सिद्ध करता है। देकार्त के समान बर्कले भी आत्मा की सिद्धि करते हैं। देकार्त ने बतलाया है कि जड़ और चेतन दो सापेक्ष तत्त्व है। बर्कले का कहना है कि इनमें से यदि एक नहीं तो दूसरा अवश्य होगा, अर्थात् यदि जड़ नहीं तो चेतन तत्त्व (आत्मा) का अस्तित्व हमें अवश्य ही स्वीकार करना होगा।। पहले हम देख चुके हैं कि बर्कले ने जड़ तत्त्व के अस्तित्व का निषेध किया है।

लॉक के अनुसार जड़ वस्तु ही विज्ञान या प्रत्यय के कारण हैं, क्योंकि विज्ञान उन्हीं से उत्पन्न होते हैं। बर्कले का कहना है कि मैं जब दिन के प्रकाश में अपनी आँखें खोलता हूँ तो केवल प्रत्ययों का प्रत्यक्ष करता हूँ। इन प्रत्ययों का कारण जड़ तत्त्व नहीं हो सकता; क्योंकि जड़-तत्त्व तो निष्क्रिय है उसमें प्रत्ययों को उत्पन्न करने की शक्ति नहीं। हम कह सकते हैं कि प्रत्यय ही प्रत्यय के कारण हैं। बर्कले के अनुसार यह भी उचित नहीं, क्योंकि प्रत्यय तो निष्क्रिय हैं। अतः उनमें दूसरे को उत्पन्न करने की शक्ति नहीं। साथ ही साथ प्रत्यय निराधार भी नहीं हो सकते।

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अतः पारिशेष्यात् यह स्वीकार करना होगा कि प्रत्ययों का कारण कोई द्रव्य अवश्य है जो इनका आधार या आश्रय है। यह आधार या आश्रय अवश्य ही अजड़ तत्त्व होगा, क्योंकि जड़ तत्त्व की सत्ता ही नहीं। साथ ही साथ इस अजड़ तत्त्व को सक्रिय होना चाहिये, क्योंकि निष्क्रिय किसी का कारण नहीं बन सकता। बर्कले के अनुसार इस प्रकार का सक्रिय तथा अजड़ तत्त्व आत्मा (Spirit) है। यह आत्मा ही ज्ञान का अधिष्ठान है।

आत्मा ज्ञाता है तथा विज्ञान या प्रत्यय ही इसक विषय है। बकले इसी ज्ञाता को मन (Mind), आत्मा (Soul) तथा अहं (Myself) आदि विभिन्न संज्ञा प्रदान करते हैं। इस ज्ञाता का अर्थ ज्ञान या अनुभव करना है। इच्छा करना (Willing), कल्पना करना (Imagining) तथा स्मरण करना (Remembering) आदि सभी ज्ञान के ही रूप हैं। इन सभी मानसिक क्रियाओं से हमें एक की कल्पना करनी पड़ती है जो इन सबका आधार हो। ज्ञान निराधार नहीं है अतः ज्ञाता या आत्मा ही इसका आधार है।

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि विज्ञान क विश्लषण से आत्मा या मन का सिद्धि होती है। अब प्रश्न यह है कि हमें आत्मा का ज्ञान कैसे होता है? बर्कले है। अनुसार आत्मज्ञान स्वानुभूतिगम्य है। कुछ लोग कह सकते हैं कि अहं या आत्मा संकेतित कोई अर्थ ही नहीं; अतः यह निरर्थक है। बर्कले का कहना है कि यह शब्द एक ऐसे यथार्थ वस्तु का संकेत करता है जो न तो कोई प्रत्यय है और न किसी। प्रत्यय के समान है। किन्तु यही (आत्मा) प्रत्ययों का प्रत्यक्ष करता है। उनके बारे में इच्छा तथा मनन करता है। अतः ‘मैं’ शब्द का अर्थ आत्मा या आध्यात्मिक द्रव्य है।

इस आत्मा का ज्ञान हमें स्वानुभूति से होता है। अपनी आत्मा के सम्बन्ध में किसी को सन्देह नहीं। यह पूर्णतः स्पष्ट ज्ञान है जो सद्यः अनुभूति का विषय है। इसके लिये किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं। यदि आत्मा का अस्तित्व न होता तो हम विधि या निषेध किसी भी प्रकार से उसके सम्बन्ध में बात नहीं करते। हम सभी आत्मा के बारे में जानते हैं तभी हम उसके विषय में कुछ स्वीकार करते हैं तथा कुछ निषेध करते हैं। अविद्यमान वस्तु की स्वीकृति और निषेध का प्रश्न ही नहीं उपस्थित होता। इस प्रकार वे अपनी आत्मा के लिये स्वतः अनुभूति को ही प्रमाण मानते हैं। संक्षेप में, बर्कले के आत्मा सम्बन्धी सिद्धान्त के अधोलिखित लक्षण हैं-

१. आत्मा विज्ञान से भिन्न है।

२. विज्ञान ज्ञेय हैं तथा आत्मा ज्ञाता है।

३. आत्मा स्वानुभूतिगम्य है। यद्यपि त्रिभुज या ध्वनि के समान इसका प्रत्यक्ष सम्भव नहीं तो भी यह स्वानुभूतिगम्य है, अर्थात् अपना अनुभव ही इसका प्रमाण है।

४. आत्मा निष्क्रिय नहीं, सक्रिय है। स्वसंवेदनाओं की सृष्टि तथा ईश्वरसृष्ट संवेदनाओं का ग्रहण आत्मा के कार्य हैं।

५. आत्मा सभी मानसिक क्रियाओं का आधार है, जैसे इच्छा करना, कल्पना करना, अनुभव करना, स्मरण करना आदि।

६. अन्य आत्माओं के अस्तित्व का ज्ञान हमें बुद्धि (Reason) के द्वारा होता है, परन्तु अपनी आत्मा के अस्तित्व का ज्ञान हमें सद्यः अनुभूति से होता है।

यहाँ एक स्वाभाविक प्रश्न यह होता है कि अन्य आत्माओं का अस्तित्व है या नहीं? यदि सत्ता अनुभवमूलक है और अनुभव आत्मा पर आश्रित है तो सम्पूर्ण संसार ही व्यक्तिगत आत्मा पर आश्रित होगा। इस दृष्टि से बर्कले आत्मनिष्ठ विज्ञानवादी (Subjective idealist) सिद्ध होंगे। परन्तु वस्तुतः बर्कले आत्मनिष्ठ विज्ञानवादी नहीं, क्योंकि सत्ता व्यक्तिगत आत्मा तक ही सीमित नहीं। बर्कले संसार के अस्तित्व को पूर्णतः स्वीकार करते हैं।

बर्कले स्पष्ट कहते हैं कि हम अपने अस्तित्व का अनुभव आन्तरिक भावना या मनन से करते हैं, परन्तु अन्य की आत्माओं को अनुमान से जानते हैं? अन्य आत्मा भी हमारी आत्मा के समान है। जैसे हम अपनी आत्मा के प्रत्ययों के समान दूसरे की आत्मा के प्रत्ययों को जानते हैं, वैसे ही अन्य आत्माओं को अपनी आत्मा द्वारा जानते हैं। मेरी आत्मा अन्य आत्माओं के समान वैसे ही है जैसे मेरे द्वारा अनुभव किया हुआ नीलापन या गर्मी अन्य आत्मा के द्वारा अनुभूत इन प्रत्ययों के समान है।

इस प्रकार बर्कले अन्य आत्माओं के अस्तित्व को अनुमानगम्य मानते हैं। मुझे अपनी आत्मा के अस्तित्व की सद्यः अनुभूति है। मेरी आत्मा चेतन सक्रिय द्रव्य है जो विज्ञान का आश्रय है। परन्तु मेरी आत्मा ही सभी विज्ञानों को उत्पन्न नहीं करती, अर्थात् मेरे मन में कुछ विज्ञान ऐसे भी हैं जो मेरे द्वारा उत्पन्न नहीं हैं। इन विज्ञानों की उत्पत्ति मेरे ही समान अन्य असीम आत्माओं से हुई है।

 

 

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